Tuesday, 1 January 2013

काशी – भगवान विश्वनाथ एवं अन्य मंदिर दर्शन

दोस्तों,
पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा की आगरा में मैं, रितेश गुप्ता जी एवं जाट देवता एवं हम सबके परिवार इकट्ठा हो गए थे तथा हम सब साथ में ताज महल तथा आगरा का लाल किला देखने गए थे। लाल किला देखने तथा वहां सबके साथ में बड़ा अच्छा समय व्यतीत करने के बाद सब अलग अलग हो गए। जाट देवता को मथुरा घुमने जाना था अतः वे अपने परिवार के साथ मथुरा चले गए और हम लोग रितेश जी के घर से अपना सामान लेकर तथा रात का खाना खा कर आगरा फोर्ट रेलवे स्टेशन पहुँच गए जहाँ से हमें रात नौ बजे वाराणसी के लिए मरुधर एक्सप्रेस पकडनी थी। कहानी को आगे बढाने से पहले आइये हम सब एक साथ करते हैं काशी के भगवान विश्वनाथ के दर्शन ………… जय भोले।
जय काशी विश्वनाथ
जय काशी विश्वनाथ (Photo courtesy- www.eluniversosai.blogspot.com)
 

आगरा फोर्ट रेलवे स्टेशन
आगरा फोर्ट रेलवे स्टेशन
आगरा फोर्ट रेलवे स्टेशन
आगरा फोर्ट रेलवे स्टेशन
अपनी आदत के अनुसार मैं अपने परिजनों के साथ आगरा फोर्ट रेलवे स्टेशन ट्रेन के समय से करीब एक घंटा पहले पहुँच गया था। आम तौर पर मेरी ये कोशिश रहती है की ट्रेन के समय से कम से कम एक घंटा पहले पहुँच जाया जाए तो किसी प्रकार का जोखिम तथा हड़बड़ी नहीं रहती है। रेलवे स्टेशन पर आने के थोड़ी ही देर बाद मैं थोडा उदास हो गया और मेरे चेहरे पर एक अजीब सा डर व्याप्त हो गया था, यह उदासी तथा चिंता मेरे चेहरे पर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी जिसे कविता ने बड़ी आसानी से भांप लिया और मुझसे पूछने लगी की क्या हुआ आप इतने उदास क्यों दिखाई दे रहे हैं?
मैंने कहा की भगवान की दया से यहाँ तक का सफ़र तो बड़े मजे तथा आराम से बीत गया लेकिन आगे वाराणसी के बारे में सोचकर परेशान हो रहा हूँ। दरअसल हमेशा की तरह इस टूर पर निकलने से पहले भी मैंने हर एक जगह की पुख्ता जानकारी लेने के उद्देश्य से खूब नेट को खंगाला था और दोस्तों से भी बात की थी, इस सारी खोजबीन का नतीजा यह निकला की वाराणसी के बारे में मेरे दिल में एक अनजाना सा भय बैठ गया था। वाराणसी के बारे में हर जगह यह प्रचारित किया गया है की यहाँ लूट खसोट, पॉकेट मारी, ठगी, चोरी, महंगाई, महिलाओं के साथ छेड़खानी तथा बदसलूकी आदि बहुत आम बात है, अतः मैं बुरी तरह से डर गया था।
मुझे परेशान देखकर कविता ने मुझे समझाया की हम लोग बाबा विश्वनाथ की नगरी में उनके पावन दर्शन के लिए जा रहे हैं अतः वे ही हमारा ध्यान रखेंगे, आप सिर्फ भोले बाबा पर भरोसा रखो और सारी चिंता छोड़ दो, हमारे साथ कुछ भी बुरा नहीं होगा मुझे पूरा विश्वास हैं।
कविता की इस समझाइश का मुझ पर असर हुआ और मेरी चिंता काफी हद तक कम हो गई, लेकिन फिर भी मैं सभी को बार बार हिदायतें दिए जा रहा था की सब लोग सामान संभाल कर रखना, पैसे, ज्वेलरी आदि का ध्यान रखना तथा बच्चों की ऊँगली पकड़ कर ही चलना।
लेकिन आपलोग यकीन मानिए हम लोग वाराणसी में ढाई दिन रहे लेकिन हमारे साथ ऐसी कोई भी अप्रिय घटना नहीं घटी जिससे हमें थोड़ी सी भी परेशानी उठानी पड़ी हो, बल्कि सोमनाथ / द्वारका के बाद यह हमारा अब तक का सबसे अच्छा तथा यादगार टूर रहा। आज भी हम वाराणसी में बिताये एक एक पल को याद करते हैं तथा खुश होते हैं। अगर मैं मथुरा तथा वाराणसी की तुलना करूँ तो मुझे मथुरा से हर मायने में हर कसौटी पर वाराणसी बेहतर लगा। मथुरा में खाने के लिए अच्छे होटल की परेशानी, बेतहाशा महंगाई, वेन वाले से पंगा, वृन्दावन के कुछ महत्वपूर्ण मंदिर न देख पाने का दुःख, गाइड की बेरुखी तथा उसके बीच में छोड़ कर चले जाना जैसी कुछ घटनाओं से मन कसैला हो गया था।
लेकिन वाराणसी में चालीस रुपये में अच्छी क्वालिटी का खाना, दो रुपये में चाय, तीन रुपये का समोसा, दस रुपये में साईकिल रिक्शा से तीन से चार किलोमीटर का सफ़र, चार सौ से पांच सौ रुपये में बुनियादी सुविधाओं से युक्त आवास, पांच सौ रुपये में चार-पांच घंटे की नाव से सवारी तथा सारे घाटों के दर्शन तथा नाव से ही गंगा आरती दर्शन, साढ़े तीन सौ रुपये में ऑटो रिक्शा से वाराणसी के सारे मुख्य मंदिरों के दर्शन ………….और क्या चाहिए ?
खैर, आगरा रेलवे स्टेशन पर हमारी ट्रेन नियत समय पर आ गई तथा हम सब अपनी अपनी बर्थ पर पहुँच कर आराम करने लगे। चूँकि थके हुए थे अतः जल्द ही नींद ने हम सबको अपनी आगोश में ले लिया, सुबह जब 6 बजे नींद खुली तो हम वाराणसी पहुँच चुके थे।
जैसे ही हम स्टेशन पर उतरे एक टैक्सी वाले ने हमें लपक लिया, जिसकी हमें भी दरकार थी अतः बिना कुछ कहे सुने हम सब टैक्सी में सवार हो गए। मैंने चूँकि इन्टरनेट से एक होटल गदौलिया क्षेत्र में ढूंढ़कर फ़ोन से दो कमरे बुक कर लिए थे लेकिन मथुरा की ही तरह उसका पेमेंट नहीं किया था अतः मेरे पास ये आप्शन था की अगर ये होटल पसंद नहीं आया तो दूसरा ढूंढ़ लेंगे। मैंने टैक्सी वाले से उस होटल का पता बता दिया तथा उसे सबसे पहले वहीँ ले चलने का आदेश दिया।
लेकिन यहाँ भी वही मथुरा वाला किस्सा ही हुआ, मुझे यह होटल बिलकुल भी पसंद नहीं आया क्योंकि यह गोदौलिया की बहुत संकरी गलियों में था, अगर एक बार इंसान किसी काम से बाहर जाए तो दुबारा अपने होटल तक पहुंचना बहुत मुश्किल हो। अतः मैंने इस होटल का ख़याल छोड़ दिया तथा टैक्सी वाले को किसी और होटल में ले चलने को कहा।
वाराणसी की तंग गलियाँ
वाराणसी की तंग गलियाँ
कुछ देर की मशक्कत के बाद हमें अपनी पसंद का एक गेस्ट हाउस शिवाला एरिया में मिल गया होटल का नाम था एम के पी गेस्ट हाउस और ये अस्सी घाट शिवाला घाट तथा जैन घाट के नजदीक स्थित था तथा काशी विश्वनाथ से करीब चार किलोमीटर की दुरी पर स्थित था। यहाँ हमने चार सौ रुपये की दर से दो कमरे लिये, एक में हमलोग तथा दुसरे में सास ससुर जी ठहर गये। कमरों में आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध थीं जैसे अटैच्ड लेट बाथ, गरम पानी, हवादार तथा बड़े कमरे।
हमारा गेस्ट हाउस
हमारा गेस्ट हाउस
वाराणसी में हमें लगभग ढाई दिन रुकना था 24, 25 अक्टूबर तथा 26 को दोपहर को हमारी ट्रेन थी इंदौर के लिए (पटना इंदौर एक्सप्रेस) अतः हमारे पास वाराणसी के बहुत अच्छे से दर्शन करने के लिए पर्याप्त समय था। नहाने धोने, तथा थोडा आराम करने के बाद अब हमारा प्लान था सबसे पहले बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने का, सो हम करीब बारह बजे तैयार होकर होटल से बाहर आ गए तथा दो साइकिल रिक्शा करके भगवान विश्वनाथ के दर्शन के लिए निकल पड़े।
यहाँ एक बात मैंने देखी की वाराणसी में मानव चालित साइकिल रिक्शे बहुतायत में चलते हैं। पूरा शहर इन साइकिल रिक्शों से अटा पड़ा दिखाई देता है। मुझे इन साइकिल रिक्शों में सवारी करना बिलकुल भी पसंद नहीं है क्योंकि मैं जब भी इन रिक्शा चालकों का पसीने से तरबतर कंकाल की तरह शरीर, धौंकनी की तरह चलती साँसे तथा अत्यधिक श्रम से बदहवास सा चेहरा देखता हूँ तो मुझे इनसे सहानुभूति हो जाती है तथा मैं अपराध बोध से ग्रसित हो जाता हूँ। मुझे लगता है की इन पर जुल्म करने के पाप का भागीदारी मैं क्यों बनूँ? अतः मैंने यहाँ भी इस साइकिल रिक्शा में बैठने से पहले मना कर दिया था, लेकिन जब कविता ने कहा की यही इनकी रोजी रोटी है तथा रोज़गार का एकमात्र सहारा है, इसी से इनका घर परिवार चलता है, अगर हम इनके साथ न बैठकर ऑटो रिक्शा की सवारी करते हैं तो ये इन गरीब मेहनतकश लोगों के साथ नाइंसाफी होगी, तो हम इनके रिक्शा में सवारी करके इन पर जुल्म नहीं कर रहे बल्कि इनको रोज़गार का अवसर दे रहे हैं, इनकी आजीविका में सहायता कर रहे हैं। कविता का तर्क भी अपनी जगह सही था, अतः मैं साइकिल रिक्शा में बैठ गया। लेकिन फिर भी मैं संतुष्ट नहीं था, बल्कि आजतक मैं यह निर्णय नहीं ले पाया हूँ की मेरा सोचना सही है या कविता का? क्या आप बुद्धिजीवी पाठक वर्ग मेरे इस प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं? तथा मेरे मन में चल रही इस गुत्थी को सुलझाने में मेरी मदद कर सकते हैं यदि हाँ तो मुझे आपलोगों की टिप्पणीयों का इंतज़ार रहेगा।
साइकिल रिक्शा ..........
साइकिल रिक्शा ……….
मैं साइकिल रिकशा में बैठ तो गया था लेकिन जहाँ भी थोड़ी सी चढ़ाई आती मैं चुपचाप निचे उतर जाता और पैदल चलने लगता, फोटोग्राफी के बहाने से ही सही …………………..मुझे तसल्ली होती की रिक्शावाला को कुछ देर के लिए ही सही मेरे बोझ से निजात तो मिली।
कुछ बीस मिनट के सफ़र के बाद अब हम काशी विश्वनाथ भगवान के मंदिर के सिंहद्वार के नजदीक पहुँच गए थे। जैसे ही हम द्वार के अन्दर घुसे वैसे ही एक कार्यकुशल तथा वाक् पटु पंडित जी ने हमें अपनी गिरफ्त में ले लिया और शीघ्र तथा बढ़िया दर्शन तथा पूजा करवाने के लिए आश्वस्त किया, वैसे हम भी इस अवसर की तलाश में ही थे की कोई आये और हमें पकड़े, क्योंकि हमें हर ज्योतिर्लिंग मंदिर पर अभिषेक जो करना होता है। आनन् फानन में पंडित जी ने हमारे जूते चप्पल तथा अन्य सामान पास ही की एक फूल हार की दूकान पर रखवा दिया तथा प्रसाद खरीदवा कर हमें अपना अनुसरण करने का कहकर मंदिर की और बढ़ गए।
काशी विश्वनाथ मंदिर का सिंहद्वार
काशी विश्वनाथ मंदिर का सिंहद्वार
पंडित जी ने अपना वादा पूरा किया तथा कुछ ही मिनटों में हम भगवान विश्वनाथ के दरबार में उनके सामने खड़े थे। बड़ा ही सुन्दर क्षण था वह जब हमने पहली बार बाबा विश्वनाथ के दर्शन किये, मन आत्मविभोर हो गया ऐसा लगा सदियों से मांगी कोई मुराद पूरी हो गई हो। इस तरह हमारे नौ ज्योतिर्लिंगों के दर्शन भी पुरे हुए। और एक विशेष बात यह थी की आज दशहरा भी था।
खाई के पान बनारस वाला ........
खाई के पान बनारस वाला ……..
मूल काशी विश्‍वनाथ मंदिर बहुत छोटा था। 18वीं शताब्‍दी में इंदौर की रानी अहिल्‍याबाई होल्‍कर ने इसे भव्‍य रूप प्रदान किया। सिख राजा रंजीत सिंह ने 1835 ई. में इस मंदिर के शिखर को सोने से मढ़वाया था। इस कारण इस मंदिर का एक अन्‍य नाम गोल्‍डेन टेम्‍पल भी पड़ा। यह मंदिर कई बार ध्‍वस्‍त हुआ। वर्तमान में जो मंदिर है उसका निर्माण चौथी बार में हुआ है। 1585 ई. में बनारस के एक प्रसिद्ध व्‍यापारी टोडरमल ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। 1669 ई. में इस मंदिर को औरंगजेब ने पुन: तोड़वा दिया। औरंगजेब ने भी इस मंदिर के ध्‍वंसावशेष पर एक मस्जिद का निर्माण करवाया था जिसका नाम ज्ञान वापी मस्जिद है तथा यह मस्जिद आज भी विद्यमान है तथा विश्वनाथ मंदिर से एकदम सटी हुई है ।
मूल मंदिर में स्थित नंदी बैल की मूर्त्ति का एक टुकड़ा अभी भी ज्ञान वापी मस्जिद में दिखता है। इसी मस्जिद के समीप एक ज्ञान वापी कुंआ भी है। विश्‍वास किया जाता है कि प्राचीन काल में इसे कुएं से अभिमुक्‍तेश्‍वर मंदिर में पानी की आपूर्ति होती थी। 1669 ई. में जब काशी विश्‍वनाथ के मंदिर को औरंगजेब द्वारा तोड़ा जा रहा था तब इस मंदिर में स्‍थापित विश्‍वनाथ की मूर्त्ति को इसी कुएं में छिपा दिया गया था। जब वर्तमान काशी विश्‍वनाथ का निर्माण हुआ तब इस कुंए से मूर्त्ति को निकाल कर पुन: मंदिर में स्‍थापित किया गया। दश्‍वमेद्य घाट से यह मंदिर आधे किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर चौबीस घण्‍टे खुला रहता है। (जानकारी साभार-http://bharatdiscovery.org/india/)
काशी विश्वनाथ मंदिर दर्शन के पश्चात हम सब मंदिर परिसर से बाहर आ गए। बाहर आकर एक घोड़ागाड़ी में बैठकर हम काल भैरव मंदिर की और चल पड़े। काशी में इन भगवान काल भैरव के दर्शनों की बड़ी महिमा है, कहा जाता है की इनके दर्शनों के बिना काशी यात्रा अधूरी है। चूँकि अब शाम हो चुकी थी और हमने अगले दिन और काशी में रुकना था अतः समय की कोई कमी नहीं थी सो हमने आज के लिए बस इतना ही घुमने का निश्चय किया और अब हमने थोड़ी थोड़ी भूख भी लग रही थी अतः एक अच्छा सा स्थान देखकर हम सबने नाश्ता किया और होटल के कमरे पर पहुँच कर आराम करने लगे।
काल भैरव मंदिर
काल भैरव मंदिर
कविता के मन में एक बार और भगवान विश्वनाथ के दर्शन अच्छे से करने की उत्कंठा हो रही थी, ऐसे मामले में मैं भी पीछे नहीं हटता सो हम दोनों ने निर्णय किया की हम दोनों ही एक बार फिर से मंदिर जायेंगे, और बच्चे नाना नानी के साथ होटल में ही रुकेंगे. हम लोग खाली हाथ ही बस पूजा की माला आदि सामान लेकर मंदिर की और चल पड़े। इस समय रात के  करीब आठ बजे थे। वैसे कविता के पापा ने हमने हिदायत दी थी की आज दशहरे का दिन है और मार्केट में भीड़ भाड़ हो सकती है लेकिन हम बिना किसी परवाह के बस निकल पड़े। रास्ते में एक जगह माता रानी का भंडार चल रहा था तथा वहाँ आयोजक हमसे भोजन प्रसाद ग्रहण करने की जिद कर रहे थे लेकिन हमने सोचा की खाना खाकर मंदिर नहीं जाना चाहिए लेकिन दूसरी तरफ माता के प्रसाद का निरादर करने का भी मन नहीं हो रहा था अतः हम लोगों ने वहाँ भोजन ग्रहण कर ही लिया और चल पड़े मंदिर की और, एक बार फिर हम पहुँच गए थे भगवान् के सामने लेकिन इस समय भीड़ बहुत कम थी और कविता तथा मुझे बहुत अच्छे से दर्शन तथा माला जाप करने का अवसर मिल गया।
कुछ देर मंदिर में बिताने के बाद अब हम बच्चों तथा मम्मी पापा के लिए खाना पैक करवा कर होटल की और चल दिए। रात को बहुत अच्छी नींद आई और फिर सुबह उठकर तैयार होकर गंगा स्नान के लिए अस्सी घाट की और चल दिए, यह हमारा गंगा मैया के दर्शन तथा स्नान का पहला मौका था अतः हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण था। स्नान आदि के बाद हम होटल के कमरे में वापस पहुँच गए तथा कुछ देर में तैयार होकर वापस सड़क पर आ गए अब हमारा अगला कार्यक्रम था काशी के अन्य मंदिरों तथा रामनगर फोर्ट के दर्शन का।
सुबह सुबह गंगा के प्रथम दर्शन
सुबह सुबह गंगा के प्रथम दर्शन
गंगा माँ के शिवाला घाट पर
गंगा माँ के शिवाला घाट पर
गंगा स्नान
गंगा स्नान
घाट पर दो जुडवा विदेशी बच्चियां
घाट पर दो विदेशी बच्चियां
सड़क पर हमने एक ऑटोवाले को 350 रु में सारे महत्वपूर्ण मंदिर तथा रामनगर फोर्ट दिखाने के लिए तय कर लिया तथा सवार हो गए ऑटो में। सबसे पहले ऑटो वाला हमें लेकर गया श्री दुर्गा मंदिर, यह सचमुच एक बहुत ही सुन्दर मंदिर था, इसके बाद तुलसी मानस मंदिर तथा अन्य मंदिर घुमते हुए हम पहुँच गए बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (BHU) स्थित नया काशी विश्वनाथ मंदिर। यह मंदिर भी हमारी उमीदों से कहीं बढ़कर निकला, बड़ा विशाल तथा ख़ूबसूरत मंदिर, इसे विश्व का सबसे बड़ा (भवन की उंचाई के मामले में) शिव मंदिर भी माना जाता है।
माँ दुर्गा मंदिर
माँ दुर्गा मंदिर
तुलसी मानस मंदिर
तुलसी मानस मंदिर
BHU विश्वनाथ मंदिर
Banaras Hindu University
BHU स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर का प्रवेश द्वार
BHU स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर का प्रवेश द्वार
BHU स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर
BHU स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर
प्रतिबन्ध के बावजूद खींचा गया BHU काशी विश्वनाथ शिवलिंग का चित्र
प्रतिबन्ध के बावजूद खींचा गया BHU काशी विश्वनाथ शिवलिंग का चित्र
BHU परिसर में दक्षिण भारतीय नाश्ता
BHU परिसर में दक्षिण भारतीय नाश्ता
यहाँ कुछ देर ठहरने तथा दर्शन के बाद यहीं केम्पस में स्थित रेस्तौरेंट पर साउथ इंडियन भोजन का लुत्फ़ उठाने के बाद अब हम अग्रसर हुए रामनगर फोर्ट की ओर। रामनगर फोर्ट काशी नरेश का निवास स्थान है जो गंगा नदी के दुसरे किनारे पर स्थित है।  यहाँ के म्यूजियम में विभिन्न प्रकार के शस्त्रों का विशाल संग्रह देखने के बाद इसी किले में स्थित व्यास शिव मंदिर की ओर चल पड़े। यह मंदिर किले की उस दिवार के नजदीक है जहाँ से गंगा मैया के बहुत अच्छे दर्शन होते हैं तथा उस पार स्थित घाट भी दिखाई देते हैं।
रामनगर का किला - प्रवेश द्वार
रामनगर का किला – प्रवेश द्वार
रामनगर फोर्ट
रामनगर फोर्ट
रामनगर फोर्ट से दिखाई देता गंगा का स्वरुप
रामनगर फोर्ट से दिखाई देता गंगा का स्वरुप
कुछ देर इस किले में बिताने के बाद अब हम वापस वाराणसी की ओर बढे तथा दोपहर करीब दो बजे अपने होटल पहुँच गए। अब हमारा अगला प्लान था कुछ देर आराम करने के बाद शाम करीब चार बजे से नाव में सवार होकर काशी के सारे घाटों के दर्शन तथा माँ  गंगा की प्रसिद्द आरती में शामिल होने का।
आज के लिए बस इतना ही अगली पोस्ट में मेरे साथ देखिये काशी के घाट तथा आनंद लीजिये गंगा आरती का …………………….तब तक के लिए बाय।

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