दोस्तों, पिछली पोस्ट में मैंने आपको मुंबई के महालक्ष्मी मंदिर तथा
उससे लगे हुए एक अन्य प्राचीन मंदिर धाकलेश्वर महादेव मंदिर के बारे में
बताया था, आइये अब इस पोस्ट में चलते हैं मुंबई के कुछ और पर्यटन स्थलों की
सैर करने के लिए……………….
20 मार्च 2012 मंगलवार शाम करीब 5 बजे कर्नाटक के कुमता से हमारी मुंबई के लिए ट्रेन थी मेंगलोर मुंबई SF एक्सप्रेस जिसने हमें सुबह लगभग 6 बजे मुंबई पहुंचा दिया.
कर्नाटक की चार दिवसीय यादगार यात्रा से लौटने के बाद अब हमें अगले 3 दिन मुंबई में विशाल के घर पर रुक कर मुंबई घूमना था. करीब आठ बजे हम विशाल के घर पहुँच गए तथा नहा धोकर अब हम आराम कर रहे थे. विशाल ने हमारे नाश्ते के लिए मिसल और पाव का इंतजाम किया, जो हमने कभी नहीं खाया था, विशाल चाहता भी यही था की हमें वो सब खिलाये जो हमने अब तक नहीं खाया था और सचमुच मुंबई में हमने कुछ ऐसी चीजें खाई जो हमने पहले कभी नहीं खाई थीं.
यहाँ मैं आपलोगों को बताना चाहूँगा की कर्नाटक यात्रा के दौरान जब हम मुरुदेश्वर के बिच पर समुद्र में नहाने का आनंद ले रहे थे, मैं यह जानते हुए भी की केमेरा को पानी से नुकसान पहुँच सकता है, अपने आप को समुद्र स्नान के फोटो लेने से रोक नहीं पाया और अंत में वही हुआ जो होना था यानि एक बेरहम लहर जोरदार तरीके से आई और हमारे ओलिम्पस के डिजिटल केमरा को भिगोती हुई चली गई.
मुरुदेश्वर तथा उडुपी में बहुत जगह केमरा को दुरुस्त करने की कोशिशों के बाद भी हमें निराशा ही हाथ लगी और हमने यह सोचकर की मुंबई पहुँच कर ओलिम्पस के सर्विस सेंटर पर हमारा केमरा जरुर ठीक हो जायेगा, केमरा बेग में रख लिया और आगे के बाकि सफ़र के फ़ोटोज़ विशाल के केमरा से खींचे.
अब मुंबई पहुंचकर सबलोग आराम कर रहे थे लेकिन मेरा कहीं भी मन नहीं लग रहा था और मैं जल्दी से जल्दी अपना केमरा ठीक करा लेना चाहता था अतः मैंने विशाल से कहा की भाई बाकि लोगों को आराम करने दो और तुम मुझे केमरा के सर्विस सेंटर पर लेकर चलो, क्योंकि केमरा ख़राब होने के बाद से मेरा कहीं घुमने में भी मन नहीं लग रहा था.
थोडा सर्च करने के बाद विशाल को पता चला की ओलिम्पस का सर्विस सेंटर CST (छत्रपति शिवाजी टर्मिनस) के करीब ही है अतः गोरेगांव से लोकल पकड़ कर हम दोनों चल पड़े अपना केमरा ठीक कराने, लेकिन बदकिस्मती ने यहाँ भी हमारा साथ नहीं छोड़ा और सर्विस सेंटर पर जा कर पता चला की हमारा केमरा अब कभी ठीक नहीं हो पायेगा.
मैंने सोचा चलो केमरा गया तो गया दूसरा भी ख़रीदा जा सकता है, कम से कम मेमोरी कार्ड तो सुरक्षित होगा जिसमें हमारे मुरुदेश्वर के सारे फोटो थे. लेकिन मुझे सबसे बड़ा शॉक तब लगा जब मुझे सर्विस सेंटर के टेक्नीशियन से पता चला की मेमोरी कार्ड भी सुरक्षित नहीं है और आपके सारे फ़ोटोज़ करप्ट हो गए हैं.
जैसे ही मैंने यह सुना मेरी आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा क्योंकि अब उन फ़ोटोज़ को बचाने का कोई चारा नहीं नज़र आ रहा था. मुझे बहुत ज्यादा परेशान देखकर सर्विस सेंटर वाली महिला ने मुझसे कहा की आपके मेमोरी कार्ड से फोटो बचाने का एक तरीका है, एक सोफ्टवेयर है जिसकी सहायता से फोटो बचाए जा सकते हैं लेकिन उसके लिए आपको 300 रुपये चार्ज लगेगा, क्योंकि वह सोफ्टवेयर बहुत महंगा होता है.
मुझे उम्मीद की कुछ किरण नज़र आई तो मैंने बिना कुछ सोचे समझे एक सेकण्ड में उसे हाँ कह दिया, और अंततः भगवान की कृपा से हमारे सारे फोटो बच गए. बाद में सर्विस सेंटर वाले ने वो सारे फोटो मुझे एक सी. डी. में डाल कर दे दिए.
सर्विस सेंटर वाले का कहना था की यदि इस केमेरा में सादा पानी चला गया होता तो इसे ठीक किया जा सकता है, लेकिन समुद्र के पानी में लवण की अत्यधिक मात्र होने से अन्दर के पार्ट्स में बहुत जल्दी जंग लग गया जिससे यह केमरा बेकार हो गया.
खैर उस दिन के बाद से मैंने कसम खा ली की कभी भी बीच पर नहाने के दौरान केमरा साथ में नहीं रखूँगा और आप सभी को भी यही सलाह देना चाहूँगा. क्योंकि केमरा तो फिर भी ख़रीदा जा सकता है लेकिन खींचे हुए फोटोग्राफ्स को बचाना बहुत मुश्किल होता है. फोटो सुरक्षित बच जाने की खबर से संतुष्ट होने के बाद मैंने उसी सर्विस सेंटर से ओलिम्पस का ही नया सिल्वर कलर का आधुनिक फीचर्स वाला केमेरा खरीद लिया.
चूँकि CST हमने वैसे भी घुमने आना था अतः केमरा खरीदने के बाद बचे समय का उपयोग करते हुए हमने CST रेलवे स्टेशन को करीब से देखा और उसके बारे में जानकारी ली.
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस – एक विश्व धरोहर स्थल / CST – A UNESCO World Heritage Site :
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस मुंबई के बोरीबंदर इलाके में स्थित एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल तथा एक ऐतिहासिक रेलवे स्टेशन है जो की सेन्ट्रल रेलवे का मुख्यालय भी है. यह बोरी बन्दर रेलवे स्टेशन के स्थान पर एक नए रेलवे स्टेशन के रूप में सन 1887 में विक्टोरिया टर्मिनस के नाम से महारानी विक्टोरिया की स्वर्ण जयंती के स्मृति स्वरुप बनाया गया था. यह भारत का सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशन है और दोनों बाहर की ट्रेनों तथा मुंबई उपनगरीय ट्रेनों (मुंबई लोकल) के स्टेशन के रूप में उपयोग किया जाता है.
एक रोचक बात यह है की यह वही स्टेशन है जहाँ से 16 अप्रेल, 1853 को भारत की पहली ट्रेन ने मुंबई से ठाणे के बिच 35 किलोमीटर की दुरी तय की थी और उस समय इस स्टेशन का नाम था बोरी बन्दर स्टेशन, औपचारिक तौर पर कहा जा सकता है की यही स्टेशन भारतीय रेलवे का जन्मस्थान है. इस स्टेशन को बाद में विक्टोरिया टर्मिनस के नाम से पुनर्निर्मित किया गया था और इसका नाम उस समय की शासक महारानी विक्टोरिया के नाम पर रखा गया था.
बाद में सन 1996 में उस समय के रेलवे मिनिस्टर श्री सुरेश कलमाड़ी ने इसका नाम बदल कर महाराष्ट्र तथा भारतवर्ष के शासक छत्रपति शिवाजी के नाम पर छत्रपति शिवाजी टर्मिनस कर दिया गया. हालाँकि इसका संक्षिप्त नाम CST है फिर भी लोग आज भी इसे VT (विक्टोरिया टर्मिनस) के नाम से ही पुकारते हैं.
इस ख़ूबसूरत ईमारत का डिजाइन ब्रिटिश आर्किटेक्ट फ्रेडरिक विलियम स्टीवन्स ने किया था. निर्माण कार्य सन 1878 में शुरू हुआ था. यह ईमारत लन्दन के सेंट पेंक्रस रेलवे स्टेशन तथा बर्लिन के पार्लियामेंट बिल्डिंग से मिलती जुलती है.
इस ईमारत को बनने में 10 साल लगे थे तथा इसका शुभारम्भ सन 1887 में महारानी विक्टोरिया के गोल्डन जुबली के दिन किया गया. इसके निर्माण में कुल लागत आई थी 260,000 पौण्ड यह राशि मुंबई में उस समय के किसी भी अन्य भवन की निर्माण राशी से कहीं अधिक थी.
बॉलीवुड की कई फिल्मों में इस रेलवे स्टेशन को फिल्माया गया है, 1956 में फिल्म CID का गाना “ये है मुंबई में जान” यहीं पर फिल्माया गया है. सन 2008 की आस्कर अवार्ड विजेता फिल्म “स्लमडाग मिलियेनियर” में भी इस ईमारत को प्रमुखता से फिल्माया गया है.
सन 2008 का आतंकवादी हमला और CST स्टेशन:
26 नवम्बर 2008 को दो आतंकवादी CST के यात्री कक्ष में घुसे, शस्त्र निकाले और यात्रियों पर ग्रेनेड्स फेंके. आतंकवादी AK – 47 रायफलों से लैस थे. बाद में उनमें से एक आतंकवादी अजमल कसाब पुलिस के द्वारा जिन्दा पकड लिया गया. इस हमले में 58 लोग मरे गए तथा अन्य 104 लोग घायल हो गए.
स्टेशन के बाहर कुछ प्रतिमाएं लगी हैं जो वाणिज्य, कृषि तथा प्रौद्योगिकी के विकास को प्रदर्शित करती हैं. एक प्रतिमा महारानी विक्टोरिया की भी लगी थी जिसे बाद में हटा दिया गया. CST पर कुल 17 प्लेटफोर्म्स हैं जिनमें से 7 लोकल ट्रेनों के लिए तथा 11 बाहर से आनेवाली ट्रेनों के लिए हैं.
ब्रहनमुंबई म्युनिसिपल कारपोरेशन (BMC) :
CST के ठीक सामने मुंबई BMC ( ब्रहनमुंबई म्युनिसिपल कारपोरेशन) का भवन है, यह भी एक बहुत ही ख़ूबसूरत भवन है तथा देखने लायक है. BMC मुंबई के नगरीय प्रशासन संस्था है तथा भारत की सर्वाधिक धनी (Richest) महानगर पालिका हैं. इसका वार्षिक बजट भारत के कुछ छोटे राज्यों से भी अधिक है.
इन सुन्दर तथा ऐतिहासिक ईमारत के दर्शनों के तथा कुछ आवश्यक फोटोग्राफी के बाद हम लोग घर पहुँच गए. थके होने की वजह से रात को जल्दी ही निंद्रा रानी ने हमें घेर लिया.
अगले दिन सुबह जल्दी उठ कर हम सब चल पड़े एक बार फिर मुंबई की सैर पर. विशाल के कार्यक्रम के अनुसार हमें आज सबसे पहले बांद्रा बेंडस्टेंड घूमना था.
बांद्रा बेंडस्टेंड:
बांद्रा बेंडस्टेंड प्रोमेनेड मुंबई के एक उपनगर बांद्रा के पश्चिमी छोर पर समुद्र के किनारे लगभग एक से डेढ़ किलोमीटर लम्बा पैदल रास्ता है जो की आगे चलकर बांद्रा फोर्ट पर जाकर ख़तम होता है.यह चहलकदमी तथा विश्राम करने के लिए बहुत ही अच्छी जगह है. इसे मुंबई का लवर्स पॉइंट भी कहते हैं क्योंकि यहाँ पर हर समय प्रेमी जोड़ों (लव बर्ड्स) का मेला लगा रहता है.
बेंड स्टेंड के रहवासियों ने इस प्रोमेनेड (चहलकदमी करने के स्थान) को विकसित करने में बहुत समय तथा पैसा लगाया है. अब यह प्रोमेनेड मुख्यतः जोगिंग, तथा पैदल चलने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
प्रेमी जोड़ों के लिए यहाँ समुद्र के किनारे अपने साथी के पहलु में बैठकर वक़्त बिताना किसी जन्नत से कम नहीं है क्योंकि वे नहीं चाहते की कोई उन्हें डिस्टर्ब करे. कुछ जोड़े तो समुद्र से एकदम सटी चट्टानों तक पहुँच जाते है तथा वहां गलबहियां डाले घंटों बैठे रहते हैं , दिन दुनिया से बेखबर अपनी ही मस्ती में मस्त ये जोड़े किसी की भी परवाह नहीं करते.
शुरू में विशाल ने हमें ये जगह दिखने में थोड़ी आनाकानी की, इसकी वजह थी हमारी टीनएजर गुडिया संस्कृति का साथ होना, लेकिन मैंने ही जिद की और कहा की कोई बात नहीं हम थोड़ी देर में ही वापस आ जायेंगे, लेकिन हम जैसे ही बेंड स्टेंड प्रोमेनेड से होते हुए बांद्रा फोर्ट पहुंचे, वहां का माहौल देखकर मुझे घबराहट होने लगी. हर तरफ जहाँ भी निगाह जा रही थी युवा जोड़े एक दुसरे की बाँहों में बाहें डाले रोमांस में मशगुल थे. मैंने तथा मेरे परिवार ने ऐसा माहौल पहली बार देखा था अतः हमारे लिए वहां कुछ देर ठहरना भी भारी पड़ रहा था.
शाम के समय जब कॉलेज के युवाओं की भीड़ यहाँ आती है तब यहाँ का माहौल देखने लायक होता है, हर तरफ रौनक ही रौनक. यहाँ पर भेल पूरी, सेव पूरी तथा अन्य खाद्य पदार्थों के स्टाल्स लगे होते हैं जिनका मज़ा लेते हुए पर्यटक तथा स्थानीय लोग अपनी शाम को और सुहानी करते हैं.
बांद्रा फोर्ट:
यह किला बेंडस्टेंड के आखरी छोर पर स्थित है तथा इसे पुर्तगालियों ने सन 1640 में बनवाया था. बांद्रा फोर्ट (बांद्रा किला) प्रेमी जोड़ों जो अपने प्रेमी / प्रेमिका के साथ तन्हाई में ख़ूबसूरत पल बिताना चाहते हैं के मिलन के लिए एक आदर्श जगह है . बांद्रा किले को कई बॉलीवुड फिल्मों में भी फिल्माया गया है जिनमें प्रमुख हैं दिल चाहता है, बुड्ढा मिल गया, जाने तू या जाने ना और रोबोट.
बांद्रा-वरली सी लिंक:
बांद्रा फोर्ट से सामने समुद्र की ओर देखने पर समुद्र के ऊपर एक बड़ा ही सुन्दर लोहे के तारों से बना झूलता हुआ पूल दिखाई देता है जिसे बांद्रा वरली सी लिंक या राजीव गाँधी सी लिंक कहा जाता है . यह पूल (ब्रिज) बांद्रा तथा मुंबई के पश्चिमी उपनगरों को वरली तथा सेंट्रल मुंबई से जोड़ने के लिए बनाया गया है.
बांद्रा फोर्ट से समुद्र को कुछ देर निहारने तथा सी लिंक के ख़ूबसूरत नजारों को अपनी आँखों में बसाने के बाद हमने अपनी अगली मंजिल यानी बांद्रा बेन्डस्टेंड पर ही स्थित कुछ नामचीन फ़िल्मी सितारों के आशियानों की ओर रुख किया. चलिए अब मैं विदा लेता हूँ और अगली पोस्ट में मिलते हैं और देखते हैं कैसे हैं आशियाने शाहरुख़ खान, सलमान खान और रेखा के.
20 मार्च 2012 मंगलवार शाम करीब 5 बजे कर्नाटक के कुमता से हमारी मुंबई के लिए ट्रेन थी मेंगलोर मुंबई SF एक्सप्रेस जिसने हमें सुबह लगभग 6 बजे मुंबई पहुंचा दिया.
कर्नाटक की चार दिवसीय यादगार यात्रा से लौटने के बाद अब हमें अगले 3 दिन मुंबई में विशाल के घर पर रुक कर मुंबई घूमना था. करीब आठ बजे हम विशाल के घर पहुँच गए तथा नहा धोकर अब हम आराम कर रहे थे. विशाल ने हमारे नाश्ते के लिए मिसल और पाव का इंतजाम किया, जो हमने कभी नहीं खाया था, विशाल चाहता भी यही था की हमें वो सब खिलाये जो हमने अब तक नहीं खाया था और सचमुच मुंबई में हमने कुछ ऐसी चीजें खाई जो हमने पहले कभी नहीं खाई थीं.
यहाँ मैं आपलोगों को बताना चाहूँगा की कर्नाटक यात्रा के दौरान जब हम मुरुदेश्वर के बिच पर समुद्र में नहाने का आनंद ले रहे थे, मैं यह जानते हुए भी की केमेरा को पानी से नुकसान पहुँच सकता है, अपने आप को समुद्र स्नान के फोटो लेने से रोक नहीं पाया और अंत में वही हुआ जो होना था यानि एक बेरहम लहर जोरदार तरीके से आई और हमारे ओलिम्पस के डिजिटल केमरा को भिगोती हुई चली गई.
मुरुदेश्वर तथा उडुपी में बहुत जगह केमरा को दुरुस्त करने की कोशिशों के बाद भी हमें निराशा ही हाथ लगी और हमने यह सोचकर की मुंबई पहुँच कर ओलिम्पस के सर्विस सेंटर पर हमारा केमरा जरुर ठीक हो जायेगा, केमरा बेग में रख लिया और आगे के बाकि सफ़र के फ़ोटोज़ विशाल के केमरा से खींचे.
अब मुंबई पहुंचकर सबलोग आराम कर रहे थे लेकिन मेरा कहीं भी मन नहीं लग रहा था और मैं जल्दी से जल्दी अपना केमरा ठीक करा लेना चाहता था अतः मैंने विशाल से कहा की भाई बाकि लोगों को आराम करने दो और तुम मुझे केमरा के सर्विस सेंटर पर लेकर चलो, क्योंकि केमरा ख़राब होने के बाद से मेरा कहीं घुमने में भी मन नहीं लग रहा था.
थोडा सर्च करने के बाद विशाल को पता चला की ओलिम्पस का सर्विस सेंटर CST (छत्रपति शिवाजी टर्मिनस) के करीब ही है अतः गोरेगांव से लोकल पकड़ कर हम दोनों चल पड़े अपना केमरा ठीक कराने, लेकिन बदकिस्मती ने यहाँ भी हमारा साथ नहीं छोड़ा और सर्विस सेंटर पर जा कर पता चला की हमारा केमरा अब कभी ठीक नहीं हो पायेगा.
मैंने सोचा चलो केमरा गया तो गया दूसरा भी ख़रीदा जा सकता है, कम से कम मेमोरी कार्ड तो सुरक्षित होगा जिसमें हमारे मुरुदेश्वर के सारे फोटो थे. लेकिन मुझे सबसे बड़ा शॉक तब लगा जब मुझे सर्विस सेंटर के टेक्नीशियन से पता चला की मेमोरी कार्ड भी सुरक्षित नहीं है और आपके सारे फ़ोटोज़ करप्ट हो गए हैं.
जैसे ही मैंने यह सुना मेरी आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा क्योंकि अब उन फ़ोटोज़ को बचाने का कोई चारा नहीं नज़र आ रहा था. मुझे बहुत ज्यादा परेशान देखकर सर्विस सेंटर वाली महिला ने मुझसे कहा की आपके मेमोरी कार्ड से फोटो बचाने का एक तरीका है, एक सोफ्टवेयर है जिसकी सहायता से फोटो बचाए जा सकते हैं लेकिन उसके लिए आपको 300 रुपये चार्ज लगेगा, क्योंकि वह सोफ्टवेयर बहुत महंगा होता है.
मुझे उम्मीद की कुछ किरण नज़र आई तो मैंने बिना कुछ सोचे समझे एक सेकण्ड में उसे हाँ कह दिया, और अंततः भगवान की कृपा से हमारे सारे फोटो बच गए. बाद में सर्विस सेंटर वाले ने वो सारे फोटो मुझे एक सी. डी. में डाल कर दे दिए.
सर्विस सेंटर वाले का कहना था की यदि इस केमेरा में सादा पानी चला गया होता तो इसे ठीक किया जा सकता है, लेकिन समुद्र के पानी में लवण की अत्यधिक मात्र होने से अन्दर के पार्ट्स में बहुत जल्दी जंग लग गया जिससे यह केमरा बेकार हो गया.
खैर उस दिन के बाद से मैंने कसम खा ली की कभी भी बीच पर नहाने के दौरान केमरा साथ में नहीं रखूँगा और आप सभी को भी यही सलाह देना चाहूँगा. क्योंकि केमरा तो फिर भी ख़रीदा जा सकता है लेकिन खींचे हुए फोटोग्राफ्स को बचाना बहुत मुश्किल होता है. फोटो सुरक्षित बच जाने की खबर से संतुष्ट होने के बाद मैंने उसी सर्विस सेंटर से ओलिम्पस का ही नया सिल्वर कलर का आधुनिक फीचर्स वाला केमेरा खरीद लिया.
चूँकि CST हमने वैसे भी घुमने आना था अतः केमरा खरीदने के बाद बचे समय का उपयोग करते हुए हमने CST रेलवे स्टेशन को करीब से देखा और उसके बारे में जानकारी ली.
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस – एक विश्व धरोहर स्थल / CST – A UNESCO World Heritage Site :
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस मुंबई के बोरीबंदर इलाके में स्थित एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल तथा एक ऐतिहासिक रेलवे स्टेशन है जो की सेन्ट्रल रेलवे का मुख्यालय भी है. यह बोरी बन्दर रेलवे स्टेशन के स्थान पर एक नए रेलवे स्टेशन के रूप में सन 1887 में विक्टोरिया टर्मिनस के नाम से महारानी विक्टोरिया की स्वर्ण जयंती के स्मृति स्वरुप बनाया गया था. यह भारत का सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशन है और दोनों बाहर की ट्रेनों तथा मुंबई उपनगरीय ट्रेनों (मुंबई लोकल) के स्टेशन के रूप में उपयोग किया जाता है.
एक रोचक बात यह है की यह वही स्टेशन है जहाँ से 16 अप्रेल, 1853 को भारत की पहली ट्रेन ने मुंबई से ठाणे के बिच 35 किलोमीटर की दुरी तय की थी और उस समय इस स्टेशन का नाम था बोरी बन्दर स्टेशन, औपचारिक तौर पर कहा जा सकता है की यही स्टेशन भारतीय रेलवे का जन्मस्थान है. इस स्टेशन को बाद में विक्टोरिया टर्मिनस के नाम से पुनर्निर्मित किया गया था और इसका नाम उस समय की शासक महारानी विक्टोरिया के नाम पर रखा गया था.
बाद में सन 1996 में उस समय के रेलवे मिनिस्टर श्री सुरेश कलमाड़ी ने इसका नाम बदल कर महाराष्ट्र तथा भारतवर्ष के शासक छत्रपति शिवाजी के नाम पर छत्रपति शिवाजी टर्मिनस कर दिया गया. हालाँकि इसका संक्षिप्त नाम CST है फिर भी लोग आज भी इसे VT (विक्टोरिया टर्मिनस) के नाम से ही पुकारते हैं.
इस ख़ूबसूरत ईमारत का डिजाइन ब्रिटिश आर्किटेक्ट फ्रेडरिक विलियम स्टीवन्स ने किया था. निर्माण कार्य सन 1878 में शुरू हुआ था. यह ईमारत लन्दन के सेंट पेंक्रस रेलवे स्टेशन तथा बर्लिन के पार्लियामेंट बिल्डिंग से मिलती जुलती है.
इस ईमारत को बनने में 10 साल लगे थे तथा इसका शुभारम्भ सन 1887 में महारानी विक्टोरिया के गोल्डन जुबली के दिन किया गया. इसके निर्माण में कुल लागत आई थी 260,000 पौण्ड यह राशि मुंबई में उस समय के किसी भी अन्य भवन की निर्माण राशी से कहीं अधिक थी.
बॉलीवुड की कई फिल्मों में इस रेलवे स्टेशन को फिल्माया गया है, 1956 में फिल्म CID का गाना “ये है मुंबई में जान” यहीं पर फिल्माया गया है. सन 2008 की आस्कर अवार्ड विजेता फिल्म “स्लमडाग मिलियेनियर” में भी इस ईमारत को प्रमुखता से फिल्माया गया है.
सन 2008 का आतंकवादी हमला और CST स्टेशन:
26 नवम्बर 2008 को दो आतंकवादी CST के यात्री कक्ष में घुसे, शस्त्र निकाले और यात्रियों पर ग्रेनेड्स फेंके. आतंकवादी AK – 47 रायफलों से लैस थे. बाद में उनमें से एक आतंकवादी अजमल कसाब पुलिस के द्वारा जिन्दा पकड लिया गया. इस हमले में 58 लोग मरे गए तथा अन्य 104 लोग घायल हो गए.
स्टेशन के बाहर कुछ प्रतिमाएं लगी हैं जो वाणिज्य, कृषि तथा प्रौद्योगिकी के विकास को प्रदर्शित करती हैं. एक प्रतिमा महारानी विक्टोरिया की भी लगी थी जिसे बाद में हटा दिया गया. CST पर कुल 17 प्लेटफोर्म्स हैं जिनमें से 7 लोकल ट्रेनों के लिए तथा 11 बाहर से आनेवाली ट्रेनों के लिए हैं.
ब्रहनमुंबई म्युनिसिपल कारपोरेशन (BMC) :
CST के ठीक सामने मुंबई BMC ( ब्रहनमुंबई म्युनिसिपल कारपोरेशन) का भवन है, यह भी एक बहुत ही ख़ूबसूरत भवन है तथा देखने लायक है. BMC मुंबई के नगरीय प्रशासन संस्था है तथा भारत की सर्वाधिक धनी (Richest) महानगर पालिका हैं. इसका वार्षिक बजट भारत के कुछ छोटे राज्यों से भी अधिक है.
इन सुन्दर तथा ऐतिहासिक ईमारत के दर्शनों के तथा कुछ आवश्यक फोटोग्राफी के बाद हम लोग घर पहुँच गए. थके होने की वजह से रात को जल्दी ही निंद्रा रानी ने हमें घेर लिया.
अगले दिन सुबह जल्दी उठ कर हम सब चल पड़े एक बार फिर मुंबई की सैर पर. विशाल के कार्यक्रम के अनुसार हमें आज सबसे पहले बांद्रा बेंडस्टेंड घूमना था.
बांद्रा बेंडस्टेंड:
बांद्रा बेंडस्टेंड प्रोमेनेड मुंबई के एक उपनगर बांद्रा के पश्चिमी छोर पर समुद्र के किनारे लगभग एक से डेढ़ किलोमीटर लम्बा पैदल रास्ता है जो की आगे चलकर बांद्रा फोर्ट पर जाकर ख़तम होता है.यह चहलकदमी तथा विश्राम करने के लिए बहुत ही अच्छी जगह है. इसे मुंबई का लवर्स पॉइंट भी कहते हैं क्योंकि यहाँ पर हर समय प्रेमी जोड़ों (लव बर्ड्स) का मेला लगा रहता है.
बेंड स्टेंड के रहवासियों ने इस प्रोमेनेड (चहलकदमी करने के स्थान) को विकसित करने में बहुत समय तथा पैसा लगाया है. अब यह प्रोमेनेड मुख्यतः जोगिंग, तथा पैदल चलने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
प्रेमी जोड़ों के लिए यहाँ समुद्र के किनारे अपने साथी के पहलु में बैठकर वक़्त बिताना किसी जन्नत से कम नहीं है क्योंकि वे नहीं चाहते की कोई उन्हें डिस्टर्ब करे. कुछ जोड़े तो समुद्र से एकदम सटी चट्टानों तक पहुँच जाते है तथा वहां गलबहियां डाले घंटों बैठे रहते हैं , दिन दुनिया से बेखबर अपनी ही मस्ती में मस्त ये जोड़े किसी की भी परवाह नहीं करते.
शुरू में विशाल ने हमें ये जगह दिखने में थोड़ी आनाकानी की, इसकी वजह थी हमारी टीनएजर गुडिया संस्कृति का साथ होना, लेकिन मैंने ही जिद की और कहा की कोई बात नहीं हम थोड़ी देर में ही वापस आ जायेंगे, लेकिन हम जैसे ही बेंड स्टेंड प्रोमेनेड से होते हुए बांद्रा फोर्ट पहुंचे, वहां का माहौल देखकर मुझे घबराहट होने लगी. हर तरफ जहाँ भी निगाह जा रही थी युवा जोड़े एक दुसरे की बाँहों में बाहें डाले रोमांस में मशगुल थे. मैंने तथा मेरे परिवार ने ऐसा माहौल पहली बार देखा था अतः हमारे लिए वहां कुछ देर ठहरना भी भारी पड़ रहा था.
शाम के समय जब कॉलेज के युवाओं की भीड़ यहाँ आती है तब यहाँ का माहौल देखने लायक होता है, हर तरफ रौनक ही रौनक. यहाँ पर भेल पूरी, सेव पूरी तथा अन्य खाद्य पदार्थों के स्टाल्स लगे होते हैं जिनका मज़ा लेते हुए पर्यटक तथा स्थानीय लोग अपनी शाम को और सुहानी करते हैं.
बांद्रा फोर्ट:
यह किला बेंडस्टेंड के आखरी छोर पर स्थित है तथा इसे पुर्तगालियों ने सन 1640 में बनवाया था. बांद्रा फोर्ट (बांद्रा किला) प्रेमी जोड़ों जो अपने प्रेमी / प्रेमिका के साथ तन्हाई में ख़ूबसूरत पल बिताना चाहते हैं के मिलन के लिए एक आदर्श जगह है . बांद्रा किले को कई बॉलीवुड फिल्मों में भी फिल्माया गया है जिनमें प्रमुख हैं दिल चाहता है, बुड्ढा मिल गया, जाने तू या जाने ना और रोबोट.
बांद्रा-वरली सी लिंक:
बांद्रा फोर्ट से सामने समुद्र की ओर देखने पर समुद्र के ऊपर एक बड़ा ही सुन्दर लोहे के तारों से बना झूलता हुआ पूल दिखाई देता है जिसे बांद्रा वरली सी लिंक या राजीव गाँधी सी लिंक कहा जाता है . यह पूल (ब्रिज) बांद्रा तथा मुंबई के पश्चिमी उपनगरों को वरली तथा सेंट्रल मुंबई से जोड़ने के लिए बनाया गया है.
बांद्रा फोर्ट से समुद्र को कुछ देर निहारने तथा सी लिंक के ख़ूबसूरत नजारों को अपनी आँखों में बसाने के बाद हमने अपनी अगली मंजिल यानी बांद्रा बेन्डस्टेंड पर ही स्थित कुछ नामचीन फ़िल्मी सितारों के आशियानों की ओर रुख किया. चलिए अब मैं विदा लेता हूँ और अगली पोस्ट में मिलते हैं और देखते हैं कैसे हैं आशियाने शाहरुख़ खान, सलमान खान और रेखा के.
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