दोस्तों इस श्रंखला की पिछली कड़ी में मैने आपलोगों को बताया था की श्रीनाथ जी के राजभोग दर्शन के बाद हम लोग ऑटो लेकर नाथद्वारा के कुछ अन्य स्थल देखने के लिये निकल गए थे अब आगे ……………..
लालबाग, श्रीनाथ जी मंदिर ट्रस्ट के द्वारा बनवाया एक सुन्दर उद्यान है जहां कई तरह के फ़ुलों के पौधे, बच्चों के लिये झुले तथा मनोरंजन के अन्य साधन हैं, यानी सुकुन के कुछ पल बिताने के लिये इस उद्यान में सब कुछ है और छायाचित्रकारी के लिये तो यह उद्यान अति उत्तम है। जब हम यहां पहुंचे तो उस समय यहां हमारे अलावा और कोइ नहीं था, क्योंकि यह बाग दोपहर के बाद ही खुलता है। इस उद्यान में जी भर कर फोटोग्राफी करने के बाद हम अपने ऑटो में सवार होकर अपने अगले पड़ाव यानी गौशाला की ओर बढे।
श्रीनाथ जी की गौशाला में सैकड़ों की संख्या में गायें हैं। रास्ते की दुकानों से दर्शनार्थी इन गायों के खाने के लिये भुसा, गुड़ आदी लेकर जाते हैं, हमनें भी गायों के लिये कुछ सामान लिया और पहुंच गये गौशाला में। इन गायों में एक बड़ी ही सुन्दर थी कहा जाता है की यह कामधेनु गाय है और जो कोइ भी इसके शरीर के नीचे से निकल जाता है, उसे इस कामधेनु गाय का आशिर्वाद मिलता है। अत: हम सब भी बारी बारी से इस गाय के निचे से निकले.
कुछ घंटे बाहर घुमने तथा गौशाला एवं लालबाग देखने के बाद हम वापस मंदिर में आकर लाईन में लग गए। इस तरह शाम तक हमने आठ में से चार दर्शन कर लिये जो हमारी उम्मीद से अधिक था। शाम को अन्तिम दर्शन एवं शयन आरती में शामिल होने के बाद अब हमें भुख लग रही थी अत: एक अच्छे भोजनालय की तलाश में निकले, वैसे मन्दिर ट्रस्ट का भोजनालय भी था जिसमें २० रु. थाली में अच्छा खाना था लेकिन बच्चों ने यहां खाने से साफ़ इन्कार कर दिया था अत: एक गुजराती रेस्टॉरेंट में खाना खाने के बाद हम अपनॆ रुम में आकर सो गए।
अगले दिन सुबह जल्दी उठकर तैयार होकर गेस्ट हॉउस के स्वागत कक्ष की औपचारिकताओं से फ़ारिग होकर हम लोग ऑटो से बस स्टॉप पर आ गये जहां से हमें उदयपुर जाने वाली राजस्थान परिवहन की बस मिल गई, जिसमें सवार होकर हम एकलिंग जी के लिये चल दिए।
एकलिंगजी उदयपुर से लगभग 19 कि.मी. की दुरी पर स्थित एक मंदिर परिसर है। एकलिंगजी राजस्थान का प्रसिद्ध शैव तीर्थस्थान है। मेवाड़ के राणाओं के आराध्यदेव एकलिंग महादेव का मेवाड़ के इतिहास में बहुत महत्व है। कहा जाता है कि डूंगरपुर राज्य की ओर से मूल बाणलिंग के इंद्रसागर में प्रवाहित किए जाने पर वर्तमान चतुर्मुखी लिंग की स्थापना की गई थी। एकलिंग भगवान को साक्षी मानकर मेवाड़ के राणाओं ने अनेक बार ऐतिहासिक महत्व के प्रण किए थे। जब विपत्तियों के थपेड़ों से महाराणा प्रताप का धैर्य टूटने जा रहा था तब उन्होंने अकबर के दरबार में रहकर भी राजपूती गौरव की रक्षा करने वाले बीकानेर के राजा पृथ्वीराज को, उनके उद्बोधन और वीरोचित प्रेरणा से भरे हुए पत्र के उत्तर में जो शब्द लिखे थे वे आज भी अमर हैं-
“तुरुक कहासी मुखपतौ, इणतण सूं इकलिंग, ऊगै जांही ऊगसी प्राची बीच पतंग” अर्थात प्रताप के शरीर रहते एकलिंग की सौगंध है, बादशाह अकबर मेरे मुख से तुर्क ही कह लाएगा। आप निश्चित रहें, सूर्य पूर्व में ही उगेगा’
मेवाड़ के संस्थापक बप्पा रावल ने 8वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण करवाया और एकलिंग की मूर्ति की प्रतिष्ठापना की थी। बाद में यह मंदिर टूटा और पुन:बना था। वर्तमान मंदिर का निर्माण महाराणा रायमल ने 15वीं शताब्दी में करवाया था। इस परिसर में कुल 108 मंदिर हैं। मुख्य मंदिर में एकलिंगजी की चार सिरों वाली मूर्ति स्थापित है। एकलिंग जी की मूर्ति में चारों ओर मुख हैं। अर्थात् यह चतुर्मुख लिंग है। उदयपुर तथा नाथद्वारा से यहाँ जाने के लिए बसें मिलती हैं, क्योंकि यह मंदिर उदयपुर से नाथद्वारा जानेवाली सड़क के एकदम किनारे पर ही स्थित कैलाशपुरी नामक गांव में है।
हम लोग नाथद्वारा से चलकर आधे घंटॆ में करीब आठ बजे कैलाशपुरी में उतर गये, हमें इस मंदिर के टाइम टेबल की कोई जानकारी नहीं थी अत: हम यह सोचकर नाथद्वारा से जल्दी निकले थे की जल्दी दर्शन करके उदयपुर के लिये निकल जायेंगे, लेकिन जब हम यहां पहुंचे तो पता चला की मंदिर तो अभी बंद है और दस बजे खुलेगा, अब लगभग दो घंटे का समय हमें इस छोटे से गांव में कैसे भी पास करना था, बच्चे भी परेशान हो रहे थे और जिद कर रहे थे की अगली गाड़ी से उदयपुर ही चलते हैं लेकिन इतनी दुर आकर एकलिंग भगवान के दर्शन किये बिना जाना भी ठीक नहीं लग रहा था, अत: हम लोगों ने बच्चों को समझाया।
हमें परेशान होते देख पास ही एक दुकान वाले ने हमें बताया की यहां से कुछ एकाध किलोमीटर की दुरी पर एक अद्भूत शिव मंदिर है धारेश्वर महादेव जहां ऎक शिवलिंग है जिस पर हमेशा एक प्राक्रतिक जलधारा गिरती है और यह धार कहां से आती है किसी को पता नहीं। इतना सुनते ही हमारा भी मन हो गया इस मंदिर के दर्शन का, दुकान वाले के यहां अपना सामान रखकर हम पैदल ही धारेश्वर मंदिर के लिये चल दिये, यह हमारे लिये समय व्यतीत करने का एक अच्छा विकल्प था।
मंदिर सचमुच बहुत सुंदर था, बच्चे भी यहां आकर बहुत खुश हुए। यहां हमारा समय कैसे कटा पता ही नहीं चला और जब हमने घड़ी देखी तो दस बज चुके थे, अब हम एकलिंग जी मंदिर के लिये चल पड़े, मंदिर के खुलने का समय हो चुका था और मन्दिर के सामने लाईन भी लग चुकी थी, हालांकि गिने चुने ही लोग थे लाईन में और अब हम भी उस छोटी सी लाईन का हिस्सा बन चुके थे। कुछ समय के इन्तज़ार के बाद मंदिर खुला और जल्दी ही हम मंदिर के अंदर थे।
चुंकि यह सार्वजनिक न होकर उदयपुर राजघराने का निजी मंदिर है, अत: यहां आम जनता अभिषेक नहीं कर सकती है और सिर्फ़ मेवाड़ के राजा तथा राजघराने के सदस्य ही गर्भग्रह में प्रवेश करके अभिषेक आदी कर सकते हैं। अत: हमलोग दुर से ही भगवान एकलिंग के दर्शन करके धन्य हुए।
मंदिर एक किले के रुप में चारों ओर से एक उंची तथा मजबूत दीवार से घिरा है। इस किलेनुमा परिसर के अन्दर बहुत सारे छोटॆ छोटे मंदिर बने हैं, मुख्य मंदिर के गर्भग्रह के अंदर भगवान एकलिंग जी विराजमान हैं, यह एक काले चमकदार पत्थर से निर्मित शिवलिंग है जिसके चारों ओर एक एक मुख बना हुआ है। मंदिर तथा शिवलिंग दोनों ही देखने लायक थे ….अति सुंदर। दर्शन वगैरह से निव्रत्त हो जाने के बाद अब हमें उदयपुर के लिये निकलना था …..इस भाग में इतना ही अब अगले भाग में उदयपुर भ्रमण ……………………..जल्द ही.
नवरात्रि की शुभकामनायें आदरणीय-
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति पर बधाई
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