Saturday, 25 October 2014

बिजली महादेव की यादगार पैदल यात्रा ……..

सभी घुमक्कड साथियों को दशहरे की हार्दिक शुभकामनायें तथा आने वाली दिवाली की अग्रिम शुभकामनाएं. पिछली पोस्ट में मैने अपलोगों को हमारी रोहतांग की बर्फिली यात्रा के बारे में बताया था, और लीजिए अब आपको आगे की यात्रा पर ले चलता हूँ. आज YHAI कैम्प में हमारा चौथा और अंतिम दिन था, और अपने तय कार्यक्रम के अनुसार आज 22 मई  को हमें अपनी इस हिमाचल यात्रा के अंतिम पड़ाव यानी “बिजली महादेव” का सफर करना था. कैम्प में तीन चार दिन साथ रहने से बहुत से लोगों से परिचय हो गया था और कुछेक से आत्मीयता भी. काल रात की जबरदस्त थकान के चलते सोते समय ही निश्चय किया था की सुबह देर तक सोएंगे और देर से ही बिजली महादेव के लिए निकलेंगे सो सुबह आराम से ही उठे और नित्यकर्मों से निवृत्त होकर नाश्ता करने के लिये फुड ज़ोन की ओर चल दिए. कैम्प के कुछ लोग पिछले दिन बिजली महादेव जाकर आ चुके थे और हमें आज जाना था सो हमने उनलोगों से बात करके जानकारी ले लेना उचित समझा. सभी का कहना था की जगह तो बहुत सुन्दर है, माइंड ब्लोइंग है लेकिन रास्ता बहुत कठिन है, बल्कि कठिन के बजाए दुर्गम कहना ज्यादा सही होगा. दरअसल बिजली महादेव एक पर्वत के शिखर पर स्थित है तथा वहां तक जाने के लिए कोई साधन उपलब्ध नहीं होता, करीब दो घंटे की खड़ी चढ़ाई पैदल ही तय करनी पड़ती है, यहाँ तक की घोड़े भी उपलब्ध नहीं होते.
हिमाचल प्रदेश का खूबसूरत शहर कुल्लू ब्यास नदी के तट पर 1230 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. जो प्राचीन काल में सनातन धर्म के देवी देवताओं का स्थायी बसेरा था. कुल्लू का बिजली महादेव मंदिर अथवा मक्खन महादेव संसार का अनूठा एवं अदभुत शिव मंदिर है, यह मंदिर ब्यास नदी के किनारे मनाली से करीब 50 किलोमीटर दूर समुद्र स्तर से 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. कुल्लू से कुछ 15 किलोमीटर की दूरी पर एक गांव पड़ता है चंसारी वहां तक तो वाहन से जाने का रास्ता है लेकिन उसके बाद यात्रियों को 5 किलोमीटर पैदल ही चलना पड़ता है।
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एक स्थानीय युवक काम पर जाते हुए..



सुबह करीब आठ बजे हमारी गाड़ी कैम्प के बाहर आ गई और आधे घंटे में हम लोग भी तैयार हो गए. आज कैम्प में नाश्ते में दलिया और कस्टर्ड था और पैक लंच में चने की सुखी सब्जी तथा परांठे थे. हमने हमारा आज का लंच भी पैक कर लिया था और बिजली महादेव के सफर के लिये कमर कस के  गाड़ी में सवार हो गए. लोगों ने जो रास्ते की कठिनता का वर्णन किया था उसे सुनकर पहले तो हौसले पस्त हो गए थे लेकिन फिर भगवान भोलेनाथ का नाम लेकर जाने का पक्का मन बना लिया. हमने सोचा हम तो चल लेंगे लेकिन बच्चों का क्या होगा. बच्चों से बात की तो पता चला की हौसले और उत्साह की कोई कमी नहीं थी, शिवम तथा गुड़िया दोनों ही दो तीन साल पहले सात किलोमीटर की ओंकारेश्वर पर्वत की पैदल परिक्रमा कर चुके थे, वो बात याद करके हमें तथा हमारी सोच को थोड़ा और बल मिला . भोले का नाम लेकर चालक ने गाड़ी कुल्लू की ओर दौड़ा दी. रास्ते में पतलीकूहल में रुककर कुछ सामान खरीदा और पुनः कुल्लू की ओर बढ़ चले. सुबह का समय था और मौसम भी सुहाना था और फिर हिमाचल के पर्वतीय नज़ारे, बड़े मजे में सफर कट रहा था. कुल्लू शहर पार करके हमारी गाड़ी अब हिमाचल के ग्रामीण इलाके में प्रवेश कर चुकी थी. हिमाचल का ग्रामीण परिवेश देखते ही बनता है, पारंपरिक लकड़ी से बने पहाड़ी घर, घरों के सामने सेब के पेड़, पेड़ों पर लदे शैशवावस्था में कोमल तथा छोटे छोटे सेब, हिमाचली वेशभूषा धारण किये स्थानीय जनजीवन, प्राकृतिक सौन्दर्य और हौले हौले बहती शीतल बयार हम जैसे मैदानों के रहने वालों के लिए तो एक सपना ही होता है. हम मध्य प्रदेश के निवासी प्रकृति के सौन्दर्य से लगभग अछूते ही रहते हैं, न पहाड़ों की उंचाइयां, न समुद्र की लहरें …….सो इन नज़ारों को देखकर मदहोश हो जाना लाजमी भी है. इन्हीं सपनीली दुनिया में खोए हम आगे बढ़े जा रहे थे
कुल्लू से निकलने के कुछ एक घंटे के बाद आखिर वो स्थान आ ही गया जहाँ से आगे वाहन के लिए रास्ता नहीं था. ड्राइवर ने गाड़ी वहीं पार्क की और हमने बताया की हमें यहाँ से पैदल ही जाना है, लौटने पर गाड़ी यहीं खड़ी मिलेगी. हमारे साथ हम दो परिवारों के अलावा और भी कई लोग थे जिनमें से कई सारे तो हमारे कैंप के ही थे. सुबह के करीब साढ़े दस बजे थे और हमने बिजली महादेव की अपनी पैदल यात्रा प्रारंभ कर दी. रास्ता उबड़ खाबड़ था तथा कई बार पत्थरों पर चढकर चलना होता था लेकिन चूंकि यह सफर की शुरुआत ही थी और हम सभी जोश उमंग और उत्साह से लबरेज थे. साथ में कुछ जरूरी सामान भी था जैसे खाना, पानी वगैरह. जैसे जैसे हम आगे बढ़ते जा रहे थे चढ़ाई और उंची होती जा रही थी. कुछ दस मिनट चलने के बाद ही थकान महसूस होने लगी और अब हम थोड़ी थोड़ी देर चलने के बाद बैठने लगे थे.
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थोड़ा सा विश्राम
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पेड़ों पर सेब लगाना शुरू ही हुए थे …..
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रास्ते में एक हिमाचली गांव
रास्ता बहुत कठिन था इस बात का अब हमें एहसास हो चला था, लेकिन गनीमत यह थी की पूरे रास्ते भर हर थोड़ी दूरी के बाद छोटी छोटी दुकाने मिल रहीं थी जो की स्थानीय निवासियों ने खोल रखी थी. यात्रियों के लिए इस दुर्गम रास्ते पर ये दुकानें बहुत सुकून दायक थी. इन दुकानों पर खाने पीने के सामान के अलावा ठंडे पानी की बोतलें तथा शीतल पेय उपलब्ध थे.
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थकान पर हावी मंज़िल पर पहुंचने का जज़्बा
धीरे धीरे सुहावना मौसम बदल रहा था और उसकी जगह तीखी धूप और गर्मी ने ले ली थी. एक तो खड़ी चढ़ाई का पैदल मार्ग और उपर से धूप तथा गर्मी…यह यात्रा जो जैसे यात्रियों के सब्र का इम्तिहान लेने पर तुली थी. मेरी तो हालत खराब हो रही थी, अब तो हर दस मिनट चलने के बाद पानी पीने तथा बैठने को मन कर रहा था, और बैठना भी क्या मैं तो अब मौका देखते ही निढाल होकर लेट जाता था, लेकिन बच्चों के मुस्कुराते चेहरे फिर उठकर चलने के लिए प्रेरित कर देते थे.
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थक कर चूर……
नीचे चित्र में आप जो घोड़े देख रहे हैं, इस तरह के घोड़ों के झुण्ड कई बार रास्ते में मिले जिन्हें देखकर लगता था की काश ये चाहे जितने पैसे ले ले और हमें बिजली महादेव तक छोड़ दे. रास्ते में दुकानों पर रुक रुक कर कभी पानी तो कभी माज़ा, मिरिन्डा पीकर तथा कुछ देर विश्राम करके हम लोग फिर अपनी मंज़िल की ओर बढ़ चलते थे. ना कहीं कोई साईन बोर्ड ना ही कोई माइल स्टोन ……बस अंधकार में चले जा रहे थे क्योंकि दूरी का कोई अंदाज़ा ही नहीं था. थकान के मारे दम निकल रहा था उस पर कविता हर दो मिनट में फोटो खींचने का कहती तो मेरा दिमाग खराब हो जाता था, एक दो बार तो मैं चिढ भी गया लेकिन उसने इसके पीछे जो तर्क दिया उसे मैने जीवन भर के लिए गाँठ बाँध कर रख लिया, उसने कहा की हम कल यहाँ से चले जाएंगे और हमारे साथ क्या जाएगा? बस कुछ यादें और आँखों में बसे कुछ दृश्य जो कुछ सालों में धूमिल हो जाएंगे, ये तस्वीरें जो हम कैमरे में कैद करते हैं यही जमा पूँजी के रूप में हमारे साथ हमेशा रहती है और हम जब चाहें इन तस्वीरों को देखकर अपनी यादों को ताज़ा कर सकते है.  एक मत यह भी है की तस्वीरें खींचने के चक्कर में हम इन दृश्यों का प्रत्यक्ष में सम्पूर्ण आनंद नहीं उठा पाते है. आपका क्या मानना है अपनी टिप्पणी के माध्यम से जरूर बताएं.
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बिजली महादेव की कठिन राह
आखिर चलते चलते हमें लगभग दो घंटे हो गए और अब मेरे सब्र का बाँध टूट चुका था और मैं एक जगह थक कर लेट गया, तभी हमारे कैंप का एक ग्रुप हमें उपर की ओर आता हुआ दिखाई दिया. इस ग्रुप में करीब पंद्रह लोग थे कुछ पुरुष तथा कुछ महिलाएं और सभी वृद्ध थे, बात करने पर पता चला की वे सब महाराष्ट्र के अकोला तथा नागपुर से आए थे तथा स्टेट बैंक के सेवानिवृत्त अधिकारी थे, सभी की उम्र 65 से उपर थे, उनके जोश और जज़्बे को देखकर मैने अपने आप को धिक्कारा ….और उठकर चल पड़ा. दुकान वालों से पूछते तो वो बताते की बस आधे घंटे का और रास्ता है, लेकिन ये आधा घंटा एक घंटे में भी पूरा नहीं होता था. कुछ दूर  साथ चलने के बाद हमारे साथ वाला गुजराती परिवार भी हमसे बिछड़ गया, बस मौसाजी हमारे साथ रह गए, देखिये नीचे कैसे असमंजस में खड़े हैं……
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रास्ते में एक दुकान
इसी तरह थकते थकाते, रोते गाते हमें महसूस हुआ की अब हमारी मंज़िल दूर नहीं है. और कुछ देर में ही चढ़ाई खत्म हो गई और सामने एक लम्बा चौड़ा घास का मैदान था, शायद इसे ही बुग्‍याल कहा जाता है. इस मैदान के आते ही सामने हमें बिजली महादेव का बोर्ड दिखाई दिया, जिसे देख कर हमारी सारी थकान काफूर हो गई, मन में सुकून का संचार हुआ तथा पैरों में उर्जा पैदा हो गई. जैसे भयानक काली अंधेरी रात के बाद सूरज दिखाई देता है वैसे ही हमें इस जबरदस्त थका देने वाली पद यात्रा के बाद घास के मैदान पर चढ़ने पर जो सुन्दर नज़ारा दिखाई दिया उसे शब्दों में बयान कर पाना कठिन है. चारों ओर दूर दूर तक बर्फ से ढंके पर्वत, देवदार के अनगिनत पेड़, उपर नीला आकाश और रूई के फाहों की तरह सफेद बादल, हल्की हल्की ठंडी हवा के झोंके, नीचे लम्बा चौड़ा घास का मैदान ….अद्भुत दृश्य.
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आखिर पहुंच ही गए बिजली महादेव ….
शिवम को अब भूख लग आई थी सो हमने पास ही स्थित एक झोपड़ीनूमा रेस्टोरेन्ट “बिजलेश्वर कैफ़े” के शानदार फर्नीचर (यकीन ना हो तो उपर चित्र में कैफ़े तथा फर्नीचर दोनों देख लीजिये) पर शान से बैठकर मैगी का ओर्डर दिया. हम लोगों ने सुबह लगभग दस बजे चलना शुरू किया था और जब पहुंचे तब साढ़े बारह बज रहे थे यानी हमें चढ़ाई में दो से ढाई घंटे लगे.
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बिजली महादेव शिखर
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क्या यहाँ भी शब्दों की आवश्यकता है?
कुछ देर थकान मिटाने तथा प्राकृतिक सुंदरता का आनंद उठाने के बाद हम मंदिर कि ओर चल दिए. आज की इस पोस्ट को यहीं विराम देता हुं. आगे की कहानी अगली तथा अंतिम कड़ी में जल्द ही आप लोगों के सेवा में पेश करुंगा, तब तक के लिए शुभ घुमक्कड़ी….

11 comments:

  1. बहुत ही बढि़या तरीके से आपने यात्रा वर्णन किया है। अत्‍यंत रोचक ।

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  3. बहुत कठिन यात्रा है । पैदल और वो भी पहाड़ पर मेरे बस का नहीं हऐ ।हमको भी ड्रायवर ने बताया था पर पैदल चढाई के कारण हम नहीं गए। और मुकेश कविता का कहना सही है फोटु हमारी यात्रा की यादगार है उसको हम साजो कर रखे तो कभी भी वो पल ताजा कर सकते है। मैँ खुद कई फोटू खिंचवाती हूँ ।आज भी शिमला कुल्लू मनाली के फोटु दिल को सकून देते है। तुम्हारे लिखने का अंदाज़ बहुत सरल है ।अच्छा लगता है।

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