इस श्रंखला के भाग 3 में मैंने आपको अपने उज्जैन भ्रमण के दौरान दर्शन किये गए संदीपनी आश्रम, श्री हरसिद्धि मंदिर, श्री गढ़ कालिका मंदिर, श्री काल भैरव एवं श्री मंगलनाथ के बारे में जानकारी दी थी, अब इस भाग 4 (अंतिम भाग) में मैं आपको मोक्षदायिनी क्षिप्रा नदी, श्री गोपाल मंदिर, श्री भ्रताहरी गुफा, श्री सिद्धवट, श्री बड़े गणेश एवं श्री चारधाम मंदिर के बारे में जानकारी देने का प्रयास करूँगा.
मोक्षदायिनी शिप्रा (क्षिप्रा) नदी:
श्री हरसिद्धि मंदिर के पीछे कुछ ही दुरी पर क्षिप्रा नदी है. उज्जैन इस पवित्र नदी के पूर्वी छोर पर बसा हुआ है. इसके तट पर अनेक ऋषि मुनियों ने साधना की है. स्कन्द पूरण में कहा गया है की सारे भूमंडल पर शिप्रा के सामान कोई दूसरी नदी नहीं है, जिसके तट पर क्षण भर खड़े रह जाने मात्र से ही मुक्ति मिल जाती है. इसके पावन तट पर महँ सिंहस्थ (कुम्भ मेला) के अलावा सोमवती -श्रीशनिश्चरी अमावस्या, कार्तिक पूर्णिमा व ग्रहण आदि पर्वों पर लाखों नर नारी स्नान करके पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं. क्षिप्रा महासभा द्वारा प्रतिदिन गोधुली बेला में क्षिप्रा की महा आरती की जाती है.
श्री गोपाल मंदिर:
इस मंदिर का निर्माण महाराजा श्री दौलतराव सिंधिया की महारानी बायजाबाई द्वारा लगभग ढाई सौ साल पहले करवाया गया था. नगर के मध्य में स्थित इस मंदिर श्री द्वारकाधीश की प्रतिमा है, अतः इसे द्वारकाधीश श्री गोपाल मंदिर भी कहा जाता है. मंदिर के गर्भगृह में लगा रत्नजडित द्वार श्रीमंत सिंधिया ने गजनी से प्राप्त किया था, जो सोमनाथ की लूट में वहां पहुँच गया था. मंदिर का शिखर सफ़ेद संगमरमर तथा शेष मंदिर सुन्दर काले पत्थरों से निर्मित है. मंदिर का प्रांगण और परिक्रमा पथ भव्य और विशाल है. जन्माष्टमी यहाँ का विशेष पर्व है. बैकुंठ चौदस के दिन श्री महाकाल की सवारी हरिहर मिलन हेतु मध्यरात्रि में यहाँ आती है तथा भस्म आरती के समय श्री गोपाल कृष्ण की सवारी महाकालेश्वर जाती है और वहां तुलसीदल अर्पित किया जाता है.
श्री भृतहरी गुफा:
सम्राट विक्रमादित्य के बड़े भाई राजा भृतहरी की तपस्या स्थली भृतहरी गुफा के नाम से प्रसिद्द है. राज्य त्यागने के बाद उन्होंने नाथ पंथ की दीक्षा लेकर इसी स्थान पर योग साधना की थी. क्षिप्रा तट पर स्थित यह प्राचीन गुफा बौद्धकालीन व परमारकालीन स्थापत्य की रचना है. गुफा का प्रवेश मार्ग संकरा है. जन भावना के अनुसार नाथ संप्रदाय के दो प्रमुख गुरु गोरखनाथ तथा मत्स्येन्द्रनाथ का भी इन गुफाओं से सम्बन्ध माना जाता है. गोरखनाथ की अखंड धुनी आज भी यहाँ प्रज्जवलित है. यहाँ के शिल्प में शैव उपासना तथा भैरवी उपासना के प्रमाण विद्यमान हैं. पूर्वी गुफा तथा उसके अलंकृत स्तम्भ किसी प्राचीन शिव मंदिर के अंश प्रतीत होते हैं.
श्री सिद्धवट:
तीर्थ स्थली उज्जैन के भैरवगढ़ क्षेत्र में स्थित सिद्धवट का वही महत्त्व है जो गया तथा प्रयाग में अक्षयवट का है. स्कंद्पुरण के अवन्तिखंड में वर्णन है की देवाधिदेव महादेव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध करने के बाद अपनी शक्ति यहाँ शिप्रा में फेंकी थी जो पाताल में चली गई इसलिए इसे शक्तिभेद तीर्थ भी कहते हैं. जगत्जननी माता पारवती ने इसी वाट के निचे अपने प्रिय पुत्र कार्तिकेय को भोजन कराया था. भगवान् शिव ने वट वृक्ष आशीर्वाद दिया की तुम संसार में कल्प के रूप में जाने जाओ. सम्राट विक्रमादित्य ने यहाँ तपस्या करके अग्या बेताल की सिद्धि की थी. इस मंदिर में स्थित शिवलिंग (पतालिश्वर) का लिंग जलधारी की सतह से निचे है. कहा जाता है की जैसे जैसे प्रथ्वी पर पाप बढ़ता है यह धंसता चला जाता है. मंदिर क्षिप्रा के तट पर ही है जहाँ पक्के घाट बने हुए हैं.मुग़ल शासकों ने इस वृक्ष को कटवा कर लोहे के तवे मढवा दिए थे, पर उन लौह पत्रों को छेड़ कर वृक्ष पुनः हरा भरा हो गया.
श्री बड़े गणेश :
श्री महाकालेश्वर प्रवचन हॉल के सामने स्थित मंदिर में श्री गणेश जी की भव्य और मनोहारी विशाल मूर्ति है. यह स्थान महर्षि संदीपनी के वंशज प्रसिद्द ज्योतिषी पंडित श्री नारायण जी व्यास की आराधना स्थली रहा है, और उन्ही के द्वारा स्थापित किया गया था. संस्कृत तथा ज्योतिष के केंद्र बने इस स्थान से हजारों छात्रों ने ज्ञानार्जन कर भारतवर्ष में सम्मान प्राप्त किया. इनके नाम से निकलने वाले ‘श्री नारायण विजय’ पंचांग का कार्यालय भी समीप ही है.मंदिर के मध्य में श्री पंचमुखी हनुमान जी की सुन्दर प्रतिमा है. अन्दर पश्चिमी भाग में नवग्रहों की मर्तियाँ हैं.इसके अतिरिक्त और भी कई सुन्दर और प्राचीन दर्शनीय प्रतिमाएं यहाँ स्थापित हैं.
श्री चारधाम मंदिर:
यह मंदिर श्री हरसिद्धि देवी के मंदिर की दक्षिण दिशा में थोड़ी सी दुरी पर है. इस मंदिर में श्री आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित हिन्दू धर्म के चारधामों की सजीव झांकियां स्थापित की गयी हैं. प्रतिमाओं को मूल स्वरुप जैसा ही बनाया गया है. एक ही स्थान पर चारों धाम दर्शन की सुन्दर कल्पना यह मंदिर साकार करता है. मंदिर में प्रवेश स्थान पर एक सुन्दर बगीचा है जिससे मंदिर का सौंदर्य द्विगुणित होता है. इस मंदिर के पार्श्व भाग में अन्य देवी देवताओं की सजीव तथा मनमोहन झांकियां भी स्थापित की गयी हैं जिन्हें देखकर मन प्रसन्न हो जाता है.
और इस तरह से महाकाल की नगरी के दर्शन करके, उज्जैन की बहुत सारी मधुर स्मृतियाँ अपने दिलों में बसा कर श्री महाकालेश्वर से अगली बार जल्दी ही बुलाने का निवेदन करके हमने इस स्वप्ननगरी से प्रस्थान कर दिया. इस श्रंखला के लिए बस इतना ही, फिर मिलेंगे ऐसी ही किसी सुखद यात्रा के बाद. तब तक के लिए बाय बाय.
मोक्षदायिनी शिप्रा (क्षिप्रा) नदी:
श्री हरसिद्धि मंदिर के पीछे कुछ ही दुरी पर क्षिप्रा नदी है. उज्जैन इस पवित्र नदी के पूर्वी छोर पर बसा हुआ है. इसके तट पर अनेक ऋषि मुनियों ने साधना की है. स्कन्द पूरण में कहा गया है की सारे भूमंडल पर शिप्रा के सामान कोई दूसरी नदी नहीं है, जिसके तट पर क्षण भर खड़े रह जाने मात्र से ही मुक्ति मिल जाती है. इसके पावन तट पर महँ सिंहस्थ (कुम्भ मेला) के अलावा सोमवती -श्रीशनिश्चरी अमावस्या, कार्तिक पूर्णिमा व ग्रहण आदि पर्वों पर लाखों नर नारी स्नान करके पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं. क्षिप्रा महासभा द्वारा प्रतिदिन गोधुली बेला में क्षिप्रा की महा आरती की जाती है.
श्री गोपाल मंदिर:
इस मंदिर का निर्माण महाराजा श्री दौलतराव सिंधिया की महारानी बायजाबाई द्वारा लगभग ढाई सौ साल पहले करवाया गया था. नगर के मध्य में स्थित इस मंदिर श्री द्वारकाधीश की प्रतिमा है, अतः इसे द्वारकाधीश श्री गोपाल मंदिर भी कहा जाता है. मंदिर के गर्भगृह में लगा रत्नजडित द्वार श्रीमंत सिंधिया ने गजनी से प्राप्त किया था, जो सोमनाथ की लूट में वहां पहुँच गया था. मंदिर का शिखर सफ़ेद संगमरमर तथा शेष मंदिर सुन्दर काले पत्थरों से निर्मित है. मंदिर का प्रांगण और परिक्रमा पथ भव्य और विशाल है. जन्माष्टमी यहाँ का विशेष पर्व है. बैकुंठ चौदस के दिन श्री महाकाल की सवारी हरिहर मिलन हेतु मध्यरात्रि में यहाँ आती है तथा भस्म आरती के समय श्री गोपाल कृष्ण की सवारी महाकालेश्वर जाती है और वहां तुलसीदल अर्पित किया जाता है.
श्री भृतहरी गुफा:
सम्राट विक्रमादित्य के बड़े भाई राजा भृतहरी की तपस्या स्थली भृतहरी गुफा के नाम से प्रसिद्द है. राज्य त्यागने के बाद उन्होंने नाथ पंथ की दीक्षा लेकर इसी स्थान पर योग साधना की थी. क्षिप्रा तट पर स्थित यह प्राचीन गुफा बौद्धकालीन व परमारकालीन स्थापत्य की रचना है. गुफा का प्रवेश मार्ग संकरा है. जन भावना के अनुसार नाथ संप्रदाय के दो प्रमुख गुरु गोरखनाथ तथा मत्स्येन्द्रनाथ का भी इन गुफाओं से सम्बन्ध माना जाता है. गोरखनाथ की अखंड धुनी आज भी यहाँ प्रज्जवलित है. यहाँ के शिल्प में शैव उपासना तथा भैरवी उपासना के प्रमाण विद्यमान हैं. पूर्वी गुफा तथा उसके अलंकृत स्तम्भ किसी प्राचीन शिव मंदिर के अंश प्रतीत होते हैं.
श्री सिद्धवट:
तीर्थ स्थली उज्जैन के भैरवगढ़ क्षेत्र में स्थित सिद्धवट का वही महत्त्व है जो गया तथा प्रयाग में अक्षयवट का है. स्कंद्पुरण के अवन्तिखंड में वर्णन है की देवाधिदेव महादेव के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध करने के बाद अपनी शक्ति यहाँ शिप्रा में फेंकी थी जो पाताल में चली गई इसलिए इसे शक्तिभेद तीर्थ भी कहते हैं. जगत्जननी माता पारवती ने इसी वाट के निचे अपने प्रिय पुत्र कार्तिकेय को भोजन कराया था. भगवान् शिव ने वट वृक्ष आशीर्वाद दिया की तुम संसार में कल्प के रूप में जाने जाओ. सम्राट विक्रमादित्य ने यहाँ तपस्या करके अग्या बेताल की सिद्धि की थी. इस मंदिर में स्थित शिवलिंग (पतालिश्वर) का लिंग जलधारी की सतह से निचे है. कहा जाता है की जैसे जैसे प्रथ्वी पर पाप बढ़ता है यह धंसता चला जाता है. मंदिर क्षिप्रा के तट पर ही है जहाँ पक्के घाट बने हुए हैं.मुग़ल शासकों ने इस वृक्ष को कटवा कर लोहे के तवे मढवा दिए थे, पर उन लौह पत्रों को छेड़ कर वृक्ष पुनः हरा भरा हो गया.
श्री बड़े गणेश :
श्री महाकालेश्वर प्रवचन हॉल के सामने स्थित मंदिर में श्री गणेश जी की भव्य और मनोहारी विशाल मूर्ति है. यह स्थान महर्षि संदीपनी के वंशज प्रसिद्द ज्योतिषी पंडित श्री नारायण जी व्यास की आराधना स्थली रहा है, और उन्ही के द्वारा स्थापित किया गया था. संस्कृत तथा ज्योतिष के केंद्र बने इस स्थान से हजारों छात्रों ने ज्ञानार्जन कर भारतवर्ष में सम्मान प्राप्त किया. इनके नाम से निकलने वाले ‘श्री नारायण विजय’ पंचांग का कार्यालय भी समीप ही है.मंदिर के मध्य में श्री पंचमुखी हनुमान जी की सुन्दर प्रतिमा है. अन्दर पश्चिमी भाग में नवग्रहों की मर्तियाँ हैं.इसके अतिरिक्त और भी कई सुन्दर और प्राचीन दर्शनीय प्रतिमाएं यहाँ स्थापित हैं.
श्री चारधाम मंदिर:
यह मंदिर श्री हरसिद्धि देवी के मंदिर की दक्षिण दिशा में थोड़ी सी दुरी पर है. इस मंदिर में श्री आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित हिन्दू धर्म के चारधामों की सजीव झांकियां स्थापित की गयी हैं. प्रतिमाओं को मूल स्वरुप जैसा ही बनाया गया है. एक ही स्थान पर चारों धाम दर्शन की सुन्दर कल्पना यह मंदिर साकार करता है. मंदिर में प्रवेश स्थान पर एक सुन्दर बगीचा है जिससे मंदिर का सौंदर्य द्विगुणित होता है. इस मंदिर के पार्श्व भाग में अन्य देवी देवताओं की सजीव तथा मनमोहन झांकियां भी स्थापित की गयी हैं जिन्हें देखकर मन प्रसन्न हो जाता है.
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सचित्र जानकारी के लिए आभार
ReplyDeleteSanjay ji,
DeleteAapka bahut bahut dhanyawaad.
bahut hi badiya jandkari di hai mukesh bhai...
ReplyDeletewww.aachman.com mein article likh kar hame support karen...
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