Tuesday 7 February 2012

उज्जैन – महाकाल की महिमा

उज्जैन देवास यात्रा की श्रंखला की पिछली कड़ी में मैंने आपको देवास में स्थित कैला माता मंदिर, तुलजा भवानी तथा चामुंडा माता टेकरी के बारे में बताया था. आइये अब इस कड़ी में हम चलते हैं महातीर्थ उज्जैन तथा जानते हैं महाकाल की महिमा के बारे में और करते हैं दर्शन महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के सर्वप्रथम भगवान् महाकाल के श्री चरणों में मेरा कोटि कोटि वंदन.
Shivling
जय महाकाल
उज्जैन के बारे में: उज्जैन मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में स्थित एक प्राचीन नगर है जो की क्षिप्रा नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित है. प्राचीन समय में इसे उज्जयिनी कहा जाता था. जैसा की महाभारत ग्रन्थ में वर्णित है उज्जयिनिं नगर अवन्ती राज्य की राजधानी था. उज्जैन हिन्दू धर्म की सात पवित्र तथा मोक्षदायिनी नगरियों में से एक है (अन्य छः मोक्षदायिनी नगरियाँ हैं – अयोध्या, वाराणसी, मथुरा, हरिद्वार, द्वारका एवं कांचीपुरम). यहाँ हिन्दुओं का पवित्र उत्सव कुम्भ मेला 12 वर्षों में एक बार लगता है.

उज्जयिनी, शिक्षा का एक प्राचीन स्थल भी था जहाँ गुरुकुलों में कला एवं विज्ञान तथा वेदों का ज्ञान दिया जाता था. भगवान् श्री कृष्ण ने अपने भ्राता बलराम तथा सखा सुदामा के साथ यहाँ के संदीपनी आश्रम गुरुकुल में अध्ययन किया था. यह हिन्दू समय-निर्धारण का केंद्र भी है. उत्तर में 23 डिग्री 11 मिनट तथा पूर्व में 73 डिग्री 45 मिनट पर स्थित होने के कारण हिन्दू खगोलीय ग्रन्थ के अनुसार मुख्य भूमध्य रेखा अथवा शुन्य देशांतर रेखा उज्जैन से गुजरती है, इसलिए समय की गणना उज्जैन में सूर्योदय के द्वारा की जाती है और तदनुसार, कैलेण्डर वर्ष के आरंभ ‘मकर संक्रांति’ तथा युग के प्रारंभ की गणना इससे की जाती है.
यहीं पर भगवान् शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक तथा अति पावन श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग विद्यमान है. इस नगरी का पौराणिक तथा धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व सर्वज्ञात है. जहाँ महाकाल स्थित है वहीँ पर प्रथ्वी का नाभि स्थान है, बताया जाता है की वही धरा का केंद्र है. उज्जैन की पावन धरा पर ही माँ शक्ति के 51 शक्तिपीठों में से एक मां हरसिद्धि का मंदिर भी स्थित है.
सामान्य तौर पर एक नगर के लिए मंदिर बनाया जाता है लेकिन मंदिरों की वजह से नगर का बसाया जाना विरल ही होता है लेकिन उज्जैन में मंदिरों की संख्या को देखते हुए यही कहा जा सकता है की इस नगर को मंदिरों के लिए ही बसाया गया है. यहाँ के सैकड़ों मंदिरों की स्वर्ण चोटियों को देखकर इस नगर को प्राचीन समय में स्वर्नश्रंगा भी कहा जाता था.
मोक्षदायक सप्तपुरियों में से एक इस उज्जैन नगर में 7 सागर तीर्थ, 28 तीर्थ, 84 सिद्धलिंग, 30 शिवलिंग, अष्ट (8)भैरव, एकादश (11) रुद्रस्थान, सैकड़ों देवताओं के मंदिर, जलकुंड तथा स्मारक है. ऐसा प्रतीत होता है की 33 करोड़ देवी देवताओं की इन्द्रपुरी इस उज्जैन नगर में बसी हुई है.
नाभिदेशो महाकाल्स्त्नामना तत्र वै हर – वराह पुराण के इस वर्णन के अतिरिक्त अन्य पुराणों, ग्रंथों, शास्त्रों में भी उज्जैन के धार्मिक महत्व का वर्णन है. समस्त मृत्युलोक के स्वामी और काल गणना के अधिपति श्री महाकालेश्वर का निवास स्थान होने की वजह इस तीर्थ का महत्व औरों से अधिक है.
कैसे पहुंचें:
1 . सड़क मार्ग – इंदौर, सूरत, ग्वालियर, पुणे, मुंबई, अहमदाबाद, जयपुर, उदयपुर
, नासिक मथुरा आदि शहरों से उज्जैन सड़क मार्ग द्वारा जुडा है.
2 . रेल मार्ग – अहमदाबाद, राजकोट, मुंबई, लखनऊ, देहरादून, दिल्ली, वाराणसी, चेन्नई, बंगलुरु, हैदराबाद,जयपुर,हावड़ा आदि शहरों से उज्जैन रेलमार्ग द्वारा जुड़ा है.
3 . वायु मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा इंदौर (53 km ) है जहाँ से मुंबई, दिल्ली, ग्वालियर आदि
शहरों के लिए विमान सेवाएँ उपलब्ध हैं.
ठहरने के लिए धर्मशाला तथा अन्य जानकारी के लिए संपर्क किया जा सकता है:
श्री महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन
admin@mahakaaleshwar .nic .in
www.mahakaleshwar.nic.in
फ़ोन: 0734 – 2550563
धर्मशाला: 0734 – 2551714
तो यह था एक संक्षिप्त परिचय पावन नगरी उज्जैन से, अब हम चलते हैं अपने यात्रा वृत्तान्त की ओर.
दिनांक 10.11.11 को देवास से शाम करीब 6 :30 बजे हमने उज्जैन के लिए प्रस्थान किया तथा लगभग 8 बजे हम उज्जैन पहुँच गए. उज्जैन पहुँच कर हमने अपनी गाड़ी मंदिर के समीप ही स्थित पार्किंग में पार्क की तथा अब हमारी पहली प्राथमिकता थी रहने के लिया एक अदद कमरे की तलाश.

पार्किंग स्थल से महाकालेश्वर मंदिर की एक झलक
श्री महाकालेश्वर मंदिर संस्थान द्वारा संचालित अतिथि विश्राम गृह में फ़ोन द्वारा संपर्क किया (0734 -2551714) तो पता चला की वहां कोई कमरा खाली नहीं है. कुछ देर की मशक्कत के बाद अंततः हमने अपने रहने के लिए मंदिर के एकदम नजदीक ही स्थित एक प्राइवेट गेस्ट हाउस में एक कमरा दो दिनों के लिए बुक करा लिया. कमरा लेने के बाद हमने हाथ मुंह धोकर थोड़ी देर आराम किया तथा भोजन की तलाश में निकल गए. महाकाल मंदिर के मुख्य द्वार के सामने वाली वाली गली में कुछ भोजनालय हैं जहाँ खाना उपलब्ध है लेकिन खाने में निराशा ही हाथ लगी, खाना स्तरीय नहीं था.

गेस्ट हाउस में हमारा कमरा
अपनी क्षुधा शांत करने के बाद हम लोग वापस अपने गेस्ट हाउस में आ गए. कुछ देर बाद बाहर जा कर पता किया तो मालूम हुआ की रात 10 बजे भगवान् महाकाल की शयन आरती होती है, तो हम बिना देर किये मंदिर की ओर चल पड़े क्यों की हम जल्द से जल्द भगवन के प्रथम दर्शन कर लेना चाहते थे, लेकिन दुर्भाग्यवश हम गर्भगृह में प्रवेश नहीं कर पाए क्योंकि हमारे जाने के कुछ देर पहले ही गर्भगृह के कपाट बंद हो चुके थे. हम गर्भगृह के सामने हॉल में स्थित बेरीकेट्स में खड़े होकर शयन आरती में शामिल हुए, वहां से भी हमें भगवान् महाकालेश्वर के बड़े अच्छे दर्शन हुए. हॉल में कई सारे LCD टीवी भी लगे थे जिनसे गर्भगृह से आरती का प्रसारण किया जा रहा था.
मंत्रमुग्ध कर देने वाली शयन आरती के दौरान मंदिर का माहौल पूर्णतः शिवमय हो गया था तथा मानसिक स्थिति अध्यात्म के सर्वोच्छ शिखर पर पहुँच गयी थी. सचमुच वह अनुभव अविस्मरनीय था. शयन आरती के इस अद्भुत तथा अद्वितीय अनुभव के बाद हम गेस्ट हाउस की ओर अग्रसर हो गए इस आशा में की सुबह जल्दी आकर गर्भगृह में भगवान् के दर्शन तथा स्पर्श का मौका मिलेगा.
अगली सुबह हम फिर 6 :00 बजे उठकर नहा धोकर करीब 7 बजे मंदिर पहुँच गए, सुबह की आरती में शामिल हुए लेकिन दुर्भाग्य वश इस बार भी हमें गर्भगृह में प्रवेश का मौका नहीं मिला तथा बाहर से ही भगवान के दर्शन करके संतुष्ट होना पड़ा, लेकिन हम भी भगवान् के दर्शन के लिए बहुत जिद्दी हो जाते हैं, मैंने तथा कविता (मेरी जीवनसाथी) ने ठान लिया था की हम गर्भगृह से भगवान् के दर्शन कर के ही रहेंगे. भगवान् के नजदीक से दर्शनों की अपनी इस लालसा को पूरा करने की गरज से हम फिर रात को 9 :00 बजे मंदिर पहुँच गए तथा शयन आरती में शामिल हो गए (चूँकि हमारा गेस्ट हाउस मंदिर से कुछ ही कदमों की दुरी पर था अतः हम मंदिर आसानी से कुछ मिनटों में ही पहुँच जाते थे, मेरी हमेश यही कोशिश होती है की जहाँ भी हम धार्मिक यात्रा के लिए जाते हैं, अपने ठहरने की व्यवस्था मंदिर के जितना करीब हो सके करते है तथा साथी घुमक्कड़ भक्तों को भी मेरी यही सलाह है). आज ईश्वर हम पर मेहरबान थे तथा शयन आरती के तुरंत बाद ही गर्भगृह के पट खुले और हमें वो स्वर्णिम अवसर मिल गया जिसकी हमें तलाश थी, और हम गर्भगृह में पहुँच कर अपने भोले बाबा को स्पर्श करके, नमन करके अपना माथा उनके चरणों में रखकर आशीष लेकर प्रसन्न मन से मंदिर से बाहर आ गए और विशेष बात यह थी की ये तारीख 11 .11 .11 थी.
वैसे हम घर से भस्म आरती में शामिल होने के लिए मन बना कर ही आये थे, और यह बात निश्चित है की अगर आपको भस्म आरती में शामिल होने के लिए मंदिर प्रशासन से अनुमति पत्र (पास) प्राप्त हो जाता है तो गर्भगृह में प्रवेश तथा महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग पर जल अभिषेक तथा स्पर्श करने का अवसर शत प्रतिशत निश्चित हो जाता है. अतः हमें अगले दिन सुबह 4 :30 बजे भस्म आरती के दौरान गर्भगृह में प्रवेश, नजदीक से दर्शन तथा स्पर्श का स्वर्णिम अवसर दूसरी बार प्राप्त हो गया.

महाकालेश्वर का प्रवेश द्वार

महाकाल मंदिर के सामने बाज़ार

पूजन सामग्री की दुकानें

कमल के फूल

महाकाल दर्शन के लिए कतार एवं पार्श्व में मंदिर

श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में द्वादश ज्योतिर्लिंग ऐसे बारह प्राचीन तीर्थ स्थल हैं जिनका उल्लेख शिवपुराण में मिलता है, इन्हें ज्योतिर्लिंग कहा जाता है, क्योंकि बताया गया है की भगवान् शिव ने ज्योति के रूप में स्वयं को अपने भक्तों के समक्ष प्रकट किया था. आज भी यह कहा जाता है की भक्तों को उनके दर्शन इन स्थानों पर ज्योति के रूप में हुए.
पौराणिक कथाओं के अनुसार दूषण नामक एक दानव ने अवन्ती के निवासियों को परेशान किया और भगवान् शिव धरती से प्रकट हुए और उन्होंने दानव को परास्त कर दिया. तब अवन्ती के निवासियों के अनुरोध पर उन्होंने यहाँ महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में अपना स्थाई निवास बना लिया.
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को स्वयंभू माना जाता है, जो अपने भीतर से शक्ति प्राप्त करता है जबकि अन्य मूर्तियों तथा लिंगों को सांस्कारिक तौर पर स्थापित किया गया है तथा उन्हें मंत्र शक्ति से सम्पन्न किया गया है
जैसा की पुराणों में कहा गया है-
आकाशे तारकं लिंगम, पाताले हाटकेश्वरमA
भूलोके च महाकाल, लिंगत्रय नमोस्तुतेAA
अर्थात, आकाश में तारक लिंग है, पाताल में हाटकेश्वर लिंग हैं तथा प्रथ्वी पर महाकाल लिंग है यह तीनो लिंग ही अति पावन तथा मान्य हैं अतः तीनों लिंगों को नमन.
कहा जाता है:
अकाल मृत्यु वो मरे जो कर्म करे चांडाल काA
काल उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल काAA
श्री महाकालेश्वर, भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में एक तथा सर्वाधिक महत्व का ज्योतिर्लिंग है. महाकालेश्वर की ही वजह से उज्जैन हिन्दू धर्मं के प्रसिद्द तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है. महाकालेश्वर विश्व का एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिग है. यह एक अद्भुत विशेषता है जिसकी पुष्टि बारह ज्योतिर्लिंगों में से केवल महाकालेश्वर में पाई जाने वाली तांत्रिक परंपरा से होती है. महाकालेश्वर को उज्जैन के विशिष्ट अधिष्ठाता देवता के रूप में माना जाता है.
श्री महाकालेश्वर मंदिर के बारे में :
महाकालेश्वर मंदिर की महिमा का विभिन्न पुराणों में सजीवता से वर्णन किया गया है. महाकाल मंदिर का निर्माण 11 वीं शताब्दी में किया गया था, 140 वर्षों के बाद इल्तुतमिश ने इसे तोड़ दिया था तथा वर्त्तमान मंदिर मराठा कालीन माना जाता है जिसे लगभग 250 वर्ष पूर्व बाबा रामचंद्र शेन्वी ने बनवाया था. मंदिर के गर्भगृह के पश्चिम, उत्तर तथा पूर्व में क्रमशः गणेश, माँ पारवती तथा कार्तिकेय की मूर्तियाँ स्थापित हैं. दक्षिण में नंदी की मूर्ति है. यह मंदिर तीन खण्डों में विभक्त है। निचले खण्ड में महाकालेश्वर बीच के खण्ड में ओंकारेश्वर तथा सर्वोच्च खण्ड में नागचन्द्रेश्वर के शिवलिंग प्रतिष्ठित हैं। नागचन्द्रेश्वर के दर्शन केवल नागपंचमी को ही होते हैं। मन्दिर के परिसर में जो विशाल कुण्ड है, वही पावन कोटि तीर्थ है। इसके तीनों ओर लघु शैव मन्दिर निर्मित हैं। कुण्ड सोपानों से जुड़े मार्ग पर अनेक दर्शनीय परमारकालीन प्रतिमाएँ देखी जा सकती हैं जो उस समय निर्मित मन्दिर के कलात्मक वैभव का परिचय कराती है। कुण्ड के पूर्व में जो विशाल बरामदा है, वहाँ से महाकालेश्वर के गर्भगृह में प्रवेश किया जाता है। इसी बरामदे के उत्तरी छोर पर भगवान्‌ राम एवं देवी अवन्तिका की आकर्षक प्रतिमाएँ पूज्य हैं।

महाकाल मंदिर

महाकाल मंदिर अन्य द्रश्य

महाकाल मंदिर रात में

श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

महाकाल परिसर में एक अन्य मंदिर

परिसर में स्थित श्री स्वप्नेश्वर महादेव मंदिर

परिसर में स्थित श्री सिद्धि विनायक मंदिर

परिसर में श्री बाल हनुमान मंदिर

एकादश रूद्र महादेव
श्री महाकालेश्वर मंदिर में आयोजित होनेवाली दैनिक आरतियों की समय सारणी:
भस्मार्ती
प्रात: 4 बजे श्रावण मास में प्रात: 3 बजे महाशिवरात्रि को प्रात: 2-30 बजे।
दध्योदन आरती
चैत्र से आश्विन तक प्रात: 7 से 7-45 तक, कार्तिक से फाल्गुन तक प्रात: 7-30 से 8-15 तक
महाभोग आरती
चैत्र से आश्विन तक प्रात: 10 से 10-45 तक कार्तिक से फाल्गुन तक प्रात: 10-30 से 11-15 तक
सांध्य आरती
चैत्र से आश्विन तक संध्या 5 से 5-45 तक कार्तिक से फाल्गुन तक संध्या 5-30 से 6-15 तक
पुन: सांध्य आरती
चैत्र से आश्विन तक संध्या 7 से 7-45 तक कार्तिक से फाल्गुन तक संध्या 6-30 से 7-15 तक
शयन आरती
चैत्र से आश्विन तक रात्रि 10:30 बजे कार्तिक से फाल्गुन तक रात्रि 11-00 बजे
भस्म आरती : एक अनोखी परंपरा
भगवान् महाकाल की विभिन्न पूजाओं तथा आरतियों में भस्म आरती का अपना अलग महत्व है. यह अपने तरह की एकमात्र आरती है जो विश्व में सिर्फ महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन में ही की जाती है. हर शिवभक्त को अपने जीवन में कम से कम एक बार भगवान महाकालेश्वर की भस्म आरती में जरुर शामिल होना चाहिए.
महाकाल मंदिर में आयोजित होने वाले विभिन्न दैनिक अनुष्ठानों में दिन का पहला अनुष्ठान होता है भस्म आरती जो की भगवान शिव को जगाने, उनका श्रृंगार करने तथा उनकी प्रथम आरती करने के लिए किया जाता है, इस आरती के बारे में विशेष यह है की यह आरती प्रतिदिन सुबह चार बजे, श्मशान घाट से लायी गयी ताजी चिता की राख से महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग पर छिड़काव करके की जाती है. सर्वप्रथम सुबह चार बजे भगवान् का जलाभिषेक किया जाता है , तत्पश्चात श्रृंगार तथा उसके बाद ज्योतिर्लिंग को चिता भस्म से सराबोर कर दिया जाता है. शास्त्रों में चिता भस्म अशुद्ध माना गया है. चिता भस्म का स्पर्श हो जाये तो स्नान करना पड़ता है परन्तु भगवान शिव के स्पर्श से भस्म पवित्र होता है क्योंकि शिव निष्काम है, उन्हें काम का स्पर्श नहीं है.
शिवमहिम्नस्तोत्रम के अनुसार:
चिताभस्मोलेप स्त्रगापी न्रक रोतिपरीक: अमगाल्या शिव तव भवतु नामैवमखिल तथापि स्मर्तना वरद परम मंगल्मसी ।
हालाँकि चिता भस्म की बात कहाँ तक सत्य है कोई नहीं जानता, मंदिर प्रशासन का वक्तव्य है की पूर्व में यह आरती ताज़ी चिता की राख से ही होती थी लेकिन वर्त्तमान समय में चिता की राख की जगह कंडे की राख का इस्तेमाल होता है. जबकि उज्जैन के स्थानीय निवासियों मानना है की आज भी भस्म आरती ताज़ी चिता की राख से ही सम्पन्न होती है.
यह एक रहस्यमयी, अस्वाभाविक तथा सामान्य अनुष्ठान है तथा पुरे विश्व में केवल उज्जैन महाकाल मंदिर में ही किया जाता है.
भस्म आरती सुबह चार बजे से छः बजे के बिच में की जाती है तथा इसमें शामिल होने के लिए एक दिन पूर्व मंदिर प्रशासन को आवेदन पत्र देकर अनुमति पत्र हासिल किया जाता है उसके बाद ही आप भस्म आरती में शामिल हो सकते हैं.
अनुमति पत्र तभी हासिल किया जा सकता है जब आपके पास अपने फोटो परिचय पत्र की मूल प्रति हो. आरती के एक दिन पूर्व अनुमति पत्र प्राप्त करने के बाद सुबह 2 से 3 बजे के बिच भस्म आरती की लाइन में लगना होता है तब करीब चार बजे भक्त को मंदिर में प्रवेश दिया जाता है. मंदिर में प्रवेश के वक्त एक बार फिर फोटो परिचय पत्र दिखाना होता है
इस आरती में शामिल होने के लिए पुरुषों को सिर्फ धोती और महिलाओं को साड़ी में ही प्रवेश दिया जाता है अन्यथा अनुमति पत्र स्वतः ही निरस्त हो जाता है.

भस्म आरती के लिए सुबह 2 .30 बजे भक्तों की कतार
भस्म आरती के दौरान जब ज्योतिर्लिंग पर भस्म न्यौछावर की जाती है उस द्रश्य को देखना महिलाओं के लिए वर्जित है अतः उस समय महिलाओं को घूँघट करना अनिवार्य होता है (कुछ मिनटों के लिए). भस्म आरती से सम्बंधित सूचनाएं तथा नियम निचे निचे दिए गए चित्रों में वर्णित हैं.

भस्म आरती सम्बंधित सूचना

भस्म आरती नियम तालिका
तो यह थी एक संक्षिप्त जानकारी उज्जैन शहर, भगवान् महाकाल, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर तथा भस्म आरती के बारे में. अब मैं अपनी इस पोस्ट को यहीं विराम देता हूँ तथा अगली कड़ी में आपलोगों को रबरू करूँगा उज्जैन शहर के अन्य मंदिरों से. तब तक के लिए …..हैप्पी घुमक्कड़ी.

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