Saturday 25 October 2014

रोहतांग की कठीन राह…..बर्फीले पहाड़ और प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर सोलांग घाटी (भाग- 2)

साथियों,
पिछली कड़ी में मैं आपसे जिक्र कर रहा था की किस तरह से मुसीबतों को पार करते हुए अंततः हम लोग रहाला फाल पहुंच ही गए, और फिर सिलसिला शुरू हुआ बर्फ में खेलने का, बर्फ में फिसलने का. उम्रदराज प्रौढ़ दम्पतियों को बच्चों की तरह बर्फ से खेलते हुए देखने में जो मज़ा आ रहा था उसका वर्णन करना मुश्किल है. लगभग सभी लोग बच्चे बने हुए थे, हर कोई इन यादगार पलों को जी लेना चाहता था. हम सब भी अपनी ही मस्ती में खोए हुए थे, किसी को किसी का होश नहीं था. बच्चे अपने तरीके से बर्फ से खेल रहे थे और बड़े अपने तरीके से, मकसद सबका एक था….आनंद आनंद और आनंद.

बर्फ पर खड़े होकर भुट्टा खाने का आनंद ही कुछ और है..
बर्फ पर खड़े होकर भुट्टा खाने का आनंद ही कुछ और है.

पास ही एक भुट्टे वाला गर्मा गरम भुट्टे सेंक रहा था, 25 रु. का एक, शिवम को एक भुट्टा दिलवाया और फिर लग गए बर्फ से खेलने में. यहाँ करीब डेढ़ घंटा बर्फ में खेलने के बाद ही हमें लगने लगा की हमारा यहाँ तक आना सफल हो गया और अब आगे नहीं भी जा पाएँ तो कोई गम नहीं होगा, लेकिन आज हमारी किस्मत अच्छी थी सो कुछ ही देर बाद हमारे पास हमारी गाड़ी के ड्राइवर का फोन आया और उसने हमें बताया की रास्ता चालू हो गया है और हम ब्यास नाला तक जा सकते है. आप लोग वहीं रुको मैं दस मिनट में पहुंच रहा हूँ. यह सुनकर हम तो खुशी से झूम उठे. दरअसल इन खूबसूरत वादियों ने हमें पागल कर दिया था और “ये दिल मांगे मोर” की तर्ज़ पर हम इस खुशनुमा माहौल से दूर जाना नहीं चाहते थे.

कुछ ही देर में हमारा ड्राइवर गाड़ी लेकर उपस्थित हो गया और हम अपनी गाड़ी में सवार हो गए. अब गाड़ी में सवार होने के बाद हमें सुकून मिल रहा था क्योंकि मंज़िल को पाने की ललक एक बार फिर जाग्रत हो गई थी. अब हम आगे के सफर के लिए बढ़ चुके थे. रास्ते में छोटे बड़े झरने, नदी, आकर्षक पुल, गोल-मटोल सफ़ेद, रंगीन पत्थर, चश्मो से बहता पानी, आकृतियाँ  बदलते बादल, चहचहाते पंछी, भीनी-२ खुशबु बिखेरते जंगली फूल व वृक्ष, हमारा  मन पुलकित कर रहे थे.
फुरसत के पल
फुरसत के पल
मनाली से लगभग  50 किमी दूर 13286 फुट ऊंचाई पर यह रास्ता लगभग आसमान की ओर बढ़ रहा था. दुर्गम पहाड़ियों को अथक मेहनत से काटकर बनाई गई सड़क के दोनों ओर बर्फ बिछी ही नहीं, बल्कि दीवारों के रूप में खड़ी दिखाई दे रही थी. इस मार्ग पर प्रतिवर्ष ग्रीष्म के प्रारंभ होते ही बर्फ को स्नो-कटर से हटाया जाता है ताकि आवागमन बहाल रहे. 
रास्ता इतना खतरनाक था की कई बार ऐसा लगता की गाड़ी किसी मोड पर मुड़ती और लगता जैसे उसका दूसरा पहिया खाई के मुहाने पर पहुँच जाता है, हम लोगों की तो कई बार लगभग चीख ही निकल जाती…….. मर गए”.
‘नीचे कितनी खाई है, ओ बाप रे, हे भगवान, ओ’ माई गोड, क्या रास्ता है? इन सभी क्षणों में गाड़ी चालक हमेशा चौकन्ना रहता.  मुझे तो कई बार आश्चर्य होता की ये लोग कितने खतरनाक रास्तों पर वाहन कैसे चलाते हैं, कहाँ से लाते हैं ये इतनी हिम्मत इतना साहस. अपनी तथा पर्यटकों की जान हथेली पर रखकर हर समय मौत से टक्कर लेते ये ड्राइवर मेरे लिये अजूबा थे.
कुछ ही देर में हमें रुकी हुई गाड़ियों की कतार दिखाई देती है, जो इस बात का संकेत है की हमारी मंज़िल आ गई है. गाड़ी रूकती है और हमारी मंज़िल यानी ब्यास नाला आ जाता है जो हमारे लिए रोहतांग पास ही है, और हमारा मन करता है कि तेजी से उतरा जाये, हमें ये खवाबों की दुनिया महसूस होती है, हमारे कानों में “जब वी मेट” फिल्म का गाना ‘ये इश्क हाय….. बैठे बिठाये जन्नत दिखाए….ओ रामा’ बजना शुरू हो जाता है. हम महसूस करते हैं कि इस गाने में फिल्माई लोकेशन आस-पास ही है. इस जगह आ कर, उम्र दराज दम्पति भी अपने आप को जवान महसूस करने लगते हैं, यहाँ जन्नत में पहुँच कर इश्क फिर से परवान चढ़ने लगता है.
बर्फ की दीवारें, मंज़िल अब दूर नहीं
बर्फ की दीवारें, मंज़िल अब दूर नहीं
गाड़ी वाले ने हम सबको सूचना दी की आप लग यहाँ उतर जाओ कुछ दूर की पैदल दूरी पर ही ब्यास नाला है. हम लोग खुशी खुशी नीचे उतर गए और पैदल चलने लगे. उपर आसमान में देखा तो पॅराग्लाइडर्स उड़ान भरते हुए दिखाई दिए. लोगों को आसमान में यूं उड़ता देखकर बड़ा अच्छा लग रहा था. बर्फ की दीवारों के बीच चलते हुए हमें महसूस हो रहा था जैसे हम किसी और ही दुनिया में आ गए हों.
अब मंज़िल दूर नहीं
अब मंज़िल दूर नहीं
और जैसे ही वो बर्फ की दीवारें समाप्त हुई, सामने खुला मैदान था जो बर्फ से भरा पड़ा था, जहाँ नज़र जाती हर तरफ बर्फ ही बर्फ नज़र आती. पास ही एक लकड़ी के डंडे वाला खड़ा था जो 20 रु. प्रति डंडा किराए से डंडे दे रहा था. कौतूहल वश मैं भी उस भीड़ में खड़ा हो गया तो पता चला की बर्फ में चलने में तथा उपर चढ़ने में ये डंडे बड़े काम के होते हैं, सो मैने भी चार डंडे ले लिए और आगे बढ़ चले.
पॅराग्लाइडिंग
पॅराग्लाइडिंग
बर्फ से अठखेलियाँ
बर्फ से अठखेलियाँ
एकदम ताजी, भुरभुरी और रूई के फाहे सी सफेद बर्फ इतनी भारी मात्रा में देखकर हम तो बांवरे हो गए थे. यहाँ पर कई तरह के साहसिक खेल आदि का भी प्रबंध था  जैसे पेराग्लाइडिंग, स्नो स्कूटर, ट्रक के ट्यूब पर बैठकर दूर पहाड़ी से फिसलना आदि. डंडों के सहारे हम उपर बर्फ के पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश करते लेकिन जल्दी ही थक जाते. पास ही में ट्यूब वाला खेल चल रहा था, ट्रक का बड़ा सा ट्यूब एक मोटी रस्सी से बाँध दिया गया था, उपर तथा नीचे दोनो तरफ सुरक्षा के लिये दो दो लोग तैनात थे. आपको पहाड़ की काफी उंचाई पर ट्रक के ट्यूब में बैठाया जाता और फिर वहां से फिसलाया जाता, रस्से को पूरी तरह फ्री छोड़ दिया जाता, बड़ी ही द्रुत गति से बर्फ पर फिसलने का मज़ा आता, लोग हर्षोन्माद से चीख रहे थे. यह देखकर मैने भी अपने दोनों बच्चों को तैयार किया इस रोमांचक खेल के लिये, बच्चे मान तो गए लेकिन इस शर्त पर की हम तीनों साथ में फिसलेंगे, मैने ये शर्त खेल करवाने वालों के सामने रखी तो वो मान गए और मात्र २५० रु में हम तीनों ने इस रोमांच का आनंद लिया.
हमारा ग्रुप
हमारा ग्रुप
बर्फ का दिल
बर्फ का दिल
बर्फ पर खेलने का मज़ा
बर्फ पर खेलने का मज़ा
बर्फ पर चढ़ाई, सबसे मुश्किल काम
बर्फ पर चढ़ाई, सबसे मुश्किल काम
स्नो स्कूटर
स्नो स्कूटर
आधी जमी हुई ब्यास नदी ...
आधी जमी हुई ब्यास नदी …
बर्फ पर खेलते खेलते हमें लगभग दो घंटे हो गए और मैं कब जबरदस्त जुकाम की चपेट में आ गया मुझे पता ही नहीं चला.जब हर तरह से मन भर गया तो हम उस बर्फीले पहाड़ से नीचे उतर आए तो हमें अपने साथ कैंप से पैक करवा कर लाए भोजन की याद आई और लगभग आधी जमी हुई ब्यास नदी के किनारे एक घेरा बनाकर हम सब भोजन के लिए बैठ गए. खाना खाने के बाद सब लोग गाड़ी में अपनी अपनी जगह पर आ कर बैठ गए. बर्फ में लगातार दो घंटे खेलने से मुझे जबरदस्त तेज सर्दी हो गई थी जिसकी सजा अगले दो दिनों तक मेरा निर्दोष रुमाल भुगतता रहा.
बर्फ पर एक छोटा सा बाज़ार
बर्फ पर एक छोटा सा बाज़ार
बाय बाय स्नो
बाय बाय स्नो
थके हारे से हम सब अपने वापसी के सफर पर निकल पड़े और अब सबको लगातार उबासियाँ और झपकियां आ रहीं थी. अधूरी नींद, थकान जुकाम की मार झेलते हुए हम कुछ घंटों के सफर के बाद सोलांग वेली पहुंच गए.अचानक ही मौसम ने करवट ली और आसमान में बादल उमड़ने घुमड़ने लगे जो कुछ ही पलों में हल्की बूँदों में परिवर्तित हो गए. ड्राइवर ने बताया सोलांग आ गया है आप लोग जल्दी से देख कर आ जाओ बारिश तेज हो सकती है. लगभग सभी बेतहाशा थके हुए थे अतः किसी की नीचे उतरने की हिम्मत नहीं हो रही थी. हमारी तथा साथियों की श्रीमतियों ने उतरने से साफ इंकार कर दिया था, अतः हम पुरुष तथा बच्चे ही नीचे उतरे और सोचा एक नजर देख भर आते हैं, आखिर ऐसा क्या है सोलांग घाटी में.पार्किंग स्थल से कुछ दूर पैदल चलने के बाद सोलांग घाटी अब हमारे सामने थी. सचमुच बहुत सुन्दर जगह थी. प्रक्रति ने यहाँ अपना सौन्दर्य जी भरकर लुटाया है.
बहुत कम ऐसे पर्वतीय स्थल होते है, जो न केवल हर मौसम सैलानियों को लुभाते हैं बल्कि रोमांच प्रेमी भी साल भर वहाँ खिंचे चले आते हैं. हिमाचल प्रदेश की मनाली घाटी में स्थित सोलंग घाटी भी ऐसा स्थान है जो सैलानियों, साहसिक पर्यटन (एडवेंचर टूरिज़्म) के शौकीनों, रोमांचक क्रीडा प्रेमियों और फिल्म हस्तियों को बार-बार यहाँ आने का न्योता देता रहता है. हर मौसम में सोलंग का मिजाज देखते ही बनता है. सोलांग में बिछी हरियाली पर्यटकों का मन मोह लेती है.
सोलांग नाले के इर्द-गिर्द बसी है सोलांग घाटी. यह नाला व्यास नदी का मुख्य स्रोत माना जाता है. नाले के शीर्ष पर व्यास कुंड स्थित है. कुल्लू-मनाली घाटियों की ढलाने और उफनती नदियाँ वैसे भी रोमांच प्रेमियों (एडवेंचर लवर्स) के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं हैं. लेकिन सोलांग घाटी ने सबसे ज्यादा ख्याति अर्जित कर अपना नाम कमाया है. गर्मियों में जहाँ आकाश में उड़ने के लिए साहसिक खेलों (एडवेंचर स्पोर्ट्स) का आयोजन होता है वहीँ सर्दियों में यहाँ की बर्फीली ढलानों पर फिसलता रोमांच (स्कीइंग) देखते ही बनता है.
हिमाचल प्रदेश में कई ऐसे स्थान हैं जहाँ साहसिक खेलों का आयोजन किया जाता है, लेकिन सोलंग एक मात्र ऐसा स्थान है जहाँ आकाश में उड़ने के रोमांचक खेल आयोजित होते हैं. हिमाचल प्रदेश के खूबसूरत मनाली नगर से सोलंग की दूरी महज 13 किमी० है. समुद्र तल से 2480 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सोलंग में प्रकृति की अनुपम छठा देखते ही बनती है. प्रष्ठभूमि में चांदी से चमकते खूबसूरत पहाड हैं जिनका सौंदर्य संध्या की लालिमाओं में और भी निखर जाता है. सर्दियों में जब यहाँ की पर्वत श्रंखलाएं बर्फ की सफ़ेद चादर में लिपट जाती हैं तो यहाँ का नजारा ही बदल जाता है. जिधर निगाह दौडाएं बर्फ ही बर्फ. जमीन पर जमी बर्फ, दरखतों पर लदी बर्फ, नदी-नालों पर तैरती बर्फ और पहाड़ों के सीनों से लिपटी बर्फ, बड़ा अद्भुत और मोहक द्रश्य होता है.आप इस बर्फ को कैमरे में कैद कर सकते हैं , इसे मुठ्ठी में भर कर उछाल सकते हैं, और बर्फ में दूर तक फिसलकर चले जाने का रोमांच भी ले सकते हैं.
सोलांग घाटी
सोलांग घाटी
खूबसूरत सोलांग घाटी
खूबसूरत सोलांग घाटी

 करीब आधा घंटा सोलांग में बिताने के बाद हम पुनः गाड़ी में अपनी अपनी जगह पर बैठ गए. अब हमें जल्द ही मनाली पहुंचकर वहां से अपने कैंप पहुंचना था ताकि कुछ देर आराम कर सकें.  सोलांग से निकलने के बाद कुछ ही दूरी पर “विशेष वस्त्रों” की वह दुकान थी जहाँ से हमने किराए से वस्त्र लिए थे, हमें वस्त्र लौटाने थे अतः गाड़ी वाले ने गाड़ी उस दुकान पर रोक दी, और हम सब भी उतर गए. जब कपड़े लौटाने की अपनी बारी आई तो पता चला की हाथ के दास्ताने हम बर्फ में खेलते हुए वहीं कहीं छोड़ आए हैं. परिणामस्वरूप जेब से 50 रु. का दंड भरना पड़ा और पत्नी जी के कोपभाजन बने सो अलग.
शाम होते होते थके हारे हम अपने कैंप तक पहुंच ही गए और डिनर लेकर घोड़े बेचकर सो गए, अगले दिन सुबह हमें बिजली महादेव जाना था. तो दोस्तों इस तरह हमारी यह बर्फीली यात्रा समाप्त हुई और अगली कड़ी में तैयार रहिएगा मेरे साथ बिजली महादेव की सैर पर चलने के लिए……..शेष अगले भाग में.

6 comments:

  1. What an Adventures post,really i recommend this post.

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  3. मैंने सोलंग घाटी नहीं देखि ।मिस कर रही हूँ।

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  4. मैंने भी सोलंग वैली मे पैराग्लाईडिंग की है।बहुत मजा आया था।

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