Monday, 30 September 2013

श्रीनाथ जी की हवेली ………….नाथद्वारा.

दोस्तों,
एक लम्बे अंतराल के बाद आज फिर उपस्थित हुं आप लोगों के सामने। आप सभी जानते ही हैं की मेरी घुमक्कड़ी का केन्द्र अक्सर धर्म स्थल ही हुआ करते हैं, और आज भी मैं आपलोगों को एक धार्मिक स्थल की ही सैर पर ले जा रहा हुं। चलिये आज हम चलते हैं भगवान श्रीकृष्ण के मनोहारी दर्शनों के लिये ……नाथद्वारा।
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जय श्रीनाथ जी – चित्र सौजन्य www.travelingbeats.com
नाथद्वारा के बारे में हम लोगों ने पहले से ही कई बार सुन रखा था और अब यहां जाने की इच्छा बलवती होती प्रतित हो रही थी, फ़िर एक बार घुमक्कड़ पर रितेश गुप्ता जी की नाथद्वारा की पोस्ट पढकर इस इच्छा को और हवा मिल गई।
मथुरा, व्रंदावन एवं वाराणसी कि यात्रा को सम्पन्न हुए कुछ ही समय हुआ था कि मन में फिर कहीं जाने की लालसा होने लगी। हमारे पड़ोस में एक परिवार है जो पुष्टिमार्गिय वैष्णव सम्प्रदाय से हैं और अक्सर भगवान श्रीकृष्ण के दर्शनों के लिये नाथद्वारा जाते रहते हैं और वहां के बारे में बताते भी रहते हैं। अब चुंकि हमें भी अपने अगले डेस्टिनेशन के लिये कुछ निर्णय लेना ही था तो हमने सोचा कि क्यों न इस बार नाथद्वारा का ही रुख किया जाए, और वैसे भी नाथद्वारा हमारे घर से ज्यादा दुर नहीं है। बस ऐसा कुछ मन में चल ही रहा था, और फिर मैने गौर किया की कविता ने एक हफ़्ते में दो बार नाथद्वारा जाने की इच्छा जताई और बस ……..फिर क्या था मैनें फटाफ़ट दो घंटे में यात्रा योजना भी बना ली और आरक्षण भी करवा लिया।


हमारे घर के सामने वाली सड़क से ही सीधे उदयपुर के लिये बस मिल जाती है और आगे नाथद्वारा के लिये उदयपुर से बस मिलती है। लेकिन हम लोग चुंकि ट्रैन-लवर हैं और ट्रैन से ही सफ़र करना पसंद करते हैं अत: मैनॆं रतलाम से मावली (नाथद्वारा का नज़दीकि स्टेशन) के लिये तथा वापसी में उदयपुर से रतलाम के लिये आरक्षण करवा लिये, और यात्रा कि दिनांक का बेसब्री से इन्तज़ार करने लगे।
13 अप्रैल 2013, शनिवार को दोपहर 12.30 पर रतलाम से हमारी हमें ट्रैन थी अत: हमलोग सुबह 9 बजे अपनी कार से रतलाम के लिये निकल गये और लगभग 11.30 बजे रतलाम पहुंच गये। रेल्वे स्टेशन के पार्किंग में कार पार्क करने के बाद हमने नाश्ता वगैरह किया और करीब बारह बजे हमलोगों ने अपनी अपनी बर्थ पर कब्जा जमा लिया।
मध्य अप्रैल का महिना था और अच्छी खासी गर्मी शुरू हो गई थी। आम तौर पर हम लोग गर्मियों में टूर नहीं करते हैं, और फिर ये तो गर्मी की भरी दोपहर थी और ट्रैन भी प्लेटफ़ार्म पर रुकी हुई थी, बड़े असहज मह्सुस करते हुए हम ट्रैन के चलने का इन्तज़ार कर रहे थे कुछ देर के इन्तज़ार के बाद ट्रैन चल पड़ी और एक सुकुन भरे हवा के झोंके ने ट्रैन में प्रवेश किया तब जाकर हमने राहत की सांस ली। ट्रैन के सफ़र का आनंद लेते हुए तथा खिड़की से बाहर के नज़ारों का लुत्फ़ उठाते हुए हम शाम करिब छह बजे मावली पहुंच गए।
मावली रेल्वे स्टेशन
मावली रेल्वे स्टेशन
मावली में बस का इन्तज़ार
मावली में बस का इन्तज़ार
मावली रेल्वे स्टेशन पर उतरने के बाद करीब ही स्थित बस स्टॉप पहुंच कर कुछ देर इन्तज़ार करने के बाद हमें नाथद्वारा के लिये राजस्थान परिवहन की बस मिल गई और कुछ एक घंटे के सफ़र के बाद हमने उस अति पवित्र धरती पर अपने कदम रखे जिसके बारे में कहा जाता है कि भगवान श्री क्रष्ण आज भी यहां विराजमान हैं। आइये अब कुछ जानते हैं नाथद्वारा के बारे में -
नाथद्वारा पश्चिमोत्तर भारत के राजस्थान के राजसमन्द ज़िले में उदयपुर जाने वाले मार्ग पर बनास नदी के ठीक दक्षिण में एक हिंदू तीर्थस्थल है। यहाँ वल्लभ सम्प्रदाय के वैष्णवों का प्राचीन मुख्य पीठ है। नाथद्वारा सड़क द्वारा उदयपुर से 48 किमी दूर है तथा उदयपुर से यहाँ के लिए बसें चलती हैं। ऐसा कहा जाता है कि नाथद्वारा के मंदिर की मूर्ति पहले गोवर्धन (ब्रज) में थी। मुस्लिमों के आक्रमण के समय इस मूर्ति को सुरक्षा की दृष्टि से नाथद्वार ले आये थे। नाथद्वारा के निकट मावली रेल जंक्शन स्थित है।
नाथद्वारा प्राचीन सिंहाड़ ग्राम के स्थान पर बसा हुआ है। कहा जाता है कि मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के शासन काल में मथुरा-वृन्दावन में भयंकर तबाही रहा करती थी। इस तबाही से मूर्तियों की पवित्रता को बचाने के लिये श्रीनाथ जी की मूर्ति नाथद्वारा लायी गई थी। मूर्ति को नाथद्वारा लाने का काम मेवाड़ के राजा राजसिंह ने किया। जिस बैलगाडी में श्रीनाथजी लाये जा रहे थे, उस बैलगाड़ी के पहिये नाथद्वारा में आकर ही मिट्टी में धंस गये और लाख कोशिशों के बाद भी पहियों को निकाला नहीं जा सका। तब पुजारियों ने श्रीनाथजी को यहीं स्थापित कर दिया।
नाथद्वारा में 17वीं सदी का वैष्णव मंदिर है, जो भारत के सर्वाधिक प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। मंदिर में भगवान कृष्ण की एक प्रख्यात मूर्ति है, जो सामान्यत: 12वीं सदी ई.पू. की मानी जाती है। यह मूर्ति काले पत्‍थर की बनी हुई है। इस मूर्ति को औरंगज़ेब के कहर से सुरक्षित रखने के लिए 1669 ई. में मथुरा से लाया गया था। मंदिर का गर्भगृह श्रद्धालुओं के लिए दिन में आठ बार खोला जाता है, लेकिन हर बार सिर्फ़ आधे घण्‍टे के लिए।
नाथद्वारा बस स्टॉप पर उतर कर हमने ऑटो लिया तथा शाम करीब सवा सात बजे हम लोग श्री नाथद्वारा मन्दिर ट्रस्ट के गेस्ट हॉउस “न्यु कॉटेज” पहुंच गए जहां मैने पहले से ही ट्रस्ट कि वेबसाइट http://www.nathdwaratemple.org/ से एक रुम की ऑनलाइन बूकिंग करवा रखी थी, जिससे हमें ज्यादा परेशानी नहीं हुई। गेस्ट हॉउस की सारी औपचारिकताएं पुरी करने के बाद हम अपना सामान उठाकर अपने रुम की ओर चल दिए।
न्यु कॉटेज (गेस्ट हॉउस)
न्यु कॉटेज (गेस्ट हॉउस)
न्यु कॉटेज का स्वागत कक्ष
न्यु कॉटेज का स्वागत कक्ष

न्यु कॉटेज (गेस्ट हॉउस)
न्यु कॉटेज (गेस्ट हॉउस)
गेस्ट हॉउस (न्यू कॉटेज) के बाल उद्यान में....
गेस्ट हॉउस (न्यू कॉटेज) के बाल उद्यान में….
गेस्ट हॉउस से दिखाई देता नये मंदिर का निर्माणाधीन भवन
गेस्ट हॉउस से दिखाई देता नये मंदिर का निर्माणाधीन भवन
कुछ देर आराम करने के बाद अपने साथ लाई गई मन्दिर की समय सारणी में में देखा तो पता चला की यह समय भगवान श्रीनाथ जी की शयन आरती का है जो की अब तक शुरु हो गई होगी। यहां यह जानकारी देना प्रासंगिक है की इस मन्दिर की विशेषता है की मन्दिर में भगवान के दर्शन दिन में आठ बार होते हैं (मंगला, श्रंगार, ग्वाल, राजभोग, उत्थापन, भोग, आरती तथा शयन) तथा मन्दिर के पट, हर दर्शन के समय सिर्फ़ आधे घंटे के लिये ही खुलते हैं, और इन दर्शनों की समय सारणी परिस्थितीयों तथा दिवसों के अनुरुप बदलती रहती हैं, अत: यहां दर्शन के लिये समय सारणी देखकर ही जाना चहिये। चुंकि अब अब इस समय दर्शन के लिये जाने से कोई मतलब नहीं है अत:हमने सोचा की अब मन्दिर सुबह ही जाएंगे और फिर रात का खाना वगैरह खा कर हम जल्दी ही सो गए।
सुबह के पहले दर्शन (मंगला दर्शन) का समय ५ बजे का है, चुंकि हम लोग रात के थके हुए थे और बच्चे भी साथ थे अत: मंगला आरती में शामील होने के लिये सुबह चार बजे जाग नहीं पाये, और जब नींद खुली तो देखा की ६ बज रहे थे। अगले दर्शन ७ बजे (उत्थापन दर्शन) होने थे अत: हम सभी आराम से नहा धो कर मन्दिर जाने के लिये तैयार हो गए। हमारे गेस्ट हॉउस से मन्दिर पैदल दुरी पर ही था अत: हम पैदल ही मंदिर की ओर चल पड़े।
जब हम मंदिर के करीब पहुंचे तो देखा की मंदिर के बाहर बहुत भीड़ थी, यहां इतनी भीड़ हमेशा रह्ती है और इस भीड़ का कारण होता है मन्दिर का हर दो घंटे के बाद सिर्फ़ आधे घण्टे के लिये खुलना। यहां भगवान श्रीकृष्ण को बाल रुप में पुजा जाता है और उनकी सम्पुर्ण सेवा एक बालक के रुप में की जाती है, और हमारे सनातन संस्कारों के अनुसार बच्चे को ज्यादा देर देखते रहने से उसे नज़र लगने का डर होता है इसीलिये मन्दिर के पट खुलने के आधे घंटे के बाद ही बंद कर दिये जाते हैं।
मंदिर के सामने की गलियां
मंदिर के सामने की गलियां
मंदिर के सामने की गलियां
मंदिर के बाहर बाज़ार
जय श्रीनाथ जी की तस्वीरों से सजी दुकान
जय श्रीनाथ जी की तस्वीरों से सजी दुकान
मंदिर का प्रवेश द्वार
मंदिर का प्रवेश द्वार
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मंदिर (हवेली) का प्रवेश द्वार
मंदिर के सामने रबड़ी (प्रसाद) बेचते महाशय
मंदिर के सामने मिट्टी के कुल्हड़ में रबड़ी (प्रसाद) बेचते महाशय
यह मंदिर परंपरागत मन्दिरों की तरह न होकर एक हवेली (पेलेस) के रुप में है, इसीलिये इसे “श्रीनाथ जी की हवेली” कहा जाता है। इस हवेलीनुमा मंदिर के अंदर सब्जियों, फ़लों एवं दुध के छोटे छोटे बाज़ार लगे हुए होते हैं जहां से आप ये चीजें खरीद कर मंदिर में दान स्वरुप अर्पित कर सकते हैं, जिसे मन्दिर की रसोई जो की 11 बजे राजभोग दर्शन के समय बनती है, में उपयोग किया जाता है। हमने भी इस बाज़ार से एक लीटर दुध लेकर काउन्टर पर जमा करवा दिया और दर्शन की लंबी लाईन में लग गए।
महिलाओं तथा पुरुषों की कतारें अलग अलग थीं अत:लिंग के आधार पर हमारे परिवार का भी कुछ देर के लियॆ बंटवारा हो गया। अभी कपाट बंद थे तथा कुछ देर में खुलने वाले थे, कुछ देर के इन्तज़ार के बाद पट खुले, पहले पुरुषों की पंक्ती को दर्शन के लिये छोड़ा गया और फिर महिलाओं को …………….अन्तत: कुछ देर की मशक्कत के बाद अब श्रीनाथ जी हमारे सामने थे, भगवान का इतना सुन्दर, सलोना और मोहक रुप देखकर मैं तो कुछ देर के लिये जैसे सम्मोहन में बंध गया था। बहुत अच्छे दर्शन हुए तो मन प्रसन्न हो गया।
आज का पुरा दिन तथा रात हमें नाथद्वारा में ही रुकना था अत: हमने सोच रखा था की जितने अधिक बार सम्भव होगा उतनी बार भगवान के दर्शन करेंगे। अब अगले दर्शन का समय करीब डेढ घंटे के बाद था और हमें भुख भी लग रही थी तो हम सब मंदिर से बाहर आ गए, नाश्ते की खोज में। बाहर निकलते ही हमें एक स्टाल पर पोहे तथा खमण दिखाई दिया अत: हम यहीं रुक गए और नाश्ता किया, नाश्ता स्वादिष्ट था। अब हमने सोचा की अगले दर्शन से पहले नाथद्वारा के कुछ और दर्शनिय स्थल जैसे श्रीनाथ जी की गौशाला और लाल बाग गार्डन भी देख लिया जाये क्योंकि अगले दिन हमें सुबह से ही एकलिंग जी दर्शन करते हुए उदयपुर जाना था। अत: हमने ये दोनों जगहें घुमने के लिये 150 रु. में एक ऑटो कर लिया।
नाश्ता
नाश्ता
इस भाग में इतना ही, इस श्रंखला के अगले भाग में श्रीनाथ जी की गौशाला, लाल बाग और श्री एकलिंग भगवान के दर्शन …………….जल्द ही.

By- Mukesh Bhalse

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