मुरुडेश्वर खूबसूरती का प्रतिक ,अध्यात्मक शांती का निवास और मनोरंजन का भण्डार
फोटो का श्रेय :- ऊपर वाली फोटो मंदिर की वेबसाइट के ” download ” section से ली गयी है .
१७ मार्च २०१२
हम कुछ शाम को ५.३० को मुरुडेश्वर पहुँच गए. वैसे तो मुरुडेश्वर में काफी होटल है लेकिन काफी महंगे है.कम से कम होटल ८०० रू से शुरू होते है वह भी एक-दम साधारण सुविधा वाली क्योंकि मुरुडेश्वर एक धार्मिक, पिकनिक तथा अवकाश बिताने वाला गंतव्य है.लेकिन मेरी काफी कोशिश के बाद मुझे इंटरनेट से पंचवटी निवास की जानकारी मिली.
मैंने मुकेश को नंबर दिया १० दिन जाने से पहले और कहा की दो रूम बुक कर दे और उसने किया.
पंचवटी निवास :- बस यह निवास को देखकर हमारी सारी थकन मिट गयी. एकदम समुद्र के सामने उस निवास में चारों ओर शान्ति है. मंदिर के परिसर से केवल ३ मिनट की दूरी पर इस निवास से पूरा समुद्र नज़र आता है. दिन भर ठंडा पवन और रात को समुद्र की लहरों की मधुर आवाज़ कानों में आती है. हमने वहाँ पहुँच कर सबसे पहले, पहली मंजिल पर दो कमरे ले लिए. ऊपर से नज़ारे काफी अच्छे थे. निवास के आगे नारियल के पेडो और फूलों के पौधों का एक बागीचा है जो खूबसूरती पर चार चंद लगा देता है. मेरा यह बिलकुल समुद्र के सामने पहली बार ठहराव था. वाह मजा आ गया. रूम में साधारण सुविधाएँ के साथ साथ टीवी, गरम पानी और सीधे समुद्र के हसीं नज़ारे बिलकुल मुफ्त है.यह सब केवल ४०० रू प्रतिदिन.
आपको श्रीदेवी और अनिल कपूर की फिल्म “मिस्टर इंडिया” तो याद होगी क्या ???
अनिल कपूर श्रीदेवीजी अपना रूम किराया देते वक्त मार्केटिंग करते है “वाह क्या कमरा है. कमरे के आगे गार्डन. गार्डन के आगे समुंदर.और समुन्दर से आती ठंडी हवा.”
बस ऐसा ही दृश्य यहाँ था , जहां बच्चे भी नहीं थे , तो श्रीदेविजी को यह कमरा बहुत पसंद आता .पक्की बात है.
सामान रख के मैं पहले तो आजू-बाजू की जगह जैसे की मंदिर, खाने पीने के लिए होटल, दवा की दूकान, मंदिर में दर्शन आरती का वक्त आदि देखने के लिए चला गया.
मैंने महसूस किया की वाह क्या जगह है . ऐसी जगह न तो मैंने कभी देखी है . मैंने न केवल नैसर्गिक सौंदर्य का आभास किया परआध्यात्मिक शान्ति भी महसूस की.
मैंने केमेरे से फोटो खीचना शुरू किया तो बस दूसरे दिन शाम को ५ बजे तक खिचता ही रहा. उस समय मैंने मंदिर में जाकर दर्शन किये और उसके परिसर में घूमा फिर समुद्र तट पर.
अब मैं आपको कुछ मुरुडेश्वर शहर के बारे में बता दूं.
मुरुडेश्वर :- मुरुडेश्वर एक धार्मिक शहर है जिसकी महिमा मैंने आपको मेरी पिछली पोस्ट मैं बता ही दी थी. यह उत्तर कन्नड जिल्ले में NH – 17 हायवे पर स्थित है और मेंगलोर से १६० किमी की दूरी पर है. वहाँ पर दिल दहलाने वाली खूबसूरती और शान्ति है. अरब सागर के समुद्र तट पर यह पिकनिक और छुटियाँ बिताने का भी स्थल है. यहाँ वाटर स्कूटर , बंजी जम्पिंग , फॅमिली बोटिंग आदि जैसे वाटर स्पोट्स है जो यह जगह को खूबसूरती , मनोरंजन, धर्मं, शान्ति और विश्राम का एक पैकेज बना देता है.
मुरुडेश्वर का विकास आर.एन.शेट्टी ने किया है जो की एक बहुत बड़े व्यापारी है. मंदिर से लेकर मंदिर का परिसर, ट्रस्ट और यहाँ एक होटल भी उन्होंने बनवा दी है. होटल नवीन बीच रिसोर्ट नाम की एक बहुत ही बढ़िया होटल और नवीन बीच रेस्तौरेंट, आर एन शेट्टी गेस्ट हॉउस और धर्मशाला भी उनके नाम है जिसकी वजह से मुरुडेश्वर ज्यादा प्रसिद्ध हुआ है .
मुरुडेश्वर आते वक्त मेरा कहना है की आप अपने केमेरे में कम से कम २०० फोटो की जगह तो कर ही ले क्योंकि मेरे हिसाब से यह भी कम ही होंगी इतनी फोटोजेनिक जगह है.
और इससे ज्यादा मैं मुरुडेश्वर के बारे में बता नहीं सकता हूँ मेरे विवरण में. आइये अब कुछ चित्र देखते है जो मैंने शाम को लिए थे जब मैं सामान्य जानकारी निकालने गया था.
मुरुडेश्वर मंदिर का राजगोपुरम :- मुरुडेश्वर का राजगोपुरम दुनिया का सबसे ऊंचा गोपुरम है. इसकी ऊंचाई २४९ फीट की है. इसकी सबसे ऊंची 20 मंजिल पर हम लिफ्ट की मदद से जा सकते है. यहाँ जाने के १० रू का चार्ज है. मैं लिफ्ट में ऊपर गया और बहुत सारी तस्वीरे ली करीब १५ से २० मं तक. यहाँ से बहुत बढ़िया नज़ारे है समुन्दर के साथ शिवजी की मूर्ती और सूर्य देव . वाह क्या कहना!
आर.एन.शेट्टी का प्लान है की इसके हर एक मंजिल में एक संग्राहलय बनाया जाए ताकि कला के चाहने वालो को यहाँ पर मजा आ जाये
नवीन बीच रेस्तौरेंट :- ठीक मंदिर के परिसर के बाजू में समुन्द्र के थोड़े भीतर सीमेंट के स्तंभ पर स्थित है यह खाने पीने की होटल. बहुत बढ़िया दक्षिण, अच्छा उत्तर भारत का (पंजाबी) और चाइनीस शाकाहारी खाना यहाँ मिलता है वह भी ठीक ठाक दामो में. और यहाँ से समुन्दर के नज़ारे बहुत बढ़िया लगते है. समुद्र की लहरें नीचे होटल के स्तंभों के साथ टकराती है . जिससे बहुत ही बढ़िया आवाज़ आती है और खाने साथ साथ समुद्र के संगीत का मजा आता है . ऐसा लगता है की हम समुन्दर के ऊपर बैठ कर खा रहे है. इसी होटल में हमने रात का खाना, सुबह की चाय और नाश्ता, दुपहर का खाना और नाश्ता किया. किसी भी शक के बिना आप यहाँ पर भोजन या नाश्ता कर सकते है.
मुरुडेश्वर मंदिर की शिव मूर्ती :- मुरुडेश्वर की शिव मूर्ती दुनिया में सबसे ऊंची मूर्ती थी पूरे १२३ फीट की. लेकिन जब यह मूर्ती बनी तो नेपाल के काटमांडू शहर में एक और शिव की मूर्ती बनी उसे प्रतियोगिता में जिसकी ऊँचाई १४३ फीट है.इस मूर्ती पर चांदी और स्वर्ण रंग के पैंट मारे गए है जिससे रात को यह बहुत चमकती है.
आइये अब भगवान के दर्शन करते है.
रात में मुरुडेश्वर में कुछ अलग ही भाव लगता है. जो भी मुरुडेश्वर आये वो रात को जरूर रुके क्योंकि मूर्ती और गोपुरम पर लाइट का मजा कुछ अलग ही है. पूरी रात लाइट जलती है जिससे हम स्वर्ग में आ गए है ऐसा लगता है. भोलेनाथ की मूर्ती पर चांदी वाले रंग का पैंट मरा है . उस पर रात को उज्जवल और फोकस वाली लाइट उनके चेहरे पर गिरती है. ऐसा लगता है की भोलेनाथ की मूर्ती ही नहीं स्वयं भोलेनाथं बैठे है. और अभी बोल पड़ेंगे
करीब डेढ़ दो घंटे बाद जानकारी लेकर में पहुंचा पंचवटी निवास जहा मैंने सब को फ्रेश होने के लिए कहा था . मैं भी फ्रेश हो गया और हम निकल पड़े खाना खाने के लिए नवीन बीच रेस्तौरेंट में. स्वादिष्ट पंजाबी भोजन करके मन तृप्त हो गया खासतौर पे मुकेश का परिवार
मुरुडेश्वर मंदिर के परिसर के चित्र :- क्यूंकि मुरुडेश्वर का विवरण ज्यादा चित्रों द्वारा ज्यादा अच्छा लगता है, तो मंदिर के परिसर के चित्र देखिये .
हम खाना खाके घर पर आ गए थे. बहुत थक गए थे. सुबह इडागूंजी जो मुरुडेश्वर से २१ किमी दूर है वहा भी जाना था रात के कुछ १० बजे थे मेरा और मुकेश के परिवार ने बाहर बालकोनी में एक सोफा पर बैठकर बहुत सारी बाते की. करीब ११ बजे हम लोग सोने गए तब मुकेश ने कहा की वह सुबह इडागूंजी नहीं आ रहा है क्योंकि दो रातो के ट्रेन के सफर से काफी थक गया है और मुरुडेश्वर में विश्राम करेगा. मैंने कहा ठीक है. मैं सोनाली और आर्या चले जायेंगे. फिर हम सोने चले गए. पलक झपकते ही नींद आ गयी .
१८ मार्च २०१२
मुरुडेश्वर से इडागूंजी :- हम सुबह उठ गए ६.०० बजे और स्नान करके इडागूंजी कीओर चल पड़े, जहा पर महागणपति विराजमान है. इडागूंजी मुरुडेश्वर से २१ किमी दूर उत्तर की ओर है जो राष्ट्रीय हायवे NH – 17 से ५ किमी दूर है. वहाँ जाने के लिए आपको दो तीन वाहन बदलने पड़ेंगे या फिर ऑटो रिक्शा पकडनी पड़ेगी. ऑटो रिक्शा आप से ३५० रू चार्ज करेगी . लेकिन ३५० रू में आप जाकर आ सकते हो केवल दो ढाई घंटे में .चलिए मेरे साथ अब इडागूंजी की ओर . सुबह सुबह ७.०० बजे समुद्र बहुत खूबसूरत लगता है जब सूरज की किरणे थोड़ी कम गर्मी देती है और सामने से पवन आता है . यह एक अलग ही अनुभूति है जिसे आप और केवल आप ही अनुभव आकर सकते हो, मैं तो क्या कोई भी यह विवरण यह पूरी तरह से बता सकता है.
मुरुडेश्वर से इडागूंजी जाने का रास्ता :- हम ऑटो रिक्शा में मुरुडेश्वर क्रोस ( २ किमी) यानि की हायवे पहुच गए. और वहाँ से निकल पड़े उत्तर की ओर यानी मुंबई की तरफ. करीब १० – १२ किमी तक हम हाईवे पर आगे चलते गए और फिर आता है इडागूंजी क्रोस. वहाँ से हमें पूर्व की दिशा में जाना होता है जंगल की तरफ . और वाह ! अंदर जंगल में जाते वक्त क्या नज़ारे है . रोड के दोनों तरफ नारियल और सुपारी के जाड के घने जंगल और बीच बीच में एक बँगला आता है . और देखते ही देखते २ किमी अंदर जाते ही मौसम ठंडा हो गया और हमें ठंडी लगने लगी वोह भी गर्मी के मौसम में. और दूसरी बात की वहाँ इतनी शान्ति थी कि अगर हम रुक जाये हमारी ऑटो बंद करके तो केवल पक्षियों और जानवर के मधुर गीत सुनाई देते है. यहाँ पर एक फ़ार्म हाऊस होना जरूरी है, ऐसा लगता है. बीच बीच में कुछ छोटी नदियों के प्रवाह भी दिखाई दे रही थी जिससे प्राकृतिक सौंदर्य और भी बढ़ रहा था. वाह क्या जगह है !
कोई भी मुरुडेश्वर जाए तो इडागूंजी जरूर जाए वरना आप कुछ मिस करेंगे यह मेरा दवा है………………….केवल २ घंटे लगते है ऑटो रिक्क्षा में.
कर्नाटक के काजू :- सुपारी और नारियल के पेड के साथ साथ वहाँ पर और पूरे NH – 17 पर काजू के पेड भी है. काजू के पेड वहाँ बाहर उगते है. काजू का सबसे ज्यादा उत्पादन कर्नाटक में ही होता है. काजू खाने में बहुत स्वादिष्ट होते है , उन्हें दवाइयों में भी इस्तमाल किया जाता है. और गोवा में फेनी नाम की एक ड्रिंक भी बनाते है जो शराब जैसा नशा देती है.
यहाँ पर हर एक रेलवे स्टेशन पर आपको काजू के पैकेट बिकते हुए दिखेंगे . यहाँ कर्णाटक की सरकार के कर्मचारी स्वयं हेलिकोप्टर द्वारा हर एक काजू के पेड पर दवाईया छिडकते है. एक खास कार्यालय है केवल इसी काम के लिए. वाह कितनी अच्छी पहल और उपक्रम है . सभी सरकार को ऐसी पहल करनी चाहिए अपने अपने राज्यों के पेडो को बीमारियों और किटाणु से बचने के लिए.
करीब ८-९ किमी NH -17 से पूर्व की तरफ हम पहुँच गए इडागूंजी मंदिर . हमें करीब ३५ – ४० मिनिट लगी पहुँचने के लिए .
इडागूंजी महागणपती की छोटी गाथा :- द्वापर युग के अंत में सारे अमर संत बद्रिकाश्रम में पूजा करते सूत पौर्निका को , कलयुग के दोषों को हटाने के लिए श्री कृष्ण के कहने पर .संत वलखिल्य इस संत के जुंड के प्रमुख थे और उन्होंने यह पूजा शुरू की. लेकिन कोई न कोई बाधा बीच में आ ही रही थी. फिर से उन्होंने श्री कृष्ण को पुकारा तो श्री नारद मुनि आये संत वलखिल्य के पास. उन्होंने नारदजी का स्वागत किया और सारी कठिनाई बता दी और उनका वास्तविक निवारण का उपचार बताने को कहा.
नारादजी ने श्री विग्नेश्वर की पूजा करने का उपचार बताया.तो फिर संत वलखिल्य ने उचित सहन बताने को कहा . नारदजी उन्हें पश्चिम की ओर श्रवती नदी के करीब एक पवित्र स्थान बताया . कहा की असुरों के संहार के लिए स्वयं तीनो त्रिदेव भी यहाँ तपस्या करते थे. इसी कारण वहाँ पर त्रिदेव ने दो कुंद भी बनाए है. सारे संतो ने पूजा शुरू की तो नारदजी ने स्वयं तीनो त्रिदेव ब्रह्मा ,विष्णु और महेश को आमंत्रित किया उस पूजा में . फिर तीन त्रिदेवो और सारे देवता सहित सारे संतो ने पूजा की. पहले जगदंबा पार्वती को पूजा की वह अपने पुत्र गणेश को भेजने की आज्ञा दे. और फिर पार्वतीजी के श्री गणेश आये और उस शंका का निवारण किया . इसलिए इस जगह की महिमा बहुत है क्योंकि इस जगह सारे हिंदू त्रिदेव, सारे महान और अमर संत और तैतीस करोड देवताओं ने पूजा की .
इडागूंजी का मंदिर बहुत पुरातन है करीब १५०० साल पुराना और यहा पर रहने की व्यवस्था भी है. ज्यादा जानकारी के लिए देखो
इदागुंजी महागणपति विग्नेश्वर की मूर्ती स्वयम्भू है और इस जैसी मूर्ती कही भी नहीं है. यह मूर्ती बड़ी है और खड़ी मुद्रा में है. उनके पैर बहुत छोटे है और उनके सर पर एक गड्ढा भी है .उनके एक हाथ में कमाल का फूल और एक हाथ में मोदक है. काले पत्थर की यह मूर्ती बड़ी प्यारी लगती है . गणपतिजी के ऐसे दर्शन करके मन बाघबान हो गया . आइये अब कीजिये भगवान विग्नेश्वर महागणपती के दर्शन.
विग्नेश्वर महागणपती के फोटो का श्रेय :- ऊपर वाली फोटो का श्रेय Sreeni Somakumar को जाता है जिन्होंने अपने ब्लॉग में लगाई है.
आते वक्त हमने इडागूंजी से कुछ भूंगडो (नलिया) ( आप लोग इसे क्या नाम देते हो? ) का पैकेट लिए ( आप सोनाली को फोटो में देख सकते है ) यह पीले रंग गोल गोल पाईप जैसे वेफर होते है. यह हम बचपन में बहुत खाते थे. और यहाँ बहुत मिलते है. हमने इसके बहुत सारे पैकेट लिए और मुकेश के परिवार को भी दिए.
हम लोग दर्शन करके निकल पड़े मुरुडेश्वर की ओर.हम कुछ ९.०० बजे पहुच चुके थे . मुकेश को फोन लगाया तो वे लोग नाश्ता कर रहे थे नवीन बीच रेस्तौरेंट में. अब मैं यह यात्रा अभी के लिए समाप्त करता हूँ.
कोई असली मुरुडेश्वर की वर्तनी ( spelling ) बताओ . मैं तो कन्फ्युज हो गया हूँ इंटरनेट और रेलवे स्टशन के चक्कर में .इसलिए जो आसान था वो ही लिख दिया . माफ करना……………
मुरुडेश्वर के बारे में अभी विवरण समाप्त नहीं हुआ है . मनोरंजन का भाग और परिवारों के साथ चित्र अभी बाकी है……………अगली पोस्ट में. तब तक लिए
“जय रामजी की”
बढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
सजीव सुन्दर ज्ञानवर्धक वर्णन
ReplyDeleteGreat Post! I really like such kind of photo-documentary. Thanks for sharing.
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