दोस्तों, अपने धार्मिक यात्रा वृत्तांतों से अलग आज मैं आप लोगों को
भारत की व्यावसायिक राजधानी मुंबई जिसे मायानगरी भी कहा जाता है की जीवन
रेखा यानि मुंबई उपनगरीय रेल व्यवस्था (मुंबई लोकल) तथा उससे जुड़े मेरे
अनुभवों के बारे में बताना चाहता हूँ.
हमारी मुंबई यात्रा वस्तुतः मेरे तथा विशाल राठोड़ (जो घुमक्कड़ के एक वरिष्ठ लेखक हैं) के परिवार की सम्मिलित तटीय कर्नाटक यात्रा (उडुपी – कोल्लूर- मुरुदेश्वर- गोकर्ण) के परिणामस्वरूप थी. हमें अपनी कर्नाटक यात्रा के लिए योजना के अनुसार पहले विशाल राठोड़ के घर मुंबई जाना था तथा वहां से दोनों परिवारों को उडुपी के लिए प्रस्थान करना था.
अपने इस चार दिवसीय मुंबई प्रवास के दौरान मुंबई में हमने विशाल राठोड़ के मार्गदर्शन में उन्हीं के साथ मुंबई के कुछ चुनिन्दा दर्शनीय स्थलों का भ्रमण तथा अवलोकन किया जैसे हाजी अली की दरगाह, सिद्धि विनायक मंदिर, महालक्ष्मी मंदिर, तारापुरवाला एक्वेरियम, बांद्रा बेन्डस्टेंड, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, ताजमहल होटल, गेटवे ऑफ़ इंडिया, बाबुलनाथ मंदिर, मुकुटेश्वर मंदिर, इस्कोन मंदिर, एंटेलिया (मुकेश अम्बानी का निवास), मन्नत (शाहरुख खान का निवास), जलसा तथा प्रतीक्षा (अमिताभ बच्चन के दोनों निवास), बसेरा (रेखा का निवास), इम्पीरियल टॉवर्स तथा अन्य कई दर्शनीय स्थल.
इस पूरी मुंबई यात्रा के दौरान अगर मुझे किसी चीज ने आकर्षित किया तो वह थी मुंबई की जीवन रेखा कही जाने वाली मुंबई उपनगरीय रेल व्यवस्था जिसे मुंबई लोकल कहते हैं, और इस रेल व्यवस्था से मैं इतना प्रभावित हुआ की मैंने सोच लिया था की घुमक्कड़ पर अपनी अगली पोस्ट इस मुंबई लोकल को ही समर्पित करूँगा.
गाड़ी बुला रही है, सिटी बजा रही है.
चलना ही ज़िन्दगी है, चलती ही जा रही है………..
बीते वर्षों की एक बॉलीवुड फिल्म का यह गाना आज भी मुंबई में रहने वाले लाखों लोगों के जीवन के एक महत्वपूर्ण पहलु को परिभाषित करता है. इलेक्ट्रिक मल्टिपल यूनिट्स (EMU ‘s) जिन्हें मुंबई लोकल ट्रेन कहा जाता है, मुंबई की जीवन रेखा है. BO – 06 :57 – Slow और N -08 :23 – Fast जैसे संकेत मुम्बईकरों के दैनिक जीवन का हिस्सा है. वस्तुतः इन लोकल ट्रेनों के बिना मुंबई की कल्पना करना भी असंभव है. अगर आपने लोकल ट्रेन में सफ़र नहीं किया मतलब आपने मुंबई नहीं घुमा, या आपका मुंबई घूमना अधुरा है.
मुंबई में वैसे तो जन परिवहन के लिए अन्य साधन भी उपलब्ध हैं जैसे ऑटो रिक्शा, टेक्सी, उपनगरीय बसें आदि लेकिन जनमानस में अगर सबसे प्रचलित आवागमन का साधन कोई है तो वह मुंबई लोकल ही है. मुंबई शहर को गतिमान रखने में इन मुंबई लोकल्स का बहुत योगदान है, लोकल ट्रेन्स के एक दिन भी रुक जाने से मुंबई शहर जैसे ठहर जाता है, मुंबई की धड़कने चलती हैं तो इन लोकल्स के ही सहारे.
शंघाई, इस्तांबुल तथा कराची के बाद मुंबई विश्व का चौथा सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर है, तथा भारत में तो यह निर्विवाद रूप से सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर है. अगर मुंबई के साथ लगे ठाणे तथा नवी मुंबई को मिला कर देखा जाये तो यह शहर विश्व का सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर बन जाता है. अब आप सोच सकते हैं की इतने बड़े शहर की इतनी ज्यादा आबादी में स्थानीय परिवहन साधन के रूप में सर्वाधिक प्रचलित साधन को हम कुछ विशेष ही कहेंगे न.
मुंबई की धरती पर उतरते ही सबसे पहले हमारा सामना मुंबई लोकल ट्रेन सर्विस से ही हुआ. वैसे मुंबई में हम दुसरे साधनों से भी घूम सकते थे लेकिन हमारे मेजबान विशाल राठोड़ ने मुझे मुंबई की इस अनूठी तथा विशिष्ट व्यवस्था से परिचित करवाने के उद्देश्य से हमारे मुंबई भ्रमण की पूरी व्यवस्था इन लोकल ट्रेनों से ही की थी, और सच बताउं तो हमने भी मुंबई में इन लोकल ट्रेन्स के सफ़र तथा अनियंत्रित भीड़ का खूब लुत्फ़ उठाया. अगर आप मुंबई जा रहे हैं और आपको लोकल ट्रेन्स तथा इनमें सफ़र करने की रणनीति की पर्याप्त जानकारी है तो निश्चित रूप से आप मुंबई में इन ट्रेन्स में सफ़र करके अपना काम निकाल सकते हैं वरना………..गोलमाल है भाई सब गोलमाल है.
अत्यधिक भीड़- मुंबई लोकल का नकारात्मक पहलु:
मुंबई की तेज़ तथा भागमभाग वाली ज़िन्दगी से सामंजस्य बैठने के लिए यहाँ पर हर किसी को इन लोकल ट्रेन्स के सहारे ही अपनी ज़िन्दगी चलानी होती है, हर वर्ग के व्यक्तियों के द्वारा एक महत्वपूर्ण स्थानीय परिवहन के साधन के तौर पर उपयोग किये जाने की वजह से इन लोकल ट्रेनों में बेतहाशा ड़ होती है. व्यस्त समय में एक ट्रेन जिसमें सिर्फ 9 डिब्बे जिनमें सिर्फ 1700 यात्रियों को ढोने की क्षमता होती है उससे कहीं ज्यादा लगभग 4500 यात्रियों को ढोना इन ट्रेनों की बदनसीबी है. इस बेतहाशा भीड़ की वजह से ट्रेन के प्रति स्क्वेयर मीटर की छोटी सी जगह में 14 से 16 लोगों को खड़ा होने पर मजबूर होना पड़ता है.
मुंबई लोकल में चढ़ना तथा उतरना – एक चुनौती:
मुंबई लोकल में चढ़ना और उतरना अपने आप में एक बहुत बड़ी कला, क्षमता तथा दक्षता का काम है. मुंबई लोकल में चढ़ते तथा उतरते समय आपको सभ्यता तथा सही तौर तरीकों को बाजु में रखना होगा, यहाँ पर ऐसे मैनर्स को फोलो करना जायज़ नहीं है जैसे की चढ़ने से पहले उतरने वाली सवारियों को उतरने दिया जाये. यहाँ तो जो अपने आप को जो धक्का मुक्की करके कैसे भी ट्रेन के अन्दर घुसेड़ पाता है वही शूरवीर और वही सिकंदर होता है. ट्रेन के दरवाज़े यात्रियों से ठंसे पड़े होते हैं और ऐसी ही परिस्थिति में आपको चढ़ना भी होता है और उतरना भी, जो जीता वही सिकंदर की कहावत यहाँ सोलह आने सच साबित होती है. अपना स्टेशन आने से पहले ही आपको चौकन्ना हो जाना चाहिए और गेट पर पहुँच जाना चाहिए, बाकी का काम आपकी पीछे की भीड़ अपने आप कर देगी और आपको आगे धकेल कर उतार देगी.
पैर रखने की जगह का जुगाड़:
मुंबई लोकल ट्रेनों में आपको भिन्न भिन्न प्रकार के लोग बैठे, खड़े, भीड़ में फंसे मिल जायेंगे. कोई महाराष्ट्र से, कोई गुजरात से कोई यूपी से तो कोई बिहार से. अपनी क्षमता से चार गुना लोगों को लादे ये लोकल ट्रेन के डिब्बे अगर आपको अपने दोनों पैर फ्लोर पर रखने की इज़ाज़त दे देते हैं तो ये आपकी खुशनसीबी होगी. भीड़ में फंसने के बाद आपको अपने अंगों के बारे में ही होश नहीं रहेगा की आपके हाथ कहाँ हैं, पैर कहाँ और सिर कहाँ. आपके सिर के आसपास और भी आठ दस सिर होंगे और हर एक सिर से एक अलग गंध आपके नथुनों को सुवासित करेगी, किसी सिर से चमेली तो किसी से आंवला किसी से मूंगफली तो किसी से सोयाबीन के तेल की गंध आपको मुंबई लोकल में होने का एहसास कराएगी. दुनिया का कोई भी परफ्यूम, कोई भी डीओडोरेंट कम्पार्टमेंट में फैली इस गंध को चुनौती नहीं दे सकता.
पसीने की गाथा:
भीड़ से अटे आपके कम्पार्टमेंट में हवा का झोंका अन्दर आने के लिए अपनी सारी ताकत झोंककर हार कर वापस लौट जाता है और फिर दौर शुरू होता है पसीने का. पसीने की बूंदें आपके माथे से टपक कर नाक से होते हुए आपके होठों से टकराती है और आपको अपने खारेपन से अवगत कराती है लेकिन सावधान………….हर बार ज़रूरी नहीं की यह आपके ही माथे का पसीना हो, आसपास और भी माथे हैं भाई…………….
मुंबई लोकल – कुछ रोचक तथ्य:
१. सेंट्रल एवं वेस्टर्न रेलवे दोनों मिलाकर प्रतिदिन करीब छः करोड़ दस लाख यात्रियों को ढोती हैं, यह संख्या कुछ देशों जैसे फिनलैंड, नोर्वे, न्यूज़ीलैंड की जनसँख्या से अधिक है. उदाहरण के लिए, सुबह के व्यस्त समय में वेस्टर्न रेलवे के चर्चगेट स्टेशन पर सिर्फ 90 सेकेंड के अंतराल में तक़रीबन 4000 यात्री प्रति ट्रेन के हिसाब से उतरते हैं, अब आप भीड़ की कल्पना कर सकते हैं.
२. मुंबई लोकल का सवारी घनत्व (passenger density) विश्व के किसी भी शहरी रेलवे सिस्टम से सर्वाधिक है.
३. चर्चगेट से विरार के बिच के ६० किलोमीटर में एक वर्ष में लगभग 900,000,000 लोग सफ़र करते हैं.
४. सारे सुरक्षा साधनों की मौजूदगी के बावजूद मुंबई लोकल ट्रेन्स में सफ़र के दौरान औसतन सालाना 3,700 यात्रियों की मौत होती है. पिछले दस सालों में (2002-2012) मुंबई लोकल्स में दुर्घटनाओं की वजह से 36,152 लोग मर चुके हैं तथा 36,688 लोग घायल हुए हैं.
४. प्रतिवर्ष औसतन 3700 यात्रियों की मौत के बाद भी यह विश्व का सर्वाधिक सुरक्षित रेलवे सिस्टम है. आज तक किसी ट्रेन का एक्सिडेंट नहीं हुआ है. जो भी मौतें होती हैं वे अत्यधिक भीड़ तथा यात्रियों की लापरवाही की वजह से होती हैं.
५. हर स्टेशन तथा हर ट्रेक पर औसतन 400 ट्रेन प्रतिदिन के हिसाब से आवाजाही रहती है.
चलिए अब वक़्त है आपको मुंबई लोकल के बारे में पर्याप्त जानकारी देने का, आशा है यह जानकारी अन्य घुमक्कड़ साथियों के लिए फायदेमंद साबित होगी.
मुंबई लोकल का रूट नेटवर्क:
मुंबई महानगरी में आवागमन के साधन के रूप में लोकल ट्रेन्स सबसे दक्ष एवं तेज साधन है. मुंबई की लोकल ट्रेनें भारतीय रेलवे की दो जोनल अथोरिटी सेंट्रल रेलवे एवं वेस्टर्न रेलवे के द्वारा संचालित की जाती हैं.
1 . सेंट्रल रेलवे मेन लाइन - छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से कसारा एवं करजत
2 . वेस्टर्न रेलवे लाइन – चर्चगेट से विरार
3 . सेंट्रल रेलवे हार्बर लाइन – छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से मानखुर्द
मुंबई लोकल में किस समय सफ़र करें:
अगर आप मुंबई लोकल में सफ़र करना चाहते हैं और मुश्किलों से भी बचना चाहते हैं तो सुबह तथा शाम की बेतहाशा भीड़ से बचते हुए ११ बजे से ४ बजे के बिच सफ़र करें. शनिवार तथा रविवार को इन ट्रेनों में अपेक्षाकृत कम भीड़ होती है.
बैठक व्यवस्था:
मुंबई लोकल ट्रेनों में पुरुषों तथा महिलाओं के लिए प्रथक कम्पार्टमेंट की व्यवस्था है. कैंसर तथा मधुमेह रोगियों के लिए भी इन ट्रेनों में बैठक की प्रथक व्यवस्था है. इन ट्रेनों में फर्स्ट क्लास डिब्बों की भी व्यवस्था है, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है की आपको इन फर्स्ट क्लास डिब्बों में कुछ लक्झरी सेवाएं मिलेगी बल्कि इसका मतलब यह है की आप थोडा ज्यादा पैसा देकर भीड़ से होनेवाली असुविधा से बच सकते है. महिलाओं के लिए अलग डिब्बे की भी इन ट्रेनों में व्यवस्था है.
सही लोकल ट्रेन का चुनाव:
कौन सी ट्रेन किस प्लेटफोर्म से रवाना होगी यह जानना थोडा मुश्किल होता है. ट्रेनों को उनके अंतिम गंतव्य स्थान से पहचाना जा सकता है. आमतौर पर ट्रेन के ऊपर ट्रेन के अंतिम स्टेशन के नाम के शुरुवाती एक या दो अक्षर प्रदर्शित किये जाते हैं तथा इसी के बाजू में ट्रेन फास्ट है या स्लो यह भी प्रदर्शित किया जाता है जैसे BO F का मतलब है बोरीवली की और जानेवाली फास्ट ट्रेन.
मुंबई लोकल ट्रेन्स में सफ़र कैसे करें?
१. करीबी रेलवे स्टेशन जाएँ.
२. टिकिट खिड़की से या ATVM (ऑटोमेटिक टिकिट वेंडिंग मशीन) से अपना टिकिट खरीदें.
३. सही प्लेटफोर्म पर जाकर खड़े हो जाएँ.
४. ट्रेन आने पर सही कम्पार्टमेंट देखकर ही ट्रेन में घुसें. अगर आपके पास फर्स्ट क्लास का टिकिट नहीं है तो फर्स्ट क्लास में न घुसें.
५. ध्यान दें की लोकल ट्रेन दो तरह की होती हैं स्लो और फास्ट. स्लो ट्रेन हर स्टेशन पर रूकती हैं और फास्ट ट्रेन कुछ चुनिन्दा स्टेशनों पर ही रूकती हैं.
६. नई ट्रेनों में एनाउन्समेंट की सुविधा है, जिससे आपको अपने स्टेशन पर उतरने में आसानी होती है.
मुंबई लोकल ट्रेन्स में पालन करने योग्य सुरक्षा के उपाय:
१. यदि आपका स्टेशन नहीं आया है तो आप गेट के पास नहीं खड़े हों. कई बार भीड़ के द्वारा आप न चाहते हुए भी बहार धकेल दिए जाते हैं जिससे दुर्घटना की सम्भावना रहती है.
२. प्लेटफोर्म पर भी ट्रेक से थोडा दूर ही खड़े रहें, ट्रेन पकड़ने के लिए भागते लोग आपको धक्का दे कर गिरा सकते है.
३. लोकल ट्रेन में सफ़र के दौरान अपना मूल्यवान सामान अपने बैग में रखें तथा बैग को अपने सिने से चिपका कर रखें, आपके आसपास कोई जेबकतरा खड़ा हो सकता है.
चलिए अब रुख करते हैं खुद की और, तो साहब हमें विशाल जी ने इन तीन चार दिनों में मुंबई की जान इन लोकल ट्रेनों में चढ़ने उतरने, टिकिट लेने, जगह हथियाने और टाइम पास करने के सारे हथकंडे बता दिए थे वर्ना हम तो ठहरे सीधे सादे इन्दौरी हमारी बिसात कहाँ की इन लोकल ट्रेनों की भीड़ का सामना कर पाते.
आज के लिए बस इतना ही अब अगली पोस्ट में आपको लेकर चलूँगा मुंबई में हाजी अली की दरगाह तथा महालक्ष्मी मंदिर की सैर पर.
हमारी मुंबई यात्रा वस्तुतः मेरे तथा विशाल राठोड़ (जो घुमक्कड़ के एक वरिष्ठ लेखक हैं) के परिवार की सम्मिलित तटीय कर्नाटक यात्रा (उडुपी – कोल्लूर- मुरुदेश्वर- गोकर्ण) के परिणामस्वरूप थी. हमें अपनी कर्नाटक यात्रा के लिए योजना के अनुसार पहले विशाल राठोड़ के घर मुंबई जाना था तथा वहां से दोनों परिवारों को उडुपी के लिए प्रस्थान करना था.
अपने इस चार दिवसीय मुंबई प्रवास के दौरान मुंबई में हमने विशाल राठोड़ के मार्गदर्शन में उन्हीं के साथ मुंबई के कुछ चुनिन्दा दर्शनीय स्थलों का भ्रमण तथा अवलोकन किया जैसे हाजी अली की दरगाह, सिद्धि विनायक मंदिर, महालक्ष्मी मंदिर, तारापुरवाला एक्वेरियम, बांद्रा बेन्डस्टेंड, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, ताजमहल होटल, गेटवे ऑफ़ इंडिया, बाबुलनाथ मंदिर, मुकुटेश्वर मंदिर, इस्कोन मंदिर, एंटेलिया (मुकेश अम्बानी का निवास), मन्नत (शाहरुख खान का निवास), जलसा तथा प्रतीक्षा (अमिताभ बच्चन के दोनों निवास), बसेरा (रेखा का निवास), इम्पीरियल टॉवर्स तथा अन्य कई दर्शनीय स्थल.
इस पूरी मुंबई यात्रा के दौरान अगर मुझे किसी चीज ने आकर्षित किया तो वह थी मुंबई की जीवन रेखा कही जाने वाली मुंबई उपनगरीय रेल व्यवस्था जिसे मुंबई लोकल कहते हैं, और इस रेल व्यवस्था से मैं इतना प्रभावित हुआ की मैंने सोच लिया था की घुमक्कड़ पर अपनी अगली पोस्ट इस मुंबई लोकल को ही समर्पित करूँगा.
गाड़ी बुला रही है, सिटी बजा रही है.
चलना ही ज़िन्दगी है, चलती ही जा रही है………..
बीते वर्षों की एक बॉलीवुड फिल्म का यह गाना आज भी मुंबई में रहने वाले लाखों लोगों के जीवन के एक महत्वपूर्ण पहलु को परिभाषित करता है. इलेक्ट्रिक मल्टिपल यूनिट्स (EMU ‘s) जिन्हें मुंबई लोकल ट्रेन कहा जाता है, मुंबई की जीवन रेखा है. BO – 06 :57 – Slow और N -08 :23 – Fast जैसे संकेत मुम्बईकरों के दैनिक जीवन का हिस्सा है. वस्तुतः इन लोकल ट्रेनों के बिना मुंबई की कल्पना करना भी असंभव है. अगर आपने लोकल ट्रेन में सफ़र नहीं किया मतलब आपने मुंबई नहीं घुमा, या आपका मुंबई घूमना अधुरा है.
मुंबई में वैसे तो जन परिवहन के लिए अन्य साधन भी उपलब्ध हैं जैसे ऑटो रिक्शा, टेक्सी, उपनगरीय बसें आदि लेकिन जनमानस में अगर सबसे प्रचलित आवागमन का साधन कोई है तो वह मुंबई लोकल ही है. मुंबई शहर को गतिमान रखने में इन मुंबई लोकल्स का बहुत योगदान है, लोकल ट्रेन्स के एक दिन भी रुक जाने से मुंबई शहर जैसे ठहर जाता है, मुंबई की धड़कने चलती हैं तो इन लोकल्स के ही सहारे.
शंघाई, इस्तांबुल तथा कराची के बाद मुंबई विश्व का चौथा सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर है, तथा भारत में तो यह निर्विवाद रूप से सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर है. अगर मुंबई के साथ लगे ठाणे तथा नवी मुंबई को मिला कर देखा जाये तो यह शहर विश्व का सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर बन जाता है. अब आप सोच सकते हैं की इतने बड़े शहर की इतनी ज्यादा आबादी में स्थानीय परिवहन साधन के रूप में सर्वाधिक प्रचलित साधन को हम कुछ विशेष ही कहेंगे न.
मुंबई की धरती पर उतरते ही सबसे पहले हमारा सामना मुंबई लोकल ट्रेन सर्विस से ही हुआ. वैसे मुंबई में हम दुसरे साधनों से भी घूम सकते थे लेकिन हमारे मेजबान विशाल राठोड़ ने मुझे मुंबई की इस अनूठी तथा विशिष्ट व्यवस्था से परिचित करवाने के उद्देश्य से हमारे मुंबई भ्रमण की पूरी व्यवस्था इन लोकल ट्रेनों से ही की थी, और सच बताउं तो हमने भी मुंबई में इन लोकल ट्रेन्स के सफ़र तथा अनियंत्रित भीड़ का खूब लुत्फ़ उठाया. अगर आप मुंबई जा रहे हैं और आपको लोकल ट्रेन्स तथा इनमें सफ़र करने की रणनीति की पर्याप्त जानकारी है तो निश्चित रूप से आप मुंबई में इन ट्रेन्स में सफ़र करके अपना काम निकाल सकते हैं वरना………..गोलमाल है भाई सब गोलमाल है.
अत्यधिक भीड़- मुंबई लोकल का नकारात्मक पहलु:
मुंबई की तेज़ तथा भागमभाग वाली ज़िन्दगी से सामंजस्य बैठने के लिए यहाँ पर हर किसी को इन लोकल ट्रेन्स के सहारे ही अपनी ज़िन्दगी चलानी होती है, हर वर्ग के व्यक्तियों के द्वारा एक महत्वपूर्ण स्थानीय परिवहन के साधन के तौर पर उपयोग किये जाने की वजह से इन लोकल ट्रेनों में बेतहाशा ड़ होती है. व्यस्त समय में एक ट्रेन जिसमें सिर्फ 9 डिब्बे जिनमें सिर्फ 1700 यात्रियों को ढोने की क्षमता होती है उससे कहीं ज्यादा लगभग 4500 यात्रियों को ढोना इन ट्रेनों की बदनसीबी है. इस बेतहाशा भीड़ की वजह से ट्रेन के प्रति स्क्वेयर मीटर की छोटी सी जगह में 14 से 16 लोगों को खड़ा होने पर मजबूर होना पड़ता है.
मुंबई लोकल में चढ़ना तथा उतरना – एक चुनौती:
मुंबई लोकल में चढ़ना और उतरना अपने आप में एक बहुत बड़ी कला, क्षमता तथा दक्षता का काम है. मुंबई लोकल में चढ़ते तथा उतरते समय आपको सभ्यता तथा सही तौर तरीकों को बाजु में रखना होगा, यहाँ पर ऐसे मैनर्स को फोलो करना जायज़ नहीं है जैसे की चढ़ने से पहले उतरने वाली सवारियों को उतरने दिया जाये. यहाँ तो जो अपने आप को जो धक्का मुक्की करके कैसे भी ट्रेन के अन्दर घुसेड़ पाता है वही शूरवीर और वही सिकंदर होता है. ट्रेन के दरवाज़े यात्रियों से ठंसे पड़े होते हैं और ऐसी ही परिस्थिति में आपको चढ़ना भी होता है और उतरना भी, जो जीता वही सिकंदर की कहावत यहाँ सोलह आने सच साबित होती है. अपना स्टेशन आने से पहले ही आपको चौकन्ना हो जाना चाहिए और गेट पर पहुँच जाना चाहिए, बाकी का काम आपकी पीछे की भीड़ अपने आप कर देगी और आपको आगे धकेल कर उतार देगी.
पैर रखने की जगह का जुगाड़:
मुंबई लोकल ट्रेनों में आपको भिन्न भिन्न प्रकार के लोग बैठे, खड़े, भीड़ में फंसे मिल जायेंगे. कोई महाराष्ट्र से, कोई गुजरात से कोई यूपी से तो कोई बिहार से. अपनी क्षमता से चार गुना लोगों को लादे ये लोकल ट्रेन के डिब्बे अगर आपको अपने दोनों पैर फ्लोर पर रखने की इज़ाज़त दे देते हैं तो ये आपकी खुशनसीबी होगी. भीड़ में फंसने के बाद आपको अपने अंगों के बारे में ही होश नहीं रहेगा की आपके हाथ कहाँ हैं, पैर कहाँ और सिर कहाँ. आपके सिर के आसपास और भी आठ दस सिर होंगे और हर एक सिर से एक अलग गंध आपके नथुनों को सुवासित करेगी, किसी सिर से चमेली तो किसी से आंवला किसी से मूंगफली तो किसी से सोयाबीन के तेल की गंध आपको मुंबई लोकल में होने का एहसास कराएगी. दुनिया का कोई भी परफ्यूम, कोई भी डीओडोरेंट कम्पार्टमेंट में फैली इस गंध को चुनौती नहीं दे सकता.
पसीने की गाथा:
भीड़ से अटे आपके कम्पार्टमेंट में हवा का झोंका अन्दर आने के लिए अपनी सारी ताकत झोंककर हार कर वापस लौट जाता है और फिर दौर शुरू होता है पसीने का. पसीने की बूंदें आपके माथे से टपक कर नाक से होते हुए आपके होठों से टकराती है और आपको अपने खारेपन से अवगत कराती है लेकिन सावधान………….हर बार ज़रूरी नहीं की यह आपके ही माथे का पसीना हो, आसपास और भी माथे हैं भाई…………….
मुंबई लोकल – कुछ रोचक तथ्य:
१. सेंट्रल एवं वेस्टर्न रेलवे दोनों मिलाकर प्रतिदिन करीब छः करोड़ दस लाख यात्रियों को ढोती हैं, यह संख्या कुछ देशों जैसे फिनलैंड, नोर्वे, न्यूज़ीलैंड की जनसँख्या से अधिक है. उदाहरण के लिए, सुबह के व्यस्त समय में वेस्टर्न रेलवे के चर्चगेट स्टेशन पर सिर्फ 90 सेकेंड के अंतराल में तक़रीबन 4000 यात्री प्रति ट्रेन के हिसाब से उतरते हैं, अब आप भीड़ की कल्पना कर सकते हैं.
२. मुंबई लोकल का सवारी घनत्व (passenger density) विश्व के किसी भी शहरी रेलवे सिस्टम से सर्वाधिक है.
३. चर्चगेट से विरार के बिच के ६० किलोमीटर में एक वर्ष में लगभग 900,000,000 लोग सफ़र करते हैं.
४. सारे सुरक्षा साधनों की मौजूदगी के बावजूद मुंबई लोकल ट्रेन्स में सफ़र के दौरान औसतन सालाना 3,700 यात्रियों की मौत होती है. पिछले दस सालों में (2002-2012) मुंबई लोकल्स में दुर्घटनाओं की वजह से 36,152 लोग मर चुके हैं तथा 36,688 लोग घायल हुए हैं.
४. प्रतिवर्ष औसतन 3700 यात्रियों की मौत के बाद भी यह विश्व का सर्वाधिक सुरक्षित रेलवे सिस्टम है. आज तक किसी ट्रेन का एक्सिडेंट नहीं हुआ है. जो भी मौतें होती हैं वे अत्यधिक भीड़ तथा यात्रियों की लापरवाही की वजह से होती हैं.
५. हर स्टेशन तथा हर ट्रेक पर औसतन 400 ट्रेन प्रतिदिन के हिसाब से आवाजाही रहती है.
चलिए अब वक़्त है आपको मुंबई लोकल के बारे में पर्याप्त जानकारी देने का, आशा है यह जानकारी अन्य घुमक्कड़ साथियों के लिए फायदेमंद साबित होगी.
मुंबई लोकल का रूट नेटवर्क:
मुंबई महानगरी में आवागमन के साधन के रूप में लोकल ट्रेन्स सबसे दक्ष एवं तेज साधन है. मुंबई की लोकल ट्रेनें भारतीय रेलवे की दो जोनल अथोरिटी सेंट्रल रेलवे एवं वेस्टर्न रेलवे के द्वारा संचालित की जाती हैं.
1 . सेंट्रल रेलवे मेन लाइन - छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से कसारा एवं करजत
2 . वेस्टर्न रेलवे लाइन – चर्चगेट से विरार
3 . सेंट्रल रेलवे हार्बर लाइन – छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से मानखुर्द
मुंबई लोकल में किस समय सफ़र करें:
अगर आप मुंबई लोकल में सफ़र करना चाहते हैं और मुश्किलों से भी बचना चाहते हैं तो सुबह तथा शाम की बेतहाशा भीड़ से बचते हुए ११ बजे से ४ बजे के बिच सफ़र करें. शनिवार तथा रविवार को इन ट्रेनों में अपेक्षाकृत कम भीड़ होती है.
बैठक व्यवस्था:
मुंबई लोकल ट्रेनों में पुरुषों तथा महिलाओं के लिए प्रथक कम्पार्टमेंट की व्यवस्था है. कैंसर तथा मधुमेह रोगियों के लिए भी इन ट्रेनों में बैठक की प्रथक व्यवस्था है. इन ट्रेनों में फर्स्ट क्लास डिब्बों की भी व्यवस्था है, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है की आपको इन फर्स्ट क्लास डिब्बों में कुछ लक्झरी सेवाएं मिलेगी बल्कि इसका मतलब यह है की आप थोडा ज्यादा पैसा देकर भीड़ से होनेवाली असुविधा से बच सकते है. महिलाओं के लिए अलग डिब्बे की भी इन ट्रेनों में व्यवस्था है.
सही लोकल ट्रेन का चुनाव:
कौन सी ट्रेन किस प्लेटफोर्म से रवाना होगी यह जानना थोडा मुश्किल होता है. ट्रेनों को उनके अंतिम गंतव्य स्थान से पहचाना जा सकता है. आमतौर पर ट्रेन के ऊपर ट्रेन के अंतिम स्टेशन के नाम के शुरुवाती एक या दो अक्षर प्रदर्शित किये जाते हैं तथा इसी के बाजू में ट्रेन फास्ट है या स्लो यह भी प्रदर्शित किया जाता है जैसे BO F का मतलब है बोरीवली की और जानेवाली फास्ट ट्रेन.
मुंबई लोकल ट्रेन्स में सफ़र कैसे करें?
१. करीबी रेलवे स्टेशन जाएँ.
२. टिकिट खिड़की से या ATVM (ऑटोमेटिक टिकिट वेंडिंग मशीन) से अपना टिकिट खरीदें.
३. सही प्लेटफोर्म पर जाकर खड़े हो जाएँ.
४. ट्रेन आने पर सही कम्पार्टमेंट देखकर ही ट्रेन में घुसें. अगर आपके पास फर्स्ट क्लास का टिकिट नहीं है तो फर्स्ट क्लास में न घुसें.
५. ध्यान दें की लोकल ट्रेन दो तरह की होती हैं स्लो और फास्ट. स्लो ट्रेन हर स्टेशन पर रूकती हैं और फास्ट ट्रेन कुछ चुनिन्दा स्टेशनों पर ही रूकती हैं.
६. नई ट्रेनों में एनाउन्समेंट की सुविधा है, जिससे आपको अपने स्टेशन पर उतरने में आसानी होती है.
मुंबई लोकल ट्रेन्स में पालन करने योग्य सुरक्षा के उपाय:
१. यदि आपका स्टेशन नहीं आया है तो आप गेट के पास नहीं खड़े हों. कई बार भीड़ के द्वारा आप न चाहते हुए भी बहार धकेल दिए जाते हैं जिससे दुर्घटना की सम्भावना रहती है.
२. प्लेटफोर्म पर भी ट्रेक से थोडा दूर ही खड़े रहें, ट्रेन पकड़ने के लिए भागते लोग आपको धक्का दे कर गिरा सकते है.
३. लोकल ट्रेन में सफ़र के दौरान अपना मूल्यवान सामान अपने बैग में रखें तथा बैग को अपने सिने से चिपका कर रखें, आपके आसपास कोई जेबकतरा खड़ा हो सकता है.
चलिए अब रुख करते हैं खुद की और, तो साहब हमें विशाल जी ने इन तीन चार दिनों में मुंबई की जान इन लोकल ट्रेनों में चढ़ने उतरने, टिकिट लेने, जगह हथियाने और टाइम पास करने के सारे हथकंडे बता दिए थे वर्ना हम तो ठहरे सीधे सादे इन्दौरी हमारी बिसात कहाँ की इन लोकल ट्रेनों की भीड़ का सामना कर पाते.
आज के लिए बस इतना ही अब अगली पोस्ट में आपको लेकर चलूँगा मुंबई में हाजी अली की दरगाह तथा महालक्ष्मी मंदिर की सैर पर.
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