Wednesday 22 February 2012

यात्रा: कभी ख़ुशी कभी ग़म By - Kavita Bhalse

किसी ने सच ही कहा है की घुमक्कड़ी एक नशा है, और जो इसके मोहपाश में बांध जाता है उसके दिमाग में हर समय घुमक्कड़ी का कीड़ा कुलबुलाते रहता है.
घुमक्कड़ी एक एहसास है… ह्रदय में दबी जिज्ञासाओं को शांत करने का, हमारी ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक धरोहरों को आत्मसात करने का, जीवन को गतिशीलता प्रदान करने का, सर्वधर्म समभाव का, वसुधैव कुटुम्बकम की नीति का, ज्ञानार्जन का, नवसृजनात्मक विचारों का,सामाजिक तथा नैतिक उत्थान का, उत्साह एवं उल्लास का.
घुमक्कड़ अपनी घुमक्कड़ी की क्षुधा को शांत करने के लिए हर समय प्रयासरत रहते हैं. घुमक्कड़ी जब दिल ओ दिमाग पर हावी होती है तो मौसम का मिजाज, जेब के हालात, व्यस्तता आदि चीजें गौण हो जाती हैं. ऐसा ही कुछ हाल हमारा भी है, कहीं घुमने जाने के ख़याल भर से मन मयूर नाच उठता है, और अगर ये घुमक्कड़ी हमें भगवान के द्वार तक ले जाती है तो इससे ज्यादा लुभावनी चीज और कोई हो ही नहीं सकती, एक यात्रा ख़त्म हुई नहीं की दूसरी की तैयारी चालु हो जाती है, हमारे बच्चे भी अब घुमक्कड़ी के आदि हो गए हैं, हर समय पूछते रहते हैं मम्मा अब कहाँ जायेंगे?

We, The family

इस पोस्ट के माध्यम से मैं आपके साथ शेयर करना चाहती हुं अपनी लेटेस्ट ट्रिप से जुडी कुछ यादें जो हमें जीवन भर याद रहेंगी. हर एक यात्रा हमें कुछ न कुछ नया सिखा जाती है, ऐसी ही कुछ यादें हमारी इस यात्रा से भी जुडी हैं…………………….
जैसे की आपने मुकेश जी की पिछली तीन पोस्ट्स में पढ़ा, हमारी यह धार्मिक यात्रा २६ जनवरी से २९ जनवरी के बिच चली, इन चार दिनों में हमने महाराष्ट्र के मराठवाडा क्षेत्र को बहुत करीब से देखा. वहां का खान पान, संस्कृति, व्यवहार आदि में जैसे हम रम गए थे. हमारी इस यात्रा में हमने हिंगोली, नांदेड, परभणी, औंढा, बसमथ, परली आदि जगहों का अवलोकन किया जो हमारे लिए एक अभूतपूर्व अनुभव रहा.
जैसा की आप जानते हैं की हर यात्रा में हमें कुछ खट्टे और कुछ मीठे अनुभवों से सामना होता है, इन अनुभवों से हमारे साथ कुछ ऐसी यादें जुड़ जाती हैं जो हमारा जीवन जीने का तरीका और सोचने का नजरिया ही बदल देती हैं, ऐसी ही कुछ यादें हमारे साथ भी इस यात्रा के दौरान जुड़ गईं.

1.
ट्रेन का छुट जाना- एक बड़ी त्रासदी:
सबसे पहले मैं आपलोगों को बताना चाहूंगी की 26 तारीख को हमने अकोला से नांदेड के लिए काचिगुडा एक्सप्रेस में आरक्षण करवा के रखा था. महू से अकोला के लिए जो हमारी ट्रेन थी उसका अकोला पहुँचने का समय सुबह नौ बजे का था और अकोला से काचिगुड़ा एक्सप्रेस का निकलने का समय साढ़े नौ बजे का था, थोड़ी सी रिस्क तो दोनों ट्रेनों के समय को देखकर लग ही रही थी लेकिन हमारी कोलोनी में रहने वाले कुछ लोगों ने (जो कई सालों से इसी कोम्बिनेशन से अपने घर यानी नांदेड जाते हैं) हमें बताया की नांदेड जाने वाली ट्रेन तभी छूटेगी जब महू वाली ट्रेन अकोला पहुंचेगी, यानी कनेक्टिंग ट्रेन है, लेकिन कहते हैं न की भगवान भी भक्त की परीक्षा लिए बिना दर्शन नहीं देते हैं, अंततः वही हुआ जो होना था, जब हमारी ट्रेन अकोला रेलवे स्टेशन पर पहुंची तब तक हमारी अगली ट्रेन निकल चुकी थी.
यह पता चलने के बाद हम बहुत हताश और निराश हो गए, फिर किसी तरह महाराष्ट्र परिवहन की बसों में दो जगह बसें बदलकर, थककर चूर हो जाने के बाद शाम को साढ़े छः बजे नांदेड पहुंचे (अगर ट्रेन मिस न होती तो दो बजे पहुँच जाते).


Akola Railway Station

In train, waiting for Akola to arrive


2. औंढा नागनाथ मंदिर में पुजारी जी का आत्मीय व्यवहार:
आम तौर पर हमारी यह राय होती है की मंदिरों के पण्डे पुजारी हमेशा भक्तों से मोटी दक्षिणा प्राप्त करने के लिए लालायित रहते हैं और बड़े ही मतलबपरस्त होते हैं, मैं भी इस बात से इनकार नहीं करती हुं, ऐसा होता है लेकिन हर बार और हर जगह नहीं. कभी कभी इसका उल्टा भी होता है, ऐसा ही कुछ हमारे साथ भी हुआ जब हम औंढा नागनाथ मंदिर में गए.
हम जब भी अपनी धार्मिक यात्रा पर जाते हैं (ज्यादातर शिवालयों पर ही जाते हैं) तो यहाँ भगवान का अभिषेक करना नहीं भूलते, बल्कि यह कहुं की हमारा मुख्य उद्देश्य ही अभिषेक करना होता है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि हम दोनों के यह विचार हैं की जब हम हज़ारों रुपये तथा समय खर्च करके भगवान के दर्शन के लिए जाते हैं और बिना भगवान को स्पर्श किये कुछ सेकंडों के लिए दर्शन कर के वापस आ जाएँ तो फिर यात्रा का मतलब ही क्या है? और वैसे भी भगवान शिव की लिंगमुर्ती  को स्पर्श करने का ही महत्व है.
मंदिर में प्रवेश करने के बाद हमारा पहला काम होता है, किसी अच्छे पंडित को ढूंढ़ कर अभिषेक के लिए बात करना अतः हमने मंदिर के एक पंडित दीक्षित जी जिनका जिक्र मुकेश जी ने अपनी पोस्ट में किया है, से अभिषेक के लिए बात कर ली. पंडित जी के द्वारा करवाया गया हमारा वह अभिषेक हमें हमेशा याद रहेगा, उनका प्रेमपूर्ण व्यवहार, मृदु तथा सहयोगी स्वभाव हमारे मानसपटल पर अंकित हो गया है, यहाँ तक की हमारे बच्चे भी आज तक उन्हें याद करते हैं.

3. एक अन्य अविस्मरणीय घटना (खट्टा नहीं कटु अनुभव):
यहीं हमारे साथ एक ऐसी घटना घटी जिसे याद करके रोंगटे खड़े हो जाते हैं यहाँ तक की इस घटना से बच्चे तक भी प्रभावित हुए. ऐसा भी नहीं हुआ की किसी ने हमारा पर्स चुरा लिया या हमारा सामन चोरी हो गया, या किसी को चोट लग गयी, या कोई बीमार हो गया ऐसा कुछ भी नहीं हुआ……….फिर आखिर ऐसा क्या हुआ जिसे याद कर के हमारी रूह काँप उठती है? क्या हुआ? यह एक ऐसी घटना थी जो हमारी साथ इतने सालों में पहली बार घटी, अपनी एक छोटी सी लापरवाही या गलती की वजह से हमने तीन घंटे मानसिक यंत्रणा झेली……….हम इतने मजबूर हो गए थे की हमें अपने आप पर तरस आ रहा था, हम अपने आप को कोस रहे थे……शायद आप में से किसी के साथ ऐसी घटना न घटी हो………लेकिन सावधान, घट सकती है, मेरी इस आपबीती से हमने तो सबक लिया ही आपलोग भी ले लीजिये……….. खैर मैं तो अपने भोले बाबा से यही प्रार्थना करती हुं की ऐसी परिस्थिति से किसी का सामना न हो………… चलिए अब आपको और ज्यादा रहस्य में न रखकर बताती हुं……….
सबसे पहले मैं आपको यह बता दूँ की हम दोनों इस बात पर एकमत हैं की सफ़र में ज्यादा नकद पैसे (कैश) साथ में लेकर नहीं चलना चाहिए, पैसे गुम होने या चोरी होने का जोखिम रहता है, साथ में ए.टी.एम. कार्ड तो होता ही है जब भी आवश्यकता हुई पैसे निकले जा सकते हैं. बस अपने इसी विश्वास के साथ हमने घर से कुछ हज़ार रुपये साथ रखे थे जो की धीरे धीरे खर्च होते चले जा रहे थे, जब हम नांदेड से औंढा के लिए निकले तब तक हमारे पास कैश काफी कम हो गया था, लेकिन हमें लग रहा था की पास में ए.टी.एम. कार्ड है कभी भी निकाल लेंगे. औंढा में हमसे अपेक्षाकृत ज्यादा पैसे खर्च हो गए, और अंततः हमारी जेब पूरी तरह से खाली हो गई, लेकिन हमें पूरा विश्वास था की तहसील प्लेस है, इतना बड़ा तीर्थ स्थान है, रोजाना देश के कोने कोने से पर्यटक आते हैं एकाध ए.टी.एम. तो होगा ही….लेकिन जब हम बस स्टॉप पर आये और हमने ए.टी.एम. का पता किया तो हमारे होश फाख्ता हो गए पता चला की औंढा में एक भी ए.टी.एम. नहीं है, हमें औंढा से परली जाना था जो की लगभग साढ़े तीन घंटे का रास्ता था, हमारे पास सिर्फ दो सौ रुपये थे और बस का किराया था 300 रुपये लेकिन हम हिम्मत करके बस में बैठ गए क्योंकि फिर परली के लिए बस कुछ घंटों के बाद ही थी.

हम इसी परेशानी में आपस में एक दुसरे से बात कर रहे थे, मैं बार बार अपना पर्स टटोल रही थी और मुकेश बारी बारी से अपनी सारी जेबें टटोल रहे थे, हमारे चेहरों से परेशानी स्पष्ट झलक रही थी, पास की ही सिट पर एक महाराष्ट्रियन परिवार बैठा था जिन्हें परली तक जाना था, आखिर उन्होंने हमसे पूछ ही लिया  की क्या परेशानी है, हमने थोडा संकोच करते हुए अपनी परेशानी उन्हें बता दी, उन्होंने हमें कहा की आप चिंता मत करो और हमें सौ रुपये का नोट दे दिया हमने उन्हें थैंक्स कहा और कहा की परली में उतरते ही ए.टी.एम. से पैसे निकाल कर आपको दे देंगे, अब हमारे पास बस का किराया तो हो गया लेकिन कंडक्टर को किराया देने के बाद हम फिर खाली हो गए और परली पहुँचने तक हमें बिना पैसों के ही काम चलाना था. हमारे पास ए.टी.एम. कार्ड था जिसमें पर्याप्त पैसा था, हमारे पास प्लेटिनम मास्टर क्रेडिट कार्ड था, मेरे पास पर्याप्त ज्वेलरी थी लिकिन उस समय ये सब धरे के धरे ही रह गए.

शक्लो सूरत, हाव भाव, रहन सहन, बात व्यवहार से हम संभ्रांत लग रहे थे लेकिन हम ही जानते थे की उस समय हमसे गरीब कोई नहीं था. हमने संस्कृति को तो समझा दिया था की बेटा सफ़र में कुछ मांगना मत, परली पहुंचकर आपको जो चाहिए दिला देंगे, लेकिन हमें शिवम् का डर था क्योंकि एक तो वो छोटा है और थोडा जिद्दी स्वभाव का है, और उसकी फरमाइशों की फेहरिश्त कभी ख़त्म नहीं होती है, अगर उसने कुछ मांग लिया और वह बिगड़ गया तो सम्हालना मुश्किल हो जायेगा.

Shivam, The naughty boy

बस में अगर कोई भिखारी भी आता तो मैं सर निचे कर लेती, क्योंकि देना चाहती थी लेकिन पर्स में एक रूपया भी नहीं था, बस में कोई बच्चा कुछ खाता तो मैं शिवम् को समझाती की बेटा कुछ मांगना मत हमारे पास पैसे ख़त्म हो गए हैं, तो वह कहता की क्या आप मुझे इतने इतना चटोरा समझती हो, यह भगवान का ही चमत्कार था की हमारा जिद्दी बेटा उस समय इतना समझदार हो गया था. मुकेश इस सफ़र की शीघ्र समाप्ति के लिए बार बार भगवान से दुआ मांग रहे थे.
अंततः तीन घंटे की भयंकर मानसिक यंत्रणा के बाद हम परली पहुँच गए, ए.टी.एम. बस स्टैंड के करीब ही था अतः सबसे पहले ए.टी.एम. से पैसे निकाल कर उस सज्जन पुरुष को उनके पैसे तथा ढेर सारा धन्यवाद दिया तब हमारी जान में जान आई, और ईश्वर से यह वादा किया की हमें कभी मौका मिला तो इस तरह से मज़बूरी में फंसे लोगों की हरसंभव मदद करेंगे.
आज तक हम इस घटना से हतप्रभ हैं, हमें समझ में नहीं आता ऐसे कैसे हुआ. मैं इसे लापरवाही नहीं कहूँगी क्योंकि यह हमारा पहला टूर नहीं था, कई बार कई दिनों के लिए पहले भी जाते रहे हैं लेकिन यह सब हमारे साथ जीवन में पहली बार हुआ, मुकेश इन सब मामलों में बहुत सावधान रहते हैं तथा हर काम बड़ी प्लानिंग से करते हैं, फिर अचानक हमसे इतनी बड़ी भूल कैसे हो गई……….हम आज तक नहीं समझ पा रहे हैं.

A.T.M. - Laid us down


4 . महाराष्ट्र परिवहन की बसों में स्थानीय सहयात्रियों का प्रेमपूर्ण तथा सहयोगात्मक रवैया:
एक और बात महाराष्ट्र के इस टूर में हमारे दिल को छू गई, और वो था महाराष्ट्र परिवहन की बसों में हमारे साथ सहयात्रियों का मधुर व्यवहार. बस में जैसे ही लोगों को पता चलता की हम एम. पी. से महाराष्ट्र घुमने आए हैं, तो लोग अपनी सीट से खड़े होकर हमें सीट दे देते थे, जब हम मना करते तो उनका वक्तव्य होता ” आप हमारे मेहमान हैं और हमारा फ़र्ज़ है आपकी सहायता करना”. ऐसा एक जगह नहीं पुरे टूर के दौरान लगभग हर जगह हुआ.

5.
हमने क्या सिखा?
मैं अपना यह कड़वा अनुभव लेकर आपके सामने इसलिए आई, की इस तरह की परेशानी और किसी के साथ न आये. हम समझते हैं की आजकल तो हर जगह ए.टी.एम. उपलब्ध है, और इसी भरोसे की वजह से हम लापरवाह हो जाते हैं. जब ऐसी जगह जो की एक प्रसिद्द तथा व्यस्त धार्मिक पर्यटन स्थल है तथा जिसे एक तहसील का दर्जा प्राप्त है वहां ए.टी.एम. नहीं है तो फिर ऐसी सुविधा के भरोसे रहने से क्या मतलब? यह सुविधा हमें कभी दिन में तारे भी दिखा सकती है. उस दिन और उसी पल से हमने ये सबक लिया की आज के बाद कभी भी यात्रा के दौरान ए.टी.एम. पर आश्रित नहीं रहेंगे.
लेकिन चुंकि हम एक धर्म स्थल पर भगवान के दर्शनों के लिए गए थे और यह सर्वविदित है की भगवान हमेशा अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं, अतः जो भी हुआ ठीक ही हुआ, हम दोनों उस विकट परिस्थिति में भी संयमित रहे और भगवान से किसी भी प्रकार की कोई शिकायत नहीं की क्योंकि हमारी यह परेशानी लम्बी न होकर क्षणिक थी, सो कुछ देर में ही बेडा पार हो गया.

6.अंत भला तो सब भला:
इस सफ़र में हमें कभी ख़ुशी मिली तो कभी गम लेकिन एक सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की सारी परेशानियों के बावजूद हम जिस उद्देश्य से गए थे उसमें हम जरुर सफल हुए, यानी तीनों धार्मिक स्थलों नांदेड गुरुद्वारा, औंढा नागनाथ और परली वैद्यनाथ में हमें बड़े अच्छे से दर्शन एवं पूजन करने का मौका मिला. भोले बाबा के दर्शन एवं अभिषेक से हमारी सारी थकान चुटकियों में दूर हो गई. वैसे भी महात्मा गाँधी ने कहा है – Worship is a sin without sacrifice यानि त्याग के बिना पूजा एक पाप है.


Phir Milenge.........................
अपनी इस आपबीती के साथ ही अब इस लेख को यहीं समाप्त करती हूँ………..फिर से उपस्थित होउंगी आप लोगों के समक्ष अपनी अगली प्रस्तुति के साथ.

Monday 20 February 2012

सुहाना सफ़र और आप - By Kavita Bhalse

घुमक्कड़ डोट कॉम के सभी पाठकों को मेरी और से सादर नमस्कार. मैंने घुमक्कड़ पर रूचि लेना अभी कुछ समय पहले ही शुरू किया है अतः आप लोग मुझे घुमक्कड़ परिवार की नयी सदस्य कह सकते हैं. मेरे हसबेंड श्री मुकेश भालसे इस अंतरजाल (वेबसाइट ) से पहले से ही यात्रा वृत्तान्त लेखक के रूप में जुड़े हैं एवं उनकी घुमक्कड़ डोट कॉम के प्रति प्रेम तथा निष्ठा देखकर मैं भी धीरे धीरे इस सम्मानजनक मंच से जुड़ गई तथा अब तो यह स्थिति है की पूजा पाठ के बाद दैनिक कार्यों की शुरुआत घुमक्कड़ के साथ ही होती है. अगर मैं यह कहूँ की घुमक्कड़ हमारे परिवार का एक चहेता सदस्य है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.
मैं आज अपनी इस पहली पोस्ट के साथ घुमक्कड़ पर लिखना शुरू कर रही हूँ तथा मुझे पूरा विश्वास है की मुझे अपने सभी घुमक्कड़ साथियों का आशीर्वाद तथा मार्गदर्शन अनवरत मिलता रहेगा.
मैं अपने परिवार के साथ वर्ष में एक या एक से अधिक बार (मुख्यतः धार्मिक स्थान पर) घुमक्कड़ी कर ही लेती हूँ, इन यात्राओं में हमें बहुत से खट्टे मीठे अनुभव होते हैं तथा हर यात्रा हमें कुछ नया सिखा जाती है, अपनी यात्राओं के इन्ही खट्टे मीठे अनुभवों से प्राप्त कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं को कलमबद्ध करके आज में आपलोगों को प्रस्तुत कर रही हूँ, आशा है की यह जानकारी साथी घुमक्कड़ों के लिए लाभदायक सिद्ध होगी, अगर ऐसा होता है तो मैं समझूंगी की मेरा प्रयास अर्थपूर्ण रहा.
यात्रा शुरू करने से पहले यात्रा सम्बंधित निम्नलिखित सभी महत्वपूर्ण पहलुओं पर गौर कर लें ताकि आपका सफ़र उर्दू वाला सफ़र ही रहे, अंग्रेजी वाला सफ़र (suffer) न बन जाए.
1. सफ़र की योजना:
सफ़र (यात्रा) पर जाने से पहले हर पहलु को ध्यान में रखकर एक अच्छी योजना पर अवश्य कार्य कर लें जैसे:
सबसे पहले हमारे पास उपलब्ध दिनों की संख्या, यात्रा के साधनों की सुलभता आदि को ध्यान में रखकर एक यात्रा क्रम (Itinerary) बना लें, इस यात्रा क्रम को तैयार करने में अंतरजाल (Internet) बहुत सहायक होता है.
जहाँ तक संभव हो सके हमारे गंतव्य स्थान पर रात्रि विश्राम (Stay) के लिए उपयुक्त होटल, धर्मशाला, गेस्ट हाउस आदि यात्रा से पहले ही (टेलीफोन/इन्टरनेट की मदद से) आरक्षित करवा लें ताकी आप नई जगह पर परेशान होने से बच सकें.
सही समय पर रेल/ हवाई जहाज/ बस आदि में अपनी सीट आरक्षित करवा लें ताकि आपको अनावश्यक परेशानियों का सामना न करना पड़े.
गंतव्य स्थान (Destination) के मौसम की पूर्व जानकारी अवश्य ले लें तथा उसके अनुसार ही अपनी यात्रा की योजना बनायें, यह तब और महत्वपूर्ण हो जाता है जब आपके साथ बच्चे या बुजुर्ग भी यात्रा में शामिल हैं.

यात्रा विवरण

2. सफ़र में आवश्यक सामान:
सफ़र पर निकलने से पहले अपनी तैयारी बहुत सोच समझकर तथा शान्ति से करें और सुनिश्चित करें की आप कुछ महत्वपूर्ण सामान रखना तो नहीं भूल रहे हैं जैसे – आपका केमेरा, केमेरा का चार्जर, केमरे के लिए अतिरिक्त मेमोरी कार्ड मोबाइल का चार्जर, आपके आरक्षण टिकटों की प्रतियाँ, फोटो आईडी, शेविंग किट, गंतव्य स्थान (Destination) से सम्बंधित मार्गदर्शिका (Guide), आवश्यक नक़्शे, अन्य रोजमर्रा की आवश्यकता के सामान जैसे तेल, साबुन, कंघा, क्रीम, टॉवेल आदि, मौसम के अनुरूप तथा कम से कम मात्रा में कपड़े, ATM कार्ड, क्रेडिट कार्ड, आपके बिजनेस कार्ड आदि.

यात्रा की तैयारी
3. सफ़र के साथी:
यात्रा में आपके साथ जाने वाले सदस्यों की उम्र एक अति महत्वपूर्ण तथा विचारणीय पहलु है, अतः उनकी सुविधाओं को ध्यान में रखकर ही यात्रा नियोजित करनी चाहिए.
यदि आपके साथ यात्रा में बुजुर्ग भी हैं और आपको रेल यात्रा करनी है तो आप उचित समय पर अपना रेल आरक्षण करवा लें ताकि आपको बुजुर्गों के लिए लोअर बर्थ मिल सके.
यात्रा के दौरान बुजुर्गों के स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी अति आवश्यक है, अतः अपनी यात्रा की योजना ऐसी बनायें की बुजुर्गों को पर्याप्त आराम मिल सके.
यात्रा से पहले बुजुर्गों का स्वास्थ्य परिक्षण अवश्य करवा लें तथा आवश्यक दवाई गोलियां साथ में लेकर जाएँ, उनके लिए यात्रा के दौरान भोजन स्वास्थ्यवर्धक हो यह भी सुनिश्चित कर लें.
कुछ बच्चे बहुत शरारती एवं चंचल होते हैं, अतः रेल यात्रा के दौरान उन्हें कोच के दरवाज़े के पास न जाने दें तथा अकेले न छोड़ें, बीच के स्टेशनों पर भी उन्हें निचे न उतरने दें. दर्शनों के दौरान भी बच्चों का पूरा ध्यान रखें तथा उन्हें अपने से दूर न जाने दें, बच्चों के भीड़ में खो जाने का डर होता है. बच्चों को अपने अभिभावक का मोबाइल नंबर अवश्य याद करवा दें. यदि बहुत ज्यादा भीड़ वाले धार्मिक स्थान पर जा रहे हों तो बच्चों के गले में आई डी कार्ड लटका दें.

सफ़र के साथी
4. सफ़र में खानपान:
सफ़र के दौरान खानपान का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है, क्योंकी बाहरी परिवेश में अस्वास्थ्यकर खाना आपको अस्वस्थ कर सकता है अतः आप यात्रा के दौरान अपने खानपान के रूटीन में ज्यादा बदलाव न लायें तथा बाहर का खाना एक सीमा में रहकर ही खाएं .
हम जिस जगह पर घुमने जा रहे हैं वहां अगर हमारी पसंद का भोजन मिलने की सम्भावना कम हो तो घर से ही खाने पीने का कुछ ऐसा सामान जो कई दिनों तक सुरक्षित रहता हो तथा जल्द ख़राब न हो जैसे डिब्बाबंद स्नेक्स, अचार, नमकीन, मिठाइयाँ तथा अन्य परिरक्षित (Preserved) खाद्य सामग्री पैक कर के रख लें.
फल, मुंगफली, प्रोटीन शेक, पोपकोर्न, जैसी चीजों से आप अपने आप को हल्का फुल्का भी महसूस करेंगे तथा इन्हें थोड़ी थोड़ी देर में लेने से कोई नुकसान भी नहीं होगा.
आप जहाँ जा रहे हैं वहां जाने से पहले ही तय कर लें की आपको कहाँ ठहरना है तथा आसपास में कौन से अच्छे रेस्त्रां हैं. जहाँ तक संभव हो सके यात्रा के दौरान नॉन वेज न खाएं क्योंकि यह गरिष्ठ होता है तथा आपका पेट अपसेट हो सकता है.

सफ़र में खानपान
5. सफ़र और स्वास्थ्य:
पर्यटन के दौरान आपका स्वस्थ होना सबसे आवश्यक है, यदि आप स्वस्थ ही नहीं होंगे तो आप यात्रा का आनंद नहीं उठा पाएंगे तथा आपकी वजह से आपके सफ़र के अन्य साथी भी मज़ा नहीं ले पायेंगे. सफ़र में कुछ बिमारियों और परेशानियों से बचा जाए तो घुमने फिरने का मजा दुगुना हो जाता है.
सफ़र में बैठने के लिए स्वच्छ एवं हवादार स्थान का चयन करें. सफ़र में स्वच्छ, आरामदायक तथा ढीले ढाले परिधान (कपड़े) पहनें. सफ़र में टाइम पास करने के लिए अपनी पसंद की कुछ पत्रिकाएं तथा संगीत सुनाने के लिए ईअर पीस भी रखें.
सफ़र में गरिष्ठ भोजन न करें, बिलकुल भूखे रहकर सफ़र करना भी ठीक नहीं है. नाश्ता हल्का ही करें, साथ में निम्बू, इलायची, लौंग, पुदीना सत तथा ओरेंज टोफियाँ रखें. पिने के पानी में कम मात्र में ग्लूकोज, पिपरमेंट आदि मिलाएं.
कुछ लोगों को कार, हवाई जहाज, बस, झूले आदि में चक्कर आने तथा उल्टी होने की शिकायत रहती है, उन्हें चाहिए की वे पर्यटन पर निकलने से पहले अपने चिकित्सक के परामर्श से दवाईयाँ आदि साथ कलेकर ही सफ़र के लिए निकलें.

दवाईयाँ
6. सफ़र और आपका सौंदर्य (महिलाओं के लिए):
पर्यटन तथा सफ़र के दौरान हमारे सौंदर्य की देखभाल भी अति आवश्यक है. अतः निम्न बिन्दुओं पर विशेष रूप से गौर फरमाएं.
सफ़र के दौरान पसीना अधिक आता है, अतः ऐसा मेकअप करें जो पसीने से ख़राब न हो. सफ़र में हल्का मेकअप करें तथा वेलवेट की बिंदी इस्तेमाल करें.
सफ़र के दौरान ट्रेन, बस में हवा की वजह से बाल उड़ते हैं और बिखर जाते हैं इसलिए हेयर स्प्रे लगा लेना ठीक रहता है. मेकअप किट हमेशा साथ रखें जिसमें सौंदर्य का आवश्यक सामान हो जैसे लिपस्टिक, आइब्रो पेंसिल, टेलकम पावडर, हेयर पिन, स्किन टोनर, टिशु पेपर, बिंदी, कंघा, कंडिशनर, क्लींजिंग मिल्क, मोइस्चराइजर, आदि.
सफ़र में बालों को खुला रखने के बजाये जुड़ा बना लें या चोटी कर लें, यदि बाल छते हों तो पोनी टेल भी कर सकती हैं.
मौसम के अनुरूप त्वचा की रक्षा के लिए सनस्क्रीन, कोल्ड क्रीम, लोशन आदि का उपयोग करें.

सौंदर्य प्रसाधन
7. सफ़र और आस्था:
यदि आप धार्मिक यात्रा पर जा रहे हैं तो निम्न पहलुओं पर अवश्य विचार करें.
सबसे महत्वपूर्ण बात है की आप जिस धर्म स्थल पर दर्शन के लिए जा रहे हों वहां से आपका विश्राम स्थल (होटल/धर्मशाला/गेस्ट हाउस) जितना हो सके नजदीक होना चाहिए, यह बड़ा सुविधाजनक होता है तथा आप चलने की थकान व परेशानी से बच जाते हैं. करीब रहने से हमें भगवान के दर्शन एक से अधिक बार करने का सौभाग्य मिल जाता है तथा हमें यह भी एहसास होता है की हम किसी सिद्ध जगह के इतने करीब रह रहे हैं. रात की तथा सुबह की आरतियों तथा पूजन, अभिषेक में भी बिना परेशानी के शामिल हुआ जा सकता है.
पूजा अर्चना के लिए आवश्यक सामान जैसे जाप के लिए माला, पढने के लिए पोथी, जल चढाने के लिए छोटा कलश आदि साथ लेकर जाएँ.
जहाँ तक संभव हो धार्मिक यात्रा पर निकलने से पहले मंदिर (धर्मस्थल) के ट्रस्ट/संस्थान की वेबसाइट को अच्छे से पढ़कर तथा विश्लेषण करके जाएँ जिससे आपको वहां पर होने वाले वार्षिक/मासिक/दैनिक कार्यक्रमों, उत्सवों एवं आयोजनों की पूर्व जानकारी हो जाये तथा आप भीड़ तथा परेशानी से बचे रहें तथा आपको दर्शन सरलता तथा सुलभता से हो जाएँ (जो आपका मुख्य उद्देश्य होता है). यदि आप उत्सवों में शामिल होना चाहते हैं तो भी पूर्व जानकारी आपके लिए अति आवश्यक है.
यदि आपका ध्येय ईश्वर के दर्शन करना ही है तो अपनी यात्रा की योजना तीज, त्यौहारों, विशिष्ठ दिनों आदि को छोड़कर करें और भीड़ परेशानी से बचकर संतोषजनक दर्शनों का लाभ लें.

पूजन सामग्री
यदि इन छोटी छोटी बातों को आदत में शामिल कर लिया जाए तो आपका हर सफ़र सुहाना सफ़र होगा. आपके अगले सुहाने सफ़र के लिए मेरी और से ढेरों शुभकामनायें. बस अब मैं अपनी हिदायतों का सिलसिला अभी के लिए यहीं बंद करती हूँ तथा मिलती हूँ अगली बार मेरी अगली पोस्ट के साथ.

Parivar ka ek chayachitr

Sunday 12 February 2012

Parli Vaidyanath / परली वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग दर्शन


पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसंतम गिरिजासमेतम.
सुरासुराराधितपाद्पदमम श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि.
(अध्याय २८, द्वादश्ज्योतिर्लिन्ग्स्तोत्रम, कोटिरुद्रसंहिता, शिवमहापुराण) 


                                                                                                    Shri Parli Vaidyanath Jyotirling Namami   
औंढा नागनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन, पूजन तथा अभिषेक के बाद अब हमारा अगला पड़ाव था परली वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग जो की औंढा नागनाथ से लगभग 130 किलोमीटर की दुरी पर है, औंढा बस स्टैंड से सीधे परली के लिए महाराष्ट्र परिवहन की बसें उपलब्ध हैं, या फिर औंढा से परभणी और परभणी से परली पहुंचा जा सकता है, औंढा से हमें परली के लिए सीधी बस मिल गई थी अतः शाम करीब सात बजे हम परली पहुँच गए, परली बस स्टॉप से ऑटो रिक्शा में सवार होकर हम श्री परली वैद्यनाथ मंदिर पहुँच गए, परली में एक बड़ी अच्छी बात यह है की परली वैद्यनाथ मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित यात्री निवास (धर्मशाला) मंदिर के एकदम करीब स्थित है, यानी मंदिर की सीढियों से एकदम लगा हुआ.


परली वैजनाथ मंदिर: एक विहंगम द्रश्य
हम जब भी धार्मिक यात्रा पर जाते हैं तो हमारी हमेशा यही कोशिश रहती है की विश्राम स्थल मंदिर के जितना हो सके करीब हो, ताकि अपने प्रवास के दौरान हमारा जितनी बार मन करे उतनी बार हम भगवान् के दर्शन कर पायें, साथ ही साथ मन में यह संतुष्टि भी होती है की हम मंदिर के करीब रह रहे हैं, और हम मंदिर की सारी गतिविधियाँ देख पाते हैं.
यात्री निवास में व्यवस्था भी अच्छी थी, 300 रु. में डबल बेड, अटेच्ड लेट बाथ, गरम पानी के अलावा एल सी डी टीवी आदि, कुल मिला कर ठीक ठाक व्यवस्था थी, रूम में चेक इन करने के बाद थोडा सा आराम करके हम भोजन की तलाश में निकल गए, हम खाने के लिए ज्यादा दुर जाने के मूड में नहीं थे अतः मंदिर के पास ही बने एक घर नुमा होटल को चुन लिया, खाना ज्यादा अच्छा नहीं था लेकिन भूखे होने की वजह से खा ही लिया. वापस अपने कमरे पर आकर कुछ देर विश्राम करने के बाद रात करीब साढ़े आठ बजे हम प्रथम दर्शन के लिए मंदिर में प्रवेश कर गए. रात दस बजे की शयन आरती में शामिल होने के लिए हम कुछ देर मंदिर में ही रुके, रात का वक्त था और दर्शनार्थियों की संख्या भी बहुत कम थी अतः हम आसानी से गर्भगृह के अन्दर ज्योतिर्लिंग के पास बैठकर ॐ नमः शिवाय जाप करने लगे, कुछ ही देर में आरती शुरू हो गई, आरती के बाद हम यात्री निवास के अपने कमरे में जा कर सो गए.  ये तो था हमारा परली वैद्यनाथ मंदिर में प्रवेश तक का विवरण, अब मैं आपको हमेशा की तरह जानकारी देना चाहूँगा इस ज्योतिर्लिंग एवं मंदिर के बारे में.
परली वैद्यनाथ- एक परिचय:
महाराष्ट्र राज्य के मराठवाडा क्षेत्र के बीड़ जिले में स्थित है धार्मिक नगर परली वैजनाथ (परली वैद्यनाथ), और यहाँ पर स्थित है भगवान शिव का सुप्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग मंदिर, जिसमें विराजते हैं भगवान् वैद्यनाथ जो की शिवपुराण के कोटिरुद्रसंहिता के २८ वें अध्याय के  अंतर्गत वर्णित द्वादशज्योतिर्लिंगस्तोत्रं के अनुसार भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं. हालाँकि जैसे मैंने अपनी पिछली पोस्ट में बताया की इस ज्योतिर्लिंग के स्थान के बारे में भी लोगों के बिच मतभेद है तथा बहुत से लोग मानते हैं की यह ज्योतिर्लिंग झारखण्ड के देवघर में स्थित बैद्यनाथ धाम मंदिर में स्थित है, फिर भी भक्तों का एक बड़ा वर्ग मानता है की बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग परली में ही है.
भारत के नक़्शे पर कन्याकुमारी से उज्जैन के बीच अगर एक मध्य रेखा खिंची जाय तो उस रेखा पर आपको परली गाँव दिखाई देगा, यह गाँव मेरु पर्वत अथवा नागनारायण पहाड़ की एक ढलान पर बसा है. ब्रम्हा, वेणु और सरस्वती नदियों के आसपास बसा परली एक प्राचीन गाँव है तथा यहाँ पर विद्युत् निर्माण का बहुत बड़ा थर्मल पॉवर स्टेशन है. गाँव के आसपास का क्षेत्र पुराण कालीन घटनाओं का साक्षी है अतः इस गाँव को विशेष महत्व प्राप्त हुआ है.
पौराणिक किवदंती:
देव दानवों द्वारा किये गए अमृत मंथन से चौदह रत्न निकले थे, उनमें धन्वन्तरी और अमृत दो रत्न थे. अमृत को प्राप्त करने दानव दौड़े तब श्री विष्णु ने अमृत के साथ धन्वन्तरी को एक शिवलिंग में छुपा दिया था. दानवों ने जैसे ही उस शिवलिंग को छूने की कोशिश की वैसे ही शिवलिंग में से ज्वालायें निकलने लगी, लेकिन जब उसे शिवभक्तों ने छुआ तो उसमें से अमृतधारा निकलने लगी, ऐसा माना जाता है की परली वैद्यनाथ वही शिवलिंग है, अमृत युक्त होने के कारण ही इसे वैद्यनाथ (स्वास्थ्य का देवता ) कहा जाता है.
श्री वैद्यनाथ मंदिर शिल्प:
माना जाता है की वैद्यनाथ मंदिर लगभग 2000 वर्ष पुराना है, तथा इस मंदिर के निर्माण कार्य को पूरा होने में 18 वर्ष लगे थे, वर्त्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार इंदौर की शिवभक्त महारानी देवी अहिल्याबाई होलकर ने अठारहवीं सदी में करवाया था. अहिल्या देवी को यह तीर्थ स्थान बहुत प्रिय था.
यह भव्य तथा सुन्दर मंदिर मेरु पर्वत की ढलान पर पत्थरों से बना है तथा गाँव की सतह से करीब अस्सी फीट की उंचाई पर है. इस मंदिर तक पहुँचने के लिए तीन दिशाएं तथा प्रवेश के तीन द्वार हैं. यह मंदिर गाँव के बाहरी इलाके में स्थित है तथा बस स्टैंड एवं रेलवे स्टेशन से चार किलोमीटर की दुरी पर है. इस मंदिर के शिल्प के विषय में एक रोचक कहानी है, महारानी अहिल्या बाई होलकर जिन्होंने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया, उन्हें इस मंदिर के निर्माण के लिए अपनी पसंद का पत्थर प्राप्त करने में बड़ी कठिनाई हो रही थी, अंततः उन्हें अपने स्वप्न में उस पत्थर की जानकारी मिली तथा उन्हें आश्चर्य हुआ की जिस पत्थर के लिए परेशान हो रही थी वह परली नगर के समीप ही स्थित त्रिशाला देवी पर्वत पर उपलब्ध है.
मंदिर के चारों ओर मजबूत दीवारें हैं , मंदिर परिसर के अन्दर विशाल बरामदा तथा सभामंडप है यह सभामंडप साग की मजबूत लकड़ी से निर्मित है तथा यह बिना किसी सहारे के खड़ा है, मंदिर के बहार ऊँचा दीप स्तम्भ है तथा दीपस्तंभ से ही लगी हुई है पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई की नयनाभिराम प्रतिमा. मंदिर के महाद्वार के पास एक मीनार है, जिसे प्राची या गवाक्ष कहते हैं, इनकी दिशा साधना के कारण मंदिर में चैत्र और आश्विन माह में एक विशेष दिन को सूर्योदय के समय सूर्य की किरणें श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग पर पड़ती हैं. मंदिर में जाने के लिए काफी चौड़ाई लिए कई सारी मजबूत सीढियाँ हैं जिन्हें घाट कहते हैं. मंदिर परिसर में ही अन्य ग्यारह ज्योतिर्लिंगों के सुन्दर मंदिर भी स्थित हैं. मंदिर में प्रवेश पूर्व की ओर से तथा निकास उत्तर की ओर से है. यह एकमात्र स्थान है जहाँ नारद जी का मंदिर भी है. ज्योतिर्लिंग मंदिर के पहले ही शनिदेव तथा आदि शंकराचार्य के मंदिर भी हैं.

ज्योतिर्लिग मंदिर प्रवेश द्वार

ज्योतिर्लिग मंदिर प्रवेश द्वार

मंदिर के सामने का द्रश्य

प्रवेश द्वार

मंदिर परिसर में फुर्सत के क्षण

मंदिर मुख्य प्रवेश द्वार तथा पार्श्व में मंदिर शिखर

दीप स्तम्भ तथा देवी अहिल्या प्रतिमा

भक्त निवास


कुछ खरीददारी

यात्री निवास के निचे की ओर सजी दुकानें

खरीददारी

देवी अहिल्या बाई का आशीर्वाद
गर्भगृह:
इस मंदिर में गर्भगृह तथा सभाग्रह एक ही भू-स्तर (लेवल)  पर स्थित होने के कारण सभामंडप से ही बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन हो जाते हैं, शिवलिंग एकदम काले शालिग्राम पत्थर से निर्मित है. गर्भगृह में चारों दिशाओं में एक एक अखंड ज्योति दीप हमेशा जलते रहते हैं.  ज्योतिर्लिंग (जलाधारी सहित) को क्षरण से बचाने के लिए हर समय एक चांदी के आवरण से ढँक कर रखा जाता है, सिर्फ दोपहर में दो से तीन बजे के बिच श्रृंगार के लिए ही आवरण हटाया जाता है, अतः भक्तों को आवरण से ज्योतिर्लिंग के दर्शन पूजन करके संतुष्टि करनी पड़ती है. ज्योतिर्लिंग के ठीक ऊपर पांच माध्यम आकार के चांदी के गोमुख लटकते रहते हैं जो की भगवान वैद्यनाथ का अभिषेक करने में प्रयुक्त होते हैं. यहाँ पर भी मंदिर ट्रस्ट के नियमों के अंतर्गत 151 से लेकर 251 रु. के बिच दक्षिणा देकर पंचामृत से ज्योतिर्लिंग का रुद्राभिषेक किया जा सकता है लेकिन चांदी के आवरण के साथ ही. गर्भगृह माध्यम आकार का है तथा एक साथ अठारह से बीस लोग पूजन अभिषेक कर सकते हैं.
सभामंडप में गर्भगृह के ठीक सामने लेकिन थोड़ी दुरी पर एक ही जगह पर एक साथ तीन अलग अलग आकार के पीली आभा लिए पीतल के नंदी विद्यमान हैं, जहाँ से ज्योतिर्लिंग के स्पष्ट दर्शन होते हैं. गर्भगृह के प्रवेश द्वार के समीप ही माता पार्वती का मंदिर भी है.

मंदिर का बरामदा तथा नंदी जी का मंदिर

गर्भगृह के सामने स्थित तीन नंदी

गर्भगृह के ठीक सामने सभा मंडप

श्री परली वैजनाथ ज्योतिर्लिंग

गर्भगृह के ठीक सामने
मंदिर समय सारणी:
श्री वैद्यनाथ मंदिर सुबह 5 बजे प्रातः आरती के साथ खुलता है, तथा दोपहर 3 बजे तक खुला रहता है, तथा इस समय के दौरान भक्त गण पूजा अभिषेक कर सकते हैं. शाम 5 बजे भस्म पूजा होती है, तथा रात 9 : 45 बजे शयन आरती होती है. रात दस बजे मंदिर बंद हो जाता है.
ठहरने की व्यवस्था:
यहाँ पर यात्रियों के ठहरने के लिए उत्तम व्यवस्था है, मदिर से बिलकुल सटे हुए दो यात्री निवास हैं जो की श्री बैद्यनाथ मंदिर ट्रस्ट के द्वारा संचालित किये जाते हैं 200 रु. से 300 के शुल्क पर उपलब्ध हैं. इन यात्री निवासों में सारी मूलभूत सुविधाएँ  उपलब्ध हैं जैसे गर्म पानी, टेलीविजन आदि.

यात्री निवास का कमरा

यात्री निवास
कैसे पहुंचें:
परली वैजनाथ महाराष्ट्र के बीड़ जिले में स्थित है, तथा महाराष्ट्र के बड़े शहरों जैसे मुंबई, पुणे, औरंगाबाद, नागपुर, नांदेड, अकोला आदि से सीधे सड़क मार्ग से जुड़ा है तथा यहाँ पहुँचने के लिए महाराष्ट्र परिवहन निगम की बसें आसानी से उपलब्ध हैं.
परली वैजनाथ दक्षिण मध्य रेलवे लाइन से भी जुड़ा है, ट्रेन्स जैसे काकीनाडा मनमाड एक्सप्रेस, सिकंदराबाद मनमाड एक्सप्रेस, बेंगलोर नांदेड लिंक एक्सप्रेस आदि परली वैजनाथ के लिए उपलब्ध हैं.
परली में बस स्टैंड तथा रेलवे स्टेशन एक दुसरे के बहुत करीब हैं. स्टेशन से मंदिर जाने के लिए 30 रु. देकर ऑटो रिक्शा लिया जा सकता है.

परली वैजनाथ रेलवे स्टेशन पर ट्रेन का इंतज़ार

परली वैजनाथ स्टेशन
अपनी कहानी:
सुबह जल्दी उठकर मंदिर पहुंचकर पंचामृत रुद्राभिषेक करवाने के बाद तथा मंदिर में सुखद क्षण बिताने के बाद हम करीब 11 बजे रेलवे स्टेशन पहुँच गए, जहाँ से हमें 1:15 पर निकलने वाली अकोला पेसेंजर ट्रेन से अकोला के लिए बैठना था. इस ट्रेन ने हमें रात 9:00 बजे अकोला पहुँचाया, वहां से अकोला महू ट्रेन में सवार होकर अगले दिन की शाम को हम अपनी इस यात्रा की ढेरों मधुर स्मृतियाँ लेकर सकुशल अपने घर पहुँच गए. इस श्रंखला की इस अंतिम कड़ी को अब मैं यहीं विराम देता हूँ, फिर कुछ ही समय में उपस्थित होऊंगा अपनी अगली यात्रा की कहानी के साथ.

Wednesday 8 February 2012

Aundha Nagnath / औंढा नागनाथ: भोले बाबा का एक और आशियाना

याम्ये सदड्गे नगरेतिरम्ये विभुषिताग विविधैश्च भोगिः , सद्भक्तिमुक्तिप्रद्मिश्मेकम  श्री नागनाथं शरणं प्रपद्ये.
(द्वादश्ज्योतिर्लिन्गस्तोत्रम, कोटिरुद्रसंहिता, शिवमहापुराण)
नांदेड में हजुर साहिब सचखंड गुरूद्वारे के पावन दर्शन के पश्चात अब हमारी यात्रा का अगला गंतव्य था श्री औंढा नागनाथ ज्योतिर्लिंग दर्शन.
नांदेड में रणजीतसिंह यात्री निवास से लगभग 10  बजे चेक आउट करने के बाद औंढा के लिए बस पकड़ने के उद्देश्य से हम नांदेड के बस स्टेंड पर पहुँच गए, वहां जाकर पता चला की  औंढा के लिए डाइरेक्ट कोई बस उपलब्ध नहीं थी अतः हम बसमथ के लिए बस में सवार हो गए और बसमथ से बस बदलकर लगभग साढ़े 12  बजे औंढा नागनाथ पहुँच गए. अब अपनी कहानी को यहाँ विराम देकर आपको स्थान से परिचित करता हूँ.
श्री औंढा नागनाथएक परिचय:
औंढा नागनाथ, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में स्थित हिंगोली जिले के औंढा नामक तालुके (तहसील) में स्थित है, तथा यहाँ पर एक अति प्राचीन तथा सुन्दर मंदिर में भगवान भोलेनाथ के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक (सन्दर्भ- द्वादश्ज्योतिर्लिन्ग्स्तोत्रं, कोटिरुद्रसंहिता, श्री शिव महापुराण अध्याय २९) आठवें क्रम के ज्योतिर्लिंग ” नागेशं दारुकावने” स्थित हैं, और इसी वजह से इस स्थान का महात्म्य प्राचीन धर्म ग्रंथों तथा पुराणों में भी मिलता है.

औंढा नागनाथ

मुख्य प्रवेश द्वार

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के सम्बन्ध में मतभेद:
शिव महापुराण के द्वादश्ज्योतिर्लिन्ग्स्तोत्रं में उल्लेखित बारह ज्योतिर्लिंगों में से कुछ की भौगोलिक स्थितियों के बारे में भक्तों के मत अलग अलग हैं. कारण यह है की स्तोत्र (श्लोक) में इन ज्योतिर्लिंगों की भौगोलिक स्थिति अस्पष्ट है अतः लोग अपने अपने तरीके से व्याख्या करते हैं तथा अर्थ निकालते हैं, स्थान निर्धारण में सबसे ज्यादा विवादित दो ज्योतिर्लिंग हैं, एक है नागेश्वर ज्योतिर्लिंग जिसके बारे में कुछ लोगों का मत है की यह गुजरात स्थित द्वारका के समीप है वहीँ अन्य लोगों का मत है की यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र के औंढा नमक गाँव में स्थित श्री नागनाथ मंदिर में है.
ठीक इसी प्रकार श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में भी मतभेद है, कुछ लोगों का मानना है की यह ज्योतिर्लिंग झारखंड राज्य में जेसीडीह के करीब देवघर कसबे में स्थित है, वहीँ अन्य लोग मानते हैं की यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के बीड  जिले में स्थित परली वैजनाथ स्थान पर स्थित है.
खैर, हमें इस विवाद की और ध्यान न देकर जिस ज्योतिर्लिंग स्थान पर हम आसानी से पहुँच सकें वहीँ सच्ची भावना से भक्ति करके संतुष्ट होना चाहिए.

श्री नागनाथ मंदिर शिल्प:
श्री नागनाथ मंदिर का शिल्प बड़ा अनोखा तथा विष्मयकारी है, मंदिर का निर्माण कार्य महाभारतकालीन माना जाता है. पत्थरों से बना यह विशाल मंदिर हेमाड़पंथी स्थापत्य कला में निर्मित है तथा करीब 60000  वर्गफुट के क्षेत्र में फैला है.मंदिर की चारों दीवारें काफी मजबूती से बनाई गई हैं तथा इसके गलियारे भी बहुत विस्तृत हैं. सभा मंडप आठ खम्भों पर आधारित है तथा इसका आकार गोल है.


आतंरिक प्रवेश द्वार

मंदिर का सर्वोच्च शिखर, वानर सेना का कोलाहल

मंदिर प्रवेश द्वार

मंदिर प्रवेश द्वार
यहाँ महादेव के सामने नंदी नहीं है तथा मुख्य मंदिर के सामने अन्य स्थान पर नंदिकेश्वर जी का मंदिर अलग से बनाया गया है.


बिलकुल अलग पहचान लिए नंदी जी
मुख्य मंदिर के चारों ओर बारह ज्योतिर्लिंगों के छोटे मंदिर भी बने हुए हैं. मंदिर की दीवारों पर पत्थरों को तराश कर की गई सुन्दर नक्काशी देखने लायक है, तथा दीवारों पर कई देवी देवताओं की मूर्तियाँ उकेरी गई हैं. शिलाखंडों से निर्मित इन मूर्तियों को देखने से मन प्रसन्न हो जाता है. मंदिर की दिवार के एक कोने पर बने एक शिल्प में भगवान् शिव रूठी हुई पार्वती जी को मना रहे हैं, यह द्रश्य देखकर लोग दांतों तले उँगलियाँ दबा लेते हैं, पत्थर से बनी मूर्तियों के चेहरों पर कलाकार ने जो भाव उत्पन्न किये हैं, लाजवाब हैं.


मंदिर में प्रवेश के लिए कतार


परिसर स्थित अन्य छोटे छोटे मंदिर

मंदिर के पार्श्व में, विष्णु जी की मूर्ति


मंदिर अन्य द्रश्य


अन्य द्रश्य
अन्य महत्वपूर्ण हिन्दू मंदिरों की तरह इस मंदिर पर भी धर्मांध औरंगजेब की कुद्रष्टि पड़ी तथा उसने मंदिर का उपरी आधा भाग ध्वस्त कर दिया था, लेकिन अचानक हज़ारों की संख्या में कहीं से भ्रमर (भौरें) आ गए तथा औरंगजेब के सैनिकों पर टूट पड़े, अंततः औरंगजेब को अपनी सेना समेत वापस लौटना पड़ा (यह और कुछ नहीं भगवान् का चमत्कार ही था).
बाद में इंदौर की महारानी पुण्यश्लोका देवी अहिल्याबाई होलकर जो की स्वयं शिव की बहुत बड़ी भक्त थी ने इस मंदिर का उपरी टुटा हुआ हिस्सा पुनर्निर्मित करवा कर मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया, अतः उनकी स्मृति में मंदिर परिसर में प्रवेश से पहले ही मातुश्री अहिल्या बाई होलकर की प्रतिमा विराजमान है.

देवी अहिल्या बाई प्रतिमा
मंदिर का उपरी आधा भाग जो की औरंगजेब ने ध्वस्त कर दिया था तथा बाद में देवी अहिल्या बाई ने बनवाया, सफ़ेद रंग से पुताई किया हुआ है, तथा मंदिर का आधा निचला हिस्सा जो की प्राचीन मंदिर का वास्तविक हिस्सा है अभी भी काला ही है, यानी उस हिस्से पर पुताई नहीं की जाती.
श्री नागनाथ मंदिर का अनोखा गर्भगृह:
इस मंदिर की एक विशेषता है की यहाँ गर्भ गृह सभा मंडप के सामानांतर स्थित न होकर, सभा मंडप के निचे स्थित गुफा नुमा तलघर में है, मैंने इस तरह का मंदिर इससे पहले कभी नहीं देखा, सभा मंडप के एक कोने में चौकोर आकार का एक द्वार है तथा इस द्वार से सीढियाँ लगी हैं जो की निचे तलघर में स्थित गर्भगृह तक जाती हैं, रास्ता भी इतना छोटा है की एक बार में एक ही व्यक्ति तलघर में जा या आ सकता है.
अन्दर गर्भ गृह भी बहुत छोटा है तथा एकसाथ केवल आठ या दस लोग ही पूजा कर सकते हैं, उंचाई भी इतनी कम है की व्यक्ति खड़ा नहीं हो सकता सिर्फ झुक कर या बैठ कर ही रहा जा सकता है, जबकि मंदिर बहुत विशाल है, तलघर स्थित गुफा नुमा  गर्भ गृह के ठीक ऊपर वाली मंजिल पर बहुत जगह है जहाँ सुविधाजनक गर्भगृह आसानी से बनाया जा सकता था, फिर क्यों इतनी छोटी सी जगह पर ज्योतिर्लिंग स्थापित किया गया जहाँ ठीक से खड़ा भी नहीं रहा जा सकता, मेरी समझ से बाहर था, मुझे तो यह मंदिर बड़ा ही रहस्यमय लगा. अन्दर गर्भगृह में मध्यम आकार का ज्योतिर्लिंग स्थापित है, जो की चांदी के आवरण से ढंका रहता है तथा समय समय पर अभिषेक के लिए आवरण को हटाया जाता है.
यहाँ पर गर्भगृह में भक्तों को सीधे ज्योतिर्लिंग पर पूजन तथा अभिषेक की अनुमति है. यह ज्योतिर्लिंग रेत से निर्मित है, भक्त गण अभिषेक के दौरान अपने हाथों से रेत को महसूस कर सकते है.


तलघर स्थित गर्भगृह का अति संकरा प्रवेश द्वार

श्री औंधा नागनाथ ज्योतिर्लिंग दर्शन

श्री औंधा नागनाथ ज्योतिर्लिंग दर्शन

गर्भगृह प्रवेश द्वार और घनघोर अँधेरा
गर्भगृह के इस अद्भुत निर्माण, तथा बहुत संकरा होने तथा जगह बहुत कम होने की वजह से कई बार वृद्ध भक्तों तथा बच्चों के लिए गर्भगृह में प्रवेश  जोखिम भरा हो सकता है. फर्श हर समय गीली होने तथा प्रकाश की कमी की वजह से फिसलने का भी डर होता है, लेकिन यह भी सच है की भगवान् के दर्शन मुश्किलों तथा जोखिमों से गुजरने के बाद ही होते हैं.
वैसे भक्तों की सुरक्षा के लिए मंदिर प्रशासन ने पुख्ता इंतज़ाम किये हुए हैं, जगह जगह पर सुरक्षा की द्रष्टि से सिक्योरिटी गार्ड्स तैनात रहते है. गर्भगृह वातानुकूलित है जो की भक्तों को गर्मी में शीतलता प्रदान करता है.
मंदिर समय सारणी:
सामान्य दिनों में नागनाथ मंदिर के द्वार सुबह 4 बजे खुलते हैं तथा रात्रि 9 बजे बंद हो जाते हैं, लेकिन विशेष दिनों तथा उत्सवों के दौरान समय बढ़ा दिया जाता है. शुरू के एक घंटे में मंदिर के पुजारी पूजन अभिषेक करते हैं तथा इस दौरान भक्तों को गर्भगृह में प्रवेश नहीं दिया जाता.  12 से 12 :30 के बिच महानैवेद्य तथा आरती होती है. शाम 4 से 4 :30  के बिच श्रीस्नान एवं पूजा होती है इस दौरान भी  भक्तों को गर्भगृह में प्रवेश नहीं दिया जाता. 8 :30 से 9 :00 के बिच शयन आरती होती है.

फुल हार प्रसाद की दुकानें

फुल हार प्रसाद की दुकानें

परिसर स्थित एक अन्य मंदिर में सुन्दर शिवलिंग.
मंदिर के पण्डे पुजारी:
यहाँ के पण्डे पुजारी भी बड़े सहयोगी स्वभाव के हैं तथा भक्तों की हरसंभव मदद करते है. पूजा अभिषेक भी बड़े विस्तृत रूप से अच्छी तरह से करवाते है. बहुत ज्यादा दक्षिणा की भी मांग नहीं करते हैं, 151  से 251 रुपये के बिच पंचामृत सहित रुद्राभिषेक किया जा सकता है. हमने जिन पुजारी जी से अभिषेक करवाया था उनका मृदु व्यव्हार तथा सहयोग एवं मन प्रसन्न कर देने वाला अभिषेक हमारी स्मृति में सदा केन्द्रित रहेगा. अपने साथी घुमक्कड़ भक्तों की सुविधा के लिए मैं उनका मोबाइल नंबर यहाँ देना चाहूँगा - पं. दीक्षित जी - 09420576066 .
ठहरने  की व्यवस्था:
औंढा, हिंगोली जिले में एक छोटा सा क़स्बा है, जो की हिंगोली शहर से लगभग 30 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है. पुरे गाँव की अर्थव्यस्था तीर्थ यात्रियों पर ही निर्भर है. मंदिर की बढती लोकप्रियता के बावजूद भी यहाँ ठहरने के लिए सर्व सुविधायुक्त आवास की कमी है. मंदिर प्रशासन के द्वारा निर्मित यात्री निवास उपलब्ध है, लेकिन न्यूनतम सुविधाओं के साथ. वैसे मंदिर प्रशासन यहाँ यात्रियों के रात्रि विश्राम के लिए एक सर्वसुविधा युक्त धर्मशाला बनाने के लिए प्रयासरत है.
खाने के लिए ठीक ठाक व्यवस्था है, लेकिन पिने के पानी का स्वाद थोडा सा अप्रिय है, अतः यहाँ मिनरल वाटर पिने की सलाह दी जाती है. छोटे छोटे रेस्तरां हैं जो मराठी, पंजाबी तथा गुजराती भोजन उपलब्ध करते हैं, लेकिन ज्यादा अच्छे खाने की उम्मीद नहीं की जा सकती.
कैसे पहुंचें:
भारतीय हिन्दू तीर्थयात्रा की सही पहचान की तर्ज पर औंढा नागनाथ की यात्रा थोड़ी दुष्कर ही है. बड़े शहरों से यहाँ पहुँचने के लिए सीधी सुविधा नहीं है. अपनी यात्रा को कुछ भागों में बाँट कर ही यहाँ पहुंचा जा सकता है. हिंगोली तक पहुंचकर वहां से सीधे औंढा के लिए महाराष्ट्र राज्य परिवहन की बस के द्वारा पहुंचा जा सकता है, या फिर नांदेड पहुँच कर वहां से बसमथ और फिर बस बदल कर  औंढा पहुंचा जा सकता है, या फिर हिंगोली या नांदेड से प्राइवेट जीप लेकर भी यहाँ पहुंचा जा सकता है.
अपनी कहानी:
सुबह से भूखे होने की वजह से साढ़े बारह बजे औंढा पहुँच कर सबसे पहले हमने बस स्टॉप पर स्थित एक रेस्तरां में नाश्ता किया, और उसके बाद हम चल दिए मंदिर की और दर्शन के लिए. यहाँ एक बात बताना चाहूँगा की यहाँ पर मंदिर बिलकुल बस स्टॉप के ठीक सामने ही है तथा बस से उतारते ही मंदिर परिसर दिखाई देता है, याने न किसी से पूछने की जरुरत और न ही ऑटो रिक्शा ढूंढने की जेहमत.
मंदिर में प्रवेश के बाद मंदिर को देखते ही माँ भाव विभोर हो गया, प्राचीन शिल्पकला का एक नायाब नमूना, बड़ा सुन्दर मंदिर था. कुछ ही देर में पंडित जी से अभिषेक के बारे में बात करके हम दर्शनों के लिए लाइन में लग गए. गर्भ गृह में पहुँच कर भगवान् के समीप बैठकर करीब आधे घंटे तक रुद्राभिषेक का आनंद उठा कर इश्वर को धन्यवाद देते हुए हम मंदिर से बहार आ गए.
इसी के साथ मैं अपनी यह पोस्ट यहीं समाप्त करता हूँ इस वादे के साथ की हम जल्द ही दर्शन करेंगे एक और ज्योतिर्लिंग के अपनी पोस्ट के माध्यम से. तब तक के लिए………. ॐ नमः शिवाय…………………………………………