Thursday, 9 August 2012

Indore Tour- 3 (By Kavita Bhalse)

वैसे तो आए दिन इंदौर किसी न किसी काम से आना जाना लगा ही रहता है लेकिन अपना ही शहर होने की वजह से हमने कभी भी इसे पर्यटन या घुमक्कड़ी की दृष्टि से नहीं देखा, लेकिन अब इंदौर को अपने घुमक्कड़ साथियों के समक्ष प्रस्तुत करने का विचार मन में आने के बाद पिछली बार हम समय निकल कर विशेष रूप से इंदौर घुमने के विचार से आये थे और उसे मैं अपनी पिछली दो पोस्ट्स में आपलोगों को दिखा ही चुकी हूँ.

A glimpse of Indore city



Indore………..

Central Mall Indore……..

M.P. High Court Indore bench…
पहली बार इंदौर को एक पर्यटक की नज़र से देखना और तस्वीरें लेना हमारे लिए एकदम नया अनुभव था. लेकिन जो कुछ भी हो हमें अपने शहर में घुमक्कड़ी करने में बड़ा मज़ा आया.
अभी कुछ दिनों पहले की ही बात है हमें अपने अध्यात्मिक गुरु दंडीस्वामी श्री मोहनानंद सरस्वती जी से भेंट करने के लिए उज्जैन जाना था. उज्जैन जाना और गुरूजी से मिलकर आना कुछ पांच छः घंटे के काम था तो हमने सोचा की क्यों न थोडा समय बचाकर एक बार फिर इंदौर के कुछ अन्य दर्शनीय स्थलों की सैर की जाए, और बस हमारा प्लान बन गया.

Our Spark………on the way to Indore
इधर बहुत दिनों से सुनने में आ रहा था की इंदौर में वैष्णो धाम नाम से एक नया मंदिर बना है जो  की जम्मू के वैष्णो देवी मंदिर की प्रतिकृति है तथा बहुत ही ख़ूबसूरत है, एकदम वैष्णो देवी मंदिर की ही तरह इस मंदिर के लिए यहाँ कृत्रिम गुफा बनायीं गई हैं आदि आदि………हमें अब तक वैष्णो देवी जाने का सौभाग्य तो प्राप्त नहीं हुआ है, तो हम बहुत दिनों से सोच रहे थे की इंदौर की वैष्णो देवी के मंदिर के ही दर्शन कर लिए जाएँ.
अब यहाँ संयोग ये हुआ की हमारे एक परिचित पंडित जी हैं जिन्होंने हमें गुरु जी से दीक्षा दिलवाई थी और इस तरह से वे हमारे गुरु भाई हुए, अब चूँकि हमें गुरूजी से मिलने उज्जैन जाना था वो भी अपनी कार से, तो हमने सोचा की क्यों न पंडित जी से पूछ लिया जाए शायद वे भी हमारे साथ गुरूजी से मिलने चल दें, तो मुकेश ने पंडित जी को फ़ोन लगाया और जाने के लिए पूछा और वे हमारे साथ जाने को राजी हो गए. जब हमने उनसे पूछा की हम उन्हें लेने के लिए कहाँ आयें तो उन्होंने हमें जानकारी दी की आजकल वे इंदौर में नए बने वैष्णो देवी मंदिर के मुख्य पुरोहित हैं तथा मंदिर केम्पस में ही रहते हैं, तो हमारी ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा.
बहुत दिनों से इस मंदिर के दर्शनों के लिए सोच रहे थे और आज इतना अच्छा संयोग बन गया तो हमने सोचा की क्यों न सबसे पहले पंडित जी को मंदिर से ले लिया जाए इस तरह से मंदिर के दर्शन भी हो जायेंगे. बस फिर क्या था हमने कुछ लोगों से मंदिर के पते की जानकारी लेकर अपनी गाड़ी उस ओर घुमा दी.
इस मंदिर के बारे में ज्यादा कुछ जानकारी तो थी नहीं, बस इतना मालुम था की यह मंदिर वैष्णो देवी के किसी सिक्ख भक्त ने करोड़ों रुपयों की लागत से बनवाया है. हमने मंदिर पहुंचकर पार्किंग स्थल पर अपनी गाड़ी खड़ी कर दी और कुछ कदम पैदल चलकर मंदिर के करीब पहुंचे. जब हमने पहली बार मंदिर को बाहर से देखा तो हम सभी इस मंदिर की बाहरी सुन्दरता देखकर ही विस्मित हो गए. बड़े ही सुन्दर एवं अद्भुत तरीके से बनाया गया है यह मंदिर और इसकी बाहरी तथा आतंरिक सुन्दरता की वजह से इसकी लोकप्रियता इस क्षेत्र में तेजी से बढ़ रही है.

Prasad Counter – Vaishno Devi Mandir
सबसे पहले तो हमने मंदिर के सिक्योरिटी गार्ड से पंडित जी के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया की वे हमें गर्भगृह में ही मिल जायेंगे. और बस हमने मंदिर के कोने पर ही बने प्रसाद विक्रय केंद्र से प्रसाद ख़रीदा और मंदिर में प्रवेश कर गए. जैसे ही हमने मंदिर में प्रवेश किया तो हमने लगा……..अरे ये तो हम साक्षात् माता वैष्णो देवी के दरबार में पहुँच गए हैं. हुबहू वैष्णो देवी मंदिर जैसा, पत्थरों तथा कृत्रिम चट्टानों से गुफा बनाकर करोड़ों की लगत से बनाए गए इस मंदिर को देखकर हमारी आँखें खुली की खुली रह गईं. हम तो ख़ुशी के मारे फुले नहीं समां रहे थे की हम बिना किसी जानकारी के इतने सुन्दर मंदिर में पहुँच गए.

First sight on Vaishno Devi Temple
जैसे जैसे हम मंदिर में आगे बढ़ते जा रहे थे आश्चर्य एवं विस्मय से हमारे रोंगटे खड़े हो रहे थे. बिलकुल किसी प्राकृतिक गुफा की तरह गोल मोल, टेढ़े मेढ़े, उबड़ खाबड़ घुमावदार रास्ते, घुप्प अँधेरा, कृत्रिम जंगली जानवर, कृत्रिम जंगली पेड़ पौधे और कई जगह तो रास्ते में गुफा इतनी संकरी की पूरी तरह से बैठकर या लेट कर ही निकला जा सकता था.
गुफा के रास्ते में एक दो जगह गहरी खाइयाँ, तथा झरने भी बनाये गए हैं………………घोर आश्चर्य, शहर के बीचोंबीच स्थित इस आश्चर्यजनक मंदिर में गुफा पार करने के दौरान करीब पंद्रह बीस मिनट के लिए आप किसी दूसरी ही दुनिया में पहुँच जाते हैं. इस आश्चर्यजनक गुफानुमा रास्ते को पार करने के बाद थोड़ी सी रौशनी दिखाई देती है तथा कुछ आवाजें सुनाई देती हैं, और फिर कुछ ही पलों में हम पहुँच जाते हैं गर्भगृह में जहाँ बिलकुल वैष्णोदेवी मंदिर की तर्ज़ पर माता जी तीन पाषाण की पिंडियों के रूप में विराजित हैं. ये तीनों पिंडियाँ वैष्णोदेवी मंदिर कटरा से यहाँ लाई गई हैं.

Vaishno Devi Temple
और सोने पे सुहागा वाली बात यह थी की चूँकि हम इस मंदिर के मुख्य पुजारी के परिचित थे अतः हमने मंदिर में विशेष महत्त्व तथा सम्मान मिल रहा था. गर्भगृह में सबसे पहले माता के दर्शन करने के बाद हम पुजारी जी से मिले, तो उन्होंने कहा की आप लोग इत्मीनान से मंदिर के दर्शन कर लो तब तक मैं भी चलने के लिए तैयार होता हूँ.
इस बड़े से मंदिर परिसर में माता वैष्णो देवी के दर्शनों के बाद वापसी वाले रास्ते में और भी देवी देवताओं जैसे भोले बाबा, गणेश जी, दुर्गा माता, साईं बाबा अदि के भी मंदिर हैं. ये सब देखते देखते हम इतना खुश हो रहे थे की मैं उस ख़ुशी का बखान शब्दों में नहीं कर सकती. कहाँ तो हम महज पुजारी जी को रिसीव करने आये थे और कहाँ हमें इस अद्भुत मदिर के दर्शन मिल गए. मंदिर के अन्दर फोटोग्राफी तथा विडियो ग्राफी की अनुमति नहीं थी, अतः हम बस बाहर से ही कुछ तस्वीरें खिंच पाए.

Vaishno Devi Temple
हम सब मदिर को ऐसे निहार रहे थे जैसे हमें कोई कुबेर का गड़ा खजाना मिल गया हो, और हमें ऐसा लग रहा था की हम एक अलग ही दुनिया में आ गए हैं, साथ ही साथ हम यह भी सोच रहे थे की हम जैसे खोजी धार्मिक घुमक्कड़ों की नज़रों से इंदौर में ही स्थित इतनी सुन्दर जगह बची कैसी रह गई. हमारा इस तरह से यहाँ अप्रत्याशित पहुंचना और चौंकना सबकुछ हमें एक स्वप्न की तरह लग रहा था. खैर कुछ ही देर में हम इस मायावी दुनिया से हकीकत की दुनिया में पहुँच गए.
कुछ देर बाद पंडित जी भी तैयार हो कर आ गए, सुबह के करीब दस बज रहे थे और बच्चों ने अब तक कुछ खाया नहीं था, मेरा तो खैर उस दिन वृत था लेकिन मुकेश, पंडित जी और बच्चों ने नाश्ता किया और अब हम उज्जैन की तरफ बढ़ गए.
शाम चार बजे के लगभग हम लोग उज्जैन से इंदौर लौट आये, पहले पंडित जी को उनके घर छोड़ा और अब भी हमारे पास बहुत वक़्त था इंदौर के  कुछ और दर्शनीय स्थलों की सैर करने के लिए सो हमने तय किया की रास्ते में ही इंदौर का प्रसिद्द कांच मंदिर पड़ता है तो सबसे पहले कांच मंदिर ही देख लिया जाए और हम पहुँच गए कांच मंदिर / शीश मंदिर, यह अद्भुत मंदिर कांच की चमत्कारिक कलाकारी का एक अति सुन्दर उदाहरण है.
यह एक जैन मंदिर है तथा इसे सर सेठ हुकुमचंद जैन ने २० वीं शताब्दी के शुरुआत में बनवाया था.यह इंदौर के इतवारिया बाज़ार क्षेत्र में स्थित है. इस मंदिर की विशेषता यह है की इसके दरवाज़े, स्तम्भ, छत एवं दीवारें यहाँ तक की फर्श भी पूरी तरह से कांच के अलग अलग आकार के टुकड़ों से जड़ी हुई हैं. यह शहर के कुछ मुख्य आकर्षणों में से एक है. इस मंदिर में सुन्दर चित्रकारी भी की हुई है जो जैन धर्म के प्राचीन ग्रंथों की कहानियों को दर्शाते हैं. इस मंदिर में मुख्य देवता के रूप में भगवान् महावीर स्वामी विद्यमान हैं. मंदिर में अन्दर की ओर फोटोग्राफी की अनुमति नहीं थी, लेकिन हम कहाँ मानने वाले थे सिक्योरिटी गार्ड से नज़र बचा कर एक दो क्लिक कर ही दिए और आज हम पर भगवान भी मेहरबान थे, उसे पता भी नहीं चला.

Outer View of Kaanch Mandir

Entrance of Kaanch Mandir

Mahaveer Swamy in Kaanch Temple

Kaanch Mandir Inside View

Notice Board outside temple
कुछ देर मंदिर की सुन्दरता का अवलोकन करने के बाद हम अपने अगले पड़ाव यानी खजराना के गणेश मंदिर की ओर चल दिए, लेकिन अब हमें तथा बच्चों को भूख सताने लगी थी अतः हमने सोचा की पहले कुछ खा लिया जाए. खाना खाने का हमारा मन नहीं था, हम सोच रहे थे की खाना खाने के बजाय थोडा हेवी नाश्ता कर लिया जाया और इसके लिए इस समय इंदौर में छप्पन दूकान से बढ़िया जगह हो ही नहीं सकती, और हमने अपनी स्पार्क को छप्पन दुकान चलने के लिए आदेश दिया.
अगर आप को खाने का शौक है और आप इंदौर में हैं तो एक बार छप्पन दूकान जरुर जाइए, और फिर आप यहाँ हर बार जायेंगे ये मेरा वादा है. छप्पन दूकान, 56 दुकानों की एक श्रंखला है जो की इंदौर की एक विरासत है, सारी की सारी छप्पन दुकानें खाने की एक से बढ़कर एक चीजों से भरी हुईं. यहाँ की विशेषता है अलग अलग तरह की चाट, और यहाँ ज्यादातर दुकानें चाट कौर्नर्स की ही हैं.
चाट के अलावा यहाँ पिज्जा, हॉट डोग, चाइनीज़ जोइंट्स भी हैं. कुछ प्रसिद्द दुकानें जो छप्पन दूकान की शान हैं – विजय चाट हाउस, जोनी हॉट डॉग, एवर फ्रेश बेकर्स, पुष्पक पिज्जा हाउस, गणगौर तथा अग्रवाल स्वीट्स. कहा जाता है की इंदौर, खाने के शौकीनों के लिए स्वर्ग है. छप्पन दूकान से चाट तथा नुडल्स खाने के बाद हम खजराना मंदिर की ओर चल दिए.

Chhappan Dukaan

Jonny Hot Dog………..Famous in Indore

Madhuram Sweets……..One more famous shop in Indore.

Indore ka Zaayka.
इंदौर तथा इंदौर के आसपास के कस्बों के लोगों की इंदौर के खजराना गणेश मंदिर में असीम श्रद्धा है. यह मंदिर इंदौर की शासिका देवी अहिल्या बाई होलकर के द्वारा सन 1875 में बनवाया गया है. इंदौर के धर्मप्रेमी हिन्दुओं के लिए यह मंदिर बहुत महत्वपूर्ण है. हर बुधवार तथा रविवार को इस मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ होती है.
मंदिर के बाहर लगी पूजन सामग्री की सैकड़ों दुकानों में से एक से प्रसाद के रूप में मोतीचूर के लड्डुओं का एक पेकेट लेकर हम चल दिए भगवान् के दर्शनों को, आज हमारी किस्मत अच्छी थी क्योंकि भीड़ अपेक्षाकृत कम थी और करीब आधे घंटे के इंतज़ार के बाद हमें गणेश जी के दर्शन हो गए. फोटोग्राफी के मामले यहाँ भी बाकी जगहों की तरह अड़ियल रवैया ही था तथा हमने मंदिर के अन्दर फोटो नहीं निकलने दिए गए. और हम यहाँ चोरी से फोटो खींचने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाए क्योंकि जगह जगह पर गार्ड्स खड़े थे.

Shri Khazrana Ganesh Temple

Khazrana Ganesh Temple (Photo Courtesy-Google.com)

Jai Khazrana Ganesh (Photo Courtesy – Google.com)
खजराना गणेश मंदिर के दर्शनों के बाद अब हमारा आज के लिए अगला एवं अंतिम पड़ाव था लाल बाग़ पेलेस, सो बिना वक़्त गंवाए अब हम चल पड़े थे लाल बाग़ पेलेस की ओर.
लालबाग पेलेस - इंदौर के होलकर राजवंश की एक महानतम विरासत के रूप में अपने गौरवशाली अतीत की गाथा सुनाता यह स्मारक होलकर राजवंश के वैभव, पसंद एवं जीवन शैली का प्रतिबिम्ब है. इंदौर के लालबाग पेलेस की शान कुछ और ही है. खान नदी के किनारे पर 28 एकड़ में बने राजघराने का यह लालबाग महल बाहर से तो साधारण दिखाई देता है परन्तु भीतर से इसकी सजावट देखते ही बनती है और पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है.
इसका निर्माण सन 1886  में महाराजा तुकोजी राव होलकर द्वितीय के शासनकाल में प्रारंभ हुआ और महाराजा तुकोजीराव तृतीय के शासनकाल में संपन्न हुआ. इसका निर्माण तीन चरणों में किया गया है. इस महल का सबसे नीचे का ताल प्रवेश कक्ष है जिसका फर्श संगमरमर का बना हुआ है. यह एतिहासिक शिल्पकृति का एक उत्कृष्ट नमूना है.
इस महल की सबसे बड़ी खासियत है इसका प्रवेश द्वार, यह द्वार इंग्लैंड के  बर्मिंघम पेलेस के मुख्य द्वार की हुबहू प्रतिकृति है जिसे जहाज के रास्ते मुंबई तथा वहां से सड़क मार्ग से इंदौर लाया गया. यह दरवाज़ा बीड़ धातु का बना हुआ है. पुरे देश में इस दरवाज़े की मरम्मत नहीं हो सकती, इसे मरम्मत के लिए इंग्लैंड ही ले जाना पड़ता है. इस महल के दरवाज़ों पर राजघराने की मोहर लगी है. बाल रूम का लकड़ी का फ्लोर स्प्रिंग का बना है जो उछलता है. महल की रसोई से नदी का किनारा दिखाई देता है. रसोई से एक रास्ता भूमिगत सुरंग में भी खुलता है.

Laal Baag Palace entrance

Lal Baag Palace

Lal Baag Palace (Courtesy- www.myindorecity.com)
सिंहासन कक्ष में वर्षों तक बैठकें तथा ख़ास कार्यक्रम हुआ करते थे. 1978 तक  यह राज निवास रहा तथा तुकोजीराव तृतीय इस महल के अंतिम निवासी थे. यह महल अपने साथ में आज भी होलकर राज्य की शान और शाही जीवन शैली की अमिट छाप लिए हुए है और अपने भीतर होलकर राज्य का स्वर्णीम इतिहास समेटे हुए है. यहाँ महल के भीतर फोटो लेना तथा विडिओग्राफी करना सख्त मना है.
यहाँ आप सुबह दस बजे से शाम पांच बजे तक प्रवेश कर सकते है. महल के कमरों के सजावट देखते ही बनती है, कमरों की दीवारों और छत पर सुन्दर कलाकृतियाँ दिखाई देती हैं. यहाँ पर कारीगरी में बेल्जियम के कांच, पर्सियन कालीन, महंगे और ख़ूबसूरत झाड फानूस, और इटालियन संगमरमर का ख़ूबसूरत प्रयोग किया गया है. लाल बाग पेलेस के इस खुशनुमा एहसास के बाद अब हम करीब साढ़े छः बजे यहाँ से निकल आए.

Hall of Laal Baag Palace
अब तक हमें इंदौर में घुमक्कड़ी करते हुए शाम हो गई थी, इंदौर के कुछ और काम निबटाने के बाद करीब साढ़े सात बजे हम लोग वापस अपने घर की ओर मुड़ गए. धार, झाबुआ, गुजरात एवं राजस्थान की ओर जानेवाली बसों का बस अड्डा गंगवाल बस स्टेंड हमारे लिए इंदौर का आखरी पड़ाव होता है, क्योंकि यह इस ओर इंदौर का आखिरी छोर है. यहाँ बस स्टेंड पर नाश्ते वगैरह की अच्छी व्यवस्था है, हमने सोचा की घर पर जाकर तो कुछ खाना वगैरह बनाना नहीं है अतः थोडा कुछ और खा लिया जाए ताकि बच्चे बाद में परेशान न करें तथा हमें भी फिर से भूख न सताए.
एक दर्द भरी दास्ताँ : 
बस स्टेंड परिसर से नाश्ता करने के बाद हम अपनी कार की ओर चल दिए. अब तक पूरी तरह से अँधेरा हो चूका था, जैसे ही हम कार के करीब पहुंचे हमने कुछ अलग ही दृश्य दिखाई दिया. हमारी कार से बहुत थोड़ी सी दुरी पर मजदूर से दिखाई देने वाले दो आदिवासी व्यक्ति तीन पत्थरों पर अस्थाई चूल्हा बना कर उसमें आग लगाकर एक पतिलिनुमा बर्तन में कुछ पकाने की कोशिश कर रहे थे. दृश्य कुछ ऐसा था की अपनी कार में बैठने के बाद भी हमारा मन आगे बढ़ने को नहीं हुआ और हम सभी गाडी के पिछले कांच से स्तब्ध होकर यह सब देखने लगे.
वे लोग चूल्हे में लकड़ी के स्थान पर फटे पुराने कपडे, टायर, प्लास्टिक की थैलियाँ, कागज़ आदि डालकर चूल्हा जलाने की कोशिश कर रहे थे. अब इन सब चीजों से चूल्हा थोड़ी देर के लिए जल जाता लेकिन कुछ ही देर बाद फिर बुझ जाता था, चूँकि वे बस स्टेंड के करीब सड़क किनारे थे अतः वहां लकड़ी मिलने का तो सवाल ही नहीं उठता था. एक विशेष बात यह थी की वे दोनों ग्रामीण मजदूर थे, उनके हाव भाव से स्पष्ट दिखाई दे रहा था की वे भूख से व्याकुल हैं. वे नशे में धुत्त थे और उन्हें इतना भी होश नहीं था की वे क्या कर रहे हैं.
उनके हावभाव तथा चूल्हे की स्थिति देखकर लग रहा था की खाना पकने से तो रहा, जो कुछ भी अधपका पतीली में था उसे वे जल्द बाजी में एक एल्युमिनियम की थाली में निकाल कर ऐसे खा रहे थे जैसे जन्मों के भूखे हों. यह द्रश्य देखकर मुझे तो उबकाई सी आने लगी, लेकिन मुकेश किसी रिपोर्टर की भाँती उनकी हर एक गतिविधि को बहुत बारीकी से देख रहे थे. बच्चे अब तक सो गए थे, मेरे कई बार आग्रह करने के बाद भी मुकेश गाडी बढाने को तैयार नहीं थे, उन्हें न जाने कौन से तिलिस्म ने मंत्रमुग्ध कर दिया था की वे इस द्रश्य से नज़रें ही नहीं हटा रहे थे, उन्होंने मुझसे पांच मिनट और रुकने की रिक्वेस्ट की और फिर से उन मजदूरों के क्रियाकलाप की ओर नज़रें गड़ा कर देखने लगे.
हाँ तो मैं बता रही थी की उन्होंने पतीली में से कुछ अधपका सा निकाला जिसमें से धुंआ निकल रहा था. क्या आप जानना चाहते हैं की उन्होंने थाली में क्या परोसा? तो बताती हूँ, वे जो खा रहे थे वह अधपका मांस था. यह देखकर हमारे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई, और एक अनजाना सा दर्द महसूस हुआ, ये लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं? शराब के नशे की वजह से या गरीबी की वजह से? मांस भी न जाने किस चीज़ का था.
वे रबर की तरह कच्ची बोटियों को अपने दांतों से खिंच कर तोड़ने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन हर बार नाकामयाबी ही उनके हाथ लग रही थी. चूँकि बोटियाँ बड़ी बड़ी थी अतः वे उन्हें ऐसे ही निगल भी नहीं सकते थे. पतीली में से  निकाली गई हर एक बोटी के साथ अपनी पूरी ताकत आजमाने के बाद तथा असफल होने के बाद थक हार कर वे सर पर हाथ धर कर बैठ गए, उनके पल्ले अब तक कुछ नहीं पड़ा था. चूल्हे में से अब सिर्फ हल्का सा धुंआ ही निकल रहा था, आग पहले भी नहीं थी और अब भी नहीं. अत्याधीक भूख के भाव उनके चेहरे तथा हावभाव से स्पष्ट दिखाई दे रहे थे.
उनकी यह स्थिति मुकेश से देखी नहीं गई, वे मुझसे कुछ कहे बिना ही कार से उतरे और उन अभागे लोगो के पास पहुंचे, अपनी जेब से सौ का नोट निकाला और उनकी ओर बढ़ा दिया. वे दोनों यह देखकर टकटकी लगाये मुकेश के चेहरे की ओर देख रहे थे, माजरा उनकी कुछ समझ में नहीं आया. उनकी स्थिति को समझते हुए मुकेश ने उनसे कहा की ये पैसे रखो और सामने वाले भोजनालय में जाकर खाना खा लो.
उन्होंने कृतज्ञता से परिपूर्ण एक नज़र मुकेश पर डाली और चुपचाप तेज क़दमों से भोजनालय की ओर चल दिए…..
मैं चाहती थी की मुकेश उन्हें कुछ खाने का सामान लाकर अपने हाथों से ही दे दे क्योंकि मुझे लग रहा था हमारे दिए हुए पैसों से कहीं वे फिर से शराब न पी लें, लेकिन समय की कमी की वजह से हम ऐसा नहीं कर पाए और उन्हें उनके हाल पर छोड़कर इस विश्वास के साथ की हमारा पैसा सही उपयोग में ही लाया जाएगा हम गाडी स्टार्ट कर के अपने घर की  ओर चल दिए……….
अब इस कड़ी को यहीं समाप्त करती हूँ और इस श्रंखला से एक लम्बा विराम लेती हूँ, लेकिन यह श्रंखला अभी तब तक समाप्त नहीं होगी जब तक मैं आपलोगों को इंदौर के सारे दर्शनीय स्थल न दिखा दूँ.

Indore Tour -2 (By Kavita Bhalse)

इंदौर दर्शन की इस श्रंखला की पिछली कड़ी में मैंने आपलोगों का इंदौर शहर से एक छोटा सा परिचय करवाया था. ट्रेज़र आईलेंड मॉल में कुछ पांच छः घंटे बिताने, कुछ शॉपिंग करने एवं फिल्म देखने के बाद अब हमने रुख किया इंदौर की सबसे बड़ी पहचान यानी राजवाड़ा की ओर.

राजवाड़ा को इंदौर की आन बान और शान कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा. इंदौर शहर के इतिहास को अपनी स्मृति में संजोये करीब ढाई सौ सालों से एक इतिहास पुरुष की तरह खड़ा राजवाड़ा, इंदौर के गौरवशाली इतिहास का परिचायक है.
राजवाड़ा को इंदौर का शॉपिंग हब कहा जा सकता है, इसके चारों तरफ हर तरह की खरीददारी के लिए सैकड़ों दुकाने फैली हुई हैं. राजवाड़ा से ही लगी हैं इंदौर की एक और ऐतिहासिक विरासत कृष्णपुरा की छत्रियां. वैसे तो हर बार जब भी इंदौर आते हैं तो बस जल्दी जल्दी अपना काम निबटा कर घर लौट जाते हैं और इंदौर के दर्शनीय स्थलों को देखने के लिए कभी समय ही नहीं निकाल पाते हैं अतः आज हम सोचकर ही आये थे की इंदौर के कुछ दर्शनीय स्थलों की सैर आज कर ही ली जाए अतः सबसे पहले हम पहुंचे कृष्णपुरा की छत्रियों पर और वहां कुछ समय बिताया, आइये आपलोगों को भी बताती हूँ इन स्मारकों के बारे में.

कृष्णपुरा की छत्रियां (Cenotaphs), इंदौर के होलकर राजवंश के पूर्व शासकों की समाधियाँ हैं. ये छत्रियां इंदौर की खान नदी के किनारे पर निर्मित हैं तथा वास्तुकला की दृष्टि से एक उत्कृष्ट निर्माण हैं. सैकड़ों वर्षों से विद्यमान ये छत्रियां होलकर मराठा राजवंश के गौरवशाली ईतिहास की द्यौतक हैं. मराठा वास्तुकला शैली में निर्मित ये छत्रियां पर्यटकों को बहुत लुभाती हैं तथा आमंत्रित करती हैं. ये छत्रियां मालवा की शासिका महारानी कृष्णाबाई, महाराजा तुकोजीराव तथा महाराजा शिवाजीराव की समाधियों पर निर्मित हैं तथा इन्हीं शासकों को समर्पित हैं. इन छत्रियों में सभाग्रह तथा गर्भगृह हैं, गर्भगृह में इन शासकों की मूर्तियों के साथ अब हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियाँ भी स्थापित कर दी गई हैं.

Krishnapura Chhartis

Krishnapura Chhatris Hall (Sabhagrah)

Yours Truely………………Inside Krishnapura Chhatris.
इन छत्रियों के बारे में अधिक जानकारी के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के इस बोर्ड का चित्र लगा रही हूँ आप खुद ही पढ़ लीजिये.

Have a glance

The Krishnapura Chhatris……Another view

Krishnapura Chhatris..

Chhatris from backside
कुछ देर यहाँ बिताने तथा पास ही में स्थिक पार्किंग स्थल में कार पार्क करने के बाद हम लोग पैदल ही राजवाड़ा की ओर चल पड़े, वैसे राजवाड़ा यहाँ से पैदल दुरी पर ही स्थित है और जैसे मैंने बताया की राजवाड़ा के आसपास का बाज़ार इंदौर में शॉपिंग के लिए सबसे मशहूर जगह है अतः यहाँ भीड़ भी बहुत ज्यादा रहती है.

Market near Rajwaada
वर्षों से इंदौर तथा इसके आसपास रहने तथा अनगिनत बार राजवाड़ा के मार्केट में शॉपिंग के लिए आते रहने के बावजूद हमने आज तक कभी राजवाड़ा को एक पर्यटक की दृष्टि से नहीं देखा था, वो कहते हैं ना दीया तले अँधेरा……लेकिन आज हम घर से सोच कर ही निकले थे की आज इंदौर के कुछ हिस्से को ही सही लेकिन एक पर्यटक की नज़र से देखना है, तो बस कृष्णपुरा की छत्रियों को देखने के बाद अब हमारा अगला पड़ाव था राजवाड़ा को देखना तथा यहाँ के इतिहास  को समझना.
ऐतिहासिक इमारतों को देखना तथा इनके इतिहास को समझना हम लोगों के लिए तो रुचिकर होता है लेकिन बच्चों को ये सब उबाऊ ही लगता है, खासकर शिवम् की उम्र के बच्चों को. जैसे ही हम छत्रियों के इन स्मारकों को देखने के बाद यहाँ से निकले शिवम् ने चैन की सांस ली. बहुत देर से महाशय के पेट में कुछ गया नहीं था अतः जैसे ही सामने एक नारियल पानी वाला दिखाई दिया, साहब दौड़ पड़े उस तरफ और उसके पीछे पीछे हम भी चल दिए. नारियल पानी उदरस्थ करने के बाद अब छोटे साहब थोडा कम्फर्टेबल महसूस कर रहे थे.

Nariyal Paaniiiiiiiiiiiiiii

Market near Rajwada

The rain soaked Indore
पहले कभी राजवाड़ा को अन्दर से देखना निःशुल्क हुआ करता था लेकिन अब यहाँ ए.एस.आई. के द्वारा  5/- प्रवेश शुल्क लगा दिया गया है, और फोटोग्राफी या विडियो ग्राफी करनी हो तो बीस रुपये अलग से. हमें चूँकि यहाँ तस्वीरें खींचनी थीं अतः हमने फोटोग्राफी का चार्ज भी जमा करवा दिया, मुकेश का कहना था की शायद हमने इससे पहले कभी किसी पर्यटन स्थल पर फोटोग्राफी के लिए शुल्क नहीं जमा करवाया अतः आज हम बिना किसी के डर के खुले हाथों से और मस्ती में खूब फ़ोटोज़ खिंच रहे थे.

Rajwada from inside the front facing garden with the idol of Devi Ahilyabai

Rajwada ………………….A closer view.
जिस तरह से चारमिनार हैदराबाद की, गेटवे ऑफ़ इंडिया तथा ताज महल होटल मुंबई की तथा इंडिया गेट दिल्ली की पहचान हैं उसी तरह राजवाड़ा इंदौर का प्रतिनिधित्व करता है.राजवाड़ा होलकर शासकों का ऐतिहासिक महल तथा निवास स्थान था तथा इसका निर्माण सन 1747 में होलकर वंश के संस्थापक श्रीमंत मल्हार राव होलकर ने करवाया था. वे इस महल का उपयोग अपने निवास स्थान के रूप में करते थे तथा सन 1880 तक वे यहीं रहे थे.  यह विशालकाय तथा दर्शनीय सात मंजिला भवन शहर के बीचोंबीच तथा शहर के एक व्यस्ततम भाग खजूरी बाज़ार में स्थित है. इंदौर का यह भाग आजकल पुराना इंदौर (जुनी इंदौर) कहलाता है. इसके ठीक सामने एक सुंदर सा बगीचा है जिसके बिच में महारानी देवी अहिल्याबाई होलकर की प्रतिमा स्थापित है. प्रवेश द्वार की ओर से देखें तो यह भवन किसी मायावी जादूगर के निषिद्ध दुर्ग के द्वार के सामान दिखाई देता है. यह राजवाड़ा होलकर वंश के गौरव का जीता जगता उदाहरण है.

Rajwada from Inside.

A Small Museum inside Rajwada campus.
इसके  निर्माण में मराठा, मुग़ल तथा फ्रेंच वास्तुकला शैली का मिला जुला स्वरुप दिखाई देता है. राजवाड़ा के निर्माण के अधिकतर भाग में लकड़ी का उपयोग किये जाने की वजह से अपने इतिहास में यह अब तक तीन बार जल चूका है. आखरी बार यह सन 1984 में आग की लपटों की भेंट चढ़ा था जिसमें राजवाड़ा को अब तक का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था, तथा अब इसे एक गार्डन का रूप दे दिया गया था. सन 2006 में इंदौर की तत्कालीन महारानी उषादेवी होलकर ने इसका पुनर्निर्माण करवाने की योजना बनाई तथा उनके प्रयासों से सन 2007 में यह फिर से बन कर खड़ा हो गया. यह भारत का पहला ऐतिहासिक भवन है जिसका पुनर्निर्माण उसी सामग्री, उसी शैली तथा उसी पद्धति से किया गया है जिससे वह अपने वास्तविक स्वरुप में पहली बार बनाया गया था.

Have a glance
वैसे तो बारिश का मौसम था, लेकिन अभी इधर मानसून का आगमन नहीं हुआ था और आज तो सुबह से जब हम घर से निकले थे तब ऐसा कुछ लग नहीं रहा था की बारिश भी हो सकती है अतः हम बारिश से बचने के किसी भी साधन जैसे छाता या रेनकोट आदि साथ लेकर नहीं आये थे, लेकिन आज हमें यहीं राजवाड़ा के करीब के मार्केट से ये सब चीजें खरीदनी ही थीं, क्योंकि आज नहीं तो कल बारिश तो आनी ही थी अतः हमने राजवाड़ा में प्रवेश से पहले ही दोनों बच्चों के लिए रेनकोट एवं हमारे लिए छाते आदि ख़रीदे थे लेकिन हमें ये कतई पता नहीं था की आज ही इन चीजों की ज़रूरत पड़ने वाली है.
राजवाड़ा के बहार ही खड़े थे एवं प्रवेश की टिकिट खरीद रहे थे की तभी मौसम में अप्रत्याशित बदलाव होने लगे, आकाश में बादल छाने लगे एवं फिजां में ठंडी ठंडी हवाएं ऐसे चलने लगी जैसे ये मेघों का सन्देश लेकर आई हों. अचानक बूंदाबांदी शुरू हो गई और थोड़ी ही देर में तेज बारिश होने लगी. हम बारिश तथा ठण्ड से बचने के लिए इधर उधर छुपने लगे तभी हमें ख्याल आया की हमने तो अभी अभी नए छाते एवं रेनकोट ख़रीदे हैं, बस फिर क्या था आनन फानन में बैग खोला और नया छाता और रेनकोट निकाले. बड़ा अच्छा लगा की नई नई चीजों का मुहूर्त घर ले जाने से पहले ही हो गया.

Tip tip barsa paani……….

Enjoying………

Stairs to first floor.

Darbar Hall on first floor (After renovation)
कुछ देर राजवाड़ा के अन्दर भूतल पर घुमने, देखने तथा तस्वीरें लेने के बाद हम सीढियाँ चढ़ कर प्रथम तल पर पहुंचे जहां पर लम्बे चौड़े गलियारे तथा कई सारे झरोखे थे. राजवाड़ा के ठीक पीछे की तरफ इसी भवन से लगा, मल्हार राव होलकर तथा उनके परिवार का निवास स्थान था, तथा यहीं पर इसी परिसर में होलकर राजवंश के कुलदेवता मल्हारी मार्तंड का मंदिर भी है. राजवाड़ा के उपरी हिस्से का अवलोकन करने के बाद हमने उन्हीं सीढियों से निचे उतर कर पीछे की ओर स्थित प्रवेश द्वार से मुख्य महल में प्रवेश किया. इस महल को आजकल एक छोटे से संग्रहालय का रूप दे दिया गया है जहाँ इंदौर की प्रसिद्द महारानी पुण्यश्लोका देवी अहिल्याबाई होलकर के जीवन से सम्बंधित जानकारी देते विस्तृत चित्रों की एक विशाल प्रदर्शनी लगी हुई है.

The entrance of residential area of the Holkars……..The Malhari Martand.

The logo of Holkar rulars…………..Jai Malhaar

A temple on entrance

Inside the Malhari Martand.

Life of Devi Ahilyabai

Natraj….Inside Campus

Idol of Devi Ahilya bai on her original seat.

Shivalay near Malhari Martand Temple inside the Rajwada.

Paalki………….kept for demonstration

Another View
देवी अहिल्या बाई के बारे में बताये बिना इंदौर के बारे में कुछ लिखना अधुरा ही होगा. देवी अहिल्या बाई इंदौर के सारे शासकों में सबसे ज्यादा प्रसिद्द, सम्मानित तथा पूजनीय थीं, आज के आधुनिक इंदौर में भी देवी अहिल्याबाई की स्मृति स्वरुप यहाँ के अंतरराष्ट्रीय विमान तल का नाम देवी अहिल्या बाई होलकर इंटर्नेशनल एयरपोर्ट (DABHI) रखा गया है, तथा यहाँ के विश्वविद्यालय का नाम भी देवी अहिल्या विश्वविद्यालय (DAVV) इंदौर है.

Devi Ahilya Bai (Photo courtesy- Hindujagruti.com)
मैं शुरू से ही अपने जीवन का आदर्श देवी अहिल्याबाई होलकर को ही मानती हूँ. उनमें कई सारे ऐसे गुण थे जो उन्हें एक अलग पहचान देते हैं. वे एक बहुत बड़ी शिव भक्त होने के साथ ही एक कुशल शासक भी थीं. आइये जानते हैं देवी अहिल्या बाई के बारे में.
महारानी अहिल्याबाई इतिहास-प्रसिद्ध सूबेदार मल्हारराव होलकर के पुत्र खंडेराव की पत्नी थीं. जन्म इनका सन् 1725 में हुआ था और देहांत 13 अगस्त 1795 को; तिथि उस दिन भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी थ. अहिल्याबाई किसी बड़े भारी राज्य की रानी नहीं थीं, उनका कार्यक्षेत्र अपेक्षाकृत सीमित था फिर भी उन्होंने जो कुछ किया, उससे आश्चर्य होता है.
देवी अहिल्या बाई के जीवन के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक को क्लिक करें – http://en.wikipedia.org/wiki/Ahilyabai_Holkar
देवी अहिल्या बाई के द्वारा जनहित में किये गए कार्यों तथा धार्मिक कार्यों एवं मदिरों के निर्माण एवं पुनरोद्धार की संपूर्ण जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें – http://en.wikipedia.org/wiki/Ahilyabai_Holkar#Works_throughout_India
दस-बारह वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ, उनतीस वर्ष की अवस्था में विधवा हो गईं. पति का स्वभाव चंचल और उग्र था, वह सब उन्होंने सहा. फिर जब बयालीस-तैंतालीस वर्ष की थीं, पुत्र मालेराव का देहांत हो गया. जब अहिल्याबाई की आयु बासठ वर्ष के लगभग थी, उनका एकमात्र वारिस दौहित्र नत्थू चल बसा. चार वर्ष बाद दामाद यशवंतराव फणसे न रहा और इनकी पुत्री मुक्ताबाई सती हो गई. दूर के संबंधी तुकोजीराव के पुत्र मल्हारराव पर उनका स्नेह था; सोचती थीं कि आगे चलकर यही शासन, व्यवस्था, न्याय औऱ प्रजारंजन की डोर सँभालेगा; पर वह अंत-अंत तक उन्हें दुःख देता रहा.

Devi Ahilyabai
अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मंदिर बनवाए, घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, मार्ग बनवाए-सुधरवाए, भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्यक्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बनवाईं, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन हेतु की। और, आत्म-प्रतिष्ठा के झूठे मोह का त्याग करके सदा न्याय करने का प्रयत्न करती रहीं-मरते दम तक.
अपने जीवनकाल में ही इन्हें जनता ‘देवी’ समझने और कहने लगी थी. इतना बड़ा व्यक्तित्व जनता ने अपनी आँखों देखा ही कहाँ था.  जब चारों ओर गड़बड़ मची हुई थी, शासन और व्यवस्था के नाम पर घोर अत्याचार हो रहे थे, प्रजाजन-साधारण गृहस्थ, किसान मजदूर-अत्यंत हीन अवस्था में सिसक रहे थे उनका एकमात्र सहारा-धर्म-अंधविश्वासों, भय त्रासों और रूढि़यों की जकड़ में कसा जा रहा था, न्याय में न शक्ति रही थी, न विश्वास ऐसे काल की उन विकट परिस्थितियों में अहिल्याबाई ने जो कुछ किया-और बहुत किया वह चिरस्मरणीय है.  इंदौर में प्रति वर्ष भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी के दिन अहिल्योत्सव  होता चला आता है।
अहिल्याबाई के संबंध में दो प्रकार की विचारधाराएँ रही हैं एक में उनको देवी के अवतार की पदवी दी गई है, दूसरी में उनके अति उत्कृष्ट गुणों के साथ अंधविश्वासों और रूढ़ियों के प्रति श्रद्धा को भी प्रकट किया है. वह अँधेरे में प्रकाश-किरण के समान थीं, जिसे अँधेरा बार-बार ग्रसने की चेष्टा करता रहा. अपने उत्कृष्ट विचारों एवं नैतिक आचरण के चलते ही समाज में उन्हें देवी का दर्जा मिला.
राज्य की चिंता का भार और उस पर प्राणों से भी प्यारे लोगों का वियोग, इस सारे शोक-भार को अहिल्याबाई का शरीर अधिक नहीं संभाल सका और 13 अगस्त सन् 1795 को उनकी जीवन-लीला समाप्त हो गई. अहिल्याबाई के निधन के बाद तुकोजी इन्दौर की गद्दी पर बैठा.

Market outside Rajwada.
इंदौर राजवाड़ा की इस यादगार सैर के बाद शाम करीब छः बजे हम लोग इंदौर से अपने घर के लिए रवाना हो गए. आज के लिए बस इतना ही. अगली पोस्ट में आपको लेकर चलूंगी इंदौर के कुछ और दर्शनीय स्थलों की सैर पर………….आपकी अमूल्य प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी.