Wednesday, 8 February 2012

Aundha Nagnath / औंढा नागनाथ: भोले बाबा का एक और आशियाना

याम्ये सदड्गे नगरेतिरम्ये विभुषिताग विविधैश्च भोगिः , सद्भक्तिमुक्तिप्रद्मिश्मेकम  श्री नागनाथं शरणं प्रपद्ये.
(द्वादश्ज्योतिर्लिन्गस्तोत्रम, कोटिरुद्रसंहिता, शिवमहापुराण)
नांदेड में हजुर साहिब सचखंड गुरूद्वारे के पावन दर्शन के पश्चात अब हमारी यात्रा का अगला गंतव्य था श्री औंढा नागनाथ ज्योतिर्लिंग दर्शन.
नांदेड में रणजीतसिंह यात्री निवास से लगभग 10  बजे चेक आउट करने के बाद औंढा के लिए बस पकड़ने के उद्देश्य से हम नांदेड के बस स्टेंड पर पहुँच गए, वहां जाकर पता चला की  औंढा के लिए डाइरेक्ट कोई बस उपलब्ध नहीं थी अतः हम बसमथ के लिए बस में सवार हो गए और बसमथ से बस बदलकर लगभग साढ़े 12  बजे औंढा नागनाथ पहुँच गए. अब अपनी कहानी को यहाँ विराम देकर आपको स्थान से परिचित करता हूँ.
श्री औंढा नागनाथएक परिचय:
औंढा नागनाथ, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में स्थित हिंगोली जिले के औंढा नामक तालुके (तहसील) में स्थित है, तथा यहाँ पर एक अति प्राचीन तथा सुन्दर मंदिर में भगवान भोलेनाथ के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक (सन्दर्भ- द्वादश्ज्योतिर्लिन्ग्स्तोत्रं, कोटिरुद्रसंहिता, श्री शिव महापुराण अध्याय २९) आठवें क्रम के ज्योतिर्लिंग ” नागेशं दारुकावने” स्थित हैं, और इसी वजह से इस स्थान का महात्म्य प्राचीन धर्म ग्रंथों तथा पुराणों में भी मिलता है.

औंढा नागनाथ

मुख्य प्रवेश द्वार

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के सम्बन्ध में मतभेद:
शिव महापुराण के द्वादश्ज्योतिर्लिन्ग्स्तोत्रं में उल्लेखित बारह ज्योतिर्लिंगों में से कुछ की भौगोलिक स्थितियों के बारे में भक्तों के मत अलग अलग हैं. कारण यह है की स्तोत्र (श्लोक) में इन ज्योतिर्लिंगों की भौगोलिक स्थिति अस्पष्ट है अतः लोग अपने अपने तरीके से व्याख्या करते हैं तथा अर्थ निकालते हैं, स्थान निर्धारण में सबसे ज्यादा विवादित दो ज्योतिर्लिंग हैं, एक है नागेश्वर ज्योतिर्लिंग जिसके बारे में कुछ लोगों का मत है की यह गुजरात स्थित द्वारका के समीप है वहीँ अन्य लोगों का मत है की यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र के औंढा नमक गाँव में स्थित श्री नागनाथ मंदिर में है.
ठीक इसी प्रकार श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में भी मतभेद है, कुछ लोगों का मानना है की यह ज्योतिर्लिंग झारखंड राज्य में जेसीडीह के करीब देवघर कसबे में स्थित है, वहीँ अन्य लोग मानते हैं की यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के बीड  जिले में स्थित परली वैजनाथ स्थान पर स्थित है.
खैर, हमें इस विवाद की और ध्यान न देकर जिस ज्योतिर्लिंग स्थान पर हम आसानी से पहुँच सकें वहीँ सच्ची भावना से भक्ति करके संतुष्ट होना चाहिए.

श्री नागनाथ मंदिर शिल्प:
श्री नागनाथ मंदिर का शिल्प बड़ा अनोखा तथा विष्मयकारी है, मंदिर का निर्माण कार्य महाभारतकालीन माना जाता है. पत्थरों से बना यह विशाल मंदिर हेमाड़पंथी स्थापत्य कला में निर्मित है तथा करीब 60000  वर्गफुट के क्षेत्र में फैला है.मंदिर की चारों दीवारें काफी मजबूती से बनाई गई हैं तथा इसके गलियारे भी बहुत विस्तृत हैं. सभा मंडप आठ खम्भों पर आधारित है तथा इसका आकार गोल है.


आतंरिक प्रवेश द्वार

मंदिर का सर्वोच्च शिखर, वानर सेना का कोलाहल

मंदिर प्रवेश द्वार

मंदिर प्रवेश द्वार
यहाँ महादेव के सामने नंदी नहीं है तथा मुख्य मंदिर के सामने अन्य स्थान पर नंदिकेश्वर जी का मंदिर अलग से बनाया गया है.


बिलकुल अलग पहचान लिए नंदी जी
मुख्य मंदिर के चारों ओर बारह ज्योतिर्लिंगों के छोटे मंदिर भी बने हुए हैं. मंदिर की दीवारों पर पत्थरों को तराश कर की गई सुन्दर नक्काशी देखने लायक है, तथा दीवारों पर कई देवी देवताओं की मूर्तियाँ उकेरी गई हैं. शिलाखंडों से निर्मित इन मूर्तियों को देखने से मन प्रसन्न हो जाता है. मंदिर की दिवार के एक कोने पर बने एक शिल्प में भगवान् शिव रूठी हुई पार्वती जी को मना रहे हैं, यह द्रश्य देखकर लोग दांतों तले उँगलियाँ दबा लेते हैं, पत्थर से बनी मूर्तियों के चेहरों पर कलाकार ने जो भाव उत्पन्न किये हैं, लाजवाब हैं.


मंदिर में प्रवेश के लिए कतार


परिसर स्थित अन्य छोटे छोटे मंदिर

मंदिर के पार्श्व में, विष्णु जी की मूर्ति


मंदिर अन्य द्रश्य


अन्य द्रश्य
अन्य महत्वपूर्ण हिन्दू मंदिरों की तरह इस मंदिर पर भी धर्मांध औरंगजेब की कुद्रष्टि पड़ी तथा उसने मंदिर का उपरी आधा भाग ध्वस्त कर दिया था, लेकिन अचानक हज़ारों की संख्या में कहीं से भ्रमर (भौरें) आ गए तथा औरंगजेब के सैनिकों पर टूट पड़े, अंततः औरंगजेब को अपनी सेना समेत वापस लौटना पड़ा (यह और कुछ नहीं भगवान् का चमत्कार ही था).
बाद में इंदौर की महारानी पुण्यश्लोका देवी अहिल्याबाई होलकर जो की स्वयं शिव की बहुत बड़ी भक्त थी ने इस मंदिर का उपरी टुटा हुआ हिस्सा पुनर्निर्मित करवा कर मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया, अतः उनकी स्मृति में मंदिर परिसर में प्रवेश से पहले ही मातुश्री अहिल्या बाई होलकर की प्रतिमा विराजमान है.

देवी अहिल्या बाई प्रतिमा
मंदिर का उपरी आधा भाग जो की औरंगजेब ने ध्वस्त कर दिया था तथा बाद में देवी अहिल्या बाई ने बनवाया, सफ़ेद रंग से पुताई किया हुआ है, तथा मंदिर का आधा निचला हिस्सा जो की प्राचीन मंदिर का वास्तविक हिस्सा है अभी भी काला ही है, यानी उस हिस्से पर पुताई नहीं की जाती.
श्री नागनाथ मंदिर का अनोखा गर्भगृह:
इस मंदिर की एक विशेषता है की यहाँ गर्भ गृह सभा मंडप के सामानांतर स्थित न होकर, सभा मंडप के निचे स्थित गुफा नुमा तलघर में है, मैंने इस तरह का मंदिर इससे पहले कभी नहीं देखा, सभा मंडप के एक कोने में चौकोर आकार का एक द्वार है तथा इस द्वार से सीढियाँ लगी हैं जो की निचे तलघर में स्थित गर्भगृह तक जाती हैं, रास्ता भी इतना छोटा है की एक बार में एक ही व्यक्ति तलघर में जा या आ सकता है.
अन्दर गर्भ गृह भी बहुत छोटा है तथा एकसाथ केवल आठ या दस लोग ही पूजा कर सकते हैं, उंचाई भी इतनी कम है की व्यक्ति खड़ा नहीं हो सकता सिर्फ झुक कर या बैठ कर ही रहा जा सकता है, जबकि मंदिर बहुत विशाल है, तलघर स्थित गुफा नुमा  गर्भ गृह के ठीक ऊपर वाली मंजिल पर बहुत जगह है जहाँ सुविधाजनक गर्भगृह आसानी से बनाया जा सकता था, फिर क्यों इतनी छोटी सी जगह पर ज्योतिर्लिंग स्थापित किया गया जहाँ ठीक से खड़ा भी नहीं रहा जा सकता, मेरी समझ से बाहर था, मुझे तो यह मंदिर बड़ा ही रहस्यमय लगा. अन्दर गर्भगृह में मध्यम आकार का ज्योतिर्लिंग स्थापित है, जो की चांदी के आवरण से ढंका रहता है तथा समय समय पर अभिषेक के लिए आवरण को हटाया जाता है.
यहाँ पर गर्भगृह में भक्तों को सीधे ज्योतिर्लिंग पर पूजन तथा अभिषेक की अनुमति है. यह ज्योतिर्लिंग रेत से निर्मित है, भक्त गण अभिषेक के दौरान अपने हाथों से रेत को महसूस कर सकते है.


तलघर स्थित गर्भगृह का अति संकरा प्रवेश द्वार

श्री औंधा नागनाथ ज्योतिर्लिंग दर्शन

श्री औंधा नागनाथ ज्योतिर्लिंग दर्शन

गर्भगृह प्रवेश द्वार और घनघोर अँधेरा
गर्भगृह के इस अद्भुत निर्माण, तथा बहुत संकरा होने तथा जगह बहुत कम होने की वजह से कई बार वृद्ध भक्तों तथा बच्चों के लिए गर्भगृह में प्रवेश  जोखिम भरा हो सकता है. फर्श हर समय गीली होने तथा प्रकाश की कमी की वजह से फिसलने का भी डर होता है, लेकिन यह भी सच है की भगवान् के दर्शन मुश्किलों तथा जोखिमों से गुजरने के बाद ही होते हैं.
वैसे भक्तों की सुरक्षा के लिए मंदिर प्रशासन ने पुख्ता इंतज़ाम किये हुए हैं, जगह जगह पर सुरक्षा की द्रष्टि से सिक्योरिटी गार्ड्स तैनात रहते है. गर्भगृह वातानुकूलित है जो की भक्तों को गर्मी में शीतलता प्रदान करता है.
मंदिर समय सारणी:
सामान्य दिनों में नागनाथ मंदिर के द्वार सुबह 4 बजे खुलते हैं तथा रात्रि 9 बजे बंद हो जाते हैं, लेकिन विशेष दिनों तथा उत्सवों के दौरान समय बढ़ा दिया जाता है. शुरू के एक घंटे में मंदिर के पुजारी पूजन अभिषेक करते हैं तथा इस दौरान भक्तों को गर्भगृह में प्रवेश नहीं दिया जाता.  12 से 12 :30 के बिच महानैवेद्य तथा आरती होती है. शाम 4 से 4 :30  के बिच श्रीस्नान एवं पूजा होती है इस दौरान भी  भक्तों को गर्भगृह में प्रवेश नहीं दिया जाता. 8 :30 से 9 :00 के बिच शयन आरती होती है.

फुल हार प्रसाद की दुकानें

फुल हार प्रसाद की दुकानें

परिसर स्थित एक अन्य मंदिर में सुन्दर शिवलिंग.
मंदिर के पण्डे पुजारी:
यहाँ के पण्डे पुजारी भी बड़े सहयोगी स्वभाव के हैं तथा भक्तों की हरसंभव मदद करते है. पूजा अभिषेक भी बड़े विस्तृत रूप से अच्छी तरह से करवाते है. बहुत ज्यादा दक्षिणा की भी मांग नहीं करते हैं, 151  से 251 रुपये के बिच पंचामृत सहित रुद्राभिषेक किया जा सकता है. हमने जिन पुजारी जी से अभिषेक करवाया था उनका मृदु व्यव्हार तथा सहयोग एवं मन प्रसन्न कर देने वाला अभिषेक हमारी स्मृति में सदा केन्द्रित रहेगा. अपने साथी घुमक्कड़ भक्तों की सुविधा के लिए मैं उनका मोबाइल नंबर यहाँ देना चाहूँगा - पं. दीक्षित जी - 09420576066 .
ठहरने  की व्यवस्था:
औंढा, हिंगोली जिले में एक छोटा सा क़स्बा है, जो की हिंगोली शहर से लगभग 30 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है. पुरे गाँव की अर्थव्यस्था तीर्थ यात्रियों पर ही निर्भर है. मंदिर की बढती लोकप्रियता के बावजूद भी यहाँ ठहरने के लिए सर्व सुविधायुक्त आवास की कमी है. मंदिर प्रशासन के द्वारा निर्मित यात्री निवास उपलब्ध है, लेकिन न्यूनतम सुविधाओं के साथ. वैसे मंदिर प्रशासन यहाँ यात्रियों के रात्रि विश्राम के लिए एक सर्वसुविधा युक्त धर्मशाला बनाने के लिए प्रयासरत है.
खाने के लिए ठीक ठाक व्यवस्था है, लेकिन पिने के पानी का स्वाद थोडा सा अप्रिय है, अतः यहाँ मिनरल वाटर पिने की सलाह दी जाती है. छोटे छोटे रेस्तरां हैं जो मराठी, पंजाबी तथा गुजराती भोजन उपलब्ध करते हैं, लेकिन ज्यादा अच्छे खाने की उम्मीद नहीं की जा सकती.
कैसे पहुंचें:
भारतीय हिन्दू तीर्थयात्रा की सही पहचान की तर्ज पर औंढा नागनाथ की यात्रा थोड़ी दुष्कर ही है. बड़े शहरों से यहाँ पहुँचने के लिए सीधी सुविधा नहीं है. अपनी यात्रा को कुछ भागों में बाँट कर ही यहाँ पहुंचा जा सकता है. हिंगोली तक पहुंचकर वहां से सीधे औंढा के लिए महाराष्ट्र राज्य परिवहन की बस के द्वारा पहुंचा जा सकता है, या फिर नांदेड पहुँच कर वहां से बसमथ और फिर बस बदल कर  औंढा पहुंचा जा सकता है, या फिर हिंगोली या नांदेड से प्राइवेट जीप लेकर भी यहाँ पहुंचा जा सकता है.
अपनी कहानी:
सुबह से भूखे होने की वजह से साढ़े बारह बजे औंढा पहुँच कर सबसे पहले हमने बस स्टॉप पर स्थित एक रेस्तरां में नाश्ता किया, और उसके बाद हम चल दिए मंदिर की और दर्शन के लिए. यहाँ एक बात बताना चाहूँगा की यहाँ पर मंदिर बिलकुल बस स्टॉप के ठीक सामने ही है तथा बस से उतारते ही मंदिर परिसर दिखाई देता है, याने न किसी से पूछने की जरुरत और न ही ऑटो रिक्शा ढूंढने की जेहमत.
मंदिर में प्रवेश के बाद मंदिर को देखते ही माँ भाव विभोर हो गया, प्राचीन शिल्पकला का एक नायाब नमूना, बड़ा सुन्दर मंदिर था. कुछ ही देर में पंडित जी से अभिषेक के बारे में बात करके हम दर्शनों के लिए लाइन में लग गए. गर्भ गृह में पहुँच कर भगवान् के समीप बैठकर करीब आधे घंटे तक रुद्राभिषेक का आनंद उठा कर इश्वर को धन्यवाद देते हुए हम मंदिर से बहार आ गए.
इसी के साथ मैं अपनी यह पोस्ट यहीं समाप्त करता हूँ इस वादे के साथ की हम जल्द ही दर्शन करेंगे एक और ज्योतिर्लिंग के अपनी पोस्ट के माध्यम से. तब तक के लिए………. ॐ नमः शिवाय…………………………………………

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