उडुपी :- नारायण अवतार परशुरामजी द्वारा निर्मित 8 मोक्ष क्षेत्र में से एक ( Udupi :- one of the eight centers of salvation created by Parshuarmjee , Incarnation of Lord Narayana ( Vishnu).
नमस्कार मेरे घुमक्कड़ साथियों, काफी लोगों के उत्साहपूर्वक आग्रह के बाद, मैं अपनी घुमक्कड़ी का विवरण हिंदी भाषा में लेकर आया हूँ। हिंदी लिखना मेरे लिए इतना आराम-दायक नहीं है जितनी की अंग्रेजी, फिर भी कोशिश करूँगा की आप लोगों के सामने खरा उतरू। मेरे लिए भक्ति और लोक-कल्याण से श्रेष्ठ कर्म कुछ नहीं है। इसलिए मैं हमेशा भगवान और उसकी कथाएँ आप सबके मध्य बाँटने के साथ-साथ जहाँ-जहाँ जिस-जिस स्थल पर उन्होंने लीला की उन महत्त्वपूर्ण स्थानों का वर्णन करने का प्रयास करूँगा। वैसे तो भगवान सभी जगह पर उपस्थित ही है। हमारे अन्दर हमारी आत्मा में भी है, लेकिन हम इन इन्द्रियों द्वारा उसे पहचान नहीं पाते है। इसलिए भगवान की खोज में हम चलते जाते है, जहाँ पर वे स्वयं शरीर धारण करके लीला करने आ जाते है।ऐसी ही जगह पर मैं आपको आज ले चलूँगा जहां पर स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने लीला की थी, माधवाचार्य को लेकर, उस जगह का नाम है उडुपी, कर्नाटक।
Welcome Readers and fellow Ghumakkars . For me there is no better work than doing Bhakti and goodness to mankind . That is why I come up with stories and legends of Almighty God and places where he has taken Avtaar ( incarnation) . Well God is everywhere even inside us in form of our inner soul, but we can’t recognise him through the senses we have. So we try to find the places where he has taken an avatar. Today I am going to take you the place where Lord Krishna along with JagadGuru Madhavachraya has performed his Leela. The name of the place is Udupi, Coastal Karnataka.
उडुपी परशुराम जी के निर्मित 8 मुक्ति क्षेत्रों में से एक है। बाकी 7 क्षेत्र है- कोंकण, मंगलौर, सुब्रमण्य, शंकरनारायण, कोल्लूर, कोटेश्वर और गोकर्ण।
Udupi is one of the eight Mukti kshetras derived by Lord Parshurama. Rest are Konkan, Mangalore, Subramanya, Shankarnarayana, Kollur, Koteshwar and Gokarna.
और मंदिर के दर्शन कराने से पहले, मैं बताना चाहता हूँ कि किसी भी मंदिर या तीर्थ स्थान पर आप अगर जाते हो तो उसके पीछे एक कथा विशेष जरूर होती है। तीर्थ स्थान की छोडिये आपके घर में भी जो छोटा सा मंदिर है जिसमें आपने आपके इष्ट देव या देवी की मूर्ति स्थापित है, उसके पीछे भी एक छोटी सी कथा तो होती ही है, वह होगी आपकी भक्ति की………………….
And yaa, before going to have glimpse of Lord, I would like to tell that behind any temple or holy place there is a story or legend behind it. Forget Holy Places , even there is a small story behind the temple or Photo of Jesus or Makkah placed at home and that is story of your devotion and faith.
इसलिए जब कोई मंदिर जाए तो उसकी कथा जरूर जान कर जाना चाहिए, इससे आपके पुण्य दुगने हो जाते है। और अगर नहीं मालूम होता है तो उधर के रहने वाले स्थानीय व्यक्ति से अवश्य पूछ ले कि इस मंदिर की क्या महिमा है …………………….
That is the reason always try to find out what is legend behind that place.
और अब चलते है, उडुपी के कृष्ण मठ की कथा की ओर इससे पहले मैं आपको जगद्गुरु माधवाचार्य के बारे में कुछ बताना चाहूँगा……………………….
Before going to Temple I will tell you something about Jagadguru Madhavacharya.
जगद्गुरु माधवाचार्य :- जगद्गुरु माधवाचार्य भक्ति संचार के काल में एक बहुत बड़े और महत्त्वपूर्ण दार्शनिक और तत्वज्ञानी थे। उनका जनम करीब 1238 ई० में उडुपी के नजदीक एक छोटे से गाँव में हुआ। वह वैष्णव धर्म के जाने-माने गुरु थे और उन्होंने स्वयं आपनी बद्री यात्रा में नारद, वेद व्यास तथा अंत में स्वयं नारायण के दर्शन किये थे. आदि शंकराचार्य, निम्बकाचार्या, वल्लभाचार्य और चैतन्य महाप्रभु के साथ साथ उनको भी जगद्गुरु का खिताब मिला है। अब चलते है मंदिर निर्माण की कथा की ओर.
Jagadguru Madhavacharya:- Jagadguru Madhavacharya is a one of the most important philosopher is bhakti movement. He was born in 1938 in a viilage near Udupi. He is important Teacher in Vaishnav Sampradaya ( Path). In his Yatra to Badrinath he had darshan of Sage VedVyaas, Narad Muni and finally Lord Narayan . Along with Adi Shankaracharya,Nimbakacharya,Vallabhachraya, and Chaitanya Mahaprabhu he is called “ JagadGuru.” Now Lets go to the Legend of this Temple Creation.
उडुपी श्री कृष्ण मंदिर की कथा:- 13 वी शताब्दी के मध्य में जब सोमनाथ और द्वारका पर मुसलमान शासकों ने आक्रमण किया तो एक भक्त और नाविक भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति गोपीचंदन से लड़ा कर अपनी नाव में दक्षिण की ओर चला गया. जब वो कर्नाटक की ओर पहुँचा तो एक भयंकर तूफ़ान आने लगा। नाव मालपे ( उडुपी के बाजू में समुद्री गाँव) के नजदीक आई। जहाँ पर जगदगुरु माधवाचार्य ध्यान लगा कर बैठे थे। उन्होंने अपने योग ज्ञान से पूरी नाव को तूफानी समुद्र से बचाया। वह भक्त अपने केसरी वस्त्र को लहरा-कर जगद्गुरु की शरण में आया और कहा की उन्हें क्या चाहिए। तो माधवाचार्य ने भगवान् की मूर्ति माँगी और उसे उडुपी में स्थापित कर दिया।
इस मंदिर की एक और कथा है १६ वी सदी में एक भक्त था उसका नाम कनकदास था| वह भगवान् का शुद्र भक्त था। लेकिन मंदिर के पंडित उसे अन्दर आने नहीं देते थे, क्योंकि वह नीची जाती का था। तो वह मंदिर के पीछे की दीवार से ही हाथ जोड कर भक्ति करता था। उसका भाव इतना शुद्ध और प्रबल था कि स्वयं भगवान कृष्ण ने उसे दर्शन दिए और फिर मंदिर की पीछे वाली दीवार में एक छेद केवल उसके लिए बना दिया। अब उस स्थान पर ( पीछे वाली दीवार पर ) कनकदास के नाम पर एक गोपुरम है और जिस खिड़की ( भगवान ने बनाया हुआ छेद ) से हम दर्शन करते है उसे कनकनकिंदी कहते है।
Durring the attacks of Somanth and Dwarka by Muslim Kings in 13th century , A devotee and Sailor took original idol of Lord Krishna covered with Sandalwood ( Gopi Chandan) in his ship and sailed towards Southern Direction. The ship was caught in a terrible storm while sailing in the western coast of Malpe. When the meditating Sri Madhvacharya sensed this by his ‘aparoksha’ or divine jnana (knowledge), he got the ship safely to the shore by waving the end of his saffron robe and quietening the storm. The pleased captain of the ship offered Sri Madhvacharya anything in the ship in return. Sri Madhvacharya asked for the sandlewood peice containing the statue of Sri Krishna. Later as the story goes, Sri Madhvacharya took it to the lake, purified it and installed it in the Matt.
In the 16th century, during Sri Vaadiraja ‘s rule, Kanakadasa, an ardent believer of God, came to Udupi to worship Lord Krishna. He was not allowed inside the temple since he was from a lower caste. Sri Krishna, pleased by the worship of Kanakadasa created a small hole in the back wall of the temple and turned to face the hole so that Kanakadasa could see him. This hole came to be known as KanakanaKindi
अब चलते है हम लोग हमारी घुमक्कड़ी की ओर- मेरा और मुकेश का परिवार सुबह 5:40 पर उडुपी रेलवे स्टेशन पर पहुँच गया। फिर हमने मंदिर तक ऑटो कर लिया, जिसने हमसे 100 रू चार्ज किये| नहाने और फ्रेश होने के लिए मंदिर ट्रस्ट की धर्मशाला कुछ 100 रू में बुक कर ली। फिर नहा-धो कर हम दर्शन करने के लिए चल दिए।
Now Lets go to our travelogue. At 5.40 am we reached Udupi Station and straight away we caught the auto rickshaw which took us to Udupi temple charging us Rs. 100. For bathing and getting fresh we booked temple Dharamshala for 2 hours which charged us RS. 100.
Then after getting fresh we to take darshan.
चलिए अब दर्शन करते है चित्रों द्वारा. Lets see the photos .
यह गोपुरम कनकदास की याद में बनाया गया है।
This Gopuram was made in memory of Kanakdaas.
इस खिड़की में 9 छेद है। हर एक छेद एक गृह के लिए है, इसे नवग्रह खिड़की और (कनकनकिंदी)भी कहा जाता है। हमें भगवान श्री कृष्ण के दर्शन इसी खिडकी से करने होते है।
This big window has 9 sub windows . This window is called Navgraha( Nine Astrological ) Planets Window and Kanakanakindi also. You have to take darshan of Lord Krishna via this window.
Photo Credits :- The above image is taken from the official website of Mangalorean times ( English Kannada News Portal )
Written permission is given Mr. R. K. Bhat, owner of this photo .
हमेशा मेरी पूरी कोशिश रहेगी की आपको भगवान् की मूर्ती के दर्शन कराऊ, आगे भगवान् की मर्जी…………………….
अब भगवान श्री कृष्ण के दर्शन बाल रूप में कीजिये। यह वही मूर्ति है जो द्वारका से लाई गयी है।
Now have darshan Of Lord Krishna’s Moorti in different decorations which I try my level best to post.
Photo Credits :- The written permission of the images added above are taken from respective owners
1) Rajaraman Nagarajan 2) www.interessantes.at 3) Jnanamoorthy Bhat
नीचे कुछ चित्र मंदिर के आजू-बाजू तथा मंदिर के अंदर के है। Below are few pictures nearby the Temple.
उडुपी श्री कृष्ण मंदिर के सामने शिव शंकर जी के दो मंदिर और है। जिसे अनंतेश्वारा मंदिर और चंद्रमौलेश्वर मंदिरकहा जाता है। इन दोनों मंदिरों के दर्शन उडुपी के मंदिर से पहले किये जाते है। फिर उडुपी श्री कृष्ण मंदिर के दर्शन किये जाते है। चंद्रमौलेश्वर यानी सोमनाथ, यहाँ के लोगों का यह कहना है कि चन्द्रमा ने शिव भगवान की पूजा यहाँ पर की थी. तो चलो मंदिर के दर्शन करते है।
In front of Udupi Shree Krishna Matt There are two temples of Lord Shiva. It is a practice to visit Lord Shiva’s temple first and then visit Shree Krishna temple. The Shiva temples are called Ananteshwaraand Chandramauleshwara temple.People here say that The Moon God did penance here for Lord Shiva to get rid of sins . Lets have visit to these temples.
फिर हम आपको उडुपी का वर्ल्ड प्रसिद्ध खाना खिलाते है, डोसा, मेदु वडा, इडली, पूरी और फिर उनकी बहुत स्वादिस्ट चटनी और सांभर।
Then we had the world famous Udupi food. Dosa, Idli, medu wada , poori are some of the varieties along with sambhaar and chutney.
कोल्लूर :- श्री मुकाम्बिका देवी, भगवान परशुरामजी के मोक्ष क्षेत्रों में देवी का क्षेत्र
आज हमें मुर्डेश्वर किसी भी हालत में पहुँचना था। और उससे पहले हमें कोल्लूर में मुकाम्बिका माता के दर्शन करने थे। तो हम जल्दी जल्दी उडुपी बस अडडा जा पहुँचे और कोल्लूर के लिए बस पकड़ ली। कोल्लूर एक छोटा हिल स्टशन है जो उडुपी से 80 किमी दूर है| हमारे उडुपी के दर्शन कुछ 9:00 बजे तक हो गए थे, फिर हम निकल पड़े कोल्लूर की ओर। हमें डायरेक्ट बस मिली उडुपी बस स्टैंड से 10:00 बजे, हम कोल्लूर पहुँच गए 12:00 बजे| हमने फ्रेश होने के लिए बस स्टैंड में ही एक रूम बुक कर लिया जो हमें केवल 60 रु में मिला था। फ्रेश होकर हम चल पडे मुकाम्बिका देवी के दर्शन करने।
Kollur :- Shree Mookambika Devi , One of the Eight salvation Centers Created by Lord Parashuram.
Today we had to reach Murdeshwar any how. And before that we had to reach Kollur, Mookambika Temple.Then we went to Udupi Bus Stand and caught the bus to Kollur.Kollur is a small Hill station around 80 km from Udupi. We had our darshan around 9.00 am and then we proceeded towards Kollur.We got direct bus from Udupi bus station at around 10.00 am. We reached Kollur at 12.00 noon. For getting fresh we hired a room in bus stand itself for arounfd 60 Rs. And after getting fresh We went to darshan of Mookambika devi.
श्री कोल्लूर देवी मुकाम्बिका की कथा:- बहुत सदियों पहले की बात है, वहाँ कौमासुर नाम का एक राक्षस हुआ करता था। कौमासुर ने भगवान शिव की तपस्या करके बहुत सी शक्तियाँ प्रदान करने वाले वर माँग लिए। और वर प्राप्त करने के बाद त्राहि-त्राहि मचाने लगा। सप्तऋषियों ने उसके संहार प्रार्थना शुरू कर दी, तो उसके गुरु शुक्राचार्य ने उसे बता दिया के सारे ऋषि उसके अंत के लिए प्रार्थना कर रहे है। तो फिर उसने शिव की तपस्या शुरू कर दी जिससे इस बार वह और शक्तिशाली बन जाये, लेकिन जब भोलेनाथ इस बार प्रकट होते है तो वाग देवी ( भाषण भावना की देवी ) यह सोच कर की कौमासुर और तबाही मचा देगा, उसे गूंगा बना देती है। वह भगवान शिव के सामने कुछ बोल ही नहीं पाता। गूंगा कौमासुर फिर उस क्षण से मूकासुर कहलाने लगता है। फिर कोला ऋषि के आग्रह से आदि शक्ति महादेवी सारे देवताओं की शक्ति एक साथ एकत्रित करती है और मूकासुर के साथ युद्ध आरम्भ करती है। मूकासुर को मारकर उसे मोक्ष प्रदान करती है। तब से देवी कोल्लूर में वास करती है। देवी एक स्वयम्भू शिवलिंग रुप में से प्रकट हुई थी, इस लिए देवी का रूप शिवलिंग के रूप में है। आईये अब मंदिर के दर्शन करते है। मंदिर के अंदर गर्भग्रह में पुरुषों को शर्ट/कमीज उतारनी पड़ती है। पाजामा या पेंट लूँगी पर कोई पाबन्दी नहीं है।
Legend of Kollur Mookambika Devi:- Long ago when a demon called Kaumasura obtained a boon from Lord Shiva was reigning pompously, Kodachadri became the hiding place for all the gods and divine beings who became helpless against his harassment. While the Saptarishis were engaged in prayers and poojas to bring about the end of demon kaumasura, Guru Shukracharya enlightens him about his impending death at the hands of a woman. Learning this, kaumasura performs an austere penance t please Lord Shiva. When Lord pleased with his prayers, appears before him and asks him to name the boon that he wishes, Vagdevi, the Goddess of speech senses that this could lead to a greater devastation and makes him speechless. The dumb Kaumasura then becomes unable to verbalise his wishes and then onwards he is called Mookasura. Soon after, on the request of Kola Rishi, the goddess creates a mystical power by bringing together the individual powers of all the gods who had assembled. This Divine Power wages war on Mookasura and brings about his destruction, thereby granting him salvation. The place where devi killed Mookasura is known as “Marana Katte”. Since that day, the Goddess has resided at this holy place Kollur by the name Mookambika, fulfilling the wishes of all her devotees. Now Lets do darshan of Kollur Mookambika devi. Inside the sanctrum wearing shirt is not allowed.
देवी मुकाम्बिका का प्रसाद :- एक बात तो रह ही गयी थी कि कोल्लूर मुकाम्बिका देवी मंदिर की बात यह है यहाँ जो भी भक्त दोपहर 12:30 से 2:30 के बीच में आता हो, उसे देवी के प्रसाद का लाभ मिलता है वह भी मुफ्त में| वरना आज कल हर जगह प्रसाद के लिए भी पैसे देने पड़ते है| उसमें भी मुनाफा देखा जाता है। यहाँ का प्रसाद सम्पूर्ण भोजन के रूप में आदमी की भूख को तृप्त करता है। हम दोनों के परिवार ने सच्चे मन से तृप्त होकर इस प्रसाद का सेवन किया था। बहुत ही स्वादिष्ट प्रसाद था, पहलें केले के पत्तों के बिछाने का आरम्भ होता है, फिर उन पत्तों पर पानी मारा जाता है साफ़ करने के लिए, फिर दो पुरुष चावल की गाडी लेकर चावल परोसते है, चावल के बाद आती है सांभर की बारी, चावल के ऊपर सांभर परोसने के बाद प्रसाद का सेवन शुरू कर सकते है। चावल और सांभर दो बार परोसे जाते है। जो एक आम मनुष्य को पेट भरने के लिए काफी है। उसके बाद वह लोग एक रस वाली मिठाई परोसते है और फिर छाछ। यह सब खाने के बाद केवल नींद आती है। हम लोगों ने प्रसाद के सेवन के बाद कुछ देर वहाँ पर शापिंग की, संस्कृति ने एक अंग्रेजी स्टाइल की सफ़ेद टोपी ली। हम लोगों ने कुछ खाने पीने का सामान भी लिया था।
Prasad of Shree Mookambika Devi :- whoever visits temple of Kollur Mookambika devi from 12.30 to 2.30 gets free Prasad of Mookambika devi. Whereas Nowadays even Prasad is charged. Even profits are calculated there. But here a devotee gets Prasad in form of whole lunch which is enough for a normal person. Our families enjoyed and were satisfied with this Prasad. First of all banana leaves are served. We have to clean that with water and then dry it. After that a car full of rice comes and serves you rice.And then sambhaar is poured on it. This happens twice and is very delicious, fresh and hot. Then they serve some liquid sweet dish. And finally buttermilk. Then we did some shopping there. Sanskriti took a foreign styled hat and we took some eateries.
हमने जो दो मंदिर में आपको दर्शन कराये , श्री कृष्ण मंदिर, उडुपी,और श्री मूकाम्बिका मंदिर , कोल्लूर , यहापर कोई भी पंडित आपके पीछे नहीं लगता पूजा पाठ और अभिशेख के लिए. Here in Udupi and Kollur no priest or Brahmin comes and pitches for pooja or abhishekh.
फिर हम 2:30 बजे निकल पड़े मुर्डेश्वर की ओर। बस पकड़कर बैंदूर पहुँच गए, जो 27 किमी दूर है, और फिर उधर से मुर्डेश्वर। बैंदूर से हमें मुर्डेश्वर के लिए बस मिली जो करीब ४० किमी की दूरी पर है ।
Then at 2.30 pm we moved towards Murdeshwar. First we caught bus to Byndoor ( 27 kms) and then towards Murdeshwar. We get bus to Murdeshwar ( 40 kms) via Byndoor.
उडुपी मंगलोर से कुछ ६० किमी की दूरी पर है जो हायवे द्वारा अच्छी तरह से जुडा हुआ है. आपको बस सुविधाओ की कमी नहीं मिलेगी.
मुंबई , दिल्ली, बंगलोर और चेन्नई से सीधी ट्रेन है. दिल्ली से हज़रत निजामुद्दीन – त्रिवेंद्रम राजधानी एक्सप्रेस ( १२४३२) और मंगला लक्षदीप एक्सप्रेस ( १२६१८) है जो उडुपी रेलवे स्टेशन पर रूकती है ..
Udupi is 60 kms from Mangalore well connected with highways and with good bus frequencies.There are direct Trains from Mumbai ,Delhi, Chennai and Bangalore.From Delhi Trivandrum Rajdhani Express (12432) and Mangala lakshyadeep Express ( 12618) run and stop at Udupi railway station.
मुर्डेश्वर में आपको अगली पोस्ट में ले चलूँगा। जिसकी एक अलग ही महिमा है। तब तक के लिये ………………..जय भोले नाथ………….. जय श्री कृष्ण…………………………
I am going to take you to Murdeshwar which has its own Legend. till then Jai Bholenath and Jai Shree Krishna………………………..
( यह पोस्ट मेरे द्वारा लिखी जरूर गयी है , लेकिन इसकी वर्तनी का सुधार हमारे जाट देवता संदीप पंवार ने किया है , तो मेरी तरफ से उनको बहुत बहुत धन्यवाद………..)
आपने इस विषय पर बहुत अच्छी समझ प्रदान की है। मैं अब इसे और अधिक समझ पा रहा हूँ। मेरा यह लेख भी देखें उडुपी के दार्शनिक स्थल
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