सोमनाथ से द्वारका – बस का सफ़र:
सोमनाथ से हमारी बस द्वारका के लिए करीब 3 :15 को निकल गई. सोमनाथ से द्वारका सड़क द्वारा लगभग 230 किलोमीटर की दुरी पर है तथा सड़क मार्ग के अलावा अन्य कोई आवागमन का साधन सोमनाथ तथा द्वारका के बीच नहीं है. लगभग पूरा रास्ता ही समुद्र के सामानांतर चलता है जो की बड़ा ही मनोरम तथा लुभावना है. इस रास्ते पर भी कुछ दर्शनीय स्थल आते हैं, जिनके दर्शन की सुविधा बस संचालक यात्रियों को प्रदान करते हैं. द्वारका के रास्ते में पड़ने वाले दर्शनीय स्थलों में प्रमुख हैं – मूल द्वारका, हरसिद्धि (हर्षद) माता मंदिर, खोडियार माता मंदिर (नरवाई माता) तथा महात्मा गाँधी का जन्मस्थान पोरबंदर आदि (लेकिन हमारी बस पोरबंदर नहीं रुकी थी). सोमनाथ से द्वारका जाने के लिए गुजरात परिवहन निगम की बसों के अलावा कुछ निजी बसें तथा जीपें भी उपलब्ध हैं.
तो पुरे रास्ते समुद्र के किनारे सफ़र का आनंद, दूर दूर तक फैले नारियल के पेड़ों के बाग़, तथा बिच बिच में रूककर मंदिरों के दर्शन करना सचमुच बड़ा ही सुखद था, ऐसा लग रहा था की यह सफ़र यूँ ही चलता रहे कभी ख़त्म न हो लेकिन हम जो चाहते हैं वैसा हमेशा होता नहीं है……………तो हमारे इस सुखद सफ़र का अंत हुआ 8:30 बजे रात जो द्वारका पहुँच कर. हमारे साथ उस बस में जितने भी यात्री थे सबका उद्देश्य एक ही था द्वारका पहुँच कर द्वारकाधीश भगवान श्री कृष्ण के दर्शन करना, अतः बस में इस छः घंटे के सफ़र में हमारी कुछ लोगों से दोस्ती भी हो गई, जो हमें पुरे द्वारका दर्शन के दौरान जगह जगह पर मिलते रहे.
द्वारका आगमन:
खैर, बस से उतरते हुए लगभग रात के नौ बज गए थे. बस से उतरते ही हम दो तीन दिन रुकने के लिए एक अच्छे आशियाने की तलाश में लग गए, बस स्टॉप के पास में ही बहुत सारे निजी होटल्स थे, या यों कहें की पुरे द्वारका शहर में हर जगह धर्मशालाएं तथा होटल्स की भरमार है, क्योंकि यह पवित्र नगरी कई मायनों में अति महत्त्वपूर्ण है जैसे:- हिन्दू धर्म के मुख्य चार धामों में से एक, हिन्दू पुराणों के अनुसार सप्त मोक्षदायिनी पुरियों में से एक तथा आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चारों दिशाओं में स्थापित मठों में से एक श्री शारदा मठ यहीं पर स्थित है.
हमें भी यहाँ अपने लिए एक सुविधाजनक होटल ढूंढने में कोई ख़ास परेशानी नहीं हुई, बस स्टॉप के पास ही हमें बहुत ही किफायती दर पर अच्छी सुविधाओं वाला होटल मिल ही गया, मात्र 250 रु. में डबल बेड के साथ अटेच लेट बाथ वाला एकदम नया साफ़ स्वच्छ चमचमाता कमरा वो भी कलर टीवी के साथ जिसकी खिड़की द्वारका नगरी के मुख्य चौराहे (तीन बत्ती चौराहा) पर खुलती हो, और द्वारकाधीश मंदिर जहाँ से मात्र पांच मिनट के पैदल रास्ते पर हो इससे ज्यादा और हमें क्या चाहिए था.
साथियों की सुविधा के लिए होटल के बारे में जानकारी यहाँ लिख रही हूँ- होटल शिव, तीन बत्ती द्वारका – 361335 गुजरात. फ़ोन- +91 1164557711, तथा +919654-780079.
इस होटल के करीब ही एक बड़ा अच्छा सा भोजनालय भी है (नाम अब मुझे याद नहीं है,……….हाँ याद आया यमुना भोजनालय, तीन बत्ती, द्वारका), जहाँ पर हमें इतना स्वादिष्ट खाना मिला की अगले तीन दिन तक हमने वहीँ खाना खाया. उस रात तो हम बस के लम्बे सफ़र से इतने थक गए थे की बस पेट भर भोजन करके सोना चाहते थे. और हमने वही किया खाना खाकर सो गए, और यकीन मानिए भगवान कृष्ण की इस पावन नगरी में हमें इतनी मीठी नींद आई की सफ़र की सारी थकान मिट गई.
अगले दिन:
अगले दिन सुबह जल्दी उठकर नहा धो कर हम सब भगवान द्वारकाधीश के दर्शनों के लिए निकल पड़े और मंदिर पहुंचकर भगवान को अर्पण करने के लिए तुलसीदल (मंजरी) की माला ली. यहाँ बताना चाहूंगी की जिस प्रकार भगवान शिव जी को बेल पत्र प्रिय हैं उसी प्रकार भगवान विष्णु (कृष्ण) को तुलसी दल प्रिय है.
भगवान द्वारकाधीश का मंदिर जिसे जगद मंदिर भी कहा जाता है अब हमारे सामने था, और हमें अपने आप पर विश्वास ही नहीं हो रहा था की हम द्वारका धाम में द्वारकाधीश मंदिर के सामने खड़े हैं, एक हिन्दू के लिए सचमुच यह बड़े सौभाग्य की बात है. मंदिर की सुन्दरता तथा विशालता देखकर मैं तो भावविभोर हो गई, और मंदिर के शिखर पर लहराती विशाल ध्वजा तो इतनी मनमोहक लगी की बस मैं देखती ही रह गई और मेरी पलके ही नहीं झपक रही थीं.
चलिए अब वक़्त है इस अद्भुत जगह की प्रमाणिक जानकारी प्रदान करने का, तो लीजिये मैं अब अपनी यात्रा को थोडा सा विराम देकर द्वारका तथा द्वारकाधीश मंदिर की थोड़ी सी जानकारी देने का प्रयास करती हूँ………….
द्वारका स्थान परिचय:
द्वारका गुजरात के जामनगर जिले में स्थित एक पवित्र नगर है तथा प्रसिद्द हिन्दू तीर्थ स्थान है. पुराणों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने यहाँ पर शासन किया था, इसे भारत के कुछ अति प्राचीन तथा पवित्र नगरों में से एक माना जाता है तथा प्राचीन पुराणों के अनुसार इसे संस्कृत में द्वारावती कहा जाता था. ऐसा कहा जाता है की यह पौराणिक नगर भगवान श्री कृष्ण का निवास स्थान था. माना जाता है की समुद्री विध्वंश तथा अन्य प्राकृतिक आपदाओं की वजह से द्वारका अब तक छः बार समुद्र में डूब चुकी है तथा अभी जो द्वारका नगर उपस्थित है वह सातवीं बार बसाई गई द्वारका है. यह नगर भगवान श्री विष्णु के 108 दिव्य देसम में से भी एक है.
हिन्दू पुराणों के अनुसार द्वारका सात मोक्षदायी तथा अति पवित्र नगरों में से एक है. गरुड़ पुराण के अनुसार-
अयोध्या,मथुरा, माया, कासी, कांची अवंतिका. पूरी द्वारावती चैव सप्तयिता मोक्षदायिकाः
श्री द्वारकाधीश मंदिर-एक परिचय:
द्वारकाधीश का वर्तमान मंदिर सोलहवीं शताब्दी में निर्मित हुआ था, जबकि मूल (ओरिजिनल) मंदिर का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र राजा वज्र ने करवाया था. यह पांच मंजिला मंदिर चुने तथा रेत से निर्मित किया गया है. मंदिर के शिखर की ध्वजा प्रतिदीन पांच बार बदली जाती है. मंदिर के दो द्वार हैं स्वर्ग द्वार जहाँ से दर्शनार्थी भक्त प्रवेश करते हैं तथा दूसरा मोक्ष द्वार जहाँ से भक्त बाहर की ओर निकलते हैं. मंदिर से ही गोमती नदी का समुद्र से संगम देखा जा सकता है. मंदिर के अन्दर भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति है जिसे राजसी वैवाहिक पोषाक से प्रतिदीन सजाया जाता है.रुक्मणि देवी का मंदिर अलग से बनाया गया है जो की बेट द्वारका के रास्ते पर पड़ता है.
तो यह तो था एक सक्षिप्त परिचय द्वारका तथा द्वारकाधीश मंदिर से अब हम लौटते है पुनः अपनी यात्रा की ओर…………….. तो हम आरती के समय का पता लगाकर सुबह सुबह करीब सात बजे मंदीर पहुँच गए और लाइन में लग गए, और हमेशा की तरह हमें बिना किसी परेशानी के करीब आधे घंटे में भगवान श्री द्वारकाधीश के दर्शन हो गए. भगवान का मोहक स्वरुप और मंदिर का भक्तिमय माहौल देखकर हम तो जैसे निहाल हो गए. दर्शन के पश्चात हमने प्रसाद काउंटर से प्रसाद ख़रीदा. मंदिर में एक 250 रु. का माखन मिश्री का भोग लगता है, मेरी बहुत इच्छा थी यह भोग चढाने की लेकिन पता नहीं क्यों मैंने यह नहीं किया, और इसीलिए आज भी मेरे दिल में एक टीस सी उठती है लेकिन कोई बात नहीं मैं तो सोचती हूँ शायद भगवान मुझे दुबारा अपने द्वार बुलाना चाहते हैं शायद इसी लिए यह कमी रह गई.
मंदिर दर्शन के बाद हम मोक्ष द्वार से बाहर की ओर निकल गए, पीछे के द्वार से बाहर आते ही गोमती नदी के दर्शन होते हैं तथा नदी के किनारे किनारे देवी देवताओं के कई सारे मंदिर हैं. सारे मंदिरों के दर्शन करने तथा गोमती में स्नान करने के बाद हम नदी के किनारे होते हुए संगम की ओर बढ़े जहाँ गोमती नदी का समुद्र से संगम होता है, या यह कह लीजिये गोमती नदी समुद्र में समा जाती है. यहाँ भी समुद्र तट पर हमने बहुत समय बिताया तथा बच्चों के साथ समुद्र की लहरों से भीगने का खूब आनंद उठाया. दिन भर द्वारका में खूब घुमने फिरने के बाद शाम को हम अपने होटल में आ गए तथा वहीँ यमुना होटल पर स्वादिष्ट खाना खाया. भोजनालय का स्टाफ भी इन तीन दिनों में हमसे खूब हिल मिल गया था, सभी लोग शिवम् को पहचानने लगे थे और उससे बहुत लाड प्यार करते थे, हमने भी उन सबको इंदौर आने का न्यौता दिया. अगले दिन हमारा प्लान था द्वारका के आस पास स्थित दर्शनीय स्थलों का भ्रमण जैसे रुक्मणि मंदिर, गोपी तलाव, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर तथा बेट द्वारका (भेंट द्वारका).
द्वारका के आस पास के अन्य दर्शनीय स्थलों का भ्रमण:
अगले दिन सुबह हमने अपने होटल के रिसेप्शन पर द्वारका भ्रमण के बारे में पता किया तो हमें पता चला की द्वारका से (बुकिंग ऑफिस-सब्जी मार्केट तथा भद्रकाली चौक) दिन में दो बार सुबह आठ बजे तथा दोपहर दो बजे द्वारका नगर पालिका द्वारा संचालित द्वारका दर्शन की बसें चलती हैं जो यात्रियों को रुक्मणि मंदिर, गोपी तलाव, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर तथा बेट द्वारका (भेंट द्वारका) के दर्शन करवा कर पांच से छः घंटे में वापस द्वारका लाकर छोड़ देती है तथा 60 रु. प्रति व्यक्ति का किराया लेती हैं. अतः हमने भी ऐसी ही एक बस में अपने लिए तीन सीटों की बुकिंग करवा ली.
यहाँ एक बात मैं स्पष्ट कर दूं की हम लोग ज्योतिर्लिंग मंदिरों के बहुत विस्तार से दर्शन, पूजन, अभिषेक करने के इच्छुक रहते हैं तथा ज्योतिर्लिंग मंदिर के लिए अपेक्षाकृत ज्यादा समय की योजना रखते हैं अतः हमने श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के लिए अगले दिन के लिए अलग से प्लान किया ताकि पहले दिन द्वारका दर्शन बस से भी नागेश्वर के दर्शन हो जाएँ तथा अगले दिन अलग से भी यहाँ आकर अभिषेक और दर्शन कर लें.
तो करीब 12 बजे हमारी बस द्वारका भ्रमण के लिए निकल पड़ी, उस समय तेज धुप निकली हुई थी तथा गर्मी भी हो रही थी, लेकिन थोड़ी ही देर में जैसे ही बस द्वारका से बाहर निकली बस की खिड़की से हवा आने लगी तथा गर्मी काफूर हो गयी.
रुक्मणि मंदिर:
यह मंदिर द्वारका से करीब 3 किलोमीटर की दुरी पर द्वारका शहर के बाहरी हिस्से में स्थित है. इस मंदिर के बारे में एक रोचक कहानी है की एक बार दुर्वासा ऋषि जो भगवान श्री कृष्ण के गुरु थे, द्वारका में पधारने वाले थे यह खबर सुनकर भगवान कृष्ण तथा माता रुक्मणि उन्हें ससम्मान लेने के लिए जंगल में गए, दुर्वासा ऋषि की इच्छा के अनुरूप भगवान कृष्ण तथा रुक्मणि रथ में घोड़ों की जगह खुद जुत गए, अत्यधिक गर्मी तथा थकान की वजह से माता रुक्मणि को प्यास सताने लेगी तो भगवान श्रीकृष्ण के माता की प्यास बुझाने के लिए जमीं से कुछ पानी निकाला जिसे रुक्मणि जी पीने लगी, यह देखकर ऋषि दुर्वासा बहुत क्रोधित हो गए की पहले गुरु से पानी का पूछने के बजाय रुक्मणि ने खुद कैसे पानी पी लिया. अत्यधिक क्रोधी स्वाभाव के होने के कारन दुर्वासा ने रुक्मणि जी को श्राप दिया की अगले बारह वर्षों तक रुक्मणि जी भगवान कृष्ण से दूर इसी स्थान पर तथा प्यासी रहेंगी. इसी श्राप की वजह से माता रुक्मणि का यह मंदिर द्वारका से बाहर है. मंदिर में एक अजीब प्रथा भी है की हर भक्त मंदिर में प्रवेश से पहले एक छोटा ग्लास पानी पीकर ही प्रवेश कर सकता है अन्यथा नहीं. रुक्मणि मंदिर के दर्शनों के पश्चात करीब दस मिनट में बार यहाँ से आगे की ओर चल दी. बस का कंडक्टर ही गाइड का काम भी कर रहा था, तथा मंदिरों के बारे में बड़ी अच्छी जानकारी दे रहा था.
श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर: (श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर को अगली पूरी पोस्ट समर्पित है, अतः यहाँ मैं इस मंदिर के बारे में कोई जानकारी नहीं दे रही हूँ)
गोपी तालाब:
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग से कुछ किलोमीटर चलने के बाद बेट द्वारका के रास्ते में आता है गोपी तालाब. गोपी तालाब एक छोटा सा तालाब है जो की चन्दन जैसी पिली मिट्टी से घिरा है जिसे गोपी चन्दन कहते हैं, यह चन्दन भगवान् श्री कृष्ण के भक्तों के द्वारा माथे पर तिलक लगाने के लिए किया जाता हैं. यह तालाब हिन्दू पौराणिक कथाओं में विशेष स्थान रखता है, ऐसा माना जाता है की इसी जगह पर गोपियाँ भगवान् श्री कृष्ण से मिलने आई थीं. गोपी तलाव द्वारका से 20 किलोमीटर तथा नागेश्वर से मात्र 5 किलोमीटर की दुरी पर बेट द्वारका के मार्ग पर स्थित है. कुछ देर इस सुन्दर जगह पर बिताने तथा तालाब के दर्शनों के पश्चात हमारी बस चल पड़ी बेट द्वारका की ओर.
बेट द्वारका:
बेट द्वारका, द्वारका से करीब 30 किलोमीटर दूर है तथा ऐसा माना जाता है की यह जगह भगवान कृष्ण का निवास स्थान थी. भगवान कृष्ण बेट द्वारका में निवास करते थे तथा उनका कार्यालय (दरबार) द्वारका में था. बेट द्वारका वही जगह है जहाँ भगवान श्रीकृष्ण की अपने बाल सखा सुदामा जी से मुलाकात (भेंट) हुई थी इसी वजह से इसे बेट द्वारका कहा जाता है. बेट द्वारका समुद्र के कुछ किलोमीटर अन्दर एक छोटे से द्वीप (Island) पर स्थित है जहाँ पहुँचने के लिए ओखा के समुद्री घाट (Jetty ) से फेरी (छोटा जहाज या नाव) की सहायता से जाना पड़ता है. फेरी से बेट द्वारका पहुँचने में लगभग आधे घंटे का समय लगता है. लेकिन यह आधे घंटे का सफ़र बड़ा ही आनंददायक होता है, खुले आकाश में नाव की सवारी करके एक टापू पर पहुंचना सचमुच बहुत सुखद अनुभव था. पक्षियों के झुण्ड के झुण्ड हमारी नाव के ऊपर उड़ रहे थे एवं कई बार तो ये पक्षी एकदम हमारे करीब आ जाते थे इतना करीब की हम उन्हें छू सकते थे.
इस कभी न भूलने योग्य अनुभव को हमने अपनी स्मृति में हमेशा के लिए बसा लिया और कुछ ही देर में हम बेट द्वारका के द्वीप पर पहुँच गए. बेट द्वारका में हमने सबसे पहले दर्शन किये भगवान कृष्ण के निवास स्थान के जो अब एक मंदिर है. बेट द्वारका में और भी सुन्दर तथा देखने लायक मंदिर हैं.
बेट द्वारका में करीब 2 घंटे रुकने के बाद हमारी बस वापस द्वारका के लिए निकल पड़ी तथा शाम सात बजे के लगभग हम अपने होटल में पहुँच गए. अगले दिन सुबह जल्दी उठकर हमें श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शनों के लिए जाना था अतः हम जल्द ही सो गए.
इस भाग के लिए बस इतना ही………………………………………………………अगले तथा अंतिम भाग में मैं आपको दर्शन कराउंगी श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के. उम्मीद है लेख आपको पसंद आएगा.
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