मेरे नदीम मेरे हमसफ़र उदास न हो
कठिन सही तेरी मंजिल मगर उदास न हो
कदम कदम पे चट्टानें खडी रहें लेकिन
जो चल निकले हैं दरिया तो फिर नहीं रुकते
हवाएँ कितना भी टकराएँ आँधियाँ बनकर
मगर घटाओं के परचम कभी नहीं झुकते
मेरे नदीम मेरे हमसफ़र ......
हर इक तलाश के रास्ते में मुश्किलें हैं मगर
हर इक तलाश मुरादों के रंग लाती है
हजारों चाँद सितारों का ख़ून होता है
तब एक सुबह फ़िजाओं पे मुस्कुराती है
मेरे नदीम मेरे हमसफ़र ......
जो अपने खून को पानी बना नहीं सकते
वो जिंदगी में नया रंग ला नहीं सकते
जो रास्ते के अँधेरों से हार जाते हैं
वो मंजिलों के उजाले को पा नहीं सकते
मेरे नदीम मेरे हमसफ़र
गुरुवर के आदेश से , मंच रहा मैं साज ।
ReplyDeleteनिपटाने दिल्ली गये, एक जरुरी काज ।
एक जरुरी काज, बधाई अग्रिम सादर ।
मिले सफलता आज, सुनाएँ जल्दी आकर ।
रविकर रहा पुकार, कृपा कर बंदापरवर ।
अर्जी तेरे द्वार, सफल हों मेरे गुरुवर ।।
शनिवार चर्चा मंच 842
आपकी उत्कृष्ट रचना प्रस्तुत की गई है |
charcamanch.blogspot.com