Tuesday 10 July 2012

हाजी अली दरगाह-मुंबई / Haji Ali Dargah-Mumbai

साथियों, इस श्रंखला की पिछली कड़ी में मैंने आपको अपनी मुंबई यात्रा की शुरुआत और मुंबई की जीवन रेखा कही जाने वाली मुंबई लोकल ट्रेन्स के बारे में बताया था, और अब आपको लिए चलता हूँ मुंबई के कुछ चुनिन्दा पर्यटन स्थलों की ओर. मुंबई वैसे तो पर्यटन की द्रष्टि से इतना समृद्ध है की इसे इत्मिनान से निहारने के लिए कम से कम दस से बारह दिन का समय तो चाहिए ही लेकिन हमारे पास समय कम होने की वजह से मेरे मित्र विशाल ने हमारे घुमने के लिए कुछ ख़ास जगहों को चुन कर रखा था. वैसे विशाल ने इस मामले में मुझसे हमारी मर्जी भी जननी चाही थी, सो मैंने बचपन से मुंबई की जिन टूरिस्ट जगहों का नाम सुन रखा था उनमें से कुछ को देखने की इच्छा प्रकट की और इन्ही में से एक जगह थी हाजी अली की दरगाह.

सबसे पहले हाजी अली दरगाह का ये सुन्दर चित्र.



23 मार्च का दिन था और गुडी पड़वा (हिन्दू नव वर्ष) का त्यौहार, आप सब जानते ही होंगे की गुडी पड़वा महाराष्ट्र का ही त्यौहार है और महाराष्ट्र में इसे बहुत ही धूम धाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. आज सुबह से हमने प्लान किया की सबसे पहले मुंबई के सुप्रसिद्ध महालक्ष्मी मंदिर के दर्शन के लिए जायेंगे. अतः सुबह होते ही हम मुंबई दर्शन के लिए विशाल के घर से निकल गए, कुछ और जगहें घूमते हुए (जिनका जिक्र मैं अपनी आनेवाली पोस्ट्स में करूँगा) हम दोपहर तक मुंबई लोकल, ऑटो रिक्शा तथा टेक्सी की सवारी का आनंद लेते हुए हम ब्रीच केंडी पहुँच गए जहाँ पर महालक्ष्मी मंदिर स्थित है. जैसे ही हम टेक्सी से उतर कर मंदिर के नजदीक पहुंचे तो हमने देखा की मंदिर के सामने बहुत लम्बी लाइन लगी है, इतनी लम्बी की कम से कम पांच घंटे में नंबर आने का चांस था. बाद में हमें पता चला की गुडी पड़वा होने की वजह से आज यहाँ इतनी भीड़ है.
वैसे हमें मंदिरों की लम्बी लाइनों से कतई डर नहीं लगता है या कह लीजिये की हम इसके आदि हो चुके हैं, लेकिन चूँकि हमारे साथ शिवम भी था और उस दिन वो कुछ ज्यादा ही परेशान कर रहा था. वास्तव में वह धुप और गर्मी से बेहाल  था अतः रोये जा रहा था, इसलिए हमने ये निर्णय लिया की महालक्ष्मी मंदिर के दर्शन हम कल सुबह दुबारा आकर कर लेंगे और अभी हाजी अली की दरगाह के दर्शन कर लिए जाएँ. और फिर वहां से टेक्सी लेकर हम लोग लाला लाजपत राय मार्ग पहुँच गए जहाँ से हाजी अली की दरगाह तक पहुँचने का मार्ग शुरू होता है.
वस्तुतः हमारे आराध्य देव भगवान शिव हैं लेकिन हम सभी देवी देवताओं में आस्था रखते हैं. और जहाँ तक धर्म की बात है हमें अपने सनातन धर्म में सर्वाधिक आस्था है लेकिन हम दुसरे धर्मों का और उनके देवताओं का भी बहुत सम्मान करते हैं तथा किसी भी धर्म और किसी भी भगवान की वंदना करने में कभी कोई कंजूसी नहीं दिखाते.
आपने देखा ही होगा मेरी एक पिछली पोस्ट में, जब हम नांदेड़ में तखत सचखंड हजूर साहिब के दर्शन के लिए गए थे, वहां हमने बड़ी श्रद्धा से तखत साहिब के दर्शन किये तथा लंगर में खाना भी खाया. तो हम लोग “सर्व धर्म समभाव” में विश्वास करते हैं अतः हमारे लिए हाजी अली दरगाह के दर्शन करना भी बड़े ही हर्ष का विषय था.
हाजी अली तक पहुँचने के लिए मेनरोड से कुछ आगे चलकर एक अंडरग्राउंड रास्ते से होते हुए हम उस जगह आ पहुंचे जहाँ से हाजी अली दरगाह के लिए समुद्र में रास्ता बनाया गया है.

दरगाह का जलमार्ग शुरू होने से पहले हार फूल की दुकानें.

दरगाह का जलमार्ग शुरू होने से पहले हार फूल की दुकानें.
चलिए अब समय है आपको हाजी अली दरगाह के बारे में जानकारी देने का, तो लीजिये प्रस्तुत है हाजी अली दरगाह का परिचय.
क्या है यह हाजी अली दरगाह?
आपने अमिताभ बच्चन की एक सुपर हिट फिल्म “कुली तो देखी ही होगी, इस फिल्म के क्लाइमेक्स सीन की शूटिंग यहीं इसी जगह पर की गई थी. अगर याद नहीं आ रहा तो आपको फिल्म फिजा की वह कव्वाली पिया हाजी अली तो ज़रूर याद होगी, इसकी शूटिंग भी यहीं की गई है.
हाजी अली दरगाह एक मस्जिद तथा दरगाह है जो की मुंबई के दक्षिणी भाग में वरली के समुद्र तट से करीब 500 मीटर समुद्र के अंदर एक छोटे से टापू पर स्थित है.मुख्य भूमि से यह टापू एक कंक्रीट के जलमार्ग के द्वारा जुड़ा हुआ है. यह दरगाह इस्लामी स्थापत्य कला का एक नायाब नमूना है. दरगाह के अंदर मुस्लिम संत सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की कब्र है.
शायद दुनिया में यह अपनी तरह का एकमात्र धर्म स्थल है जहाँ एक दरगाह और एक मस्जिद समुद्र के बीच में टापू पर स्थित है और जहाँ एक ही समय पर हजारों श्रद्धालु एक साथ धर्मलाभ ले सकते हैं.
कौन थे ये संत?
हाजी अली की दरगाह का निर्माण सन 1431 में एक अमीर (धनवान) मुस्लिम व्यवसायी सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की याद में करवाया गया था, जिसने अपनी सारी धन दौलत त्याग कर मक्का की यात्रा (हज) का रुख किया. हाजी अली मुख्य रूप से पर्शिया (अब उज्बेकिस्तान) के बुखारा नमक जगह के रहने वाले थे तथा पूरी दुनिया की सैर करते हुए अंत में 15 वीं शताब्दी के लगभग मुंबई में आकर बस गए थे.
उनके जीवन से जुडी एक किवदंती के अनुसार एक बार संत हाजी अली ने एक गरीब महिला को सड़क पर रोते हुए तथा विलाप करते देखा जिसके हाथ में एक खली डिब्बा था, उन्होंने उस महिला से पूछा की उसको क्या तकलीफ है, उसने सुबकते हुए जवाब दिया की वह तेल लेने गई थी और ठोकर लगने से उसका सारा तेल जमीं पर ढुल गया है और अब उसका पति उसे बहुत पीटेगा, संत ने उस महिला से कहा की मुझे उस जगह पर लेकर चलो जहाँ तुम्हारा तेल गिरा है, वह महिला उन्हें उस जगह पर लेकर गई संत उस जगह पर बैठ गए और अपने ऊँगली से जमीन को कुरेदने लगे, कुछ ही देर में जमीन से तेल की एक मोटी धार फव्वारे के रूप में निकली. महिला ने ख़ुशी से झूमते हुए अपना पूरा डिब्बा तेल से भर लिया.
बाद में हाजी अली को एक घबराहट पैदा करने वाला सपना बार बार आने लगा की उन्होंने दुखी महिला की मदद करने के लिए धरती मां को कुरेदकर उन्हें तकलीफ पहुंचाई है. पश्चाताप की आग में जलते हुए वे बुरी तरह से बीमार पड़ गए तथा उन्होंने अपने अनुयायियों को आदेश दिया की उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके शारीर को एक कोफीन में भरकर अरब सागर में छोड़ दिया जाये.
हाजी अली ने अपनी मक्का यात्रा के दौरान अपना शरीर त्याग दिया तथा आश्चर्यजनक रूप से वह ताबुत जिसमें उनका मृत शरीर रखा था तैरते हुए इस जगह पहुँच गया तथा मुंबई में वरली के समीप एक छोटे से टापू की चट्टानों में अटककर रुक गया जहाँ आज उनकी दरगाह है, जिसे हम हाजी अली की दरगाह कहते हैं.
गुरुवार तथा शुक्रवार को यहाँ पर कम से कम 40,000 लोग दर्शन के लिए आते हैं. आस्था और धर्म को दरकिनार करके यहाँ हर जाति तथा धर्म के लोग आकर इस महान संत की दुआएं लेते हैं.
समुद्र के अंदर पगडण्डी? क्या आप कभी पैदल चले हैं समुद्र में?
दरगाह तक पहुंचना बहुत हद तक समुद्र की लहरों की तीव्रता पर निर्भर करता है क्योंकि जलमार्ग पर रेलिंग नहीं लगी हैं. जब कभी समुद्र में उच्च तीव्रता की लहरें आती हैं तो यह जलमार्ग पानी में डूब जाता है तथा दरगाह तक पहुंचा मुश्किल हो जाता है अतः दरगाह पर निम्न तीव्रता की लहरों के दौरान ही पहुंचा जा सकता है.
इस जलमार्ग से आधा किलोमीटर का यह पैदल सफ़र बड़ा ही मोहक तथा रोमांचकारी होता है, कम लहरों के दौरान पुरे रास्ते के सफ़र के दौरान तीन चार बार तो यात्रियों के पैर जलमग्न हो ही जाते है, इस सफ़र के दौरान कई बार लहरें एक बड़े फव्वारे के रूप में आती है तथा हमें भीगा कर चली जाती हैं. यह सफ़र इतना सुहाना होता है की कदमों समय की मांग के अनुरूप आगे की ओर धकेलना पड़ता है, क्योंकि हम इस सफ़र को ख़त्म होने नहीं देना चाहते.
कल्पना कीजिये आप एक पगडण्डी पर चल रहे हैं और आपके दोनों ओर से असीम समुद्र की लहरें आपके करीब आकर आपको छूना चाह रहीं हो. पुरे रास्ते में छोटी छोटी खिलोनों तथा साज सज्जा के सामान की सुन्दर सजी दुकानें. खाने पीने की दुकानें, जो कभी कभी आधी जल में डूबी हुई दिखाई देती हैं.

समुद्री मार्ग की एक झलक

हाजी अली का जलमार्ग

जलमार्ग से दिखाई देती मुंबई

हाजी अली का जलमार्ग

हाजी अली का जलमार्ग

हाजी अली का जलमार्ग
कैसी है दरगाह
दरगाह सफ़ेद रंग से पुती तथा करीब 4500 स्क्वे.मीटर के क्षेत्र में फैली है और एक 85 फिट ऊँची मीनार से शोभायमान है. एक बड़े से दरवाज़े (प्रवेश द्वार) के अंदर मुख्य दरगाह स्थित है. दरगाह के अंदर मकबरा एक चटख लाल तथा हरे रंग की चादर से ढंका होता है. मुख्य हॉल में पिलरों पर कांच की सुन्दर नक्काशी की गई है. मुस्लिम पंथ के अनुसार यहाँ पर भी पुरुषों तथा महिलाओं के लिए प्रथक प्रार्थना स्थल बनाये गए हैं. लगभग 400 साल पुरानी इस दरगाह का जीर्णोद्धार कार्य प्रगति पर है.  दरगाह का प्रांगण खाद्य सामग्री की दुकानों तथा अन्य दुकानों से सजा हुआ है, जो इस जगह की गंभीरता तथा नीरसता को दूर करती हैं. हाजी अली की दरगाह मुंबई की विरासत तथा भारत की संस्कृति का एक अभिन्न अंग है.
दरगाह का प्रवेश द्वार
हाजी अली दरगाह
हाजी अली दरगाह

दरगाह परिसर में

दरगाह परिसर में

दरगाह परिसर में

दरगाह परिसर में

दरगाह परिसर में

दरगाह परिसर में

दरगाह परिसर में

और ये हैं राऊड़ी राठोड़................ राऊड़ी भले न सही पर राठोड़ जरुर हैं.
दरगाह के पीछे चट्टानों से टकरातीं समुद्र की लहरें:  
दरगाह के पीछे चट्टानों का एक समूह है जिनसे समुद्र की लहरें टकराती हैं और एक कर्णप्रिय ध्वनि उत्पन्न करती हैं और एक अत्यंत रोचक दृष्य  उपस्थित करती हैं. यहाँ से एक ओर दूर दूर तक बाहें फैलाये समुद्र तो दूसरी ओर मायानगरी की गगनचुम्बी अट्टालिकाएं दर्शन देतीं हैं. दरगाह के दर्शन के बाद दर्शनार्थी यहाँ पर इन नजारों को देखने के लिए कुछ समय बिताते हैं.
दरगाह में हम:  
जैसा की मैंने बताया की हम हर धर्म का पुरे दिल से सम्मान करते हैं. अतः हमने हाजी अली बाबा को चढाने के लिए बाहर से ही एक चादर खरीदी और चल पड़े जल में आधी डूबी उस पगडण्डी पर जो हमें दरगाह तक लेकर जाने वाली थी. पुरे रास्ते हम समुद्र की लहरों का आनंद लेते हुए और फोटोग्राफी और विडियोग्राफी करते हुए दरगाह तक पहुंचे. दरगाह पहुँच कर वहां की खूबसूरती देखकर हम अभिभूत हो गए. अंदर मजार पर जाकर अपना माथा टेका, यहाँ पर उपस्थित मौलाना जी ने मेरी पीठ पर मोरपंख से गठा हुआ एक लट्ठा मारकर कहा जा खुदा के बन्दे आज तेरी सारी बलाएँ बाबा ने अपने ऊपर ले ली हैं और तुझे दुआ दी है की तू हमेशा खुश रहे………………….मौलाना के यह शब्द सुनकर मेरी आँखों से अनायास ही आंसुओं की बूंदें टपक पड़ीं.

हाजी अली शाह बुखारी का मकबरा

मकबरा, अन्य द्रष्य

दरगाह में मैं, विशाल एवं शिवम्
दर्शन के बाद कुछ देर दरगाह के पीछे समुद्र की लहरों का आनंद लेने के बाद हम उसी ख़ूबसूरत रास्ते से वापस अपनी अगली मंजिल की ओर चल दिए………………………

दरगाह से वापसी

अलविदा हाजी अली.............

अलविदा हाजी अली.............

फिर आयेंगे बाबा तेरे दर पे, ग़र तुने बुलाया तो........
पिया हाजी अली, पिया हाजी अली, पिया हाजी अली पिया हो…………………………………………………………
फिर मिलते हैं जल्दी ही अगली कड़ी में मुंबई की ऐसी ही किसी सुन्दर जगह पर.

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