Monday 31 December 2012

ताजमहल- बेपनाह मोहब्बत की अनमोल निशानी

साथियों,
इस श्रंखला की पिछली पोस्ट में मैंने आपलोगों को अपनी वृन्दावन यात्रा तथा वहां के अनुभवों के बारे में बताया था। वृन्दावन से लौट कर हम लोग अपने अतिथि गृह में आकर खाना खाकर सो गए थे। अगले दिन यानी 23.10.2012 को हमें सुबह आगरा के लिए निकलना था। रितेश गुप्ता जी हमें आगरा में अपने घर आने का आमंत्रण देकर गए थे तथा उन्होंने हमें यह भी आश्वासन दिया था की वे भी अपने परिवार सहित हमारे साथ ताज महल देखने के लिए आयेंगे, यह हमारे लिए बहुत ख़ुशी की बात थी।
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ख़ूबसूरत ताज महल

Thursday 20 December 2012

वृन्दावन – राधा कृष्ण की रासलीला स्थली………….


साथियों, इस श्रंखला की पिछली पोस्ट में मैंने आपको हमारे बृज प्रदेश (मथुरा तथा गोकुल) के पर्यटन तथा भ्रमण की जानकारी दी थी और अब इस पोस्ट के माध्यम से मैं आपको मथुरा के निकट स्थित एक अन्य मनोहारी स्थल वृन्दावन लेकर चलूँगा। वृन्दावन वह स्थान है जहाँ भगवान श्री कृष्ण ने अपनी किशोरावस्था व्यतीत की थी तथा अपनी प्रेयसी राधारानी तथा अन्य गोपियों के साथ रास लीला रचाई थी।

रासलीला (Courtesy -www.dollsofindia.com)
आप लोगों को पता ही है की मथुरा में हमने दो दिनों के लिए एक होटल में एक चार बिस्तर वाला हॉल बुक करवाया था एवं पहले दिन मथुरा और गोकुल की सैर का आनंद लिया और अब दुसरे दिन हमें वृन्दावन जाना था। यह पूरा दिन हमने सिर्फ वृन्दावन के लिए ही रखा था, अतः हमने सोचा सुबह थोडा देर से भी निकलेंगे तो बड़े आराम से वृन्दावन घूम लेंगे क्योंकि मथुरा से वृन्दावन सिर्फ बारह किलोमीटर की ही दुरी पर है।

Monday 10 December 2012

मथुरा एवं गोकुल – नन्हे कन्हैया की मधुर स्मृतियाँ………..


प्रिय साथियों,
लीजिये आज फिर से उपस्थित हूँ मैं अपनी अगली यात्रा कहानी के साथ। छः भागों की इस विस्तृत श्रंखला में मैं आपको ले कर चलूँगा भगवान् कृष्ण की पवित्र भूमि यानी बृज भूमि मथुरा, गोकुल, वृन्दावन तथा उसके बाद आगरा एवं आगरा से होते हुए हम चलेंगे भगवान् विश्वनाथ की नगरी यानी वाराणसी।

Krishna………The greatest musician of this world (Picture courtesy – Google)

कई दिनों से हमारी इच्छा थी की एक एक धार्मिक यात्रा अपने तथा कविता के मम्मी पापा के साथ भी की जाए, तो इस बार निर्णय लिया गया की अपनी अगली यात्रा पर कविता के मम्मी पापा को साथ में लेकर चला जाए और जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने भी बड़ी ख़ुशी से हमारे साथ जाने में अपनी सहमती जाहिर कर दी। अब अगला कदम था स्थान के चयन का सो सबसे पहले अपने सास ससुर जी से पूछा और उन्होंने गंगा जी के दर्शन तथा स्नान की इच्छा जाहिर की।

Friday 23 November 2012

Pushkar - The Brahma Temple


The Brahma Temple

Friends, in my previous post of this series I had mentioned about the Pushkar lake (Sarovar). Now in this post I’ll take you the another major attraction of Pushkar and that is Brahma Temple, the only temple in the world of its kind.

Tuesday 13 November 2012

Oasis of peace and joy in the centre of Pushkar – Hotel Navratan Palace


In the last three posts of this series I have described everything about our short tour of Ajmer and Pushkar, now through this final post I wish to share my experiences with the stay in hotel Navratan Palace in Pushkar.
In our this tour we didn’t had any plan to stay in Ajmer because we had to move to Pushkar from Ajmer in the same afternoon after visiting the Ajmer Dargah Sharif, our plan of night stay was at Pushkar.

Front View of Hotel Navratan Palace
Usually I don’t get any prior booking/reservations for our stay during our tour, because mostly we visit on religious places for pilgrimage and temples and our preference always goes for the hotel / guest house / dharmashala which is as closed to main shrine as possible, so I always prefer to search an accommodation after reaching the destination and by following this practice I had never felt any kind of suffering so far.

Monday 15 October 2012


Teerthraj Pushkar – The Pilgrims Paradise: Pushkar Sarovar 



So, after visiting that beautiful church and praying for few minutes before Jesus, we now had to catch a bus for Pushkar and after some inquiry we were informed that the RSRTC buses ply between Ajmer and Pushkar after every ten minutes from Ajmer bus stand. To reach bus stop we boarded in a city bus who took us to bust stop in ten minutes. Though I had already been to Pushkar around 13 years back, when I visited Ajmer to appear in the Railway Recruitment Board Ajmer’s exam for Junior Engineer after completion of my Engineering.

Aerial View of Pushkar & Pushkar Lake – Courtesy: Google
It was a hot day and we were feeling very uncomfortable due to this heat. As we got down from city bus at bus stop, a bus was ready to leave for Pushkar. We boarded in the bus and our tour from Ajmer to pushkar started, from this bus we saw the famous and huge lake Anasagar of Ajmer. Its indeed a beautiful and scenic lake. After around fifteen minutes run through the Ajmer city the main road leading to Pushkar started. Pushkar is at a distance of around 12 KM’s from Ajmer bus stand and usually it takes approx half an hour to reach there.

Ajmer Sharif – A Day in Dargah of Khwaza Garib Nawaz.


It was middle of June this year and after our Karnataka and Mumbai tour in March, it was a long stretch of about two months that our minds were completely out of any thought of Ghumakkari. For the people like me, two months are equal to two years if I am not on a tour, so now somewhere in June  the travel bug started wriggling badly in my head and I started thinking in this direction and developed an idea to plan a small tour to be carried out in the month of August.

Ya Garib Nawaz

महेश्वर किला – पत्थर की दीवारों में कैद यादें………..भाग 3 (समापन किश्त) By: Kavita Bhalse


 


इस श्रंखला के पिछले भाग में मैंने आपको जानकारी दी थी की किस तरह से हम महेश्वर में अहिल्या घाट पर कुछ देर रूककर नर्मदा में बोटिंग के लिए गए तथा जलस्तर अधिक होने के कारण नर्मदा के बीच टापू पर बने सुन्दर शिव मंदिर में दर्शन नहीं कर पाए. नर्मदा माँ का रौद्र रूप देखा था उस दिन हमने, माँ नर्मदा की बड़ी बड़ी लहरों की वजह से हमारी नाव बुरी तरह से हिचकोले खा रही थी तथा हमें डर लग रहा था लेकिन नाव चालक ने हमें आश्वासन दिया की हमें सुरक्षित किनारे तक ले जाने की उसकी जिम्मेदारी है और फिर हम सारी चिंता, डर छोड़कर बोटिंग का आनंद लेने लगे. पिछले भाग में मैंने माँ नर्मदा का परिचय देने का भी एक छोटा सा प्रयास किया था………………..अब आगे.
बोटिंग तथा शिवम् को घोड़े की सैर कराने के बाद हमने एक छोटी दूकान से कुछ चने एवं ककड़ी खरीदी तथा उन्हें खाते हुए अब आगे बढ़ रहे थे किले में प्रवेश के लिए. घाट के पास से ही किले में प्रवेश करने के लिए एक चौड़ा घेरा लिए बहुत सारी सीढियाँ बनी हुई हैं जिन्हें आपने पिछली पोस्ट्स में किले के चित्रों के साथ देखा ही होगा. इन सीढियों पर चढ़ते हुए हम किले में प्रवेश कर गए. यह किला जितना सुन्दर बाहर  से है उससे भी ज्यादा सुन्दर तथा आकर्षक यह अन्दर से लगता है. इतनी सुन्दर कारीगरी, इतनी सुन्दर शिल्पकारी, इतना सुन्दर एवं मजबूत निर्माण की आज भी यह किला नया जैसा लगता है.
अन्दर जाकर एक तरफ राज राजेश्वर शिव मंदिर है तथा दूसरी तरफ एक अन्य स्मारक है. कुल मिला कर एक बड़ा ही सुन्दर दृश्य उपस्थित होता है. और कहीं जाने के मन ही नहीं होता है तथा ऐसा लगता है की घंटों एक ही जगह खड़े होकर इस किले की नक्काशी तथा कारीगरी, झरोखों, दरवाज़ों एवं दीवारों को बस देखते ही रहें. कुछ देर स्तब्ध होकर चारों और देखने के बाद अब हम राज राजेश्वर मंदिर में दर्शन के लिए चल दिए.

किले में प्रवेश से पहले (ऊपर दिखाई देता राज राजेश्वर मंदिर का शिखर)

महेश्वर – नर्मदा का हर कंकर है शंकर. नमामि देवी नर्मदे – भाग 2


साथियों,
महेश्वर यात्रा की यह दूसरी कड़ी प्रस्तुत कर रही हूँ. पिछली कड़ी में मैंने बताया था की किस तरह हम अगस्त के एक शनिवार को महेश्वर दर्शन के लिए अपनी कार से निकले. महेश्वर नगर का परिचय, महेश्वर में पवित्र नर्मदा नदी के तट पर अहिल्या घाट एवं घाट पर देवी अहिल्या बाई की आदमकद प्रतिमा, उसी से लगा महेश्वर का विशाल एवं सुन्दर किला, शिवम का बोटिंग के लिए जिद करके मुंह फुला कर घाट पर बैठ जाना, बोट वाले से भाव ताव तथा अंत में उफनती हुई नर्मदा पर नाव की सवारी……………..अब आगे.

अमरकंटक में नर्मदा का उद्गम स्थल (ध्यान से देखें, एक गोमुख से निकलती नर्मदा की प्रथम धारा)
आप लोग सोच रहे होंगे की आज की पोस्ट का शीर्षक ” नर्मदा का हर कंकर है शंकर” क्यों रखा गया है, तो मैं बता देना चाहती हूँ की हिन्दू धर्म के विभिन्न शास्त्रों तथा धर्मग्रंथों के अनुसार माँ नर्मदा को यह वरदान प्राप्त था की नर्मदा का हर बड़ा या छोटा पाषण (पत्थर) बिना प्राण प्रतिष्ठा किये ही शिवलिंग के रूप में सर्वत्र पूजित होगा. अतः नर्मदा के हर पत्थर को नर्मदेश्वर महादेव के रूप में घर में लाकर सीधे ही पूजा अभिषेक किया जा सकता है.
चूँकि बात महेश्वर की हो रही है जहाँ का सम्पूर्ण सौंदर्य, सारा महत्त्व ही नर्मदा नदी का ऋणी है अतः नर्मदा मैया के गुणगान के बिना महेश्वर यात्रा एवं मेरी पोस्ट दोनों ही अधूरे हैं अतः आइये जानते हैं पुण्य सलिला सरिता माता नर्मदा के बारे में.
नर्मदा मध्य प्रदेश  और  गुजरात राज्य  में बहने वाली एक प्रमुख नदी है. मैकाल पर्वत के अमरकंटक शिखर से नर्मदा नदी की उत्पत्ति हुई है. मध्य प्रदेश के अनुपपुर जिले में विंध्य और सतपुड़ा पहाड़ों में अमरकंटक नाम का एक छोटा-सा गाँव है उसी के पास से नर्मदा एक गोमुख से निकलती है तथा तेरह सौ किलोमिटर का सफर तय करके अमरकंटक से निकलकर नर्मदा विन्ध्य और सतपुड़ा के बीच से होकर भडूच (भरुच)के पास खम्भात की खाड़ी में अरब सागर से जा मिलती है.. कहते हैं, किसी जमाने में यहाँ पर मेकल, व्यास, भृगु और कपिल आदि ऋषियों ने तप किया था. ध्यानियों के लिए अमरकंटक बहुत ही महत्व का स्थान है. नर्मदा नदी को ही उत्तरी और दक्षिणी भारत की सीमारेखा माना जाता है.
देश की सभी नदियों की अपेक्षा नर्मदा विपरित दिशा में बहती है. नर्मदा एक पहाड़ी नदी होने के कारण कई स्थानों पर इसकी धारा बहुत ऊँचाई से गिरती है. अनेक स्थानों पर यह प्राचीन और बड़ी-बड़ी चट्टानों के बीच से सिंहनाद करती हुई गुजरती हैं.
भारत की नदियों में नर्मदा का अपना महत्व है. न जाने कितनी भूमि को इसने हरा-भरा बनाया है, कितने ही तीर्थ आज भी प्राचीन इतिहास के गवाह है. नर्मदा के जल का राजा है मगरमच्छ जिसके बारे में कहा जाता है कि धरती पर उसका अस्तित्व 25 करोड़ साल पुराना है. माँ नर्मदा मगरमच्छ पर सवार होकर ही यात्रा करती हैं, तो आओ चलते हैं हम भी नर्मदा की यात्रा पर.
धार्मिक महत्त्व:
महाभारत और रामायण ग्रंथों में इसे “रेवां” के नाम से पुकारा गया है, अत: यहाँ के निवासी इसे गंगा से भी पवित्र मानते हैं. लोग ऐसा मानते हैं कि साल में एक बार गंगा स्वयम् एक काली गाय के रूप में आकर इसमें स्नान करती एवं अपने पापों से मुक्त हो श्वेत होकर लौटती है.
नर्मदा, समूचे विश्व मे दिव्य व रहस्यमयी नदी है, इसकी महिमा का वर्णन चारों वेदों की व्याख्या में श्री विष्णु के अवतार वेदव्यास जी ने स्कन्द पुराण के रेवाखंड़ में किया है. इस नदी का प्राकट्य ही, विष्णु द्वारा अवतारों में किए राक्षस-वध के प्रायश्चित के लिए ही प्रभु शिव द्वारा अमरकण्टक  के मैकल पर्वत पर कृपा सागर भगवान शंकर द्वारा १२ वर्ष की दिव्य कन्या के रूप में किया गया. महारूपवती होने के कारण विष्णु आदि देवताओं ने इस कन्या का नामकरण नर्मदा किया. इस दिव्य कन्या नर्मदा ने उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर काशी के पंचक्रोशी क्षेत्र में १०,००० दिव्य वर्षों तक तपस्या करके प्रभु शिव से निम्न ऐसे वरदान प्राप्त किये जो कि अन्य किसी नदी और तीर्थ के पास नहीं है -
प्रलय में भी मेरा नाश न हो. मैं विश्व में एकमात्र पाप-नाशिनी प्रसिद्ध होऊं. मेरा हर पाषाण (नर्मदेश्वर) शिवलिंग के रूप में बिना प्राण-प्रतिष्ठा के पूजित हो. विश्व में हर शिव-मंदिर में इसी दिव्य नदी के नर्मदेश्वर शिवलिंग विराजमान है. कई लोग जो इस रहस्य को नहीं जानते वे दूसरे पाषाण से निर्मित शिवलिंग स्थापित करते हैं ऐसे शिवलिंग भी स्थापित किये जा सकते हैं परन्तु उनकी प्राण-प्रतिष्ठा अनिवार्य है. जबकि श्री नर्मदेश्वर शिवलिंग बिना प्राण के पूजित है.
अकाल पड़ने पर ऋषियों द्वारा तपस्या की. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर दिव्य नदी नर्मदा १२ वर्ष की कन्या के रूप में प्रकट हो गई तब ऋषियों ने नर्मदा की स्तुति की. तब नर्मदा ऋषियों से बोली कि मेरे (नर्मदा के) तट पर देहधारी सद्गुरू से दीक्षा लेकर तपस्या करने पर ही प्रभु शिव की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है.
ग्रंथों में उल्लेख:
रामायण तथा महाभारत और परवर्ती ग्रंथों में इस नदी के विषय में अनेक उल्लेख हैं. पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार नर्मदा की एक नहर किसी सोमवंशी राजा ने निकाली थी जिससे उसका नाम सोमोद्भवा भी पड़ गया था. गुप्तकालीन अमरकोश में भी नर्मदा को ‘सोमोद्भवा’ कहा है. कालिदास ने भी नर्मदा को सोमप्रभवा कहा है. रघुवंश में नर्मदा का उल्लेख है. मेघदूत में रेवा या नर्मदा का सुन्दर वर्णन है.

जय माँ नर्मदे
गंगा हरिद्वार तथा सरस्वती कुरुक्षेत्र में अत्यंत पुण्यमयी कही गई है, किन्तु नर्मदा चाहे गाँव के बगल से बह रही हो या जंगल के बीच से, वे सर्वत्र पुण्यमयी हैं.

सरस्वती का जल तीन दिनों में, यमुनाजी का एक सप्ताह में तथा गंगाजी का जल स्पर्श करते ही पवित्र कर देता है, किन्तु नर्मदा का जल केवल दर्शन मात्र से पावन कर देता है.

नर्मदा में स्नान से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं और अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है. प्रात:काल उठकर नर्मदा का कीर्तन करता है, उसका सात जन्मों का किया हुआ पाप उसी क्षण नष्ट हो जाता है. नर्मदा के जल से तर्पण करने पर पितरोंको तृप्ति और सद्गति प्राप्त होती है. नर्मदा में स्नान करने, गोता लगाने, उसका जल पीने तथा नर्मदा का स्मरण एवं कीर्तन करने से अनेक जन्मों के घोर पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं. नर्मदा समस्त सरिताओं में श्रेष्ठ है. वे सम्पूर्ण जगत् को तारने के लिये ही धरा पर अवतीर्ण हुई हैं. इनकी कृपा से भोग और मोक्ष, दोनो सुलभ हो जाते हैं.
नर्मदा में प्राप्त होने वाले लिंग (नर्मदेश्वर)का महत्त्व :
धर्मग्रन्थों में नर्मदा में प्राप्त होने वाले लिंग (नर्मदेश्वर) की बडी महिमा बतायी गई है. नर्मदेश्वर(लिंग) को स्वयंसिद्ध शिवलिंग माना गया है. इनकी प्राण-प्रतिष्ठा नहीं होती. आवाहन किए बिना इनका पूजन सीधे किया जा सकता है. कल्याण के शिवपुराणांक में वर्तमान श्री विश्वेश्वर-लिंग को नर्मदेश्वर लिङ्ग बताया गया है. मेरुतंत्रके चतुर्दश पटल में स्पष्ट लिखा है कि नर्मदेश्वरके ऊपर चढे हुए सामान को ग्रहण किया जा सकता है. शिव-निर्माल्य के रूप उसका परित्याग नहीं किया जाता. बाणलिङ्ग(नर्मदेश्वर) के ऊपर निवेदित नैवेद्य को प्रसाद की तरह खाया जा सकता है. इस प्रकार नर्मदेश्वर गृहस्थों के लिए सर्वश्रेष्ठ शिवलिंग है. नर्मदा का लिङ्ग भुक्ति और मुक्ति, दोनों देता है. नर्मदा के नर्मदेश्वरअपने विशिष्ट गुणों के कारण शिव-भक्तों के परम आराध्य हैं. भगवती नर्मदा की उपासना युगों से होती आ रही हैं.

नर्मदेश्वर शिवलिंग (नर्मदा से प्राप्त शिवलिंग)
ये तो था एक परिचय माँ नर्मदा से और आइये अब पुनः रुख करते हैं हमारे यात्रा वृत्तान्त की ओर -
चूँकि नर्मदा में पानी बहुत ज्यादा था और बड़ी बड़ी लहरें चल रही थी, हमारी बोट बड़े जोर जोर से लहरों के साथ हिचकोले खा रही थी. हमें डर भी लग रहा था की कहीं कोई अनहोनी न हो जाए, अभी इसी वर्ष अप्रेल में महेश्वर में इसी जगह एक नौका पलट गई थी और उस हादसे में कुछ लोगों की जान चली गई थी अतः हमारा मन एन्जॉय करने में नहीं लग रहा था और हम दोनों सहमे हुए थे, बच्चों को कोई डर नहीं था वे दोनों तो फुल मस्ती कर रहे थे. नाव सीधी बिलकुल भी नहीं चल रही थी और लगातार दोनों तरफ झुकती जा रही थी कभी दायें तो कभी बाएं, हमारी तो जान सुख रही थी. नाव वाले ने हमारी स्थिति समझ ली थी और अब वह हमें आश्वस्त कर रहा था की आप लोग किसी तरह का टेंशन मत लीजिये आपलोगों को सही सलामत किनारे तक पहुंचाने की मेरी जिम्मेदारी है. उसके इस आश्वासन से हमारी जान में जान आई और अब हम भी नर्मदा माँ की लहरों के साथ आनंद उठा तरहे थे.

नाव से दिखाई देता महेश्वर किला

नाव (मोटर बोट) की सवारी का आनंद उठाते बच्चे

………………और बड़े भी

माँ नर्मदा की लहरें …. एक मनोरम दृश्य

नर्मदे हर………..

नर्मदे हर………..
यहाँ सबसे अच्छी बात यह थी की नाव से यानी नर्मदा जी के बीचोबीच से अहिल्या घाट पर स्थित महेश्वर फोर्ट (किला) के फोटो बड़े ही अच्छे आ रहे थे अतः हमने जी भर के नाव से ही किले के बहुत सारे फोटो खींचे. अब हम उस शिव मंदिर के करीब पहुँच गए थे जो नर्मदा नदी में स्थित है.
यह मंदिर पहले एक खँडहर के रूप में था लेकिन सन 2006 में होलकर साम्राज्य के अंतिम शासक महाराजा यशवंतराव होलकर के पुत्र प्रिन्स रिचर्ड होलकर की बेटी राजकुमारी सबरीना के विवाह के उपलक्ष में स्मृति स्वरुप इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया गया.
वैसे यह मंदिर नर्मदा जी में ही स्थित है लेकिन थोड़े किनारे पर जहाँ आम तौर पर उथला पानी होता है, और भक्त जन सीढियों से चढ़ कर मंदिर के दर्शन करते हैं, लेकिन आज नर्मदा का जलस्तर बहुत अधिक होने के कारण यह मंदिर आधा जल में डूब गया था. जब हमारी नाव उस मंदिर के करीब पहुंची तो हमने नाविक से निवेदन किया की थोड़ी देर के लिए मंदिर के पास नाव रोकना हमें दर्शन करने हैं लेकिन नाविक ने बताया की मंदिर की सीढियां पूरी तरह से जलमग्न हैं आपलोग मंदिर में जाओगे कैसे, और फिर कुछ ही देर में हमारी नाव मंदिर के एकदम सामने थी और अब हमने अपनी आँखों से देख लिया की मंदिर में प्रवेश करने संभव नहीं है और हमने नाव में से ही भगवान् के हाथ जोड़ लिए और हमारी नाव वापस अहिल्या घाट की और चल पड़ी.

नाव से दिखाई देता नर्मदा के बिच टापू पर बना शिव मंदिर

नर्मदा में जलमग्न शिव मंदिर नजदीक से

नाव से दिखाई देता घाट

नर्मदा का एक अन्य सुन्दर घाट
कुछ ही देर में हम लोग वापस अहिल्या घाट पर आ गए. सभी के चेहरों पर अपार प्रसन्नता दिखाई दे रही थी, और थकान का कोई नामोनिशान नहीं था क्योंकि हम थके ही नहीं थे, बड़े ही आराम का सफ़र था यह. महेश्वर का यह घाट इतना सुन्दर है की बस घंटों निहारते रहने का मन करता है. चारों और शिव जी के छोटे और बड़े मंदिर, हर जगह शिवलिंग ही शिवलिंग दिखाई देते हैं. सामने देखो तो मां नर्मदा अपने पुरे वेग से प्रवाहित होती दिखाई देती है, आस पास देखो तो शिव मंदिर दिखाई देते हैं और पीछे की और देखो तो महेश्वर का एतिहासिक तथा ख़ूबसूरत किला होलकर राजवंश तथा रानी देवी अहिल्या बाई के शासनकाल की गौरवगाथा का बखान करता प्रतीत होता है.

यात्रियों की प्रतीक्षा में नौकाएं
यह घाट पूरी तरह से शिवमय दिखाई देता है. पुरे घाट पर पाषाण के अनगिनत शिवलिंग निर्मित हैं. यह बताने की  आवश्यकता नहीं है की महेश्वर की महारानी देवी अहिल्या बाई से बढ़कर शिवभक्त आधुनिककाल में कोई नहीं हुआ है और उन्होंने पुरे भारत वर्ष में शिव मंदिरों का तथा घाटों का निर्माण तथा पुनरोद्धार करवाया है, जिनमें प्रमुख हैं वाराणसी का काशी विश्वनाथ मंदिर, एलोरा का घ्रश्नेश्वर ज्योतिर्लिंग, सोमनाथ का प्राचीन मंदिर, महाराष्ट्र का वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर आदि. अब आप सोच सकते हैं अपनी राजधानी से इतनी दूर दूर तक उन्होंने मंदिरों तथा घाटों का निर्माण करवाया तो उनके अपने शहर, अपने निवास स्थान के घाट को जहाँ वे स्वयं नर्मदा के किनारे पर शिव अभिषेक करती थीं उसे कैसा बनवाया होगा? सोचा जा सकता है, वैसे ज्यादा सोचने की आवश्यकता नहीं है, यहाँ आइये और स्वयं देखिये…. हिन्दुस्तान का दिल (MP) आपको बुला रहा है.
लम्बा चौड़ा नर्मदा तट एवं उस पर बने अनेको सुन्दर घाट एवं पाषाण कला का सुन्दर चित्र दिखने वाला किला इस शहर का प्रमुख पर्यटन आकर्षण है. समय समय पर इस शहर की गोद में मनाये जाने वाले तीज त्यौहार, उत्सव पर्व इस शहर की रंगत में चार चाँद लगा देते हैं जिनमें शिवरात्रि स्नान, निमाड़ उत्सव, लोकपर्व गणगौर, नवरात्री, गंगादाष्मी, नर्मदा जयंती, अहिल्या जयंती एवं श्रावण माह के अंतिम सोमवार को भगवान् काशी विश्वनाथ के नगर भ्रमण की शाही सवारी प्रमुख हैं. यहाँ के पेशवा घाट, फणसे घाट, और अहिल्या घाट प्रसिद्द हैं जहाँ तीर्थयात्री शांति से बैठकर ध्यान में डूब सकते हैं. नर्मदा नदी के बालुई किनारे पर बैठकर आप यहाँ के ठेठ ग्रामीण जीवन के दर्शन कर सकते हैं. पीतल के बर्तनों में पानी ले जाती महिलायें, एक किनारे से दुसरे किनारे सामान ले जाते पुरुष एवं किल्लोल करता बचपन……….

पवित्र नर्मदा घाट पर स्नान करते श्रद्धालु
इंदौर के बाद देवी अहिल्या बाई ने महेश्वर को ही अपनी स्थाई राजधानी बना लिया था तथा बाकी का जीवन उन्होंने यहाँ महेश्वर में ही बिताया (अपनी मृत्यु तक). मां नर्मदा का किनारा, किनारे पर सुन्दर घाट, घाट पर कई सारे शिवालय, घाट पर बने अनगिनत शिवलिंग, घाट से ही लगा उनका सुन्दर किला, किले के अन्दर उनका निजी निवास स्थान यही सब देवी अहिल्या को सुकून देता था और उनका मन यहीं रमता था और शायद इसी लिए इंदौर छोड़ कर वे हमेशा की लिए यहीं महेश्वर में आकर रहने लगी एवं महेश्वर को ही अपनी आधिकारिक राजधानी बना लिया. यहाँ के लोग आज भी देवी अहिल्या बाई को “मां साहेब” कह कर सम्मान देते हैं. महेश्वर के घाटों में, बाजारों में, मंदिरों में, गलियों में, यहाँ की वादियों में यहाँ की फिजाओं में सब दूर, हर तरफ देवी अहिल्या बाई की स्मृतियों की बयारें चलती हैं. आज भी महेश्वर की वादियों में देवी अहिल्या बाई अमर है और अमर रहेंगी.
मां नर्मदा सदियों से एक मूकदर्शक की तरह अपने इसी घाट से देवी अहिल्या बाई की भक्ति, उनकी शक्ति, उनका गौरव, उनका वैभव, उनका साम्राज्य, उनका न्याय अपलक देखती आई हैं और आज भी मां रेवा का पवित्र जल देवी अहिल्या बाई की भक्ति का साक्षी है और मां रेवा की लहरें जैसे देवी अहिल्या का गौरव गान करती प्रतीत होती है.  नमामि देवी नर्मदे…..नमामि देवी नर्मेदे…….नमामि देवी नर्मदे.
भगवान् शिव, देवी अहिल्या बाई और मां नर्मदा का वर्णन लिखते लिखते मेरी आँखें भर आई हैं अतः माहौल को थोडा हल्का करने के लिए लौटती हूँ अपने यात्रा विवरण की ओर.
तो हमने अहिल्या घाट पर लगी एक दूकान से कुछ भुट्टे ख़रीदे और चल पड़े ऊपर किले की ओर. घाट पर ही सीढियों के पास एक घोड़े वाला बच्चों को घोड़े की सवारी करवा रहा था, जिसे देखकर शिवम् घोड़े पर घुमने की जिद करने लगा, हमने भी बिना किसी ना नुकुर के उसकी बात मानने में ही भलाई समझी क्योंकि अगर वो किसी चीज की जिद पकड़ लेता है तो फिर पुरे समय तंग करता है और सफ़र का मज़ा किरकिरा हो जाता है. घोड़े वाले ने शिवम् को घाट के एक दो चक्कर लगवाए और अब हम बिना देर किये किले में प्रविष्ट हो गए.

ताज़ी मसालेदार ककड़ी का आनंद

घोड़े की सवारी

महाराणा प्रताप जूनियर
यह किला आज भी पूरी तरह से सुरक्षित है तथा बहुत ही सुन्दर तरीके से बनाया गया है और बड़ी मजबूती के साथ माँ नर्मदा के किनारे पर सदियों से डटा हुआ है. किले के अन्दर प्रवेश करते ही कुछ क़दमों की दुरी तय करने के बाद दिखाई देता है प्राचीन राज राजेश्वर महादेव मंदिर. यह एक विशाल शिव मंदिर मंदिर है जिसका निर्माण किले के अन्दर ही देवी अहिल्याबाई ने करवाया था. यह मंदिर भी किले की ही तरह पूर्णतः सुरक्षित है एवं कहीं से भी खंडित नहीं हुआ है. आज भी यहाँ दोनों समय साफ़ सफाई पूजा पाठ तथा जल अभिषेक वगैरह अनवरत जारी है. देवी अहिल्या बाई इसी मंदिर में रोजाना सुबह शाम पूजा पाठ करती थी. मंदिर के अन्दर प्रवेश वर्जित था अतः हमने बाहर से ही दर्शन किये तथा बाहर से ही जितने संभव हो सके फोटो खींचे. अब हमें थोड़ी थकान सी होने लगी थी क्योंकि काफी देर से पैदल ही घूम रहे थे.
अब मैं अपनी लेखनी को यहीं विराम देती हूँ, फिर मिलेंगे इस श्रंखला के तीसरे एवं अंतिम भाग में 19 सितम्बर शाम छः बजे महेश्वर के किले, महेश्वरी साड़ी, महेश्वर राजवाड़ा, महेश्वर का हिन्दी सिनेमा से सम्बन्ध जैसे कई अनछुए पहलुओं की जानकारी के साथ…….तब तक के लिए हैप्पी घुमक्कड़ी.
(नोट- कुछ चित्र तथा जानकारी गूगल से साभार)

Saturday 15 September 2012

महेश्वर – एक दिन देवी अहिल्या की नगरी में : भाग 1 (By Kavita Bhalse)

सभी घुमक्कड़ साथियों को कविता की ओर से नमस्कार. एक छोटे से अंतराल के बाद आज फिर उपस्थित हूँ मैं आप लोगों के बीच अपनी अगली यात्रा की कहानी के साथ. आज मैं आपलोगों को लेकर चलती हूँ माँ रेवा (नर्मदा) के तट पर स्थित ऐतिहासिक नगरी “महेश्वर” जो अतीत में पुण्य श्लोक मातुश्री देवी अहिल्या बाई होलकर की राजधानी के रूप में तथा वर्तमान में अपने सुन्दर घाटों, मंदिरों, देवी अहिल्याबाई के स्मृति चिन्हों तथा महेश्वरी साडी के लिए भारत भर में प्रसिद्द है.

महेश्वर के अहिल्या घाट पर स्थित देवी अहिल्या बाई होलकर की प्रतिमा.

पिछले कुछ वर्षों से घुमक्कड़ी के शौक ने कुछ इस तरह से जकड़ा है की हर दो तीन महीने के बाद दिमाग में घुमक्कड़ी का कीड़ा कुलबुलाने लगता है, और फिर कवायद शुरू हो जाती है इसे शांत करने की. सबसे पहले केलेंडर खंगालना, फिर बच्चों के वार्षिक केलेंडर देखना की कहाँ से और कैसे छुट्टियों का जुगाड़ हो सकता है और फिर अंततः सारे जोड़ भाग करके कहीं न कहीं जाने का एक टूर प्लान बन ही जाता है.
वैसे हमें महेश्वर जाने के लिए ये सब एक्सरसाइज़ करने की जरुरत नहीं पड़ी क्योंकि महेश्वर हमारे घर के करीब ही है और बड़े आराम से हम एक ही दिन में महेश्वर घूम कर वापस भी आ सकते हैं. वास्तव में यह स्थान हमारे स्थाई निवास स्थान खरगोन के रास्ते में ही पड़ता है अतः हम  मेन रोड (ए. बी. रोड – NH 3) से मात्र 13 किलोमीटर अन्दर जाकर महेश्वर पहुंच सकते हैं.
वैसे तो हम पहले भी एक दो बार महेश्वर जा चुके हैं लेकिन केमरा लेकर घुमक्कड़ी की दृष्टि से कभी नहीं गए थे अतः अबकी बार हमने यह सोचकर रखा था की जब कभी भी समय मिलेगा तो घुमक्कड़ी के लिए महेश्वर जरूर जायेंगे और फिर पिछले महीने के एक शनिवार को मुकेश ने प्रस्ताव रखा की कल यानी सन्डे को महेश्वर चलते हैं, अब भला घुमक्कड़ी के मामले में मुझे क्या आपत्ति हो सकती थी अतः मैंने ख़ुशी ख़ुशी उनके इस प्रस्ताव पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगा दी और आनन् फानन में अगले दिन सुबह ही महेश्वर की एक लघु यात्रा योजना तैयार कर ली गई.
चूँकि हमने अपनी कार से ही जाना था अतः टिकिट रिज़र्वेशन आदि की कोई झंझट थी ही नहीं. रात में ही मैंने दोनों मोबाइल, केमरा आदि चार्ज करने के लिए रख दिए क्योंकि सुबह हमारे पास ज्यादा समय नहीं था, शाम तक वापस जो आना था. शाम को ही बच्चों को बता दिया गया की सुबह उठने में ज्यादा नखरे न करें क्योंकि हम लोग कल सुबह महेश्वर जा रहे हैं. यहाँ मैं यह बता देना उचित समझती हूँ की अब हमारे बच्चों को भी घुमने फिरने में मज़ा आने लगा है, जिस दिन हमने टूर पर जाना होता है दोनों बच्चे बड़े उत्साहित रहते हैं और सुबह जल्दी भी उठ जाते हैं. और फिर यहाँ हमने शाम से ही बच्चों को बोटिंग का लालच दे दिया था अतः दोनों सुबह जल्दी ही उठ गए और तैयार हो गए.
हमारे घर से महेश्वर कुछ 80 किलोमीटर की दुरी पर है तथा आसानी से अपने वाहन से 2 घंटे में पहुंचा जा सकता है. सुबह उठते ही मैं अपने हिस्से के कामों जैसेबच्चों को तैयार करना, नाश्ता वगैरह बनाना आदि में लग गई और मुकेश उनके हिस्से के काम जो उन्हें सबसे ज्यादा उबाऊ लगता है यानी कर की सफाई में लग गए और करीब आठ बजे हम लोग अपने घर से अपनी स्पार्क में सवार होकर महेश्वर के लिए निकल पड़े.

रास्ते में एक पुल पर

महेश्वर – 6 किलोमीटर

देवी अहिल्या की नगरी में आपका स्वागत है

आगमन….
आगे बढ़ने से पहले आइये आपको एक संक्षिप्त परिचय करवा दूँ महेश्वर नगरी से. वैसे महेश्वर किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है फिर भी पाठकों  की सुविधा के लिए थोड़ी सी जानकारी नितांत आवश्यक है.
महेश्वर – एक परिचय:
महेश्वर शहर मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में स्थित है. यह राष्ट्रीय राजमार्ग नं. 3 (आगरा-मुंबई हाइवे) से पूर्व में 13  किलोमीटर अन्दर की ओर बसा हुआ है तथा मध्य प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर से 91 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है. यह नगर नर्मदा नदी के उत्तरी तट पर स्थित है. यह शहर आज़ादी से पहले होलकर मराठा शासकों के इंदौर राज्य की राजधानी था. इस शहर का नाम महेश्वर भगवान् शिव के नाम  महेश के आधार पर पड़ा है अतः महेश्वर का शाब्दिक अर्थ है भगवान् शिव का घर.
पौराणिक लेखों के अनुसार महेश्वर शहर हैहयवंशिय राजा सहस्त्रार्जुन, जिसने रावण को पराजित किया था की राजधानी रहा है. ऋषि जमदग्नि को प्रताड़ित करने के कारण उनके पुत्र भगवान परशुराम ने सहस्त्रार्जुन का वध किया था. कालांतर में यह शहर होलकर वंश की महान महारानी देवी अहिल्या बाई होलकर की राजधानी भी रहा है. नर्मदा नदी के किनारे बसा यह शहर अपने बहुत ही सुन्दर व भव्य घाट तथा महेश्वरी साड़ी के लिए भारत भर में प्रसिद्द है. घाट पर अत्यंत कलात्मक मंदिर हैं जिनमें राजराजेश्वर मंदिर प्रमुख है. आदि गुर शंकराचार्य एवं पंडित मंडन मिश्र का प्रसिद्ध शास्त्रार्थ यहीं संपन्न हुआ था.
इस शहर को महिष्मति नाम से भी जाना जाता है. महेश्वर का रामायण तथा महाभारत में भी उल्लेख मिलता है. देवी अहिल्या बाई होलकर के कालखंड में बनाये गए यहाँ के घाट बहुत सुन्दर हैं और इनका प्रतिबिम्ब नर्मदा नदी के जल में बहुत ख़ूबसूरत दिखाई देता है. महेश्वर इंदौर से ही सबसे नजदीक है.
इंदौर से 90  किलोमीटर की दुरी पर नर्मदा नदी के किनारे बसा यह ख़ूबसूरत पर्यटन स्थल मध्य प्रदेश शासन द्वारा “पवित्र नगरी” का दर्ज़ा प्राप्त है. अपने आप में कला, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं एतिहासिक महत्त्व समेटे यह शहर लगभग 2500 वर्ष पुराना है. मूलतः यह देवी अहिल्या बाई के कुशल शासनकाल और उन्हीं के कार्यकाल (1764 – 1795) में हैदराबादी बुनकरों द्वारा बनाना शुरू की गई “महेश्वरी साड़ी” के लिए आज देश विदेश में प्रसिद्द है.

महेश्वरी साड़ियाँ – देश विदेश में ख्याति प्राप्त
अपने धार्मिक महत्त्व में यह शहर काशी के सामान भगवान् शिव की नगरी है. मंदिरों और शिवालयों की निर्माण श्रंखला के लिए इसे “गुप्त काशी” कहा गया है. अपने पौराणिक महत्त्व में स्कंध पुराण, रेवा खंड तथा वायु पुराण आदि के नर्मदा रहस्य में  इसका “महिष्मति” नाम से उल्लेख मिलता है. एतिहासिक महत्त्व में यह शहर भारतीय संस्कृति में विशेष महत्त्व रखने वाले राजा महिष्मान, राजा सहस्त्रबाहू (जिन्होंने रावण को बंदी बना लिया था) जैसे राजाओं तथा वर पुरुषों की राजधानी रहा है. बाद में होलकर वंश के कार्यकाल में भी इसे प्रमुखता प्राप्त हुई.
महेश्वर के किले के अन्दर रानी अहिल्या बाई की राजगद्दी पर बैठी एक मनोहारी प्रतिमा राखी गई है. महेश्वर में घाट के पास ही कालेश्वर, राजराजेश्वर, विट्ठलेश्वर, और अहिल्येश्वर मंदिर हैं.
ये तो था एक संक्षिप्त परिचय महेश्वर से और अब हम चलते हैं अपने यात्रा वर्णन की ओर. बारिश का मौसम, सुबह सुबह का समय, अपना वाहन और इस सबसे बढ़कर सुहावना मौसम सब कुछ बड़ा ही अच्छा लग रहा था. रास्ते में बाहर जहाँ जहाँ तक निगाह जा रही थी सब दूर हरियाली ही हरियाली दिखाई दे रही थी. हम सभी को बारिश का मौसम बहुत ज्यादा पसंद है, खासकर मुकेश को. जैसे ही मानसून आता है, एक दो बार बारिश होती है बस इनका मन घुमने जाने के लिए मचल उठता है, और हमारे ज्यादातर टूर बारिश के मौसम में ही प्लान किये जाते हैं. मन में बहुत सारा उत्साह बहुत सारी उमंगें लिए हम बढे जा रहे थे अपनी मंजिल की ओर की तभी ऊपर आसमान में बादलों का मिजाज़ बिगड़ने लगा, काले काले बादल घिर आये थे और बिजली की कडकडाहट के साथ तेज बारिश शुरू हो गई. मौसम की सुन्दरता एवं बारिश का आनंद हम कार में बैठ कर तो भरपूर उठा रहे थे लेकिन अब हमें चिंता होने लगी थी की यदि बारिश बंद नहीं हुई तो हम महेश्वर में घुमक्कड़ी तथा फोटोग्राफी का आनंद नहीं उठा पायेंगे और मन ही मन भगवान् से प्रार्थना करने लगे की हमें महेश्वर में बारिश न मिले.
ईश्वर ने हमारी प्रार्थना स्वीकार कर ली थी और कुछ ही देर में मौसम खुल गया और पहले से और ज्यादा खुशगवार हो गया. सड़क के दोनों ओर कुछ देर के अंतराल पर भुट्टे सेंकनेवालों की छोटी छोटी दुकाने मिल रही थी, एक जगह से हमने भी भुट्टे ख़रीदे जो की बड़े ही स्वादिष्ट थे. बीच बीच में हमें जहाँ भी फोटोग्राफी के लिए अच्छा बेकग्राउंड दिखाई देता वहाँ उतर कर हम चित्र भी खिंचते जा रहे थे. बच्चों ने सुबह से कुछ खाया नहीं था अतः वे खाने की जिद करने लगे तो हमें भी भूख का एहसास हुआ और रास्ते में एक होटल से हमने गरमागरम प्याज के पकौड़े और खमण खाया और फिर से चल पड़े अपने सफ़र पर. रोड के किनारे पर लगे माईलस्टोन हमें बता रहे थे बस अब कुछ ही किलोमीटर्स के बाद हमारी मंजिल याने महेश्वर आनेवाला है. कार के स्टीरियो में मनपसंद गाने सुनते हुए और मौसम का आनंद उठाते हुए हम कब महेश्वर पहुँच गए हमें पता ही नहीं चला. करीब दो घंटे का सफ़र तय करके अब हम महेश्वर नगर की सीमा में प्रवेश कर चुके थे.
महेश्वर कस्बे के मुख्य बाज़ार एवं कुछ तंग गलियों को पार करते हुए आखिर हम अहिल्या घाट के पार्किंग स्थल तक पहुँच गए. कार पार्किंग की कुछ औपचारिकताएं पूरी करने के बाद और कुछ ज़रूरी सामान एक छोटे बैग में डालने के बाद हम पैदल ही अहिल्या घाट की ओर बढ़ चले. कुछ ही कदमों के पैदल सफ़र के बाद अब हम महेश्वर के मुख्य आकर्षण यानी अहिल्या घाट पर पहुँच गए थे. इस बार हम काफी लम्बे समय के बाद महेश्वर आये थे अतः सबकुछ नया नया सा ही लग रहा था. बारिश के मौसम तथा लगातार वर्षा की वजह से नर्मदा का जल मटमैला सा हो गया था और चाय की तरह दिखाई दे रहा था. नदी का जलस्तर भी काफी बढ़ा हुआ था.

अहिल्या घाट पर स्थित एक प्राचीन  शिव मंदिर

कहते हैं की गंगा नदी में स्नान से तथा नर्मदा के सिर्फ दर्शनों से कई जन्मों के पापों से मुक्ति मिल जाती है - आप भी कर लीजिये

नर्मदा नदी पर अहिल्या घाट

घाट – एक और चित्र

घाट से दिखाई देता महेश्वर का किला - किले पर ऊपर एक सफ़ेद  भवन जो आप देख रहे हैं वही देवी अहिल्या बाई का निवास स्थान था जिसे आजकल होटल अहिल्या फोर्ट का रूप दे दिया गया है

अहिल्या घाट पर नौका
आम तौर पर लम्बी यात्राओं पर जाने के लिए हमें बहुत सारा सामान, कपडे, कई बेग्स आदि रखने पड़ते हैं लेकिन यहाँ हम इस परेशानी से पूरी तरह से मुक्त थे, बस एक छोटे पोली बेग में टॉवेल वगैरह रख लिया था, और अब हम महेश्वर के प्रसिद्द अहिल्या घाट पर थे. सबसे पहले हम लोग घाट की निचली सीढ़ी पर नर्मदा जी में पैर लटका कर बैठ गए और नदी की लहरों का आनंद लेने के साथ आगे का प्लान भी कर रहे थे. चूँकि मौसम पहले से ही बारिश की वजह से ठंडा हो गया था और हम घर से नहा कर भी चले थे अतः नहाने का तो किसी का मन नहीं था, तो हमने सोचा की पहले घाट के मंदिरों के दर्शन कर लिए जाएँ उसके बाद किला, किले में स्थित मंदिर और देवी अहिल्या बाई की गद्दी, उनका पूजन स्थल, रेवा सोसाइटी के हथकरघे जहाँ स्थानीय महिलायें महेश्वरी साड़ियाँ बुनती हैं आदि जगहों के दर्शन करके अंत में बोट में बैठकर मां नर्मदा का एक चक्कर लगाया जाय. लेकिन हमारे लिटिल चेम्प शिवम् को हमारा यह प्रोग्राम नहीं जमा, उसका कहना था की सबसे पहले बोट में घुमाओ उसके बाद ही बाकी जगह जायेंगे. हम दोनों उसको समझाने की कोशिश कर रहे थे की पहले किला घूम कर आते हैं फिर आराम से बोटिंग करेंगे, लेकिन वो बिलकुल भी मानने को तैयार नहीं था और घाट की सीढियों पर मुंह फुला कर बैठ गया, उसका यूँ गुस्से में मुंह फुला कर बैठना हमें इतना अच्छा लगा की मुकेश ने उसी पोजीशन में उसके दो चार फोटो खिंच लिए. और अंततः हमें उसकी बात माननी पड़ी और सबसे पहले बोटिंग करने का फैसला किया गया.

मुंह फुला कर बैठा शिवम् – उसे सबसे पहले बोटिंग करनी थी
अहिल्या घाट से कुछ ही दुरी पर नर्मदा नदी के बीचोबीच एक सुन्दर सा शिवालय है, नाव वाले यात्रियों को उस मंदिर तक ले कर जाते हैं और वापस अहिल्या घाट पर छोड़ देते हैं. आज चूँकि ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी अतः कुछ नाव वाले ग्राहकों की प्रतीक्षा में ही बैठे थे. हमने एक नाविक से चार्ज पूछा तो उसने बताया की शिव मंदिर तक जाकर लौटने के 300 रुपये लगेंगे और आधी दुरी से वापस आने के 150 रुपये. मुकेश को यह रेट कुछ ज्यादा लगा, और उन्होंने नाव वाले को समझाने की कोशिश की तो वह समझ गया की हम बाहर के नहीं हैं यहीं के रहने वाले हैं और यह हमारा ही गृह जिला है |

अहिल्या घाट – एक अन्य दृश्य

अहिल्या घाट और माँ नर्मदा

सांस्कृतिक नगरी में संस्कृति

बड़े शिवालयों के अलावा महेश्वर के घाटों पर इस तरह के अनगिनत शिव लिंग स्थापित किये गए हैं

घाट का एक अन्य दृश्य

महान शिवभक्त देवी अहिल्या बाई होलकर तथा साथ में खड़ी भक्त की भक्त

घाट पर स्थापित एक अन्य शिवलिंग

घाट से किले तथा किले के अन्दर स्थित प्राचीन राजराजेश्वर मंदिर जिसमें देवी अहिल्या बाई प्रतिदीन पूजन अभिषेक किया करती थीं का विहंगम दृश्य

एक अन्य मनोहारी दृश्य
खैर वह नाव वाला तो भाव ताव करने में ज्यादा रुची नहीं ले रहा था लेकिन पास ही खड़ा दूसरा नाव वाला हमें मात्र 100 रुपये में मंदिर तक का चक्कर लगवाने के लिए राजी हो गया, हम तो खुश हो गए कहाँ 300 रु. की बात हो रही थी और कहाँ 100 रु. में सौदा पक्का हो गया.  और हम सब बिना देर किये नाव में सवार हो गए, अब हमारे छोटे उस्ताद के चेहरे पर लालिमा दौड़ गई थी और वो बड़ा खुश दिखाई दे रहा था. आज के इस भाग में बस इतना ही अब अगले भाग में महेश्वर के अहिल्या घाट के आसपास नर्मदा नदी में नाव की सवारी, तथा महेश्वर के किले के दर्शन करवाउंगी.

नर्मदे हर………….
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