Tuesday, 9 April 2013

बुद्धं शरणम गच्छामी ………….आइये सारनाथ चलें।

साथियों,
इस श्रंखला की पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा की वाराणसी के प्रमुख मंदिर तथा रामनगर फोर्ट घुमने के बाद हम लोग होटल के अपने कमरे में आ गए तथा कुछ देर विश्राम के बाद गंगा के घाटों के दर्शन का आनंद उठाने के उद्देश्य से अब हम नाव में सवार हो गए थे और सारे घाट घुमने के बाद दशाश्वमेध घाट पर आकर जम कर बैठ गए, गंगा आरती का आनंद लेने के लिए। गंगा आरती में शामिल होकर ऐसा लग रहा था जैसे हमारा जीवन सफल हो गया। अब आगे ………………………
काम की बातें ........
काम की बातें ……..

आइये सारनाथ चलें
आइये सारनाथ चलें

वाराणसी के घाट एवं गंगा आरती

साथियों,
पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा काशी/वाराणसी/बनारस में हमने करीब ढाई दिन बिताया था। काशी में हमारा पहला दिन दशहरे का दिन था और इसी पवित्र दिन हमने भगवान विश्वनाथ के दो बार दर्शन किये। अगले दिन सुबह उठकर सबसे पहले गंगा माँ की पहली झलक तथा स्नान के लिए हम अस्सी घाट पहुंचे तथा स्नान के बाद दुर्गा मंदिर, तुलसी मंदिर तथा अन्य मंदिर घूमते हुए हम BHU स्थित नवीन काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचे तथा वहाँ से होते हुए रामनगर फोर्ट पहुंचे। अंत मे दोपहर तक अपने होटल पहुंचकर कुछ देर आराम किया तथा शाम करीब चार बजे हमने वाराणसी के घाटों के दर्शन की यात्रा प्रारंभ की ……….अब आगे।
मंदिरों के दर्शन तथा रामनगर फोर्ट से लौटने के बाद अब बाकी लोग होटल में अपने कमरे पर आराम कर रहे थे और मैं निकल पडा होटल के समीप स्थित शिवाला घाट की ओर जहां मुझे एक नाव वाले से बात करनी थी घाटों की यात्रा के लिए। जैसे ही मैं घाट पर पहुंचा मुझे एक नौजवान अपनी नई नवेली नाव की सफाई करता दिखाई दिया, मैंने उससे बात प्रारंभ की और अपना उद्देश्य बताया तो उसने मुझे चार घंटे में सारे घाटों की सैर करवा कर अंत में गंगा आरती में नाव मैं ही बैठ कर शामिल करवाने का वादा किया और चार्ज बताया सात सौ रुपये जिसे थोड़ी सी बातचीत के बाद उसने स्वयं ही घटा कर पांच सौ कर दिया। इस सहृदय नाविक का नाम था अजय।

गंगा में नौका विहार
गंगा में नौका विहार

खैर नाव का प्रबंध करके मैं वापस होटल आ गया तथा बाकी लोगों को जल्दी तैयार होकर शिवाला घाट चलने को कहा। कुछ देर में ही फटाफट सब लोग तैयार हो गए तथा कुछ जरुरी सामान एक बैग में लेकर हम घाट पर चल दिए। वहाँ अजय हमारा इंतज़ार कर रहा था। अब तक वह नाव की चकाचक सफाई कर चुका था। इस समय लगभग चार बज रहे थे और हमारा नाव का सफ़र प्रारंभ हो चुका था। अजय हमारा नाविक होने के साथ साथ गाइड का काम भी कर रहा था, उसने हमें बताया की आरती की तैयारी तो चार बजे से शुरू हो जाती है लेकिन आरती शाम साढ़े छह बजे शुरू होती है जो की लगभग आठ बजे तक चलती है। हमने सुन रखा था की यह आरती बहुत ही भव्य तथा वैभवशाली होती है अतः हम सभी गंगा आरती को लेकर बड़े ही उत्साहित थे।
वाराणसी में गंगा तट पर अनेक सुंदर घाट बने हैं, ये सभी घाट किसी न किसी पौराणिक या धार्मिक कथा से संबंधित हैं। वाराणसी के घाट गंगा नदी के धनुष की आकृति होने के कारण मनोहारी लगते हैं। सभी घाटों के पूर्वार्भिमुख होने से सूर्योदय के समय घाटों पर पहली किरण दस्तक देती है। उत्तर दिशा में राजघाट से प्रारम्भ होकर दक्षिण में अस्सी घाट तक सौ से अधिक घाट हैं।
वाराणसी दो नदियों के बिच बसा है वरुणा तथा असी इसीलिए इसका नाम (वरुणा + असी) = वाराणसी पडा है। अस्सी घाट प्रथम घाट है जहां से गंगा वाराणसी में प्रवेश करती है अतः यह घाट सभी घाटों में शुद्धतम है तथा यहाँ गंगा का स्वरुप भी साफ़ सुथरा तथा प्रदुषण रहित है।