Wednesday, 30 October 2013

डाकिन्यां भीमशंकरम ………..भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग यात्रा.

पिछ्ली पोस्ट इंदौर से पुणे में आप लोगों ने पढा कि हम लोग भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग यात्रा के लिये इन्दौर से पुणे पहुंचे, वहां रात्री विश्राम करके अगले दिन पुणे के प्रसिद्ध दगड़ुशेठ गणपती मंदिर के दर्शन किये तथा नाश्ता करके अपने होटल पहुंच गये…….अब आगे……
आज हमें महाराष्ट्र परिवहन की बस से लगभग चार घंटे का सफ़र तय करके पुणे से भीमाशंकर जाना था। अब हमें जल्दी से भीमाशंकर की बस बस पकड़नी थी अत: अपना सामान पेक करके करीब ग्यारह बजे होटल चेक आउट करके ओटो लेकर शिवाजी नगर बस स्टाप की ओर बढ चले।
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पुणे के होटल में चेक आउट के दौरान
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होटल के रिसेप्शन पर
पुणे का मार्केट बड़ा अच्छा लग रहा था लेकिन समय के अभाव के कारण कुछ विशेष खरीदारी  नहीं कर पाए। बातों बातों में ओटो वाले ने बताया की पुणे से और कुछ खरीदो या न खरीदो लेकिन यहां का लक्ष्मीनारायण चिवड़ा जरूर लेकर जाना, बहुत प्रसिद्ध है. एक बार खाओगे तो खाते रह जाओगे। खैर..

श्रावण में शिव दर्शन (इन्दौर से पुणे )

नवम्बर 2011 कि बात है, अपनी ज्योतिर्लिंग यात्रा के अगले स्थान के रुप में हमने चुना था भिमाशंकर को। विशाल राठोड़ से उस समय फोन पर बहुत लंबी बातें हुआ करती थीं, ऐसे ही एक दिन घुमक्कड़ी पर चर्चा करते हुए मैने विशाल को अपने भिमाशंकर जाने के प्लान के बारे में बताया, चुंकी उस समय तक हम लोगों की मुलाकात नहीं हुई थी और हम दोनों ही कोशिश में थे की परिवार सहित कहीं मिला जाए, मेरे भिमाशंकर जाने की बात सुनते ही विशाल बोला कि यार भिमाशंकर तो हमें भी जाना है क्युं ना भिमाशंकर में ही मुलाकात की जाए और बस उसी समय दिन, दिनांक समय आदी तय करके हम दोनों ने अपने अपने परिवारो सहित ट्रैन मे आरक्षण करवा लिया।
तय कार्यक्रम के तहत मुझे अपने परिवार के साथ इन्दौर से तथा विशाल को मुम्बई से पुणे पहुंचना था और वहां से साथ में भिमाशंकर। हम लोगों को तो यह प्लान बहुत पसंद आया था लेकिन भोले बाबा न तो हमें अपने दर्शन देना चाहते थे और न ही दोनों की मुलाकात होने देना चह्ते थे। हुआ युं की हमारे निकलने वाले दिन से कुछ तीन चार दिन पहले मेरी बहुत जबर्दस्त तबियत खराब हुई, मैनें ये बात विशाल से कही और हम दोनों ने आरक्षण रद्द करवा दिए। बिमारी का आलम ये रहा की जो बैग हमने टूर के लिये तैयार किये थे उन्हें लेकर हमें अस्पताल जाना पड़ा और पूरे दस दिन मुझे अस्पताल में भरती रहना पड़ा।
मार्च २०१२ में मैने फिर भिमाशंकर जाने के लिये इन्दौर से पुणे की इन्डिगो की फ़्लाईट में हम चारों का आरक्षण करवाया, लेकिन इस बार फ़िर हमारा प्लान चौपट हो गया, संस्क्रती की सी.बी.एस.ई. की परीक्षा की तारिखें आगे बढ जाने से हमें फिर आरक्षण कैंसल करवाना पड़ा। अब ये हमारे लिये सोचने का विषय था की आखिर ऐसा भिमाशंकर के केस में ही क्यों हो रहा है? क्यों बार बार ये यात्रा कैंसल हो रही है?
लेकिन आखिर भक्ति भी कहीं हार मानती है? भक्ति के आगे तो भगवान भी झुक जाते हैं। हम भी हार नहीं मानने वाले थे, इस बार अगस्त में फ़िर इन्डिगो की फ़्लाईट का पुणे के लिए रिजर्वेशन करवाया। और इस बार हमें भगवान भिमाशंकर के सफ़लता पुर्वक दर्शनों के अलावा पुणे के दगड़ुशेठ गणेश जी, त्र्यंबकेश्वर तथा साईं बाबा के दर्शन करने का सौभाग्य भी मिला।
मेरा जन्मदिन अगस्त में आता है और इस यात्रा का योग भी अगस्त में ही बन रहा था अत: मैंने सोचा की क्यों न इस बार अपना जन्मदिन बाबा भिमाशंकर के मंदिर में पूजन अभिषेक के साथ ही मनाया जाए, और बस इसी सोच के साथ तारिख भी तय हो गई, मेरा बर्थ डे 8 अगस्त को है अतः 7 अगस्त को इन्दौर से निकालना निश्चित हुआ ताकि आठ को हम भीमाशंकर पहुंच सकें।
श्रावण के महीने में जन्मदिन वाले दिन भगवान भोलेनाथ के दर्शन, भला इससे अच्छी क्या बात हो सकती है? आजकल हम लोगों ने बर्थ डे पर पार्टी वगैरह करना बंद कर दिया है, और कोशिश करते हैं की यह पावन दिन हम किसी मंदिर में पुजा पाठ के साथ मनायें, खैर, रिजर्वेशन वगैरह करवाने के बाद अब उस दिन का इन्तज़ार था जिस दिन हमें यात्रा के लिये निकलना था।
इस यात्रा को लेकर मन में बहुत संशय था, पता नहीं हो पायेगी भी या नहीं, एन टाइम पर कुछ भी लफ़ड़ा हो सकता है, क्योंकि ये यात्रा दो बार पहले कैंसल हो चुकी थी। खैर, वो कहते हैं ना की जहां चाह होती है वहां राह निकल ही आती है, और अन्तत: हमारी यात्रा वाला दिन आ ही गया।
यह मेरी तथा मेरे परिवार की पहली हवाई यात्रा थी अतः एक्साइटमेंट का लेवल बहूत हाई था, सबसे ज्यादा बच्चों में। सात अगस्त को शाम ६.५० पर हमारी फ़्लाइट इन्दौर ऐयरपोर्ट से निकलने वाली थी। दरअसल यह एक कनेक्टिंग फ़्लाइट थी, इन्दौर से नागपुर तथा नागपुर से पुणे,  नागपुर एयरपोर्ट पर दो घंटे का विश्राम था और रात लगभग ग्यारह बजे फ़्लाइट पुणे पहुंचने वाली थी।
इंसान की ख्वाइशें हर पल नयी होती रहती है कभी यह चाहिए कभी वह, ऊपर नील गगन में उड़ते उड़नखटोले को देख कर बैठने की  इच्छा हर दिल में होनी स्वाभाविक है, सो हम सब के दिल में भी थी …कब दिन आएगा यह बात सोचते सोचते वर्षों बीत गए, लेकिन मन में यह विश्वास था की वो दिन आयेगा जरुर और फिर वह दिन आ गया ….पहली हवाई यात्रा थी, दिल में धुक धुक हो रही थी कैसे जाना होगा ..क्या क्या करना होगा

Om Beach,Gokarna – ॐ बीच,गोकर्ण

ॐ बीच पर बीती एक शाम और मुकेश के साथ जबरदस्त विवाद 

ॐ बीच
मैं शिरसी और सहस्रलिंग के दर्शन करके कुछ 2:00-2:30 बजे लौटा था। खाना खाते-खाते मुझे तीन बज गए, अब हमारी कर्णाटक की यात्रा के केवल 24 घंटे ही बचे थे। अगले दिन 4.00 बजे हमें कुम्ता पहुँचना था, जहाँ से हमें मुंबई के लिए ट्रेन पकडनी थी। तो अब मेरी कर्नाटक की यात्रा समाप्त होने जा रही थी। यात्रा के आखरी 24 घंटे मुझे अच्छे नहीं लगते, यात्रा शुरू करते वक्त बहुत उत्साह रहता है कि क्या-क्या करेंगे? कैसे घूमेंगे? आदि-आदि, लेकिन यात्रा के आखरी पल में मेरे मन में उदासी छा जाती है। ऊपर से रूम पर भी थोड़ी उदासी का माहौल था। मैंने आते ही सोनाली और मुकेश से पूछा कि कैसा रहा दिन? तो उन्होंने कहा कि बहुत बढ़िया रहा। उन्होंने पंडित द्वारा सुबह में श्री गोकर्ण महाबलेश्वर का अभिषेक किया और फिर मंदिर के सामने जो बीच है उसमे स्नान किया। मैंने कहा ठीक है चलो शिरसी और सहस्रलिंग नहीं आये तो मजा तो आया उनको। तब मैंने कहा कि चलो ॐ बीच चला जाये। चलो इस बार उन्होंने हाँ कहा तो मैं सीधे होटल से बाहर निकल गया और कार या ऑटो ढूँढने लगा। मुझे एक मारुती ओमनी वैन मिली जिसे मैंने 3-4 घंटे के लिए मात्र तीन सौ में बुक कर लिया। फिर हम चल दिए ओम बीच पर। हम कुल 20 मिनिट में ॐ बीच पहुँच गए। बीच पर जाने वाला मार्ग भी काफी सुन्दर है, पहाडों के ऊपर से होकर जाता है. मैंने एक जगह पर रूककर काफी तस्वीरे ली थी।

खूबसूरत मुरुडेश्वर में एक दिन

मुरुडेश्वर में बीता एक मनोरंजक दिन
हम कुछ ९.३० बजे इडागूंजी से वापस आये मुरुडेश्वर में और उस दिन एकादशी थी. आते ही रिक्शा में से हमने फोन लगाया मुकेश को कि उनका परिवार तैयार हुआ है कि नहीं. तो पता चला कि वे लोग मंदिर परिसर में है. हम लोग पहले हमारे गेस्ट हाउस में गए. हमें पता था कि हमें समुन्दर में नहाना है. तो उसके लिए मैं नारियल का तेल शारीर पर लगाता हूँ .इससे समुद्री खारे पानी का असर कम हो जाता है . सनबर्न नहीं होते और त्वचा टेन (tan) ज्यादा नहीं होती. हम घर से बाहर  निकले तो हम भी मंदिर में गए दर्शन के लिए. वैसे भी दर्शन केवल मैंने ही किये थे . सोनाली ने नहीं. तो सोनाली और आर्या को दर्शन कराने में ले गया. साथ साथ मै रास्ते  पर फोटो सेशन भी करने लगा. पंचवटी गेस्ट हाउस से लेकर मंदिर परिसर और समुन्दर.आज के लेख में आपको ज्यादा चित्र ही दिखेंगे क्यूंकि ज्यादातर मुरुडेश्वर का विवरण मैंने पहली पोस्ट में ही कर दिया है. आइये अब चित्रों के दर्शन कीजिये.

पंचवटी गेस्ट हाउस के आगे बाग
अब पहुचे मंदिर में

Murudeshwar - The perfect blend of spiritualism and natural beauty

मुरुडेश्वर खूबसूरती का प्रतिक ,अध्यात्मक शांती का निवास और मनोरंजन का भण्डार 

मुरुडेश्वर मंदिर में भगवान शिव की मूर्ती

मुरुडेश्वर का चेहरा

फोटो का श्रेय :- ऊपर वाली फोटो मंदिर की वेबसाइट के ” download ” section  से ली गयी है .

Wednesday, 23 October 2013

Murudeshwar - The Story of Aatmalinga (By- Vishal Rathod)

गोकर्ण और मुरुडेश्वर में लंकापति रावण के आत्मलिंग की कहानी

भगवान शिव की विशाल मूर्ती मुरुडेश्वर में .Huge Lord Shiva Statue in Murudeshwar

Om Beach , Gokarna , ओम बीच, गोकर्ण
मेरे प्रिय घुमक्कड दोस्तों और उत्सुक पाठकों को मेरा सादर प्रणाम। पिछली कहानी में मैंने लिखा था कि मैं आपको ले चलूँगा, मुरुडेश्वर की ओर, जिसकी एक अलग महिमा है। तो आज मैं पहले उस महिमा (कथा) का वर्णन करूँगा, जिसके कारण मेरे और मुकेश के परिवार ने गोकर्ण और मुरुडेश्वर की यात्रा की थी। भगवान की कथा का श्रवण करना यह भक्ति की  श्रेष्ठ और सरल भक्ति मानी गयी है, और भगवान की कथा का नैतिक रुप में अमल करने से आत्मा पवित्र होती है और अंत में भगवान की प्राप्ति होती है। अब यहाँ पर कथा सुनाना तो मुमकिन नहीं है, लेकिन मैं कथा लिख जरूर रहा हूँ, जिसे आप सब पढ़ सकते है।

Saturday, 19 October 2013

Udupi & Kollur By - Vishal Rathod

उडुपी :- नारायण अवतार परशुरामजी  द्वारा निर्मित 8 मोक्ष क्षेत्र में से एक ( Udupi :- one of the eight centers of salvation created by Parshuarmjee , Incarnation of Lord Narayana ( Vishnu).
नमस्कार मेरे घुमक्कड़ साथियों, काफी लोगों के उत्साहपूर्वक आग्रह के बाद, मैं अपनी घुमक्कड़ी का विवरण हिंदी भाषा में लेकर आया हूँ। हिंदी लिखना मेरे लिए इतना आराम-दायक नहीं है जितनी की अंग्रेजी, फिर भी कोशिश करूँगा की आप लोगों के सामने खरा उतरू। मेरे लिए भक्ति और लोक-कल्याण से श्रेष्ठ कर्म कुछ नहीं है। इसलिए मैं हमेशा भगवान और उसकी कथाएँ आप सबके मध्य बाँटने के साथ-साथ जहाँ-जहाँ जिस-जिस स्थल पर उन्होंने लीला की उन महत्त्वपूर्ण स्थानों का वर्णन करने का प्रयास करूँगा। वैसे तो भगवान सभी जगह पर उपस्थित ही है। हमारे अन्दर हमारी आत्मा में भी है, लेकिन हम इन इन्द्रियों द्वारा उसे पहचान नहीं पाते है। इसलिए भगवान की खोज में हम चलते जाते है, जहाँ पर वे स्वयं शरीर धारण करके लीला करने आ जाते है।ऐसी ही जगह पर मैं आपको आज ले चलूँगा जहां पर स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने लीला की थी, माधवाचार्य को लेकर, उस जगह का नाम है उडुपी, कर्नाटक
Welcome Readers and fellow Ghumakkars . For me there is no better work than doing Bhakti and goodness to mankind . That is why I come up with stories and legends of Almighty God and places where he has taken Avtaar ( incarnation) . Well God is everywhere even inside us in form of our inner soul, but we can’t recognise him through the senses  we have.  So we try to find the places where he has taken an avatar. Today I am going to take you the place where Lord Krishna along with  JagadGuru Madhavachraya has performed his Leela. The name of the place is Udupi, Coastal Karnataka. 
उडुपी परशुराम जी के निर्मित 8 मुक्ति क्षेत्रों में से एक है। बाकी 7 क्षेत्र है- कोंकण, मंगलौर, सुब्रमण्य, शंकरनारायण, कोल्लूर, कोटेश्वर और गोकर्ण।
Udupi is one of the eight Mukti kshetras derived by Lord Parshurama. Rest are Konkan, Mangalore, Subramanya, Shankarnarayana, Kollur, Koteshwar and Gokarna.
और मंदिर के दर्शन कराने से पहले, मैं बताना चाहता हूँ कि किसी भी मंदिर या तीर्थ स्थान पर आप अगर जाते हो तो उसके पीछे एक कथा विशेष जरूर होती है। तीर्थ स्थान की छोडिये आपके घर में भी जो छोटा सा मंदिर है जिसमें आपने आपके इष्ट देव या देवी की मूर्ति स्थापित  है, उसके पीछे भी एक छोटी सी कथा तो होती ही है, वह होगी आपकी भक्ति की………………….
And yaa, before going to have glimpse of Lord, I would like to tell that behind any temple or holy place there is a story or legend behind it. Forget Holy Places , even there is a small story behind the temple or Photo of Jesus or Makkah  placed at home  and that is story of your devotion and faith.
इसलिए जब कोई मंदिर जाए तो उसकी कथा जरूर जान कर जाना चाहिए, इससे आपके पुण्य दुगने हो जाते है। और अगर नहीं मालूम होता है तो उधर के रहने वाले स्थानीय व्यक्ति से अवश्य पूछ ले कि इस मंदिर की क्या महिमा है …………………….
That is the reason always try to find out what is legend behind that place.
 और अब चलते है, उडुपी के कृष्ण मठ की कथा की ओर इससे पहले मैं आपको जगद्गुरु माधवाचार्य के बारे में कुछ बताना चाहूँगा……………………….
Before going to Temple I will tell you something about Jagadguru Madhavacharya.
जगद्गुरु माधवाचार्य :- जगद्गुरु माधवाचार्य भक्ति संचार के काल में एक बहुत बड़े और महत्त्वपूर्ण दार्शनिक और तत्वज्ञानी थे। उनका जनम करीब 1238 ई० में उडुपी के नजदीक एक छोटे से गाँव में हुआ। वह वैष्णव धर्म के जाने-माने गुरु थे और उन्होंने स्वयं आपनी बद्री यात्रा में नारद, वेद व्यास तथा अंत में स्वयं नारायण के दर्शन किये थे. आदि शंकराचार्य, निम्बकाचार्या, वल्लभाचार्य और चैतन्य महाप्रभु के साथ साथ उनको भी जगद्गुरु का खिताब मिला है। अब चलते है मंदिर निर्माण की कथा की ओर.
Jagadguru Madhavacharya:- Jagadguru Madhavacharya is a one of the most  important philosopher is bhakti movement. He was born in 1938 in a viilage near Udupi. He is important Teacher in Vaishnav Sampradaya ( Path). In his Yatra to Badrinath he had darshan of Sage VedVyaas, Narad Muni and finally Lord Narayan . Along with Adi Shankaracharya,Nimbakacharya,Vallabhachraya, and Chaitanya Mahaprabhu he is called “ JagadGuru.” Now Lets go to the Legend of this Temple Creation.
उडुपी श्री कृष्ण मंदिर की कथा:- 13 वी शताब्दी के मध्य में जब सोमनाथ और द्वारका पर मुसलमान शासकों ने आक्रमण किया तो एक भक्त और नाविक भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति गोपीचंदन से लड़ा कर अपनी नाव में दक्षिण की ओर चला गया. जब वो कर्नाटक की ओर पहुँचा तो एक भयंकर तूफ़ान आने लगा। नाव मालपे ( उडुपी के बाजू में समुद्री गाँव)  के नजदीक आई। जहाँ पर जगदगुरु माधवाचार्य ध्यान लगा कर बैठे थे। उन्होंने अपने योग ज्ञान से पूरी नाव को तूफानी समुद्र से बचाया। वह भक्त अपने केसरी वस्त्र को लहरा-कर जगद्गुरु की शरण में आया और कहा की उन्हें क्या चाहिए।  तो माधवाचार्य ने भगवान् की मूर्ति माँगी और उसे उडुपी में स्थापित कर दिया।
इस मंदिर की एक और कथा है १६  वी सदी में एक भक्त था उसका नाम कनकदास था| वह भगवान् का शुद्र भक्त था। लेकिन मंदिर के पंडित उसे अन्दर आने नहीं देते थे, क्योंकि वह नीची जाती का था। तो वह मंदिर के पीछे की दीवार से ही हाथ जोड कर भक्ति करता था। उसका भाव इतना शुद्ध और प्रबल था कि स्वयं भगवान कृष्ण ने उसे दर्शन दिए और फिर मंदिर की पीछे वाली दीवार में एक छेद केवल उसके लिए बना दिया। अब उस स्थान पर ( पीछे वाली दीवार पर ) कनकदास के नाम पर एक गोपुरम है और जिस खिड़की ( भगवान ने बनाया हुआ छेद ) से हम दर्शन करते है उसे कनकनकिंदी कहते है।
Durring the attacks of Somanth and Dwarka by Muslim Kings in 13th century , A devotee and Sailor took original idol of Lord Krishna covered with Sandalwood ( Gopi Chandan) in his ship and sailed towards Southern Direction. The ship was caught in a terrible storm while sailing in the western coast of Malpe. When the meditating Sri Madhvacharya sensed this by his ‘aparoksha’ or divine jnana (knowledge), he got the ship safely to the shore by waving the end of his saffron robe and quietening the storm. The pleased captain of the ship offered Sri Madhvacharya anything in the ship in return. Sri Madhvacharya asked for the sandlewood peice containing the statue of Sri Krishna. Later as the story goes, Sri Madhvacharya took it to the lake, purified it and installed it in the Matt.
In the 16th century, during Sri Vaadiraja ‘s rule, Kanakadasa, an ardent believer of God, came to Udupi to worship Lord Krishna. He was not allowed inside the temple since he was from a lower caste. Sri Krishna, pleased by the worship of Kanakadasa created a small hole in the back wall of the temple and turned to face the hole so that Kanakadasa could see him. This hole came to be known as KanakanaKindi
अब चलते है हम लोग हमारी घुमक्कड़ी की ओर- मेरा और मुकेश का परिवार सुबह 5:40 पर उडुपी रेलवे स्टेशन पर पहुँच गया। फिर हमने मंदिर तक ऑटो कर लिया, जिसने हमसे 100 रू चार्ज किये| नहाने और फ्रेश होने के लिए मंदिर ट्रस्ट की धर्मशाला कुछ 100 रू में बुक कर ली। फिर नहा-धो कर हम दर्शन करने के लिए चल दिए।
Now Lets go to our travelogue. At 5.40 am we reached Udupi Station and straight away we caught the auto rickshaw which took us to Udupi temple charging us Rs. 100. For bathing and getting fresh we booked  temple Dharamshala for 2 hours which charged us RS. 100.
Then after getting fresh we to take darshan.
चलिए अब  दर्शन करते है चित्रों द्वारा. Lets see the photos .

श्री कृष्ण मंदिर :- मुख्या द्वार, Shree Krishna Matt :- Main door
यह गोपुरम कनकदास की याद में बनाया गया है।
This Gopuram was made in memory of Kanakdaas.

Monday, 14 October 2013

Two Ghumakkars Together :- It all happened this way……By Vishal Rathod

Dear Viewers,
This post starts with story of  two persons who were unknown to each other before a year. But due to common platform called The Great ” Ghumakkar.com” came together in the following way. They came together in such a way that if they speak about their episode to anyone they can’t believe them. Like mine, many infinitesimal (minute) relationships are growing . So my basic goal is to join these small infinitesimal relationships to one big infinite relationship.
I don’t know whether this story is a travelogue or insight or story of two friends , my wish or any general article ,but what is written is coming straight away from  my soul.
MARCH -APRIL – MAY – JUNE, 2011
It was around mid March2011 , I finished my Kashi Yatra and it was decided that the next destination would be Omkareshwar and Mahakaleshwar that too in mid July2011. Now Ujjain being very famous and a large town you get every information on net. Mahakaleswar Temple has its own website also along with very good contact details. But the problem was with Omkareshwar.I started surfing google maps to see where Omkareshwar lies and I found that the nearest railway station was Khandwa which is around 72 kms from Omkareshwar. I know that 72 kms can be covered by bus in two hours, but now I need to find an accommodation in Omkareshwar. I knew Shree Gajanand Maharaj Bhakt Niwas, but strictly they give it on first come first serve basis and no advance booking. we have to go there and then only we can book. I started searching website for Omakreshwar Temple but in vain, At that time Omkareshwar temple had no website . Then I started searching blogs so that I can get more information on Omkareshwar. Also I wanted to know more information on Parikarama of this Island.
I typed ” Omkareshwar trip ” in Google Search Engine and there came lot of pages on which First Page was of blog called ” A Trip to Omkareshwar Jyotilringa – Day 1″ in Ghumakkar from author called Mukesh Bhalse. This was first time I got introduced to Ghumakkar.com and at that time I didn’t know that where I was going to go in near future. I liked the post very much and was very much informative as far my trip and things what I wanted to do was concerned. I then had a view on Mukesh Bhalse’s profile in Ghumakkar.com, which stated that they also wanted to to go on trip to each jyotirlinga as my small family want to. I started taking some interest in this person’s views .A series of heavy and long comments regarding devotion started in that post from both the sides.

Omkareshwar – Mahakaleshwar- Dewas Trip

Thursday, 10 October 2013

Udaipur - The Lake City

इस श्रंखला की पिछली पोस्ट में मैने आपलोगों को नाथद्वारा स्थित भगवान श्रीनाथ जी की गौशाला, लाल बाग तथा एकलिंग जी के बारे में बताया था उम्मीद है पोस्ट आप सभी को पसंद आई होगी। एकलिंग स्वामी जी के दर्शन करने, मन्दिर में स्थित अन्य छोटे मंदिरों के दर्शन करने तथा कुछ समय मंदिर में बिताने के बाद हम लोग मंदिर के सामने रोड़ से ही एक जीप में सवार होकर उदयपुर की ओर चल पड़े।
Udaipur city tour bus
Udaipur Sightseeing bus
उदयपुर से हमारी ट्रेन रतलाम के लिये रात नौ बजे थी अत: हमें उदयपुर में रुकना नहीं था, बस दिन में ही उदयपुर के कुछ आकर्षणॊं की सैर करनी थी अत: जीप से उतरते ही हमने उदयपुर भ्रमण के लिये एक ऑटो वाले से बात की तो उसने बताया की 500 रु. में मुख्य सात आठ पाईंट घुमाउंगा जिसमें करीब पांच घंटे का समय लगेगा, थोड़े मोल भाव के बाद सौदा 400 रु. में तय हुआ।
महाराणा उदयसिंह ने सन् 1559 ई. में उदयपुर नगर की स्थापना की। लगातार मुग़लों के आक्रमणों से सुरक्षित स्थान पर राजधानी स्थानान्तरित किये जाने की योजना से इस नगर की स्थापना हुई। उदयपुर शहर राजस्थान प्रान्त का एक नगर है। यहाँ का क़िला अन्य इतिहास को समेटे हुये है। इसके संस्थापक बप्पा रावल थे, जो कि सिसोदिया राजवंश के थे। आठवीं शताब्दी में सिसोदिया राजपूतों ने उदयपुर (मेवाड़) रियासत की स्थापना की थी।

Friday, 4 October 2013

भगवान एकलिंग जी दर्शन

दोस्तों इस श्रंखला की पिछली कड़ी में मैने आपलोगों को बताया था की श्रीनाथ जी के राजभोग दर्शन के बाद हम लोग ऑटो लेकर नाथद्वारा के कुछ अन्य स्थल देखने के लिये निकल गए थे अब आगे ……………..
लालबाग, श्रीनाथ जी मंदिर ट्रस्ट के द्वारा बनवाया एक सुन्दर उद्यान है जहां कई तरह के फ़ुलों के पौधे, बच्चों के लिये झुले तथा मनोरंजन के अन्य साधन हैं, यानी सुकुन के कुछ पल बिताने के लिये इस उद्यान में सब कुछ है और छायाचित्रकारी के लिये तो यह उद्यान अति उत्तम है। जब हम यहां पहुंचे तो उस समय यहां हमारे अलावा और कोइ नहीं था, क्योंकि यह बाग दोपहर के बाद ही खुलता है। इस उद्यान में जी भर कर फोटोग्राफी करने के बाद हम अपने ऑटो में सवार होकर अपने अगले पड़ाव यानी गौशाला की ओर बढे।
नाथद्वारा का लाल बाग गार्डन
नाथद्वारा का लाल बाग गार्डन
नाथद्वारा का लाल बाग गार्डन