साथियों,
पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा काशी/वाराणसी/बनारस में हमने करीब ढाई दिन बिताया था। काशी में हमारा पहला दिन दशहरे का दिन था और इसी पवित्र दिन हमने भगवान विश्वनाथ के दो बार दर्शन किये। अगले दिन सुबह उठकर सबसे पहले गंगा माँ की पहली झलक तथा स्नान के लिए हम अस्सी घाट पहुंचे तथा स्नान के बाद दुर्गा मंदिर, तुलसी मंदिर तथा अन्य मंदिर घूमते हुए हम BHU स्थित नवीन काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचे तथा वहाँ से होते हुए रामनगर फोर्ट पहुंचे। अंत मे दोपहर तक अपने होटल पहुंचकर कुछ देर आराम किया तथा शाम करीब चार बजे हमने वाराणसी के घाटों के दर्शन की यात्रा प्रारंभ की ……….अब आगे।
मंदिरों के दर्शन तथा रामनगर फोर्ट से लौटने के बाद अब बाकी लोग होटल में अपने कमरे पर आराम कर रहे थे और मैं निकल पडा होटल के समीप स्थित शिवाला घाट की ओर जहां मुझे एक नाव वाले से बात करनी थी घाटों की यात्रा के लिए। जैसे ही मैं घाट पर पहुंचा मुझे एक नौजवान अपनी नई नवेली नाव की सफाई करता दिखाई दिया, मैंने उससे बात प्रारंभ की और अपना उद्देश्य बताया तो उसने मुझे चार घंटे में सारे घाटों की सैर करवा कर अंत में गंगा आरती में नाव मैं ही बैठ कर शामिल करवाने का वादा किया और चार्ज बताया सात सौ रुपये जिसे थोड़ी सी बातचीत के बाद उसने स्वयं ही घटा कर पांच सौ कर दिया। इस सहृदय नाविक का नाम था अजय।
खैर नाव का प्रबंध करके मैं वापस होटल आ गया तथा बाकी लोगों को जल्दी तैयार होकर शिवाला घाट चलने को कहा। कुछ देर में ही फटाफट सब लोग तैयार हो गए तथा कुछ जरुरी सामान एक बैग में लेकर हम घाट पर चल दिए। वहाँ अजय हमारा इंतज़ार कर रहा था। अब तक वह नाव की चकाचक सफाई कर चुका था। इस समय लगभग चार बज रहे थे और हमारा नाव का सफ़र प्रारंभ हो चुका था। अजय हमारा नाविक होने के साथ साथ गाइड का काम भी कर रहा था, उसने हमें बताया की आरती की तैयारी तो चार बजे से शुरू हो जाती है लेकिन आरती शाम साढ़े छह बजे शुरू होती है जो की लगभग आठ बजे तक चलती है। हमने सुन रखा था की यह आरती बहुत ही भव्य तथा वैभवशाली होती है अतः हम सभी गंगा आरती को लेकर बड़े ही उत्साहित थे।
वाराणसी में गंगा तट पर अनेक सुंदर घाट बने हैं, ये सभी घाट किसी न किसी पौराणिक या धार्मिक कथा से संबंधित हैं। वाराणसी के घाट गंगा नदी के धनुष की आकृति होने के कारण मनोहारी लगते हैं। सभी घाटों के पूर्वार्भिमुख होने से सूर्योदय के समय घाटों पर पहली किरण दस्तक देती है। उत्तर दिशा में राजघाट से प्रारम्भ होकर दक्षिण में अस्सी घाट तक सौ से अधिक घाट हैं।
वाराणसी दो नदियों के बिच बसा है वरुणा तथा असी इसीलिए इसका नाम (वरुणा + असी) = वाराणसी पडा है। अस्सी घाट प्रथम घाट है जहां से गंगा वाराणसी में प्रवेश करती है अतः यह घाट सभी घाटों में शुद्धतम है तथा यहाँ गंगा का स्वरुप भी साफ़ सुथरा तथा प्रदुषण रहित है।
वाराणसी के लगभग सौ घाटों में से प्रमुख घाट हैं – अस्सी घाट, ललिता घाट, सिंधिया घाट, तुलसी घाट , हरिश्चन्द्र घाट, मुंशी घाट, जैन घाट, अहिल्याबाई घाट, केदार घाट, प्रयाग घाट, चेतसिंह घाट, दशाश्वमेध घाट तथा नारद घाट। इन घाटों में भी सबसे अधीक महत्व वाला तथा साफ़ सुथरा एवं सर्वाधिक रौनक वाला घाट है दशाश्वमेध घाट जहां पर गंगा आरती होती है।गंगा के इन घाटों का वर्णन पहले भी कई बार घुमक्कड़ की अन्य पोस्ट्स में किया जा चूका है अतः मैं दुबारा इनका वर्णन करना उचित नहीं समझता।
तो इस तरह घाट घाट का पानी पीते हुए हम अपनी नाव से आगे बढ़ रहे थे। किसी घाट पर एक बड़ा सुन्दर सा मंदिर है जिसे नेपाली मंदिर कहा जाता है। कहते हैं की यह मंदिर नेपाल के महाराजा ने बनवाया था। नेपाली वास्तु शिल्प में निर्मित यह मंदिर देखने लायक है। हम भी इस मंदिर को देखकर तथा अन्दर स्थापित भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग के दर्शन करके अभीभूत हो गए।
केदार घाट पर उतर कर हमने गंगाजल ले जाने के लिए पांच पांच लीटर की दो केन खरीद लीं तथा नदी के बीच से एक साफ़ सुथरी जगह से दोनों केनों में गंगाजल भर लिया जो अंत में सुरक्षित हमारे घर तक पहुँच गया।
केदार घाट पर बहुत ही सुन्दर भगवान केदारेश्वर का मंदिर है यहाँ पर भी हमने दर्शन किये। घाटों तथा उन पर स्थित मंदिरों के दर्शन के लिए हमारा नाविक नाव रोक कर किनारे पर लगा दिया करता था, हम लोग उतर कर दर्शन करके आते और फिर नाव चल पड़ती। कुल मिलकर नाव का यह सफ़र बड़ा ही मनोहारी लग रहा था, वैसे भी इतना लम्बा नाव का सफ़र हमने पहले कभी नहीं किया था।
थोड़े आगे चले तो मणिकर्णिका घाट दिखाई दिया। इस घाट का निर्माण महाराजा, इंदौर ने करवाया है।पौराणिक मान्यताओं से जुड़े मणिकार्णिका घाट का धर्मप्राण जनता में मरणोपरांत अंतिम संस्कार के लिहाज़ से अत्यधिक महत्त्व है। वाराणसी के 100 घाटों में पाँच घाट बहुत ही पवित्र माने जाते हैं। इन्हें सामूहिक रूप से ‘पंचतीर्थ’ कहा जाता है। ये हैं असी घाट, दशाश्वमेध घाट, आदिकेशव घाट, पंचगंगा घाट तथा मणिकार्णिका घाट।
मणिकर्णिका घाट पर हर समय चौबीसों घंटे दाह संस्कार कार्य चलते रहता है, यहाँ पर दाह संस्कार के लिए मृत शरीरों की लाइन लगी रहती है। घाट की सीढियों पर पहले मृत शरीर को गंगा स्नान करवाया जाता है, तथा फिर अपना नंबर आने पर उन्हें अग्नि को समर्पित कर दिया जाता है।
अंत में नाविक ने हमें एक ऐसा मंदिर दिखाया जो पूरा का पूरा करीब 30 डिग्री के कोण पर झुक हुआ है, तथा इसका आधार गंगा में डूबा हुआ है। इस मंदिर को काशी करवट मंदिर कहा जाता है, क्योंकि यह करवट लिए हुए है।
इस तरह से सारे घाटों का चक्कर लगाते हुए हम जब दशाश्वमेध घाट के सामने से गुजरे तब यहाँ गंगा आरती की तैयारियां चल रहीं थीं। और जब हम शाम करीब साढ़े छह बजे सारे घाट घूमकर वापस दशाश्वमेध घाट पर पहुंचे तब आरती की तैयारियां अपने अंतिम चरणों में थी।
नाव वाले ने हमसे पूछा की आप आरती नाव से देखना पसंद करेंगे या घाट की सीढियों पर बैठकर, तो हमने कहा की नाव में बैठकर देखेंगे। तो उसने नाव घाट से कुछ दूर खड़ी कर दी। यह दुरी हमें कुछ ज्यादा लगी तो हमने कहा की भाई नाव को थोडा और आगे घाट के पास लेकर चलो तो उसने बड़े ही विनम्र भाव से कहा की सर सबसे आगे उन्ही लोगों को नाव लगाने का हक है जो इसी घाट पर रहते हैं, और हम शिवाला घाट वाले हैं अतः ये लोग हमें आगे नाव नहीं लगाने देंगे। बात मेरी समझ में आ गई अतः हमने फटाफट निर्णय लिया की घाट की सीढियों पर जगह आरक्षित कर ली जाए ताकी आराम से बैठकर करीब से आरती का आनंद ले सकें अतः हम सब नाव से उतर कर घाट की सीढियों पर आकर बैठ गए अभी भी आरती शुरू होने में थोडा समय था अतः दर्शनार्थियों की भीड़ तेजी से इस तरफ बढ़ रही थी। नाव वाला अपनी नाव में ही बैठकर आरती होने तक हमारा इंतज़ार कर रहा था।
आरती की तैयारियां देखकर ही हम तो बड़े प्रसन्न हो रहे थे, हमने इतनी सुन्दर तैयारियों की कल्पना भी नहीं की थी। दशाश्वमेध घाट पर आरती के लिए पांच लकड़ी के तखत सजे हुए थे तथा सभी पर एक एक नौजवान तथा सुदर्शन पंडित आकर विराजमान हो गए थे, सभी की उम्र बीस से पच्चीस वर्ष के बीच लग रही थी। सभी एक जैसी एवं बड़ी सुन्दर वेश भूषा धारण किये हुए थे
कुछ ही देर के इंतज़ार के बाद आरती शुरू हो गई। हम लोग पहले से ही आरती स्थल के एकदम करीब बैठे थे फिर भी मैं फोटोग्राफी के उद्देश्य से सीढियों से उठकर आरती स्थल के एकदम नजदीक आकार बैठ गया। इस आरती में हम सबको जितना आनंद आया उसका शब्दों में बखान करना नामुमकीन है, अतः शब्दों के बजाय चित्रों पर भरोसा करना ज्यादा बेहतर है तो लीजिये आपलोग भी देखिये गंगा आरती के चित्र -

मैं आप लोगों से एक व्यक्तिगत गुज़ारिश करना चाहूँगा की यदि आप वाराणसी
जा रहे हैं तो किसी भी कीमत पर दशाश्वमेध घाट पर प्रतिदीन होनेवाली विश्व
प्रसिद्द गंगा आरती में जरूर शामिल हों ………..अन्यथा आप एक परालौकिक एवं
अद्भूत अनुभूति से वंचित रह जायेंगे।
आरती समाप्त होने के बाद हम सब अपनी नाव में आकर बैठ गए, इस समय करीब आठ बज चुके थे, नाविक ने हमें केदार घाट पर लेजाकर छोड़ दिया क्योंकि वहां से बाहर निकल कर नजदीक ही हमें भोजनालय उपलब्ध हो जाने वाला था। रात का खाना खाने के बाद ऑटो लेकर हम अपने होटल पहुँच गए तथा गंगा आरती की सुनहरी यादों के साथ सो गए। अगले दिन हमें सारनाथ जाना था तथा दोपहर तक वापस वाराणसी आकर होटल का कमरा खली करके रेलवे स्टेशन पहुँच कर घर के लिए रवाना होना था। सारनाथ तथा वापसी की दास्ताँ अगले एपिसोड में तब तक के लिए …………..बाय।।।।।।।।।
पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा काशी/वाराणसी/बनारस में हमने करीब ढाई दिन बिताया था। काशी में हमारा पहला दिन दशहरे का दिन था और इसी पवित्र दिन हमने भगवान विश्वनाथ के दो बार दर्शन किये। अगले दिन सुबह उठकर सबसे पहले गंगा माँ की पहली झलक तथा स्नान के लिए हम अस्सी घाट पहुंचे तथा स्नान के बाद दुर्गा मंदिर, तुलसी मंदिर तथा अन्य मंदिर घूमते हुए हम BHU स्थित नवीन काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचे तथा वहाँ से होते हुए रामनगर फोर्ट पहुंचे। अंत मे दोपहर तक अपने होटल पहुंचकर कुछ देर आराम किया तथा शाम करीब चार बजे हमने वाराणसी के घाटों के दर्शन की यात्रा प्रारंभ की ……….अब आगे।
मंदिरों के दर्शन तथा रामनगर फोर्ट से लौटने के बाद अब बाकी लोग होटल में अपने कमरे पर आराम कर रहे थे और मैं निकल पडा होटल के समीप स्थित शिवाला घाट की ओर जहां मुझे एक नाव वाले से बात करनी थी घाटों की यात्रा के लिए। जैसे ही मैं घाट पर पहुंचा मुझे एक नौजवान अपनी नई नवेली नाव की सफाई करता दिखाई दिया, मैंने उससे बात प्रारंभ की और अपना उद्देश्य बताया तो उसने मुझे चार घंटे में सारे घाटों की सैर करवा कर अंत में गंगा आरती में नाव मैं ही बैठ कर शामिल करवाने का वादा किया और चार्ज बताया सात सौ रुपये जिसे थोड़ी सी बातचीत के बाद उसने स्वयं ही घटा कर पांच सौ कर दिया। इस सहृदय नाविक का नाम था अजय।
खैर नाव का प्रबंध करके मैं वापस होटल आ गया तथा बाकी लोगों को जल्दी तैयार होकर शिवाला घाट चलने को कहा। कुछ देर में ही फटाफट सब लोग तैयार हो गए तथा कुछ जरुरी सामान एक बैग में लेकर हम घाट पर चल दिए। वहाँ अजय हमारा इंतज़ार कर रहा था। अब तक वह नाव की चकाचक सफाई कर चुका था। इस समय लगभग चार बज रहे थे और हमारा नाव का सफ़र प्रारंभ हो चुका था। अजय हमारा नाविक होने के साथ साथ गाइड का काम भी कर रहा था, उसने हमें बताया की आरती की तैयारी तो चार बजे से शुरू हो जाती है लेकिन आरती शाम साढ़े छह बजे शुरू होती है जो की लगभग आठ बजे तक चलती है। हमने सुन रखा था की यह आरती बहुत ही भव्य तथा वैभवशाली होती है अतः हम सभी गंगा आरती को लेकर बड़े ही उत्साहित थे।
वाराणसी में गंगा तट पर अनेक सुंदर घाट बने हैं, ये सभी घाट किसी न किसी पौराणिक या धार्मिक कथा से संबंधित हैं। वाराणसी के घाट गंगा नदी के धनुष की आकृति होने के कारण मनोहारी लगते हैं। सभी घाटों के पूर्वार्भिमुख होने से सूर्योदय के समय घाटों पर पहली किरण दस्तक देती है। उत्तर दिशा में राजघाट से प्रारम्भ होकर दक्षिण में अस्सी घाट तक सौ से अधिक घाट हैं।
वाराणसी दो नदियों के बिच बसा है वरुणा तथा असी इसीलिए इसका नाम (वरुणा + असी) = वाराणसी पडा है। अस्सी घाट प्रथम घाट है जहां से गंगा वाराणसी में प्रवेश करती है अतः यह घाट सभी घाटों में शुद्धतम है तथा यहाँ गंगा का स्वरुप भी साफ़ सुथरा तथा प्रदुषण रहित है।
वाराणसी के लगभग सौ घाटों में से प्रमुख घाट हैं – अस्सी घाट, ललिता घाट, सिंधिया घाट, तुलसी घाट , हरिश्चन्द्र घाट, मुंशी घाट, जैन घाट, अहिल्याबाई घाट, केदार घाट, प्रयाग घाट, चेतसिंह घाट, दशाश्वमेध घाट तथा नारद घाट। इन घाटों में भी सबसे अधीक महत्व वाला तथा साफ़ सुथरा एवं सर्वाधिक रौनक वाला घाट है दशाश्वमेध घाट जहां पर गंगा आरती होती है।गंगा के इन घाटों का वर्णन पहले भी कई बार घुमक्कड़ की अन्य पोस्ट्स में किया जा चूका है अतः मैं दुबारा इनका वर्णन करना उचित नहीं समझता।
तो इस तरह घाट घाट का पानी पीते हुए हम अपनी नाव से आगे बढ़ रहे थे। किसी घाट पर एक बड़ा सुन्दर सा मंदिर है जिसे नेपाली मंदिर कहा जाता है। कहते हैं की यह मंदिर नेपाल के महाराजा ने बनवाया था। नेपाली वास्तु शिल्प में निर्मित यह मंदिर देखने लायक है। हम भी इस मंदिर को देखकर तथा अन्दर स्थापित भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग के दर्शन करके अभीभूत हो गए।
केदार घाट पर उतर कर हमने गंगाजल ले जाने के लिए पांच पांच लीटर की दो केन खरीद लीं तथा नदी के बीच से एक साफ़ सुथरी जगह से दोनों केनों में गंगाजल भर लिया जो अंत में सुरक्षित हमारे घर तक पहुँच गया।
केदार घाट पर बहुत ही सुन्दर भगवान केदारेश्वर का मंदिर है यहाँ पर भी हमने दर्शन किये। घाटों तथा उन पर स्थित मंदिरों के दर्शन के लिए हमारा नाविक नाव रोक कर किनारे पर लगा दिया करता था, हम लोग उतर कर दर्शन करके आते और फिर नाव चल पड़ती। कुल मिलकर नाव का यह सफ़र बड़ा ही मनोहारी लग रहा था, वैसे भी इतना लम्बा नाव का सफ़र हमने पहले कभी नहीं किया था।
थोड़े आगे चले तो मणिकर्णिका घाट दिखाई दिया। इस घाट का निर्माण महाराजा, इंदौर ने करवाया है।पौराणिक मान्यताओं से जुड़े मणिकार्णिका घाट का धर्मप्राण जनता में मरणोपरांत अंतिम संस्कार के लिहाज़ से अत्यधिक महत्त्व है। वाराणसी के 100 घाटों में पाँच घाट बहुत ही पवित्र माने जाते हैं। इन्हें सामूहिक रूप से ‘पंचतीर्थ’ कहा जाता है। ये हैं असी घाट, दशाश्वमेध घाट, आदिकेशव घाट, पंचगंगा घाट तथा मणिकार्णिका घाट।
मणिकर्णिका घाट पर हर समय चौबीसों घंटे दाह संस्कार कार्य चलते रहता है, यहाँ पर दाह संस्कार के लिए मृत शरीरों की लाइन लगी रहती है। घाट की सीढियों पर पहले मृत शरीर को गंगा स्नान करवाया जाता है, तथा फिर अपना नंबर आने पर उन्हें अग्नि को समर्पित कर दिया जाता है।
अंत में नाविक ने हमें एक ऐसा मंदिर दिखाया जो पूरा का पूरा करीब 30 डिग्री के कोण पर झुक हुआ है, तथा इसका आधार गंगा में डूबा हुआ है। इस मंदिर को काशी करवट मंदिर कहा जाता है, क्योंकि यह करवट लिए हुए है।
इस तरह से सारे घाटों का चक्कर लगाते हुए हम जब दशाश्वमेध घाट के सामने से गुजरे तब यहाँ गंगा आरती की तैयारियां चल रहीं थीं। और जब हम शाम करीब साढ़े छह बजे सारे घाट घूमकर वापस दशाश्वमेध घाट पर पहुंचे तब आरती की तैयारियां अपने अंतिम चरणों में थी।
नाव वाले ने हमसे पूछा की आप आरती नाव से देखना पसंद करेंगे या घाट की सीढियों पर बैठकर, तो हमने कहा की नाव में बैठकर देखेंगे। तो उसने नाव घाट से कुछ दूर खड़ी कर दी। यह दुरी हमें कुछ ज्यादा लगी तो हमने कहा की भाई नाव को थोडा और आगे घाट के पास लेकर चलो तो उसने बड़े ही विनम्र भाव से कहा की सर सबसे आगे उन्ही लोगों को नाव लगाने का हक है जो इसी घाट पर रहते हैं, और हम शिवाला घाट वाले हैं अतः ये लोग हमें आगे नाव नहीं लगाने देंगे। बात मेरी समझ में आ गई अतः हमने फटाफट निर्णय लिया की घाट की सीढियों पर जगह आरक्षित कर ली जाए ताकी आराम से बैठकर करीब से आरती का आनंद ले सकें अतः हम सब नाव से उतर कर घाट की सीढियों पर आकर बैठ गए अभी भी आरती शुरू होने में थोडा समय था अतः दर्शनार्थियों की भीड़ तेजी से इस तरफ बढ़ रही थी। नाव वाला अपनी नाव में ही बैठकर आरती होने तक हमारा इंतज़ार कर रहा था।
आरती की तैयारियां देखकर ही हम तो बड़े प्रसन्न हो रहे थे, हमने इतनी सुन्दर तैयारियों की कल्पना भी नहीं की थी। दशाश्वमेध घाट पर आरती के लिए पांच लकड़ी के तखत सजे हुए थे तथा सभी पर एक एक नौजवान तथा सुदर्शन पंडित आकर विराजमान हो गए थे, सभी की उम्र बीस से पच्चीस वर्ष के बीच लग रही थी। सभी एक जैसी एवं बड़ी सुन्दर वेश भूषा धारण किये हुए थे
कुछ ही देर के इंतज़ार के बाद आरती शुरू हो गई। हम लोग पहले से ही आरती स्थल के एकदम करीब बैठे थे फिर भी मैं फोटोग्राफी के उद्देश्य से सीढियों से उठकर आरती स्थल के एकदम नजदीक आकार बैठ गया। इस आरती में हम सबको जितना आनंद आया उसका शब्दों में बखान करना नामुमकीन है, अतः शब्दों के बजाय चित्रों पर भरोसा करना ज्यादा बेहतर है तो लीजिये आपलोग भी देखिये गंगा आरती के चित्र -

जय गंगा मैया …….धुप एवं अगरबत्ती के पावन धुंए तथा सुगंध से सारा दशाश्वमेध घाट भक्ति के रस में डूब चूका है
आरती समाप्त होने के बाद हम सब अपनी नाव में आकर बैठ गए, इस समय करीब आठ बज चुके थे, नाविक ने हमें केदार घाट पर लेजाकर छोड़ दिया क्योंकि वहां से बाहर निकल कर नजदीक ही हमें भोजनालय उपलब्ध हो जाने वाला था। रात का खाना खाने के बाद ऑटो लेकर हम अपने होटल पहुँच गए तथा गंगा आरती की सुनहरी यादों के साथ सो गए। अगले दिन हमें सारनाथ जाना था तथा दोपहर तक वापस वाराणसी आकर होटल का कमरा खली करके रेलवे स्टेशन पहुँच कर घर के लिए रवाना होना था। सारनाथ तथा वापसी की दास्ताँ अगले एपिसोड में तब तक के लिए …………..बाय।।।।।।।।।
वाह मुकेश जी, काशी यात्रा का सचित्र वर्णन,अच्छा लगा सब कुछ। अपनी यात्रा की याद हो आयी।
ReplyDeleteMukesh bhai bada hi sundar sajeev yatra barnan.
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