Saturday, 25 October 2014

हिमाचल से लौटते हुए………

पिछली पोस्ट में मैने आप लोगों को बताया था की किस तरह से हम बिजली महादेव के कठीन तथा दुर्गम रास्ते को पार करके हम अन्तत: बिजली महादेव मंदिर तक पहुंच ही गए थे, अब आगे…..
बिजली महादेव मंदिर अथवा मक्खन महादेव मंदिर संपूर्ण रूप से लकडी से र्निमित है. चार सीढियां चढ़ने के उपरांत दरवाजे से एक बडे कमरे में जाने के बाद गर्भ गृह है जहां मक्खन में लिपटे शिवलिंग के दर्शन होते हैं. मंदिर परिसर में एक लकड़ी का स्तंभ है जिसे ध्‍वजा भी कहते है, यह स्तंभ 60 फुट लंबा है जिसके विषय में बताया जाता है कि इस खम्भे पर प्रत्येक वर्ष सावन के महीने में आकाशीय बिजली गिरती है जो शिवलिंग के टुकड़े टुकड़े कर देती है, इसीलिये इस स्थान को बिजली महादेव कहा जाता है.
इस घटना के उपरांत मंदिर के पुजारी स्थानीय गांव से विशिष्ट मक्खन मंगवाते हैं जिससे शिवलिंग को फिर से उसी आकार में जोड़ दिया जाता है. अगर बिजली के प्रकोप से लकड़ी के ध्‍वजा स्तंभ को हानि होती है तो फिर संपूर्ण शास्त्रिय विधि विधान से नवीन ध्वज दंड़ की स्थापना कि जाती है. यह बिजली कभी ध्वजा पर तो कभी शिवलिंग पर गिरती है. जब पृथ्वी पर भारी संकट आन पडता है तो भगवान शंकर जी जीवों का उद्धार करने के लिये पृथ्वी पर पडे भारी संकट को अपने ऊपर बिजली प्रारूप द्वारा सहन करते हैं जिस से बिजली महादेव यहां विराजमान हैं.
बिजली महादेव मंदिर
बिजली महादेव मंदिर

बिजली महादेव की यादगार पैदल यात्रा ……..

सभी घुमक्कड साथियों को दशहरे की हार्दिक शुभकामनायें तथा आने वाली दिवाली की अग्रिम शुभकामनाएं. पिछली पोस्ट में मैने अपलोगों को हमारी रोहतांग की बर्फिली यात्रा के बारे में बताया था, और लीजिए अब आपको आगे की यात्रा पर ले चलता हूँ. आज YHAI कैम्प में हमारा चौथा और अंतिम दिन था, और अपने तय कार्यक्रम के अनुसार आज 22 मई  को हमें अपनी इस हिमाचल यात्रा के अंतिम पड़ाव यानी “बिजली महादेव” का सफर करना था. कैम्प में तीन चार दिन साथ रहने से बहुत से लोगों से परिचय हो गया था और कुछेक से आत्मीयता भी. काल रात की जबरदस्त थकान के चलते सोते समय ही निश्चय किया था की सुबह देर तक सोएंगे और देर से ही बिजली महादेव के लिए निकलेंगे सो सुबह आराम से ही उठे और नित्यकर्मों से निवृत्त होकर नाश्ता करने के लिये फुड ज़ोन की ओर चल दिए. कैम्प के कुछ लोग पिछले दिन बिजली महादेव जाकर आ चुके थे और हमें आज जाना था सो हमने उनलोगों से बात करके जानकारी ले लेना उचित समझा. सभी का कहना था की जगह तो बहुत सुन्दर है, माइंड ब्लोइंग है लेकिन रास्ता बहुत कठिन है, बल्कि कठिन के बजाए दुर्गम कहना ज्यादा सही होगा. दरअसल बिजली महादेव एक पर्वत के शिखर पर स्थित है तथा वहां तक जाने के लिए कोई साधन उपलब्ध नहीं होता, करीब दो घंटे की खड़ी चढ़ाई पैदल ही तय करनी पड़ती है, यहाँ तक की घोड़े भी उपलब्ध नहीं होते.
हिमाचल प्रदेश का खूबसूरत शहर कुल्लू ब्यास नदी के तट पर 1230 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. जो प्राचीन काल में सनातन धर्म के देवी देवताओं का स्थायी बसेरा था. कुल्लू का बिजली महादेव मंदिर अथवा मक्खन महादेव संसार का अनूठा एवं अदभुत शिव मंदिर है, यह मंदिर ब्यास नदी के किनारे मनाली से करीब 50 किलोमीटर दूर समुद्र स्तर से 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. कुल्लू से कुछ 15 किलोमीटर की दूरी पर एक गांव पड़ता है चंसारी वहां तक तो वाहन से जाने का रास्ता है लेकिन उसके बाद यात्रियों को 5 किलोमीटर पैदल ही चलना पड़ता है।
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एक स्थानीय युवक काम पर जाते हुए..

रोहतांग की कठीन राह…..बर्फीले पहाड़ और प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर सोलांग घाटी (भाग- 2)

साथियों,
पिछली कड़ी में मैं आपसे जिक्र कर रहा था की किस तरह से मुसीबतों को पार करते हुए अंततः हम लोग रहाला फाल पहुंच ही गए, और फिर सिलसिला शुरू हुआ बर्फ में खेलने का, बर्फ में फिसलने का. उम्रदराज प्रौढ़ दम्पतियों को बच्चों की तरह बर्फ से खेलते हुए देखने में जो मज़ा आ रहा था उसका वर्णन करना मुश्किल है. लगभग सभी लोग बच्चे बने हुए थे, हर कोई इन यादगार पलों को जी लेना चाहता था. हम सब भी अपनी ही मस्ती में खोए हुए थे, किसी को किसी का होश नहीं था. बच्चे अपने तरीके से बर्फ से खेल रहे थे और बड़े अपने तरीके से, मकसद सबका एक था….आनंद आनंद और आनंद.

बर्फ पर खड़े होकर भुट्टा खाने का आनंद ही कुछ और है..
बर्फ पर खड़े होकर भुट्टा खाने का आनंद ही कुछ और है.

रोहतांग की कठिन राह…..बर्फीले पहाड़ और प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर सोलांग घाटी.

दोस्तों, पिछली पोस्ट में आपने हमारी मणिकर्ण यात्रा के बारे में पढा और मुझे उम्मीद है की पोस्ट आप सबको बहुत पसंद आई होगी. चलिए आज की इस पोस्ट के जरिए आप लोगों को लिए चलता हुं रोह्तांग की ओर. रोह्तांग की ओर इसलिए कह रहा हुं क्योंकि प्रशासन की ओर से प्रतिबंध होने की वजह से हम लोग ठेठ रोह्तांग तक तो नहीं जा पाए थे लेकिन रोहतांग से थोड़ा पहले जिस जगह तक हम जा पाए थे वहां भी हमने इतना इन्जोय किया की हमें रोहतांग न जा पाने का कोई मलाल नहीं रहा.
मणिकर्ण से लौटकर कैंप में उतरे तभी ड्राइवर ने कह दिया था की कल रोह्ताँग जाना है तो सुबह जितनी जल्दी हो सके तैयार हो जाना क्योंकि यदि लेट हुए तो जाम में फंस जाएंगे और शायद शाम तक पहुंच ही नहीं पाओ. हमने पूछा जल्दी मतलब कितनी बजे, तो ड्राइवर ने कहा जल्दी मतलब चार बजे, अगर पांच बजे तक भी कैंप से निकले तो ठीक ठाक समय से पहुंच जाएंगे.
कैंप से आज ज्यादातर लोग रोहतांग ही जाने वाले थे अतः नाश्ता भी सुबह जल्दी तैयार हो गया था और दोपहर के लिये लंच पैक भी, नाश्ते में आज सेंडविच थे जो की बड़े स्वादिष्ट लग रहे थे. जल्दी जल्दी हमने नाश्ता किया और लंच पैक कर लिया, और पांच बजे कैंप के मेन गेट पर पहुंच गए जहाँ पहले से ही गाड़ी तैयार खड़ी थी. सुबह सुबह जबरदस्त ठंड लग रही थी अतः सब ने गरम कपड़े पहन लिए थे. साथी गुजराती परिवार को तैयार होकर आते आते साढ़े पांच बज गए थे और अब उजाला हो गया था.
बर्फीले सफर के लिए तैयार ...
बर्फीले सफर के लिए तैयार …

मणिकर्ण – प्रकृति की गोद में बसा एक सुरम्य तीर्थ स्थल

पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा की मनाली के दर्शनीय स्थलों की सैर करने के बाद करीब आठ बजे हम लोग कैंप में पहुंचे, इस समय रात का खाना चल ही रहा था सो हमने भी सोचा टैंट में जाने से पहले खाना खा लिया जाय, वैसे भूख हम सब को लग रही थी और कविता तो सुबह से ही भूखी थी, स्वादिष्ट खाना देखकर भूख और बढ़ गई। खाना खाने के बाद कविता तो बर्तन साफ करने चली गई, बच्चे टैंट में चले गए और मैं हमारे साथ शिमला से आई गुजराती फेमिली के साथ अगले तीन दिन की यात्रा के लिए गाड़ी की बात करने में व्यस्त हो गया।
अगले तीन दिनों के लिए हमने दोनो परिवारों के लिए शेयरिंग में नौ सीट वाली गाड़ी का सौदा ट्रेवल एजेंट से किया। तय कार्यक्रम के अंतर्गत अगले दिन सुबह हमें मणिकर्ण जाना था। आज दिनभर कैमरे से हमने फोटो खींचे थे अतः कैमरे की बैटरी खाली हो गई थी सो सबसे पहले कैमरे को चार्ज किया। भोजन कक्ष के पास ही कैंप में एक चार्जिंग पॉइंट बनाया गया था जहां कैमरे, मोबाइल आदि को चार्ज किया जा सकता था, कविता तथा बच्चे तो टैंट में जाकर सो गए और मेरी ड्यूटी लगी थी चार्जिंग पाइंट पर सो करीब एक घंटा बैठकर मैने कैमरा और दोनों मोबाइल चार्ज किए और फिर जाकर सोने की तैयारी की।
सुबह हमें मणिकर्ण के लिए जल्दी निकालना था, अतः कविता और मैं सुबह पांच बजे उठ गए और प्रसाधन की ओर चल दिए वहां हमने देखा की दो बड़े बड़े तपेलों में पानी गर्म हो रहा था नहाने के लिए, यह गर्म पानी सुबह चार बजे से उपलब्ध हो जाता था। कविता और मैनें तो नहा भी लिया लेकिन बच्चों को इतनी सुबह उठाना थोड़ा मुश्किल काम था, थोड़ी आनाकानी के बाद दोनों बच्चे भी नहा धो कर तैयार हो गए। तैयार होकर  हम सभी फूड ज़ोन में आ गए, नाश्ता तैयार था, और साथ ही दोपहर के लिए लंच भी तैयार था। नाश्ते में इडली सांभर और मीठा दलिया था जो की बहुत ही स्वादिष्ट था। इस समय सुबह के सात बज रहे थे और नाश्ता करने के बाद अब हम लोग तैयार थे, हमें साढ़े सात बजे निकालना था और उससे पहले अपने अपने लंच बॉक्सेस में लंच भी पैक करना था, उधर गाड़ी वाले का भी फोन आ गया था की वो गाड़ी लेकर खड़ा है। लाउड स्पीकर पर चाय तथा पैक्ड लंच के लिए बार बार घोषणा हो रही थी। हमने अपने साथ लाए बर्तनों में लंच पैक किया लंच में सुखी आलू की सब्जी और परांठे थे, उसे बैग में रखा और तैयार होकर गाड़ी में आकर बैठ गए। साथ वाले गुजराती परिवार के मौसा जी का काम थोड़ा ढीला था अतः उनकी वजह से थोड़ा लेट हुए और आठ बजे हम मणिकरण के लिए निकल पड़े।
पतली कूहल से आगे तथा भुंतर के करीब एक जगह थी जहाँ रोड के एक तरफ तो ब्यास नदी बह रही थी तो दूसरी तरफ अंगोरा खरगोशों के फार्म्स थे जहाँ पर अंगोरा प्रजाति के खरगोशों को पाला जाता है और उनके रूई जैसे सुन्दर सफेद एवं एकदम महीन बालों से शालें, पर्स तथा अन्‍य सामान बनाए जाते हैं। यहाँ हम लोगों ने गाड़ी रूकवाई, ब्यास नदी के किनारे राफ्टिंग हो रही थी और वहन राफ्टिंग करवाने वालों के कुछ स्टाल्स भी लगे थे, लेकिन हम लोगों को राफ्टिंग नहीं करनी थी, सो हम नदी के किनारे खड़े होकर राफ्टिंग के इस रोमांचक खेल को देखने लगे, तथा कुछ देर बाद फोटोग्राफी शुरू कर दी। कुछ देर फोटो शूट करने के बाद हम अंगोरा खरगोश फार्म्स पर आ गए तथा 10 रु. प्रति व्यक्ति का टिकट लेकर फार्म में खरगोशों को देखने पहुंचे।  कुछ समय यहाँ बिताने के बाद हम लोग अपनी गाड़ी में बैठकर अपनी मंज़िल की ओर बढ़ चले।
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अंगोरा खरगोश पालन केन्द्र में खरगोश…

हिमाचल का बेशकिमती हीरा – मनाली

दोस्तों,
इस श्रंखला की पिछली पोस्ट में मैनें आप लोगों को युथ होस्टल के बारे में जानकारी दी थी जो सभी को पसंद आई. प्रशंसा, प्रेम तथा प्रोत्साहन से ओतप्रोत प्रतिक्रियाओं के लिए आप सभी का हार्दिक धन्यवाद. चलिए आज चलते हैं मनाली की सैर पर…..
दिनांक 19.05.2014 को सुबह चार बजे के लगभग हमने युथ होस्टल के कैंप मे प्रवेश किया तथा अपने टैंट में जाकर लेट गए, सुबह सात बजे कैंप में लाउड स्पीकर पर बज रहे सुमधूर भजनों से नींद खुली तथा कुछ ही देर में पहले चाय तथा बाद में नाश्ते का अनाउंसमेंट हुआ, हम चारों चाय नहीं लेते हैं अत: कुछ देर और बिस्तर में पड़े रहे लेकिन नाश्ते के लिए तो उठना ही था सो बैग में से सभी के टुथब्रश तथा अन्य समान निकाला और वाश रुम की ओर रुख किया और फ़्रेश वगैरह होकर फ़ूड ज़ोन की ओर चल पड़े, नाश्ते में मेरे पसंदीदा पोहे और मीठी सिवईयां थीं जो की बहुत स्वादिष्ट थीं, जैसे की मैने पहले भी बताया की युथ होस्टल में हमने सबसे ज्यादा अगर किसी चीज को इन्जाय किया वो था वहां का नाश्ता और खाना.
कविता का सोमवार का उपवास था सो हम लोगों ने शिमला से ही केले ले लिए थे, लेकिन वो अब तक काले पड़ चुके थे और यहां आस पास फ़लाहार के लिए और कुछ उपलब्ध नहीं था अत: हम तीनों ने ही नाश्ता किया और वापस अपने टैंट में आकर लेट गए और आगे की प्लानिंग करने लगे.
खुबसूरत वादियां...मनाली
खुबसूरत वादियां…मनाली