ॐ बीच पर बीती एक शाम और मुकेश के साथ जबरदस्त विवाद
मैं शिरसी और सहस्रलिंग के दर्शन करके कुछ 2:00-2:30 बजे लौटा था। खाना खाते-खाते मुझे तीन बज गए, अब हमारी कर्णाटक की यात्रा के केवल 24 घंटे ही बचे थे। अगले दिन 4.00 बजे हमें कुम्ता पहुँचना था, जहाँ से हमें मुंबई के लिए ट्रेन पकडनी थी। तो अब मेरी कर्नाटक की यात्रा समाप्त होने जा रही थी। यात्रा के आखरी 24 घंटे मुझे अच्छे नहीं लगते, यात्रा शुरू करते वक्त बहुत उत्साह रहता है कि क्या-क्या करेंगे? कैसे घूमेंगे? आदि-आदि, लेकिन यात्रा के आखरी पल में मेरे मन में उदासी छा जाती है। ऊपर से रूम पर भी थोड़ी उदासी का माहौल था। मैंने आते ही सोनाली और मुकेश से पूछा कि कैसा रहा दिन? तो उन्होंने कहा कि बहुत बढ़िया रहा। उन्होंने पंडित द्वारा सुबह में श्री गोकर्ण महाबलेश्वर का अभिषेक किया और फिर मंदिर के सामने जो बीच है उसमे स्नान किया। मैंने कहा ठीक है चलो शिरसी और सहस्रलिंग नहीं आये तो मजा तो आया उनको। तब मैंने कहा कि चलो ॐ बीच चला जाये। चलो इस बार उन्होंने हाँ कहा तो मैं सीधे होटल से बाहर निकल गया और कार या ऑटो ढूँढने लगा। मुझे एक मारुती ओमनी वैन मिली जिसे मैंने 3-4 घंटे के लिए मात्र तीन सौ में बुक कर लिया। फिर हम चल दिए ओम बीच पर। हम कुल 20 मिनिट में ॐ बीच पहुँच गए। बीच पर जाने वाला मार्ग भी काफी सुन्दर है, पहाडों के ऊपर से होकर जाता है. मैंने एक जगह पर रूककर काफी तस्वीरे ली थी।
ॐ बीच :- ॐ बीच गोकर्ण से कुछ 5 किमी की दूरी पर है। इस बीच का प्राकृतिक आकार ॐ के जैसा है अगर आप ऊपर से देखे तो इसलिए इस बीच का नाम ओम बीच है। ॐ बीच बहुत मशहूर बीच है। यहाँ पर बहुत सारी बड़ी-बड़ी 3 स्टार और 5 स्टार होटल और रिसोर्ट है जहाँ आप कम से कम 3 दिन तक तो रीलेक्स्स कर सकते हो। घर से दूर प्राकृतक शान्ति का आभास होता है। ऊपर से बहुत तरीके के आयुर्वेदिक मसाज भी यहाँ पर होते है। काफी हद तक विदेशी लोग होते है जो ओम बीच पर रहते है। काफी लोग बीच पर सन-बाथ (सूरज कि रौशनी का अपने शरीर पर लेना) लेते है अपनी त्वचा को टेन करने के लिए (त्वचा को सावला या भूरा करने के लिए). दूसरे बीच से यहाँ का माहौल कुछ अलग ही है। आपको थोडा विदेशीपन और खुलापन दिखेगा।
1 . कुड्ले बीच
2. ॐ बीच पर जाने वाला मार्ग . यहाँ से निचे उतरना पड़ता है .
गोकर्ण में मनो में उदासी का माहौल :- अब मुरुडेश्वर में मुकेश का कैमरा तो खराब हो ही चुका था। इसलिए एक तरह से उनका और कविता जी का मन पिछले 2 दिनों से दुखी हो रहा था। ऊपर से मुंबई आकर ठीक होगा कि नहीं यह भी नहीं पता था। सुबह जब मैं शिरसी गया था तब मैं अपना कैमरा साथ लेकर गया था, तो मुकेश ने अपना कैमरा गोकर्ण में कोई रिपैयर करने वाले को दिखाया था, उसने भी ठीक करने से मना कर दिया था, तो अब कैमरा ठीक होने का निर्णय मुंबई में होने वाला था। जब से कैमरा खराब हो गया तब से मैंने मुकेश से कहा था कि फोटो की चिंता मत करना, मेरे कैमरा से ले लेना, एक बार नहीं बार-बार। फिर भी यह बात कही न कही खटक रही थी कि उसका कैमरा उसके पास नहीं था। सोनाली ने पहले से संकेत दिया था कि कैमरा तो गया और अगर नयी चीज़ आनी है तो आ जायेगी, और वही हुआ। मुंबई में मुकेश को नया कैमरा लेना पड़ा। दूसरी बात लगातार 3 दिनों से मुकेश के परिवार को दक्षिण भारत का खाना खाना पड़ रहा था। इसलिए भी उनका मन थोडा सा असंतुस्ट था।
मेरा मन भी थोड़ा उदास था क्योंकि मैंने जो प्लान किया था उस तरह कुछ भी हो नहीं रहा था। मुकेश का परिवार हमारे साथ इडागूंजी नहीं आये थे। बल्कि अलग से अपने परिवार में मस्त घूम रहे थे। शिरसी में तो मैं अकेला ही गया था, जबकि मैंने मुकेश को प्लान पहले से मेल किया हुआ था। जब यात्रा प्लान मेल किया, तब मुकेश ने ऐसा कहा था कि हम को आप जो करने को कहेंगे वैसा ही करेंगे. लेकिन यहाँ पर कुछ अलग ही हो रहा था। ऊपर से सब लोगों कि सारी व्यवस्था करना। अब बात यह हो गयी थी कि यह सब देखते देखते मेरी बाते मुकेश से हो ही नहीं रही थी। और वे लोग भी ज्यादा सोनाली से बात करने में ज्यादा व्यस्त रहते थे। मैं एक टूर मेनेजर जैसा ज्यादा लग रहा था। इसलिए थोड़ी खटास हमारे बीच बन रही थी।
ॐ बीच पर मेरे और मुकेश के बीच में विवाद :- अब हम ॐ बीच पर जैसे ही मारुती ओमनी से बाहर निकल कर आये तो ऊपर से हमें ॐ बीच का नज़ारा दिखा। वाह ऐसा लगा कि हम स्वर्ग में आ गए है। गाडियों की पार्किंग कुछ ऊपर एक छोटे से पहाड़ पर होती है। फिर हमें ॐ बीच पर पहुँचने के लिए कुछ 200 – 300 स्टेप्स नीचे उतरने पड़ते है। अब इतना सुन्दर नज़ारा देख कर कविताजी के मुँह से निकल गया “काश कि हमारा कैमरा भी होता तो” । अब मेरी खोपड़ी सटक गयी और मैं सारे धैर्य को भूल गया और जोर से उनपर ब्लास्ट हो गया। मैंने कहा कि आपको मैंने मेरे केमेरे से तस्वीर लेने कि छूट दे रखी है ना। फिर क्यूँ बार बार वही बात लेकर बैठ गए हो। मेरे केमेरे के फोटो में किसी का चेहरा कुछ अलग नहीं दिखने वाला है। ऊपर से मेरा कैमरा सोनी का 16 मेगापिक्सेल का नया ही था, जिसकी क्वालिटी ज्यादा अच्छी ही थी। इधर मैं उनके मनोरंजन के लिए आगे पीछे भाग-भाग कर व्यवस्था कर रहा हूँ और वे लोग है कि उदास ही रहना चाहते है। अब छोडिये कैमरे को, गया तो गया। कुछ नहीं कर सकते। और क्या-क्या कह दिया था, लेकिन उस वक्त मैंने उनके दृष्टिकोण से नहीं सोचा कि इतनी सुंदर जगह पर मौजूद हो और अपना कैमरा न हो तो जरूर ऐसा ही लगेगा। और न उन्होंने मेरे दृष्टिकोण से वह बात ली। यह आपको आगे पता चलेगा।
ऐसा स्थिति में हम नीचे सुन्दर ॐ बीच पर आ गए, ॐ बीच पर आते ही थोड़ी कड़वाहट कम हो गयी क्योंकि बीच पर मौसम बहुत अच्छा था, जोर से ठंडी हवा आ रही थी, काफी विदेशी लोग थे। जैसे ही हम बीच पर पहुँचे, हम पहले से ही बीच पर नहाने की व्यवस्था करके आये थे। तो हम चले स्नान करने। करीब आधा एक घंटा स्नान किया। और फिर हम बीच के मध्य में चले गए जहाँ पर काफी पत्थर थे।
ॐ बीच के बीचमे बड़े पत्थरो पर मौज मस्ती :- अब यहाँ पर मुकेश के साथ एक और घटना हुई, जिससे उसका दिल पूरी तरह दुखी हो गया, मुकेश ने यात्रा अपने पैरों में जूते पहनकर की थी और ओम बीच पर भी लेकर आया था, अब बात यह हुई कि जब हम बीच पर नहाने लगे तो सारे कपडे, चप्पले और जूते सोनाली संभाल रही थी। लेकिन नहाने के बाद जब हम बीच के मध्य में गए तो मुकेश ने जूते पहने नहीं और हाथ में ले लिए। उसने बराबर किया क्योंकि अगर पहनता तो बीच की रेत उसके जूते में रह जाती। हम लोग बीच के मध्य में गए जहाँ बहुत सारे पत्थर थे, और फोटो खीचने लगे। हमारा विवाद होने के बाद फिर से बीच पर नहाते वक्त हम फिर से एक दूसरे के साथ मजे से बाते करने लगे और सब भूलने कि कोशिश करने लगे, और फिर मुकेश ने मुझसे कैमरा माँगा और मैंने दे दिया था। उसने कविताजी की बहुत सारी तस्वीरे बीच पर ली। फिर वह उन पत्थरों के ऊपर चला गया। उसने अपने जूते बीच पर ही छोड़ दिए और चला गया पत्थरो पर।
मैं, संस्कृति और सोनाली अलग जगह अलग पत्थरो पर चले गये। थोड़ी देर बाद जब उसने फोटो खीच लिये तो मैंने कैमरा लिया और पत्थरो पर फोटो खींचे। मैंने सोनाली और संस्कृति के फोटो लिये। फिर मैं सोनाली के साथ पत्थरों से नीचे उतरने लगा। लेकिन समुद्र की तरफ वहाँ लहरें इतनी जोर से टकराती है कि पत्थरों से करीब 10 – 12 फीट ऊपर उछलती है। आप स्वयं ही देख रहे हो फोटो में। पानी उछल के आपके मुँह पर और शरीर पर आता है और बड़ा मजा आता है। लेकिन ध्यान रखना यह बहुत खतरनाक भी हो सकता है। अगर बेलेंस चला गया तो सीधा समुद्र के अंदर डूब जाओगे फिर चाहे आपको तैरना आता हो या नहीं। क्योंकि इस पानी कि लहरों में इतना बल होता है कि आपको खीच के ले जायेंगी और आपको पता भी नहीं चलेगा। फिर मैंने इस पत्थर पर मुकेश को बुलाया और जैसे सोनाली ने पानी कि बड़ी-बड़ी लपटों के साथ जो खुशी का अनुभव किया वही मुकेश को भी कराया। मैंने मुकेश की तस्वीरे ली और जब हम वापिस आ रहे थे, तब मुकेश और मुझको एक विदेशी उस पत्थर पर मिला। वह फिरंगी वहा मछली पकड़ने आया था। मुकेश उसके पास गया और उसकी मदद करने लगा। मुझे बराबर से तो पता नहीं, लेकिन मुकेश उससे काफी घुल मिल गया था, लगता है कि मुकेश को काफी मजा आया था उसके साथ।
एक और मुसीबत मुकेश के सर :- अब हमने सोचा कि वापिस चला जाये। हम पत्थरों से उतरकर बीच कि तरफ जाने लगे, तब मुकेश ने देखा कि बीच पर जहाँ उसने जूते उतारे थे, वहाँ पर केवल एक जूता था। दूसरा गायब था। अब यह क्या हो गया? मामला अब ठीक-ठाक हुआ ही था कि फिर से दूसरी परेशानी शुरू हो गयी। सब लोग मुकेश का दूसरा जूता ढूँढने में लग गये थे। काफी देर हमने तलाशा लेकिन हमें नहीं मिला। अब कोई एक जूता लेगा क्यों, जब दोनों है तो, अगर कोई चोर होता तो दोनों लेता, लेकिन यहाँ पर तो केवल एक जूता गया था। यह सब मेरे ख़याल से बीच पर जो ७-८ कुत्ते बैठे थे उनकी करामात हो सकती है। कोई कुत्ता आया होगा और मस्ती में एक जूता ले गया होगा। लेकिन इस बात से मुकेश की तो दुःख के मारे जैसे हालत खराब हो गयी थी। पहले कैमरा गया, दक्षिणी भारत का खाना झेलना पडा, फिर मुझसे विवाद और फिर अब जूते गायब। अब उसकी भी समझ में नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है? उसके मुँह से निकल गया कि अब वह मुंबई नहीं आ रहा है अपनी टिकिट को साइबर कैफ़े में जाकर केंसल करके वही से तत्काल कि टिकिट लेकर सीधा इंदौर के लिए रवाना हो जायेगा। मैंने और सोनाली ने इस बारे में कुछ नहीं कहा। क्योंकि अब इतनी सारी परेशानियाँ आ गयी तो क्या कर सकते है। वैसे मेरे मन में एक बात आई थी कि मैं कहूँ कि जूता चोरी होने से या खो जाने से पनौती चली जाती है (ऐसा मैंने बहुत लोगो से सुना है)। लेकिन इस वक्त उसका मूड बहुत खराब था और अगर कह डालता तो शायद वह नहीं तो कविता जी मुझपर ब्लास्ट हो जाती।
1. इस जगह पर हम पत्थरो पर मस्ती कर रहे थे . फोटो ले रहे थे . पानी की बड़ी बड़ी लहरों के साथ खेल रहे थे.
2. इस जगह पर मुकेश ने अपने जूते रखे थे . आते वक्त एक जूता गायब.
3. इस जगह पर हमने स्नान किया था .
4. जिस जगह से यह फोटो लिया था वहाँ से हम निचे उतारे है ॐ बीच के लिए . कुछ 200 – 300 स्टेप्स नीचे.
अब बस यही बाकी था :- फिर हम 200 – 300 स्टेप्स चढकर ऊपर चले गये। जहाँ पर हमारी गाडी खड़ी थी। अब मुकेश और उसका परिवार पूरी तरह थक गया था और बहुत परेशान था। दिन में दो बार बीच पर स्नान करने से काफी थकान महसूस होती है। उसके ऊपर से कैमरा खराब, खाने वाली समस्या, विवाद, जूते गायब, पूरी तरह से थका हुआ शरीर। अब इस पर एक और मुसीबत आ जाए तो कैसा होगा? वैसे एक और मुसीबत आ गयी। हमारी गाडी सी.एन.जी. वाली गैस से चल रही थी। और मैंने आपको कहा था कि गोकर्ण से ॐ बीच जाने वाला रास्ता पहाडों के ऊपर से था। लेकिंन वापस जाते वक्त चढाई बहुत तीखी और तीव्र थी, जब हम ॐ बीच जा रहे थे तब यह तीखी और तीव्र हमारे लिए ढलान थी तब हमें इतना पता नहीं चला। अब इस चढान पर आकर हमारी गैस से चलने वाली गाडी बंद हो गयी। बस यही कसर बाकी रह गयी थी। इतनी थकान में गाडी बंद। वैसे मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट थी क्योंकि मैं इससे बड़ी और बहुत सारी परेशानियों से गुजर चूका हूँ। तो मेरे लिए कोई नयी बात नहीं थी। लेकिन मुकेश के लिए यह सब पहली बार हो रहा था तो वह बड़ा परेशान था। अब हम लगे अपनी गाडी को धक्का मारने। एक तरफ मैं और दूसरी तरफ से मुकेश। करीब 300 – 400 मीटर तक हम धक्का लगाते रहे। तब कही जाकर हम चोटी पर जा पहुँचे। और फिर गाडी बराबर स्टार्ट हुई। धन्य है ।
होटल में जाके फिर से विवाद :- हम गोकर्ण अपने होटल सावित्री में पहुँच गए। लेकिन पूरी ट्रिप कुछ बर्बाद सी लग रही थी। मेरी और मुकेश की दोस्ती में दरार आ रही थी, ऐसा लग रहा था। यात्रा की शुरुआत इतनी सुखद तरीके से हुई और अंत ऐसे हो रहा था। यहाँ इस वक्त मुकेश का मूड बिलकुल नहीं था मुंबई आने का। और मैं और सोनाली अपने रूम में थे। सोनाली ने मुझे कहा कि अगर मुकेश को मुंबई नहीं आना है तो जबरदस्ती मत करो। लेकिन कम से कम जो बीच में खट्टी बाते हो गयी जिसे हम मिसन्डरस्टेंडिंग कहते है उसे दूर करे। तो फिर हम वार्तालाप करने मुकेश कि रूम पर चले गए। और वहाँ पर पहले जमकर विवाद हुआ और फिर हमने प्यार से डिस्कशन किया। दोनों अपनी अपनी दृष्टिकोण से सही थे। और हमारी दोनों कि दोस्ती में जो मिसन्डरस्टेंडिंग आई थी उसे सोनाली ने सुलझाया। आखिर में सब ठीक हो गया था। एक कहानी की फ़िल्मी हैप्पी एंडिंग की तरह।आखिर में जो हमारे रिश्ते में जो दरार आई थी,वह पनौती मुकेश के जूते के साथ चली गयी। यानी लोगो से सूनी बाते ठीक थी की जूते घूम या चोरी होना कभी कभी अच्छा होता है। इसके बाद हमारा मुंबई का सफर काफी अच्छा रहा। वह कहते है ना कभी खुशी कभी गम या फिर कुछ खट्टी कुछ मिट्ठी।अंग्रेजी में कहते है ना ” All that starts well ends well” बस वही हुआ । लेकिन अब भी आपको गोकर्ण और महाबलेश्वर का मंदिर दिखाना बाकी है। वह इस सीरीस की आखरी पोस्ट पर जल्द ही दिखाया जायेगा।
तब तक के लिए
जय राम जी की ……………..
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