दोस्तों,
इस श्रंखला की पिछली पोस्ट में मैनें आप लोगों को युथ होस्टल के बारे में जानकारी दी थी जो सभी को पसंद आई. प्रशंसा, प्रेम तथा प्रोत्साहन से ओतप्रोत प्रतिक्रियाओं के लिए आप सभी का हार्दिक धन्यवाद. चलिए आज चलते हैं मनाली की सैर पर…..
इस श्रंखला की पिछली पोस्ट में मैनें आप लोगों को युथ होस्टल के बारे में जानकारी दी थी जो सभी को पसंद आई. प्रशंसा, प्रेम तथा प्रोत्साहन से ओतप्रोत प्रतिक्रियाओं के लिए आप सभी का हार्दिक धन्यवाद. चलिए आज चलते हैं मनाली की सैर पर…..
दिनांक 19.05.2014 को सुबह चार बजे के लगभग
हमने युथ होस्टल के कैंप मे प्रवेश किया तथा अपने टैंट में जाकर लेट गए,
सुबह सात बजे कैंप में लाउड स्पीकर पर बज रहे सुमधूर भजनों से नींद खुली
तथा कुछ ही देर में पहले चाय तथा बाद में नाश्ते का अनाउंसमेंट हुआ, हम
चारों चाय नहीं लेते हैं अत: कुछ देर और बिस्तर में पड़े रहे लेकिन नाश्ते
के लिए तो उठना ही था सो बैग में से सभी के टुथब्रश तथा अन्य समान निकाला
और वाश रुम की ओर रुख किया और फ़्रेश वगैरह होकर फ़ूड ज़ोन की ओर चल पड़े,
नाश्ते में मेरे पसंदीदा पोहे और मीठी सिवईयां थीं जो की बहुत स्वादिष्ट
थीं, जैसे की मैने पहले भी बताया की युथ होस्टल में हमने सबसे ज्यादा अगर
किसी चीज को इन्जाय किया वो था वहां का नाश्ता और खाना.
कविता का सोमवार का उपवास था सो हम लोगों
ने शिमला से ही केले ले लिए थे, लेकिन वो अब तक काले पड़ चुके थे और यहां आस
पास फ़लाहार के लिए और कुछ उपलब्ध नहीं था अत: हम तीनों ने ही नाश्ता किया
और वापस अपने टैंट में आकर लेट गए और आगे की प्लानिंग करने लगे.
आज युथ होस्टल में हमारा पहला दिन था और
युथ होस्टल के प्लान के मुताबिक पहले दिन कहीं घुमने जाने की सलाह नहीं दी
जाती क्योंकी हमारे शरीर को नए वातावरण में ढलने के लिए भी कुछ समय देना
होता है. पहले दिन युथ होस्टल की ओर से ही आसपास के किसी गांव में ट्रैकिंग
के लिए ले जाया जाता है और उसके बाद टैंट में आराम करने की सलाह दी जाती
है. कैंप के सारे लोगों ने युथ होस्टल के इस नियम का पालन किया लेकिन हमारे
पास समय कम होने तथा ज्यादा जगहें देखने की ख्वाहिश की वजह से हमने निर्णय
लिया की युथ होस्टल की ट्रैकिंग में हिस्सा लेने और फिर टैंट में आराम
करने के बजाय आज के दिन का उपयोग किया जाए और दोपहर का खाना खाने के बाद
मनाली घुम लिया जाए. बाकी के दिनों के लिए प्लान कुछ इस तरह था, दिनांक 20
को मणिकर्ण, 21 को रोहतांग, 22 को बिजली महादेव और 23 की सुबह प्रस्थान.
दोपहर करीब 12 बजे लंच की घोषणा हुई, हम तो
बस इसी की प्रतिक्षा कर रहे थे जल्दी जल्दी अपने खाने के बर्तन जैसे थाली,
कटोरी, गिलास, चम्मच आदी निकाले और भोजनस्थल पर पहुंचे. खाने में दाल,
चावल, रोटी, दो सब्जी, खीर, पापड़ और सलाद था, हम सबने लाईन में लगकर अपनी
अपनी थालियां फ़ुल कर लीं. कविता का उपवास होने से वो यह सब नहीं खा सकती थी
अत: मैनें उनकी थाली में सलाद जैसे ककड़ी, गाजर जो भी उपलब्ध था लाकर दे
दिया. इस तरह से आज कैंप में हमारा पहला भोजन हुआ जो की बहुत ही मजेदार था.
जैसे जैसे दिन बढता जा रहा था, कैंप में नए नए परिवार जुड़ते जा रहे थे.
लंच लेने के बाद करीब एक बजे हम लोग मनाली
के लिए तैयार होकर कैंप से निकले. कैंप से मनाली की दुरी करीब 15 किलोमीटर
थी और कैंप कुल्लु मनाली हाईवे के एकदम किनारे पर था, और हर दस मिनट में
यहां से मनाली के लिए बस उपलब्ध है. हमलोग कुछ ही मिनटों में रोड़ के साईड
में आकर बस के लिए खड़े हो गए. कुछ ही देर में बस आ गई और हम उसमें सवार
होकर मनाली के लिए निकल पड़े.
मनाली के दर्शन के लिए मन अति उत्साहित था,
मौसम सुहाना था और रास्ता भी बड़ा खुबसूरत था. बस की खिड़की से हम हिमाचल की
खुबसूरत वादियों तथा बेपनाह प्राकृतिक सौंदर्य का रसास्वादन कर रहे थे.
पुरे रास्ते सड़क ब्यास नदी के समानांतर चल रही थी, नदी का एकदम स्वच्छ पानी
और तेज प्रवाह देखने लायक था, सच कहुं तो मैनें इससे पहले किसी नदी का
पानी इतना निर्मल और साफ़ नहीं देखा था.
जैसे ही बस मनाली के स्टैंड पर रुकी और हम
निचे उतरे, कई सारे औटो वाले पिछे लग गए. एक औटो वाले से बात हुई तो उसने
मनाली के सभी महत्वपुर्ण स्थलों के दर्शन करवाने के 400 रु. मांगे, आखिर
मोल भाव के बाद 350 रु. में बात पक्की हो गई और हमारा मनाली दर्शन का सफ़र
शुरू हो गया.
सबसे पहले औटो वाला हमें लेकर गया हिडिम्बा
मंदिर. यह मंदिर पांच पांडवों में से एक भीम की पत्नी हिडिम्बा देवी को
समर्पित एक सुंदर मंदिर है जो देवदार के लंबे घने वृक्षों से के मध्य स्थित
है, इसी स्थान पर हिडिम्बा अपने भाई हिडिम्ब दैत्य के साथ रहती थी जो की
बहुत बलशाली था और उसने हिडिम्बा ने यह प्रण लिया था की वह उसी से विवाह
करेगी जो उसके भाई को युद्ध में हरा देगा. पांचों पांडव अपने वनवास के
दौरान इस स्थान पर आए तो हिडिम्ब और भीम में लड़ाई हुई जिसमें हिडिम्ब मारा
गया. हिडिम्बा ने अपने प्रण के अनुसार भीम से शादी कर ली और घटोत्कच नाम के
पुत्र को जन्म दिया.
मंदिर में उत्किर्ण एक अभिलेख के अनुसार इस
मंदिर का निर्माण सन 1553 में राजा बहादुर सिंघ ने करवाया था. पगौड़ा शैली
में निर्मित यह मंदिर लकड़ी तथा पत्थर से बना है जिसके गर्भगृह में हिडिम्बा
देवी की कांसे की मुर्ति स्थापित है. कुल्लु मनाली में माता हिडिम्बा को
देवी दुर्गा तथा काली का अवतार माना जाता है. मंदिर के अंदर माता की चरण
पादुकाएं भी स्थापित हैं जिनकी प्रतिदिन पूजा होती है. मंदिर से थोड़ी ही
दुरी पर वह वृक्ष भी है जिसके निचे घटोत्कच तपस्या करता था और पशुओं की
बलि देता था.
पुरे भारत में किसी राक्षसी का यह एकमात्र
मंदिर है. हिडिम्बा जन्म से राक्षसी थी लेकिन तप त्याग और कर्म तथा धर्म से
देवी मानी गई हैं.
जब हम मंदिर पहुंचे तो वहां लाईन लगी हुई
थी, सो हम भी लाईन में लग गए. कुछ ही देर में मौसम बदलने लगा और आसमान जो
कुछ देर पहले साफ़ था बारिश के आगमन के संकेत दे रहा था, कुछ ही देर में
बादल छाने लगे और हल्की हल्की फ़ुहारें शुरु हो गईं, कुछ मिनटों की आंख
मिचौली के बाद अब आसमान फ़िर से साफ़ हो गया.
मंदिर दर्शन के बाद हम कुछ दुर खड़े अपने औटो रिक्शा की ओर चल दिए. औटो
के पास ही एक स्थानीय महिला हिमाचली पारंपरिक ड्रेसेस 50 र. प्रति ड्रेस
फोटो खिंचवाने के लिए किराए पर दे रही थी. हम तो ऐसे मौकों की तलाश में ही
रहते हैं, सो हम चारों ने वहां से ड्रेसेस किराए पर लेकर खुब सारे फ़ोटो
खिंचे और खिंचवाए. उस महिला के पास एक अंगोरा प्रजाती का बड़ा सा खरगोश भी
था, शिवम तथा संस्कृती ने खरगोश के साथ भी फोटो निकलवाए.
अब हम अपने आटो में सवार होकर अगले आकर्षण
मनु मंदिर की ओर बढे. हिडिम्बा मंदिर से कुछ तीन किलोमीटर की दुरी पर स्थित
मनु मंदिर संपुर्ण मानव जाती के निर्माता महर्षि मनु को समर्पित है तथा
लकड़ी से बना है, इस मंदिर की दीवारों पर की गई लकड़ी की शानदार तथा सुक्ष्म
नक्काशी देखने लायक है.सम्भवत: यह मंदिर महर्षि मनु का एकमात्र मंदिर है.
यहां जब हम मंदिर से दर्शन करके बाहर निकले तो देखा की बादलों की आवाजाही
फ़िर शुरु हो गई थी. चारों ओर के प्राकृतिक द्रष्यों को देख कर लग रहा था
जैसे हम किसी और ही दुनिया में आ गए हों, छाया में खड़े रहो तो ठंड लगने
लगती धुप में जाओ तो धूप चुभने लगती बड़ा अजीब सा मौसम था.
कुछ देर मनु मंदिर में बिताने के बाद अब हम
औटो में बैठकर अपने अगले आकर्षण वशिष्ठ मंदिर की ओर चल दिए. कुछ देर चलने
के बाद सामने देखने पर पता चला की रास्ते में जबर्दस्त जाम लगा हुआ है,
रास्ता खड़ी चढाई वाला था. औटो वाले ने हमसे कहा की यहां हमेशा इसी तरह जाम
लगता रहता है और अब जाम खुलने में समय भी लगेगा, आप लोग पैदल ही चले जाओ
यहां से ज्यादा दुर नहीं है, मैं यहीं आप लोगों का इंतज़ार करुंगा. हमारे
पास उसकी बात मानने के अलावा और कोई चारा भी नहीं था अतः हम जरुरी समान
लेकर पैदल ही चल दिए. औटो वाले ने जैसा बताया था उतना आसान नहीं था रास्ता
और दुरी भी काफ़ी थी, हम लोग चलते ही जा रहे थे लेकिन मंदिर अभी भी बहुत दुर
था, हम लोग बहुत थक गए थे खासकर बच्चे. हम लोग औटो वाले को कोस ही रहे थे
की हमें पिछे से वह औटो लेकर हमारी ओर आता दिखाई दे गया, उसे देखकर हमें
असीम खुशी मिली. उसने हमें औटो में बैठाया और मंदिर की ओर चल दिया, कुछ ही
देर में हम मंदिर पहुंच गए. मंदिर और वहां का माहौल इतना अच्छा था की हम
अपनी सारी थकान भुल गए और मंदिर की लाईन में लग गए.
वशिष्ठ एक छोटा सा गांव है जो मनाली से
करीब पांच किलोमीटर दुर रोहतांग के रास्ते पर ब्यास नदी के दाएं किनारे पर
स्थित है जो अपने मंदिरों तथा गर्म पानी के स्त्रोतों के लिए प्रसिद्द है.
यहां पर दो प्राचिन मंदिर स्थित हैं, प्राचीन पत्थरों से बने मंदिरों का यह
जोड़ा एक दूसरे के विपरीत दिशा में है. एक मंदिर भगवान राम को और दूसरा
संत वशिष्ठ को समर्पित है. यहां पर सल्फ़र युक्त प्राकृतिक गर्म पानी के
सोते हैं जिनका पानी दो अलग अलग कुंडों में एकत्रित किया जाता है जहां पर
श्रद्धालु स्नान करते हैं. एक कुंड पुरुषों तथा एक स्त्रियों के स्नान के
लिए प्रयोग किया जाता है. दोनों कुंड हमेशा श्रद्धालुओं से भरे रहते हैं.
मंदिर दर्शन के बाद हम गर्म पानी के कुंडों
की ओर बढे जो यहां का मुख्य आकर्षण हैं. निजता को ध्यान में रखते हुए
स्त्री तथा पुरुषों के कुंड अलग अलग बनाए गए हैं. यहां पर हमारे परिवार के
भी दो हिस्से हो गए. हम दो पुरुष (शिवम तथा मैं) पुरुषों के कुंड की ओर मुड़
गए और दो महिलाएं (कविता तथा संस्कृति) महिलाओं के कुंड की ओर. वैसे हमारा
नहाने का कोई इरादा नहीं था और न ही हम नहाने की तैयारी से आए थे, हमें तो
बस प्राकृतिक गर्म पानी के कुंड देखने थे. थोड़ी ही देर में मैं और शिवम
कुंड तक पहुंच गए.
कुंड से गर्म पानी की भाप उठ रही थी और आठ
दस लोग मजे से नहा रहे थे. जीवन में पहली बार प्राकृतिक गर्म पानी देखा था,
कुदरत के इस करिश्मे को देखकर मैं आश्चर्यचकित हो गया. बाहर का ठंडा
वातावरण और यहां गर्मागर्म पानी, ये सब देखकर शिवम का बाल मन इस गर्म पानी
में स्नान करने को मचल उठा और वो नहाने की जिद करने लगा. मचल तो मैं भी रहा
था यहां नहाने के लिए लेकिन हम अंडरगारमेंट्स तथा टोवेल लेकर नहीं आए थे
अत: मैं दुविधा में था, मेरी दुविधा को भांपते हुए एक सज्जन ने कहा भाई
साहब बच्चा जिद कर रहा है तो नहला दिजिए और आप भी नहा लिजिए, टोवेल मेरा ले
लेना और अंडर वियर को निचोड़ कर पहन लेना थोड़ी देर में सुख ही जाएगी. मैने
उस परोपकारी आत्मा के प्रस्ताव को हाथों हाथ लिया और मेरे तथा शिवम के कपड़े
उतारे और भोले का नाम लेकर कुंड में उतर ही गए.
एक बार जो उतरे तो अब बाहर निकलने को मन ही
नहीं कर रहा था, आखिर जी भरकर नहाने के बाद ही बाहर निकले, कपड़े वगैरह
पहनकर बाहर आए तो देखा की कविता और संस्कृति हमारा इंतज़ार ही कर रहे थे.
बाहर आकर भगवान राम के मंदिर के दर्शन किए. मंदिर परिसर सचमुच बहुत आनंद
दायक था. मनाली शहर की साईट सीईंग में मुझे यह जगह सबसे ज्यादा पसंद आई.
खैर इस सुंदर जगह का आनंद उठाने के बाद हम मंदिर से बाहर आ गए जहां औटो
वाला हमारा बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था. अब हम वापस मनाली शहर चल दिए.
वापसी में उस रास्ते पर जाम नहीं था सो जल्दी ही मनाली पहुंच गए.
मनाली दर्शन की इस कड़ी में हमारा अगला पड़ाव
था वन विहार तथा बुद्ध मंदिर/ बौद्ध मठ (बुद्धिस्ट मोनेस्ट्री). ये दोनों
जगहें मनाली के मुख्य बाज़ार में ही स्थित हैं. औटो वाले ने हमें वन विहार
छोड़ दिया तथा सामने की ओर इशारा करके बुद्ध मंदिर की लोकेशन बता दी और हमसे
इजाजत चाही. हमने उसका हिसाब किया और धन्यवाद के साथ उसे अलविदा किया
क्योंकि उसने हमें कोई शिकायत का मौका नहीं दिया था और हम उसकी सेवा से
प्रसन्न थे.
वन विहार के प्रवेश द्वार पर जाकर पता चला
की यहां प्रवेश शुल्क देना होता है जो की शायद ३० या चालीस रुपए था. मैनें
सभी के लिए टिकट लिए और अंदर प्रवेश किया. यह एक बाल उद्यान है जहां बच्चों
के मनोरंजन के लिए झुले वगैरह हैं और अंदर की ओर एक सुंदर सी झील बनाई गई
है जिसमें बच्चों के लिए बोटें चल रहीं थीं. हमारे मतलब का यहां कुछ खास
नहीं था अत: कुछ फोटो वगैरह लेकर हम बाहर निकल आए.
सामने ही मनाली का माल रोड़ था जहां की रौनक और पर्यटकों की भीड़ देखते ही
बनती थी. कुछ दुए पैदल चलने के बाद अब हम बुद्ध मंदिर के प्रवेश द्वार पर
थे. मनाली का बौद्ध मठ बहुत लोकप्रिय हैं. कुल्लू घाटी के सर्वाधिक बौद्ध
शरणार्थी यहां बसे हुए हैं. 1969 में इस मठ को तिब्बती शरणार्थियों ने
बनवाया था. मंदिर के प्रवेश द्वार के करीब ही एक चीनी व्यंजन का ठेला लगा
था जहां मोमोज़, नूडल्स और मंचुरियन आदि थे, शिवम ने वहां नूडल्स खाने की
जिद की, दोनों बच्चों को नूडल्स खिलाकर हमने मंदिर में प्रवेश किया.बुद्ध मंदिर बाहर तथा अंदर दोनो ओर से बहुत ही सुंदर था. चटख रंगों से सराबोर मंदिर की दिवारें बरबस ही पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करती हैं. मंदिर के अंदर भगवान बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा स्थित है तथा मंदिर दो मंज़िलों में विभाजित है. प्रतिमा इतनी विशाल है की मुर्ति के धड़ तक के हिस्से के दर्शन भुतल से तथा मुखमंडल के दर्शन प्रथम तल से किए जाते हैं. मंदिर दर्शन तथा अपने प्रिय शगल छायाचित्रकारी के बाद अब हम बाहर आ गए.
मुझे अपनी वापसी यात्रा के लिए मनाली से
चंडीगढ की बस के टिकट भी बस स्टेशन से आज ही बुक करवाने थे और हमें अपने
कैंप तक लौटने के लिए बस भी वहीं से लेनी थी सो हम बस अड्डे की ओर चल दिए.
मैने 23 तारिख के लिए चंडीगढ की बस के टिकट बुक करवाए तथा हमें वहीं पास
में ही कुल्लु जाने वाली बस भी मिल गई जिससे हमें अपने कैंप तक जाना था. इस
समय शाम के पौने सात बज चुके थे और कैंप में वापसी का समय शाम सात बजे का
होता है, अब हमें लग रहा था की जल्दी कैंप पहुंचना चाहिए. कविता का उपवास
था और उन्होनें सुबह से सलाद के अलावा कुछ खाया भी नहीं था. कैम्प में शाम
का खाना भी सात बजे तक लग जाता था सो अब कैम्प पहुंचने की जल्दी हो रही थी.
बस पुरी भर जाने के बाद सात बजे मनाली से निकली और 7.30 पर उसने हमें कैंप
के गेट पर छोड़ा………….
आज की अपनी इस कहानी को यहीं विराम देता हुं, जल्द ही अगली पोस्ट के साथ मिलने के वादे के साथ…..
शायद 1995 में मैंने शिमला मनाली रोहतांग मणिकर्ण और ज्वाला देवी की यात्रा की थी।15 दिन का टूर था और शिमला से ही कार बुक कर के हम घुमे थे । बहुत इंजॉय किया उस समय सिर्फ कार का भाड़ा ही 5 हजार हुआ था । खाना और ठहरना अलग । काफी महंगा था वो टूर ।आज यादें तजा हो गई।
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