Saturday, 25 October 2014

रोहतांग की कठिन राह…..बर्फीले पहाड़ और प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर सोलांग घाटी.

दोस्तों, पिछली पोस्ट में आपने हमारी मणिकर्ण यात्रा के बारे में पढा और मुझे उम्मीद है की पोस्ट आप सबको बहुत पसंद आई होगी. चलिए आज की इस पोस्ट के जरिए आप लोगों को लिए चलता हुं रोह्तांग की ओर. रोह्तांग की ओर इसलिए कह रहा हुं क्योंकि प्रशासन की ओर से प्रतिबंध होने की वजह से हम लोग ठेठ रोह्तांग तक तो नहीं जा पाए थे लेकिन रोहतांग से थोड़ा पहले जिस जगह तक हम जा पाए थे वहां भी हमने इतना इन्जोय किया की हमें रोहतांग न जा पाने का कोई मलाल नहीं रहा.
मणिकर्ण से लौटकर कैंप में उतरे तभी ड्राइवर ने कह दिया था की कल रोह्ताँग जाना है तो सुबह जितनी जल्दी हो सके तैयार हो जाना क्योंकि यदि लेट हुए तो जाम में फंस जाएंगे और शायद शाम तक पहुंच ही नहीं पाओ. हमने पूछा जल्दी मतलब कितनी बजे, तो ड्राइवर ने कहा जल्दी मतलब चार बजे, अगर पांच बजे तक भी कैंप से निकले तो ठीक ठाक समय से पहुंच जाएंगे.
कैंप से आज ज्यादातर लोग रोहतांग ही जाने वाले थे अतः नाश्ता भी सुबह जल्दी तैयार हो गया था और दोपहर के लिये लंच पैक भी, नाश्ते में आज सेंडविच थे जो की बड़े स्वादिष्ट लग रहे थे. जल्दी जल्दी हमने नाश्ता किया और लंच पैक कर लिया, और पांच बजे कैंप के मेन गेट पर पहुंच गए जहाँ पहले से ही गाड़ी तैयार खड़ी थी. सुबह सुबह जबरदस्त ठंड लग रही थी अतः सब ने गरम कपड़े पहन लिए थे. साथी गुजराती परिवार को तैयार होकर आते आते साढ़े पांच बज गए थे और अब उजाला हो गया था.
बर्फीले सफर के लिए तैयार ...
बर्फीले सफर के लिए तैयार …

 

चूंकि हमें पहले से ही पता था की रोहतांग का रास्ता  इस वर्ष भारी बर्फबारी के कारण अभी तक खुला नहीं था और जून में यानी हमारे जाने के करीब 15 दिनों के बाद खुलने की संभावना थी, अतः हम बर्फ को देखने का उद्देश्य लेकर निकले थे चाहे वो कहीं भी मिले. ड्राइवर ने हमें आश्वस्त किया था की मैं आपलोगों को वहां तक ले कर जाउंगा जहाँ तक जाने की प्रशासन से परमीशन होगी. हमें पता चला की अभी वाहनों को व्यास नाला तक जाने की अनुमति है, व्यास नाला से रोहतांग सिर्फ बीस किलोमीटर रह जाता है और यहाँ इतनी बर्फ है की रोहतांग का अस्सी प्रतिशत आनंद यहीं मिल जाता है. हमें तो बस बर्फ में खेलने की चाहत थी और हमें उम्मीद थी की हमारी ख्वाहिश पूरी भी हो जाएगी.
मनाली शहर
मनाली शहर की सुबह
कैंप से निकलकर लगभग आधे घंटे में हम लोग मनाली पहुंच गए. अल सुबह का समय था अतः मनाली का मार्केट भी पूरा बंद ही था. नींद के आगोश से जागकर अलसाया सा मनाली किसी अल्हड बालक की तरह मासूम लग रहा था. कुछ थोड़ी बहुत चहल पहल जो दिखाई दे रही थी वो पर्यटकों की थी जो रोहतांग जाना चाहते थे और इसीलिये जल्दी जाग गए थे. हमें पहले से ही मालूम था की रोहतांग की सर्दी को सहन करने के लिए तथा बर्फ पर खेलने के लिए हमें विशेष गर्म कपड़े किराए पर लेने पड़ेंगे, क्योंकि साधारण गर्म कपड़े बर्फ में गीले भी हो जाते हैं तथा वहां की भीषण ठंड से भी मुकाबला नहीं कर पाते हैं.
मनाली से निकलने के कुछ देर बाद ही पहाड़ों की चढ़ाई शुरू हो गई और उन विशेष परिधानों की दुकानें भी शुरू हो गई. एक विशेष बात ये नज़र आई की ह़र एक दुकान पर बड़े अक्षरों में एक नंबर लिखा हुआ था, बाद में पता चला की प्रशासन ने यात्रियों की सुविधा के लिए इन दुकानों को नंबर दिए गए हैं ताकि वापसी में कपड़े लौटाते समय पर्यटकों को नंबर याद रहे और उन्हें दुकान ढूंढने में असुविधा ना हो.
हमने अपने ड्राइवर से कहा की भाई किसी सयानी सी दुकान से हमें भी ये वस्त्र दिलवा देना, उसने कहा की सर यहाँ कपड़े महंगे मिलेंगे मैं आपको ऐसी जगह पर ले चलूंगा जहाँ किफायती दामों पर मिल जाएंगे, उसकी बात मानने के अलावा हमारे पास कोई रास्ता नहीं था क्योंकि हमें तो कोई जानकारी नहीं थी, खैर बाद में हमें एहसास हुआ की यहाँ दुकान वालों से ड्राइवरों की जबरदस्त सेटिंग होती है और जहां से ड्राइवर कहे वहां से तो ड्रेस लेना ही नहीं चाहिये. कुछ देर बाद उसने एक घाघ सी महिला की दुकान पर ले जाकर हमें टीका दिया. 250 रु. में एक जोड़ी परिधान, हाथ के दास्ताने तथा जुते. कपड़े सारे बदरंग हो चुके थे और किसी को भी साइज़ सही नहीं मिल रहा था, लेकिन वह महिला भाव में एक रुपया भी काम करने के मूड में नहीं थी, खैर आधे पौन घंटे की मशक्कत के बाद हम सबने अपने अपने लिए इन विशेष वस्त्रों का चयन किया और युद्ध लड़ने के लिए ढाल तथा तलवार साथ होने का भाव मन में लिए किसी योद्धा की तरह अपने वाहन में अपनी अपनी सीट पर आकर बैठ गए, ये अलग बात है इन विशेष वस्त्रों में हम किसी जोकर से कम नहीं लग रहे थे.
रोह्ताँग की ठंड को टक्कर देने की तैयारी
रोह्ताँग की ठंड को टक्कर देने की तैयारी
कुछ देर की चढ़ाई के बाद ही हमें वो नज़ारे दिखाई देने लगे जिन्हे देखने के लिये हम बेताब थे और हमने पहले कभी प्रत्यक्ष देखे नहीं थे सिर्फ चित्रों में ही देखे थे. दूर पहाड़ों पर सफेद चादर के रूप में फैली बर्फ हमारा कौतूहल बढाने के लिये पर्याप्त थी, जैसे जैसे हमारी गाड़ी उंचाइयों पर चढ़ रही थी ये बर्फ से ढंके पहाड़ नजदीक आते जा रहे थे. इतने सुन्दर नज़ारे जिनकी हमने कल्पना भी नहीं की थी हमारे सामने थे….ऐसा लग रहा था जैसे हम कोई सपना देख रहे थे, चारों ओर जहाँ भी नज़र जाती खूबसूरती बिखरी पड़ी थी. हम सांस रोककर कुदरत के इस करिश्मे को देख रहे थे और अपने भाग्य पर इठला रहे थे, बर्फ से ढंके इन पहाड़ों ने जैसे हमें दीवाना कर दिया था.
बर्फ से लदी पर्वत श्रंखलाएं
बर्फ से लदी पर्वत श्रंखलाएं
लेकिन रास्ता भी कोई आसान नहीं था. पहाड़ों को काटकर बनाया गई सर्पीली सड़क को देखकर मन में धुकधुकी भी होने लगती, कुछ तो खुशनुमा मौसम, कुछ कुदरत की खूबसूरती और कुछ घुमक्कड़ी का नशा ये सब कुछ मन को बहुत सुकून दे रहा था. हमारे आगे पीछे गाड़ियों का इतना बड़ा कारवां था की दूर दूर तक गाड़ियों की पंक्ति का कोई ओर छोर ही नज़र नहीं आ रहा था. मनाली जाने वाले हर पर्यटक की ख्वाहिश होती है की जैसे  भी हो रोहतांग अवश्य जाना है अतः सुबह चार बजे से ही मनाली से सैकड़ों, हज़ारों की संख्या में बड़े छोटे वाहन, रोहतांग का रुख करते हैं जिनकी किस्मत प्रबल होती है वे रोह्ताँग पहुंच जाते हैं और बाकी जहाँ तक पहुंच पाते हैं वहीं से संतुष्ट होकर वापस लौट आते हैं.
बर्फ ही बर्फ
बर्फ ही बर्फ
गाड़ियाँ इस रास्ते पर इतनी धीरे चल रही थी मानो रेंग रही हों. हमने मनाली से कुछ 15 किलोमीटर का रास्ता ही तय किया था की ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी, हमने बाहर झांककर देखा तो पता चला की आगे पीछे की सारी गाड़ियाँ रुकी हुई हैं, ड्राइवर ने जानकारी दी की आगे जाने के लिये प्रशासन ने रोक लगा दी है, गाड़ी अब आगे नहीं जा पाएगी, हाँ एक आध घंटे में रास्ता खुलने की संभावना है . उसने आगे बताया, यहाँ से चार पांच किलोमीटर आगे रहाला फाल नाम की जगह है जहाँ पर रहाला झरना जमा हुआ है और वहां आपको बर्फ मिल जाएगी, वहां आप इनजॉय कर सकते हैं, आप घोड़ा लेकर जा सकते हैं, पैदल जा सकते हैं या बर्फ पर चलने वाली ट्रेक्टर नुमा गाड़ी से भी जा सकते हैं.
ड्राइवर ने कहा अगर आगे जाने की परमीशन मिल जाती है तो मैं गाड़ी लेकर आपलोगों के पास आ जाउंगा वर्ना यहीं आपलोगों का इंतज़ार करूंगा. यह सारी बात सुनकर हम सबके चेहरों पर मायूसी छा गई. रोह्ताँग तो जा नहीं पा रहे हैं और अब ब्यास नाले तक पहुंचने के भी लाले पड़े हुए हैं. खैर ये कहानी सिर्फ हम लोगों की नहीं थी, सारी गाड़ियाँ जहाँ की तहाँ रुक गई थी और सारे पर्यटक रहाला फाल तक पहुंचने की जद्दोजहद में लगे थे. रास्ते पर प्रतिबंध लगते ही घोड़े वालों तथा बर्फ गाड़ी वालों की तो पौ बारह हो गई. कुछ लोग जीप से भी ले जाने को तैयार थे उनका कहना था की हमें परमीशन है वहां तक जाने की. कुछ लोगों ने आनन फानन में घोड़े कर लिए, घोड़े वाले हमारे पास भी आए लेकिन उनका भाव हमें जमा नहीं. एक घोड़े के रहाला फाल की चार किलोमीटर की दूरी के लिए 400 रु. मांग रहे थे सो हम लोगों ने इस विकल्प को सिरे से नकार दिया बर्फ गाड़ी वाले 1500 रु चार लोगों के मांग रहे थे अतः वे भी हमारे बजट से बाहर के ही साबित हुए, अब एक ही विकल्प बचा था यानी ग्यारह नंबर की गाड़ी यानी पद यात्रा सो बस पैदल चलने की ठान ली.
पहली बार पहाड़ों में
पहली बार पहाड़ों में
वाहनों की कतार
वाहनों की कतार
ये मौसम भीगा भीगा है..
ये मौसम भीगा भीगा है..
घुड़सवारी का आनंद
घुड़सवारी का आनंद
आस पास कुछ दुकाने लगी थी जिन पर आमलेट, मेगी, भुट्टे तथा शीतल पेय उपलब्ध थे, सुबह कैंप से नाश्ता करके निकले थे अतः हमें तो भूख नहीं लगी थे लेकिन बच्चे तो बस बच्चे होते हैं भूख लगी हो या ना लगी हो उनको तो बस खाना होता है, भाव तो इन सब चीजों के भी बहुत ज्यादा थे जैसे आमलेट 50/- मेगी 40/- भुट्टा 25/- लेकिन स्थान की दुर्लभता तथा मौके की नज़ाकत को देखते हुए हमने भी दो प्लेट मेगी का ओर्डर दे दिया और सोचा पहले बच्चों को खिला पिला दें फिर शुरू करते हैं पद यात्रा.
बर्फीले पहाड़ों के बीच ठंडा भी उपलब्ध है ..
बर्फीले पहाड़ों के बीच ठंडा भी उपलब्ध है ..
रोहतांग में भूख मिटाने के लिए चाय, काफी, चाउमिन, ब्रेड, अंडा, बिस्कुट, कोल्डड्रिंक इत्यादि उपलब्ध हैं. यह सब थोडा महंगा है, परन्तु इतनी ऊंचाई पर मिल रहा है तो क्या कम है. ये दुकानदार यहीं टेंट में रहते हैं  कई बार तो खराब मौसम में भी. जी हाँ अविश्वसनीय उंचाई पर बने  मनाली-लेह” मार्ग पर स्थित रोहतांग व आसपास मौसम कब खराब हो जाये पता ही नहीं चलता. कई बार यहाँ मई के महीने में बर्फ गिरती है. यहाँ चलने वाली बर्फीली हवाएं और तूफ़ान कई बार कहर बरपा चुके हैं. शायद तभी इस दर्रे को तिब्बती भाषा में रोहतांग यानी  “शवों का ढेर” व हिंदी में “मौत का मैदान” कहते हैं.
गर्मा गरम मेगी ..
गर्मा गरम मेगी ..
खाने पीने के बाद अब हम तैयार थे पैदल चलने के लिये. किसी शूरवीर की भांती कमर कसके हमने अपने कदम आगे बढाए, शरीर पर भारी भरकम विशेष वस्त्र तथा पैरों में लम्बे लम्बे रबर के जुते धारण करके पहाड़ों पर लगातार उंचे रास्ते पर पैदल चलना कोई आसान काम नहीं था, कुछ कदम आगे बढ़ाते ही सारी हेकड़ी निकल गई, सांस फूलने लगी एक एक कदम भारी पड़ने लगे. इसी हालत में हमने अपने कदमों से अपने शरीर को कुछ दूर और घसीटा और जब अपनी सारी सामर्थ्य जुटाने के बावजूद एक कदम भी आगे बढ़ाना मुश्किल हो गया तो निढाल होकर सड़क के किनारे बैठ गए.
तभी एक जीप वाला हमारे पास आया और विचित्र दृष्टि से हमें निहारने लगा हम उसे शिकार नज़र आ रहे थे और वह हमें देवता. दोनों को एक दूसरे की दरकार थी. वह पास आकर बोला सर चलिये सस्ते में छोड़ देता हूँ रहाला फाल तक, मैने पूछा कितने लोगे? उसने हम नौ लोगों के 1500 रु. मांगे. हमें भी कोई और चारा नज़र नहीं आ रहा था और नौ लोगों के 1500 रु भी वाजिब ही लग रहे थे सो हमने हामी भर दी और जीप में सवार हो गए.
कुछ दस मिनट में उसने हमें रहाला फाल पर छोड़ दिया. जगह तो अच्छी ही लग रही थी, पूरा झरना बर्फ बना हुआ था. इतनी ज्यादा मात्रा में बर्फ देखकर हमारा मन तो बल्लियों उछलने लगा. जीप वाले का हिसाब किताब चुकता कर हम जीवन में पहली बार बर्फ से साक्षात्कार करने के लिए तैयार थे. पहले से ही वहां पर्यटकों का जमावड़ा लगा हुआ था. बस उनको पागलों की तरह बर्फ पर लोटते हुए, फिसलते हुए और एक दूसरे पर बर्फ उछालते हुए देख कर हमारा भी दिल बच्चा बन गया और हम भी वहां हिमक्रीडा में लिप्त हो गए.
बर्फ का घरौंदा
बर्फ का घरौंदा
बर्फ पर बैठने का आनंद
बर्फ पर बैठने का आनंद
तभी वहां एक महिला हिमाचली वेश भूषा का झोला लेकर प्रकट हो गई और पत्‍नी जी को ड्रेस लेने के लिए उकसाने लगी, पत्‍नी जी भी कहाँ मानने वाली थी उन्होनें अपने लिए एक हिमाचली ड्रेस किराए से ले ही ली. और फिर सिलसिला शुरू हुआ फोटो शूट का जो अनवरत एक घंटे तक हमारी हिम क्रीडा के समानान्तर चलता रहा. वो अपने आप को दीपिका पादुकोण से कम समझने को तैयार नहीं थी और हम अपने आपको शाहरुख खान का बाप समझ रहे थे. परिणाम आप लोगों के सामने है.
जैसा देस वैसा भेस ....
जैसा देस वैसा भेस ….
OLYMPUS DIGITAL CAMERA
वो देखो …..कुछ दिखाई दे रहा है?
जरा सा झूम लूँ मैं ...
जरा सा झूम लूँ मैं …


बर्फ में खेलते हुए हम लोग असीमित आनंद का अनुभव कर रहे थे. बर्फ में उपर की ओर चढ़ना जितना कठिन तथा थकाउ होता है, उपर जाकर फिसलना उतना ही आसान, रोमांचक तथा आनंद दायक.
इस आनंद से ना तो मैं आप लोगों को वंचित रखना चाहता हूँ और ना ही स्वयं रहना चाहता हूँ …लेकिन मुझे लग रहा है लिखते लिखते बहुत लिख गया हूँ और पोस्ट जरूरत से ज्यादा लम्बी हो रही है अतः क्यों ना इसका शेष भाग अगली कड़ी में आनेवाले शनिवार को पढ़ें ……जस्ट 27 को.

4 comments:

  1. The Pics are Really Awesome,What an Adventure trip,I Really Enjoy Your Blog.

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  2. हमारे टाईम 50 रु भाड़ा था ड्रेस का और हम भी सिर्फ गुलाबो तक गए थे। यहाँ सब एक दूसरे से मिले हुए रहते गौ है प्रायवेट गाडी नहीं जायेगी इर् जीप जायेगी वाह !!!!
    मैंने भी जिंदगी में पहली बार इतनी बर्फ देखि थी । बहुत इंजॉय किइस था।

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  3. Thanks you Darshan ji for your commment.

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  4. Nice post! I enjoyed reading this post. This blog has an amazing information about the destination places beautiful visiting spots and captures very impressive photos.
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