पिछली पोस्ट में मैंने आपको मुंबई के फ़िल्मी सितारों के घर, मुक्तेश्वर
महादेव मंदिर, जुहू स्थित इस्कॉन मंदिर, तथा सिद्धिविनायक मंदिर के बारे
में बताया था. अब आज की यह पोस्ट इस मुंबई टूर सिरीज़ की अंतिम पोस्ट है
जिसमें मैं आपको बाबुलनाथ महादेव मंदिर, तारापुरवाला एक्वेरियम, एंटीलिया,
ताज महल होटल एवं गेट वे ऑफ़ इंडिया लेकर चलता हूँ.
मैंने मुंबई में एक चीज देखी की यहाँ की भागमभाग भरी ज़िन्दगी में लोग कई बार खाने को भी नज़र अंदाज़ कर देते हैं और शायद इसी वजह से मुंबई में फास्ट फ़ूड का चलन बहुत ज्यादा है. फास्ट फ़ूड भी मुंबई के लोगों ने अपनी आवश्यकता एवं रूचि के अनुरूप विकसित कर लिए हैं जैसे हेमबर्गर,पिज़्ज़ा और हॉट डॉग के बजाय यहाँ एक बड़ा वर्ग वडापाव, सेव पूरी, भेल पूरी, पाव भाजी आदि खाना पसंद करते हैं. मैंने तो महसूस किया की मुंबई में लोगों को रोटी बनाने और खाने की फुर्सत ही नहीं है, आधी मुंबई वडा पाव खा कर जिंदा रहती है. मुझे लगता है मुंबई की बेकरियां ही इस शहर की अन्नदाता हैं.
मैंने पिछले कई सालों से मुंबई के देसी फास्ट फ़ूड वडा पाव का नाम बहुत सुन रखा था लेकिन हमारे एरिया में ज्यादा प्रचलित न होने की वजह से इसका स्वाद कभी नहीं चख पाए थे, और आज हम सुबह घर से नाश्ता करके भी नहीं निकले थे अतः सोचा की चलो आज वडा पाव खा ही लिया जाए तो जी हमने एक छोटी सी दूकान से वडा पाव लेकर खाया जो मुझे इतना ज्यादा पसंद आया की वहां से आने के बाद आज तक मैं वडा पाव ढूंढ़ रहा हूँ, सोचता हूँ इंदौर में मिलता तो होगा लेकिन कहाँ यह नहीं मालूम.
खैर वडा पाव का आनंद लेने के बाद हम चल पड़े अपनी मुंबई घुमक्कड़ी पर, मुंबई के दादर स्टेशन से उतर कर हमें ऑटो लेकर आगे जाना था, इसी सिलसिले में हम दादर के सब्जी मार्केट से होकर गुजरे. यह सब्जी मार्केट इतना बड़ा था की हम यहाँ कुछ देर रुके बिना नहीं रह सके. जब मैंने सब्जियों का भाव पूछा तो मुझे बड़ा अच्छा लगा, इतने बड़े महानगर में इस मार्केट में मुझे सब्जियों के भाव काफी सस्ते लगे. सबकुछ था इस विशाल सब्जी मंडी में, हर तरह की एकदम ताज़ा सब्जियां, फल, फुल, गजरे, मालाएं और सब कुछ बिलकुल रियायती भाव में.
एक बात मैंने देखी है, लोग जितना मुंबई की महंगाई का हौवा बनाते हैं वास्तव में मुंबई उतनी महंगी है नहीं, हाँ मुंबई में रहने के लिए ज़मीन तथा मकान का किराया या अन्य प्रोपर्टी ज़रूर महंगी हो सकती है लेकिन बाकी चीजों में मुंबई मुझे सस्ती ही लगी. यहाँ हर व्यक्ति की आर्थिक स्थिति के अनुरूप संसाधन उपलब्ध हैं, अगर कुछ लक्ज़री की बात छोड़ दी जाए तो एक आम मध्यम वर्गीय व्यक्ति के लिए यहाँ उसकी जेब के हिसाब से सारे साधन मौजूद हैं.
अगर मैं इंदौर जैसे मध्यम शहर की एक छोटी सी तुलना मुंबई से करूँ तो कुछ यूँ समझ में आता है – मुंबई में 2 से 3 किलोमीटर की दुरी ऑटो रिक्शा से 11 रु. में या टेक्सी(कार) से 17 रु.में की जा सकती है जबकि आप इंदौर में 30 रु. से कम में ऑटो में बैठ ही नहीं सकते हैं. मुंबई में एक वडा पाव जिसमें एक आलुबडा और एक पाव तथा चटनी होती है 6 से 7 रु. में मिल जाता है जबकि अकेला आलुबडा इंदौर में 8 रु. से कम में नहीं मिलता है. निम्बू पानी एक ग्लास मुंबई में 4 रु. का उपलब्ध है जबकि यही इंदौर में 8 से 10 रु. में मिलता है. पाव मुंबई में 1 रु. का एक मिलता है यही इंदौर में 2 रु. से कम कहीं नहीं है.मुंबई के एक सुपर मॉल में तरबूज 8 रु. प्रतिकिलो मिल जाता है जबकि यही तरबूज इंदौर में 15 रु. किलो मिलता है.ऐसी और भी बहुत सी चीजें मैंने देखी जो मुझे बहुत सस्ती लगीं. पता नहीं क्यों लोग मुंबई को नाहक बदनाम करते रहते हैं? और हाँ एक चीज़ तो भूल ही गया मुंबई लोकल में 8 से 10 किलोमीटर का सफ़र मात्र चार रुपये में तय किया जा सकता है. खैर चलिए चलते हैं हमारे अगले डेस्टिनेशन…….बाबुलनाथ मंदिर.
बाबुलनाथ मंदिर:
बाबुलनाथ मंदिर मुंबई में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर है. मंदिर एक पहाड़ी पर समुद्र तल से लगभग 1000 फिट की दुरी पर स्थित है. मंदिर पर लिफ्ट से भी जाया जा सकता है, लेकिन लिफ्ट समय सारणी के अनुसार चलती है. हम लोग जब मंदिर पहुंचे तब लिफ्ट चल रही थी अतः हम सब लिफ्ट से ही मंदिर पहुंचे.
कहा जाता है की बाबुलनाथ शिवलिंग तथा मूर्ति की स्थापना सबसे पहले 12 वीं शताब्दी में उस समय के हिन्दू राजा भीमदेव ने की थी. सदियों पहले यह शिवलिंग तथा मूर्ति समय के गर्त में समा गईं थीं तथा बाद में सन 1700 से 1780 के बीच में इन मूर्तियों को पुनः खोजा गया. पहला मंदिर सन 1780 में निर्मित हुआ.
बाबुलनाथ के पहले मंदिर की देख रेख तथा प्रबंधन गुजराती समाज के द्वारा किया जाता था. 1890 में यहाँ गुजराती व्यापारियों ने पैसा इकठ्ठा करके तथा बड़ोदा के महाराजा सयाजी राव गायकवाड के सहयोग से नया मंदिर बनाया तथा अभी जो मंदिर यहाँ स्थित है वह 1890 में बनवाया गया है. 1980 तक बाबुलनाथ मंदिर मुंबई का सबसे ऊँचा मंदिर था.
आज के समय में यह मुंबई का सबसे सुन्दर मंदिर है तथा हर सोमवार को महाशिवरात्रि पर यहाँ भक्तों की भीड़ उमड़ती है. बाबुलनाथ मंदिर के दर्शनों के बाद अब हमारी अगली मंजिल थी……..तारापुरवाला एक्वेरियम.
तारापुरवाला एक्वेरियम:
तारापुरवाला मछलीघर मुंबई शहर का एकमात्र एक्वेरियम है जिसका निर्माण सन 1951 में आठ लाख रुपये की लागत से हुआ था. यहाँ पर समुद्री तथा स्वच्छ पानी की 100 से भी ज्यादा विभिन्न प्रजाति की मछलियाँ और पानी के अन्य जीव जैसे कछुए, झींगे, इल, स्टार फिश आदि प्रदर्शित किये गए हैं. एक अलग कक्ष में बोतलों में समुद्री तथा पानी के जीवों के जीवाश्म तथा मछलियों को संरक्षित करके रखा गया है. यह एक्वेरियम प्रसिद्द मरीन ड्राइव के नजदीक स्थित है. इसका नाम एक प्रसिद्द समाजसेवी के नाम पर रखा गया है जिन्होंने इसके निर्माण के लिए दो लाख रुपये का दान में दिए थे.
आज के हमारे भ्रमण के दौरान हमें विशाल जी ने एक बहुत ही नायाब चीज़ के दर्शन करवाए, और वो है “एंटीलिया” पहचाना आपने? विश्व का सबसे महंगा घर “एंटीलिया”. प्रसिद्द उद्योगपति मुकेश अम्बानी का घर “एंटीलिया”. तो आइये हो जाये कुछ जानकारी इस दुनिया के सबसे महंगे घर के बारे में.
एंटीलिया- मुकेश अम्बानी का निवास:
एंटीलिया दक्षिण मुंबई में स्थित एक सत्ताईस मंजिला भवन है (उंचाई के हिसाब से साठ मंजिल के बराबर) जो की रिलायंस उद्योग के अरबपति चेयरमेन मुकेश अम्बानी का निवास स्थान है. इस घर की देख रेख के लिए पुरे 600 का स्टाफ है और इसी वजह से इसे विश्व का सबसे महंगा घर करार दिया गया है. इसे 21 वीं सदी के भारत का ताज महल भी कहा जाता है.
इस घर में मुकेश अम्बानी उनकी पत्नी नीता अम्बानी, उनके दो बच्चे एवं उनकी माँ कोकिला बेन अम्बानी रहते हैं.
एंटीलिया की विशेषताएं:
1. 40000 स्के. फीट रहने की जगह.
2. 168 कारों के लिए पार्किंग की जगह.
3. एक पूरी मंजिल वाहनों की मरम्मत तथा रख रखाव के लिए.
4. 9 लिफ्टें तथा 3 हेलीपेड.
5. 50 लोगों के बैठने की क्षमता वाला थियेटर आठवें माले पर.
इस दुर्लभ घर को हर कोण से निहारने के बाद हम चल पड़े अपनी अगली मंजिल ताज महल होटल एवं गेट वे ऑफ़ इंडिया की ओर.
ताज महल होटल:
ताजमहल होटल मुंबई के कोलाबा इलाके में गेट वे ऑफ़ इन्डिया के सामने स्थित एक अत्यंत ख़ूबसूरत पांच सितारा होटल है तथा अपने ऐतिहासिक महत्त्व एवं विशिष्ट निर्माण कला की वजह से मुंबई के कुछ चुनिन्दा दर्शनीय स्थलों में से एक भी है.यह होटल प्रसिद्द औद्योगिक समूह टाटा ग्रुप की संपत्ति है.
लगभग 109 साल पुराने इस होटल ने अब तक विश्व भर की कई प्रसिद्द हस्तियों की मेहमान नवाजी की है उनमें से कुछ हैं बिल क्लिंटन, नोर्वे के रजा और रानी, ड्यूक ऑफ़ एडिनबर्ग, प्रिंस ऑफ़ वेल्स, एंजेलिना जोली, ब्रेड पिट, हिलेरी क्लिंटन, बराक ओबामा, ओप्रा विनफ्री और भारत में आनेवाली कई देशों की क्रिकेट टीमें आदि. होटल में कुल 565 कमरे हैं.
होटल का शुभारम्भ 16 दिसंबर 1903 में हुआ था, कहा जाता है की जमशेद जी टाटा को उस समय के मुंबई के एक प्रसिद्द होटल वाटसन होटल में प्रवेश नहीं करने दिया गया क्योंकि यह होटल सिर्फ गोरे फिरंगियों को ही प्रवेश देता था तो उन्होंने उसी समय निर्णय लिया की मैं इससे भी बड़ा होटल बनवाऊंगा.
इस होटल के वास्तविक वास्तुविद थे सीताराम खंडेराव वैद्य, अशोक कुमार और डी.एन.मिर्ज़ा लेकिन इस परियोजना को पूर्ण किया अंग्रेज इंजिनियर डब्ल्यू. ए. चेम्बर्स ने.
गेट वे ऑफ़ इंडिया तथा समुद्र तट से जो हिस्सा इस होटल का दिखाई देता है वह वास्तव में इसका पिछवाडा है और सामने का हिस्सा इसकी विपरीत दिशा में है.
ऐसा कहा जाता है की इस होटल के वास्तुविद (आर्किटेक्ट) ने गलती से समुद्र (हार्बर) की ओर इसका पिछला हिस्सा बना दिया जबकि इस ओर अगला हिस्सा होना था. होटल बन जाने के बाद उसे लोगों बार बार यह कहा की इतने सुन्दर तथा महंगे भवन को आपे उल्टा बना कर उसकी पूरी सुन्दरता नष्ट कर दी. लोगों ने उसे इस बात पर इतना कोसा की वह मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गया और उसने आत्महत्या कर ली.
लेकिन होटल प्रबंधन का मत है की सच्चाई यह नहीं है, सच्चाई यह है की ऐसा निर्माण जान बुझ कर किया गया है. ऐसा संभवतः इसलिए किया गया की घोडा गाड़ियाँ जो शहर के अन्य हिस्सों से यहाँ तक मेहमानों को लेकर आती थी उनकी सुविधा के लिए समुद्र से विपरीत दिशा में प्रवेश द्वार बनाना ज्यादा आवश्यक था. (अब सच्चाई क्या है यह भगवान ही जानता है)
गौरतलब है की 26 नवम्बर 2008 को इस होटल पर एक जबरदस्त आतंकवादी हमला हुआ था जिसके बारे में हम सभी जानते है.
गेट वे ऑफ़ इंडिया:
गेटवे ऑफ़ इंडिया एक ऐतिहासिक स्मारक है जो की होटल ताज महल के ठीक सामने स्थित है. यह स्मारक साउथ मुंबई के अपोलो बन्दर क्षेत्र में अरब सागर के बंदरगाह पर स्थित है. यह एक बड़ा सा द्वार है जिसकी उंचाई 26 मीटर (85 फीट) है. अरब सागर के समुद्री मार्ग से आनेवाले जहाजों आदि के लिए यह भारत का द्वार कहलाता है तथा मुंबई के कुछ टॉप टूरिस्ट स्पोट्स में से एक है.
यह स्मारक किंग जोर्ज पंचम तथा क्विन मेरी के सन 1911 में समुद्री मार्ग से भारत आगमन पर उनके स्वागत के लिए बनवाया गया था.
यह हमारे मुंबई भ्रमण का आखिरी दिन था. अगले दिन रात को हम पंजाब मेल एक्सप्रेस से अपने घर पहुँच गए. अब इस श्रंखला को मैं यहीं समाप्त करता हूँ और अलविदा कहता हूँ अपने साथियों से……………कुछ समय बाद उपस्थित होऊंगा अपनी अगली पोस्ट के साथ. तब तक के लिए हैप्पी घुमक्कड़ी……………
मैंने मुंबई में एक चीज देखी की यहाँ की भागमभाग भरी ज़िन्दगी में लोग कई बार खाने को भी नज़र अंदाज़ कर देते हैं और शायद इसी वजह से मुंबई में फास्ट फ़ूड का चलन बहुत ज्यादा है. फास्ट फ़ूड भी मुंबई के लोगों ने अपनी आवश्यकता एवं रूचि के अनुरूप विकसित कर लिए हैं जैसे हेमबर्गर,पिज़्ज़ा और हॉट डॉग के बजाय यहाँ एक बड़ा वर्ग वडापाव, सेव पूरी, भेल पूरी, पाव भाजी आदि खाना पसंद करते हैं. मैंने तो महसूस किया की मुंबई में लोगों को रोटी बनाने और खाने की फुर्सत ही नहीं है, आधी मुंबई वडा पाव खा कर जिंदा रहती है. मुझे लगता है मुंबई की बेकरियां ही इस शहर की अन्नदाता हैं.
मैंने पिछले कई सालों से मुंबई के देसी फास्ट फ़ूड वडा पाव का नाम बहुत सुन रखा था लेकिन हमारे एरिया में ज्यादा प्रचलित न होने की वजह से इसका स्वाद कभी नहीं चख पाए थे, और आज हम सुबह घर से नाश्ता करके भी नहीं निकले थे अतः सोचा की चलो आज वडा पाव खा ही लिया जाए तो जी हमने एक छोटी सी दूकान से वडा पाव लेकर खाया जो मुझे इतना ज्यादा पसंद आया की वहां से आने के बाद आज तक मैं वडा पाव ढूंढ़ रहा हूँ, सोचता हूँ इंदौर में मिलता तो होगा लेकिन कहाँ यह नहीं मालूम.
खैर वडा पाव का आनंद लेने के बाद हम चल पड़े अपनी मुंबई घुमक्कड़ी पर, मुंबई के दादर स्टेशन से उतर कर हमें ऑटो लेकर आगे जाना था, इसी सिलसिले में हम दादर के सब्जी मार्केट से होकर गुजरे. यह सब्जी मार्केट इतना बड़ा था की हम यहाँ कुछ देर रुके बिना नहीं रह सके. जब मैंने सब्जियों का भाव पूछा तो मुझे बड़ा अच्छा लगा, इतने बड़े महानगर में इस मार्केट में मुझे सब्जियों के भाव काफी सस्ते लगे. सबकुछ था इस विशाल सब्जी मंडी में, हर तरह की एकदम ताज़ा सब्जियां, फल, फुल, गजरे, मालाएं और सब कुछ बिलकुल रियायती भाव में.
एक बात मैंने देखी है, लोग जितना मुंबई की महंगाई का हौवा बनाते हैं वास्तव में मुंबई उतनी महंगी है नहीं, हाँ मुंबई में रहने के लिए ज़मीन तथा मकान का किराया या अन्य प्रोपर्टी ज़रूर महंगी हो सकती है लेकिन बाकी चीजों में मुंबई मुझे सस्ती ही लगी. यहाँ हर व्यक्ति की आर्थिक स्थिति के अनुरूप संसाधन उपलब्ध हैं, अगर कुछ लक्ज़री की बात छोड़ दी जाए तो एक आम मध्यम वर्गीय व्यक्ति के लिए यहाँ उसकी जेब के हिसाब से सारे साधन मौजूद हैं.
अगर मैं इंदौर जैसे मध्यम शहर की एक छोटी सी तुलना मुंबई से करूँ तो कुछ यूँ समझ में आता है – मुंबई में 2 से 3 किलोमीटर की दुरी ऑटो रिक्शा से 11 रु. में या टेक्सी(कार) से 17 रु.में की जा सकती है जबकि आप इंदौर में 30 रु. से कम में ऑटो में बैठ ही नहीं सकते हैं. मुंबई में एक वडा पाव जिसमें एक आलुबडा और एक पाव तथा चटनी होती है 6 से 7 रु. में मिल जाता है जबकि अकेला आलुबडा इंदौर में 8 रु. से कम में नहीं मिलता है. निम्बू पानी एक ग्लास मुंबई में 4 रु. का उपलब्ध है जबकि यही इंदौर में 8 से 10 रु. में मिलता है. पाव मुंबई में 1 रु. का एक मिलता है यही इंदौर में 2 रु. से कम कहीं नहीं है.मुंबई के एक सुपर मॉल में तरबूज 8 रु. प्रतिकिलो मिल जाता है जबकि यही तरबूज इंदौर में 15 रु. किलो मिलता है.ऐसी और भी बहुत सी चीजें मैंने देखी जो मुझे बहुत सस्ती लगीं. पता नहीं क्यों लोग मुंबई को नाहक बदनाम करते रहते हैं? और हाँ एक चीज़ तो भूल ही गया मुंबई लोकल में 8 से 10 किलोमीटर का सफ़र मात्र चार रुपये में तय किया जा सकता है. खैर चलिए चलते हैं हमारे अगले डेस्टिनेशन…….बाबुलनाथ मंदिर.
बाबुलनाथ मंदिर:
बाबुलनाथ मंदिर मुंबई में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर है. मंदिर एक पहाड़ी पर समुद्र तल से लगभग 1000 फिट की दुरी पर स्थित है. मंदिर पर लिफ्ट से भी जाया जा सकता है, लेकिन लिफ्ट समय सारणी के अनुसार चलती है. हम लोग जब मंदिर पहुंचे तब लिफ्ट चल रही थी अतः हम सब लिफ्ट से ही मंदिर पहुंचे.
कहा जाता है की बाबुलनाथ शिवलिंग तथा मूर्ति की स्थापना सबसे पहले 12 वीं शताब्दी में उस समय के हिन्दू राजा भीमदेव ने की थी. सदियों पहले यह शिवलिंग तथा मूर्ति समय के गर्त में समा गईं थीं तथा बाद में सन 1700 से 1780 के बीच में इन मूर्तियों को पुनः खोजा गया. पहला मंदिर सन 1780 में निर्मित हुआ.
बाबुलनाथ के पहले मंदिर की देख रेख तथा प्रबंधन गुजराती समाज के द्वारा किया जाता था. 1890 में यहाँ गुजराती व्यापारियों ने पैसा इकठ्ठा करके तथा बड़ोदा के महाराजा सयाजी राव गायकवाड के सहयोग से नया मंदिर बनाया तथा अभी जो मंदिर यहाँ स्थित है वह 1890 में बनवाया गया है. 1980 तक बाबुलनाथ मंदिर मुंबई का सबसे ऊँचा मंदिर था.
आज के समय में यह मुंबई का सबसे सुन्दर मंदिर है तथा हर सोमवार को महाशिवरात्रि पर यहाँ भक्तों की भीड़ उमड़ती है. बाबुलनाथ मंदिर के दर्शनों के बाद अब हमारी अगली मंजिल थी……..तारापुरवाला एक्वेरियम.
तारापुरवाला एक्वेरियम:
तारापुरवाला मछलीघर मुंबई शहर का एकमात्र एक्वेरियम है जिसका निर्माण सन 1951 में आठ लाख रुपये की लागत से हुआ था. यहाँ पर समुद्री तथा स्वच्छ पानी की 100 से भी ज्यादा विभिन्न प्रजाति की मछलियाँ और पानी के अन्य जीव जैसे कछुए, झींगे, इल, स्टार फिश आदि प्रदर्शित किये गए हैं. एक अलग कक्ष में बोतलों में समुद्री तथा पानी के जीवों के जीवाश्म तथा मछलियों को संरक्षित करके रखा गया है. यह एक्वेरियम प्रसिद्द मरीन ड्राइव के नजदीक स्थित है. इसका नाम एक प्रसिद्द समाजसेवी के नाम पर रखा गया है जिन्होंने इसके निर्माण के लिए दो लाख रुपये का दान में दिए थे.
आज के हमारे भ्रमण के दौरान हमें विशाल जी ने एक बहुत ही नायाब चीज़ के दर्शन करवाए, और वो है “एंटीलिया” पहचाना आपने? विश्व का सबसे महंगा घर “एंटीलिया”. प्रसिद्द उद्योगपति मुकेश अम्बानी का घर “एंटीलिया”. तो आइये हो जाये कुछ जानकारी इस दुनिया के सबसे महंगे घर के बारे में.
एंटीलिया- मुकेश अम्बानी का निवास:
एंटीलिया दक्षिण मुंबई में स्थित एक सत्ताईस मंजिला भवन है (उंचाई के हिसाब से साठ मंजिल के बराबर) जो की रिलायंस उद्योग के अरबपति चेयरमेन मुकेश अम्बानी का निवास स्थान है. इस घर की देख रेख के लिए पुरे 600 का स्टाफ है और इसी वजह से इसे विश्व का सबसे महंगा घर करार दिया गया है. इसे 21 वीं सदी के भारत का ताज महल भी कहा जाता है.
इस घर में मुकेश अम्बानी उनकी पत्नी नीता अम्बानी, उनके दो बच्चे एवं उनकी माँ कोकिला बेन अम्बानी रहते हैं.
एंटीलिया की विशेषताएं:
1. 40000 स्के. फीट रहने की जगह.
2. 168 कारों के लिए पार्किंग की जगह.
3. एक पूरी मंजिल वाहनों की मरम्मत तथा रख रखाव के लिए.
4. 9 लिफ्टें तथा 3 हेलीपेड.
5. 50 लोगों के बैठने की क्षमता वाला थियेटर आठवें माले पर.
इस दुर्लभ घर को हर कोण से निहारने के बाद हम चल पड़े अपनी अगली मंजिल ताज महल होटल एवं गेट वे ऑफ़ इंडिया की ओर.
ताज महल होटल:
ताजमहल होटल मुंबई के कोलाबा इलाके में गेट वे ऑफ़ इन्डिया के सामने स्थित एक अत्यंत ख़ूबसूरत पांच सितारा होटल है तथा अपने ऐतिहासिक महत्त्व एवं विशिष्ट निर्माण कला की वजह से मुंबई के कुछ चुनिन्दा दर्शनीय स्थलों में से एक भी है.यह होटल प्रसिद्द औद्योगिक समूह टाटा ग्रुप की संपत्ति है.
लगभग 109 साल पुराने इस होटल ने अब तक विश्व भर की कई प्रसिद्द हस्तियों की मेहमान नवाजी की है उनमें से कुछ हैं बिल क्लिंटन, नोर्वे के रजा और रानी, ड्यूक ऑफ़ एडिनबर्ग, प्रिंस ऑफ़ वेल्स, एंजेलिना जोली, ब्रेड पिट, हिलेरी क्लिंटन, बराक ओबामा, ओप्रा विनफ्री और भारत में आनेवाली कई देशों की क्रिकेट टीमें आदि. होटल में कुल 565 कमरे हैं.
होटल का शुभारम्भ 16 दिसंबर 1903 में हुआ था, कहा जाता है की जमशेद जी टाटा को उस समय के मुंबई के एक प्रसिद्द होटल वाटसन होटल में प्रवेश नहीं करने दिया गया क्योंकि यह होटल सिर्फ गोरे फिरंगियों को ही प्रवेश देता था तो उन्होंने उसी समय निर्णय लिया की मैं इससे भी बड़ा होटल बनवाऊंगा.
इस होटल के वास्तविक वास्तुविद थे सीताराम खंडेराव वैद्य, अशोक कुमार और डी.एन.मिर्ज़ा लेकिन इस परियोजना को पूर्ण किया अंग्रेज इंजिनियर डब्ल्यू. ए. चेम्बर्स ने.
गेट वे ऑफ़ इंडिया तथा समुद्र तट से जो हिस्सा इस होटल का दिखाई देता है वह वास्तव में इसका पिछवाडा है और सामने का हिस्सा इसकी विपरीत दिशा में है.
ऐसा कहा जाता है की इस होटल के वास्तुविद (आर्किटेक्ट) ने गलती से समुद्र (हार्बर) की ओर इसका पिछला हिस्सा बना दिया जबकि इस ओर अगला हिस्सा होना था. होटल बन जाने के बाद उसे लोगों बार बार यह कहा की इतने सुन्दर तथा महंगे भवन को आपे उल्टा बना कर उसकी पूरी सुन्दरता नष्ट कर दी. लोगों ने उसे इस बात पर इतना कोसा की वह मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गया और उसने आत्महत्या कर ली.
लेकिन होटल प्रबंधन का मत है की सच्चाई यह नहीं है, सच्चाई यह है की ऐसा निर्माण जान बुझ कर किया गया है. ऐसा संभवतः इसलिए किया गया की घोडा गाड़ियाँ जो शहर के अन्य हिस्सों से यहाँ तक मेहमानों को लेकर आती थी उनकी सुविधा के लिए समुद्र से विपरीत दिशा में प्रवेश द्वार बनाना ज्यादा आवश्यक था. (अब सच्चाई क्या है यह भगवान ही जानता है)
गौरतलब है की 26 नवम्बर 2008 को इस होटल पर एक जबरदस्त आतंकवादी हमला हुआ था जिसके बारे में हम सभी जानते है.
गेट वे ऑफ़ इंडिया:
गेटवे ऑफ़ इंडिया एक ऐतिहासिक स्मारक है जो की होटल ताज महल के ठीक सामने स्थित है. यह स्मारक साउथ मुंबई के अपोलो बन्दर क्षेत्र में अरब सागर के बंदरगाह पर स्थित है. यह एक बड़ा सा द्वार है जिसकी उंचाई 26 मीटर (85 फीट) है. अरब सागर के समुद्री मार्ग से आनेवाले जहाजों आदि के लिए यह भारत का द्वार कहलाता है तथा मुंबई के कुछ टॉप टूरिस्ट स्पोट्स में से एक है.
यह स्मारक किंग जोर्ज पंचम तथा क्विन मेरी के सन 1911 में समुद्री मार्ग से भारत आगमन पर उनके स्वागत के लिए बनवाया गया था.
यह हमारे मुंबई भ्रमण का आखिरी दिन था. अगले दिन रात को हम पंजाब मेल एक्सप्रेस से अपने घर पहुँच गए. अब इस श्रंखला को मैं यहीं समाप्त करता हूँ और अलविदा कहता हूँ अपने साथियों से……………कुछ समय बाद उपस्थित होऊंगा अपनी अगली पोस्ट के साथ. तब तक के लिए हैप्पी घुमक्कड़ी……………
Nice Post about "Mumbai Tour Part - 3"
ReplyDeleteThanks,
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