Wednesday, 18 April 2012

Somnath Pilgrimage / सोमनाथ: एक अद्भुत, अभूतपूर्व एवं अविष्मरणीय अनुभूति - By Kavita Bhalse



जय सोमनाथ

यात्रा की योजना एवं तैयारी:
वैसे तो अब तक घुमक्कड़ पर सोमनाथ के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चूका है, लेकिन एक छोटा सा प्रयास करने की मेरी भी इच्छा है, आशा है आपलोगों को मेरा यह प्रयास पसंद आएगा.
हमने अपनी ज्योतिर्लिंग यात्राएं त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग यात्रा के साथ सन 2007 में शुरू की थीं लेकिन उस यात्रा के कोई साक्ष्य हमारे पास मौजूद नहीं होने की वजह से हम उस यात्रा का वर्णन घुमक्कड़ के पाठकों तक नहीं ला पाए फिर 2008 में घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा के बाद अब हम अपनी ज्योतिर्लिंग यात्रा के बारे में सोच ही रहे थे की अब कहाँ जाना चाहिए? तभी दिमाग में यह बात आई की क्यों न सोमनाथ जाया जाये? सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन भी हो जायेंगे और साथ में द्वारिका धाम भी हो आयेंगे यानि एक ज्योतिर्लिंग के साथ एक धाम फ्री, और बस मुकेश जी ने योजना बनाने पर काम प्रारंभ कर दिया और हमने यह निर्णय लिया की हमारी यह यात्रा 30 जनवरी से प्रारंभ होकर 5 फरवरी  को समाप्त होगी. 30 जनवरी को इसलिए क्योंकि इस दिन हमारी बिटिया संस्कृति का जन्मदिन होता है, अब वह नौ वर्ष की हो गई थी और इससे पहले के उसके सारे जन्मदिन हमने अपने घर में बच्चों की फौज के साथ ही मनाये गए, लेकिन इस वर्ष हमने सोचा की उसके जन्मदिन पर हम तीर्थ यात्रा जायेंगे अतः हमने यह टूर इस दिन के लिए प्लान किया और फिर हमने जबलपुर सोमनाथ एक्सप्रेस में अपना रिजर्वेशन करवा लिया.

Sunday, 15 April 2012

मधुशाला - हरिवंशराय बच्चन



मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१।

प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।२।

प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।३।

भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।४।

मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,
भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,
उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,
अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।।५।

मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला,
'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'। ६।

चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
'दूर अभी है', पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,
हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे,
किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।।७।

मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,
हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला,
ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का,
और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला।।८।

मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,
अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला,
बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे,
रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला।।९।

सुन, कलकल़ , छलछल़ मधुघट से गिरती प्यालों में हाला,
सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला,
बस आ पहुंचे, दुर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है,
चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला।।१०।

जलतरंग बजता, जब चुंबन करता प्याले को प्याला,
वीणा झंकृत होती, चलती जब रूनझुन साकीबाला,
डाँट डपट मधुविक्रेता की ध्वनित पखावज करती है,
मधुरव से मधु की मादकता और बढ़ाती मधुशाला।।११।

मेहंदी रंजित मृदुल हथेली पर माणिक मधु का प्याला,
अंगूरी अवगुंठन डाले स्वर्ण वर्ण साकीबाला,
पाग बैंजनी, जामा नीला डाट डटे पीनेवाले,
इन्द्रधनुष से होड़ लगाती आज रंगीली मधुशाला।।१२।

हाथों में आने से पहले नाज़ दिखाएगा प्याला,
अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला,
बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले,
पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला।।१३।

लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला,
फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,
दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं,
पीड़ा में आनंद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला।।१४।

जगती की शीतल हाला सी पथिक, नहीं मेरी हाला,
जगती के ठंडे प्याले सा पथिक, नहीं मेरा प्याला,
ज्वाल सुरा जलते प्याले में दग्ध हृदय की कविता है,
जलने से भयभीत न जो हो, आए मेरी मधुशाला।।१५।

बहती हाला देखी, देखो लपट उठाती अब हाला,
देखो प्याला अब छूते ही होंठ जला देनेवाला,
'होंठ नहीं, सब देह दहे, पर पीने को दो बूंद मिले'
ऐसे मधु के दीवानों को आज बुलाती मधुशाला।।१६।

धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,
मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।।१७।

लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला,
हर्ष-विकंपित कर से जिसने, हा, न छुआ मधु का प्याला,
हाथ पकड़ लज्जित साकी को पास नहीं जिसने खींचा,
व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला।।१८।

बने पुजारी प्रेमी साकी, गंगाजल पावन हाला,
रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला'
'और लिये जा, और पीये जा', इसी मंत्र का जाप करे'
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं, मंदिर हो यह मधुशाला।।१९।

बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला,
बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला,
लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,
रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला।।२०।

Tuesday, 10 April 2012

हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के - शिवमंगल सिंह सुमन



हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाऍंगे,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाऍंगे।

हम बहता जल पीनेवाले
मर जाऍंगे भूखे-प्‍यासे,
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से,

स्‍वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं
तरू की फुनगी पर के झूले।

ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने,
लाल किरण-सी चोंचखोल
चुगते तारक-अनार के दाने।

Friday, 6 April 2012

मेरे हमसफ़र उदास न हो - साहिर लुधियानवी




मेरे नदीम मेरे हमसफ़र उदास न हो
कठिन सही तेरी मंजिल मगर उदास न हो

कदम कदम पे चट्टानें खडी रहें लेकिन
जो चल निकले हैं दरिया तो फिर नहीं रुकते
हवाएँ कितना भी टकराएँ आँधियाँ बनकर
मगर घटाओं के परचम कभी नहीं झुकते
मेरे नदीम मेरे हमसफ़र ......

हर इक तलाश के रास्ते में मुश्किलें हैं मगर
हर इक तलाश मुरादों के रंग लाती है
हजारों चाँद सितारों का ख़ून होता है
तब एक सुबह फ़िजाओं पे मुस्कुराती है
मेरे नदीम मेरे हमसफ़र ......

जो अपने खून को पानी बना नहीं सकते
वो जिंदगी में नया रंग ला नहीं सकते
जो रास्ते के अँधेरों से हार जाते हैं
वो मंजिलों के उजाले को पा नहीं सकते
मेरे नदीम मेरे हमसफ़र

Wednesday, 4 April 2012

Ghrishneshwar Jyotirling / घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग: आस्था का सैलाब


जय घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग
मेरी पिछली पोस्ट में मैंने आपको अवगत कराया था औरंगाबाद तथा आसपास के दर्शनीय स्थलों से, और आइये अब मैं आपको लिए चलता हूँ औरंगाबाद के ही समीप स्थित घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर तथा एलोरा की प्रसिद्द गुफाओं के दर्शन कराने के लिए.


जय घृष्णेश्वर

Monday, 2 April 2012

औरंगाबाद: अतीत के आईने में

सभी घुमक्कड़ साथियों को प्यार भरा नमस्कार और ॐ नमः शिवाय. जैसा की आपलोग जानते हैं की मेरी यात्रायें अमूमन मेरे परिवार के साथ तथा भोले बाबा के दर्शनों के लिए होती हैं. इस पोस्ट के द्वारा मैं आपसे अपनी एक पुरानी यात्रा को साझा करने जा रहा हूँ. यह यात्रा हमने करीब तीन वर्ष पहले सन २००९ में की थी, तथा अपनी स्मृति और अनुभवों के आधार पर मैं कोशिश कर रहा हूँ आपलोगों को रूबरू करने की, एक दर्शनीय शहर औरंगाबाद तथा भगवान शिव के एक अन्य महत्वपूर्ण ज्योतिर्लिंग  घृष्णेश्वर से.
अपनी ज्योतिर्लिंगों की यात्रा के सिलसिले में त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन हमने अपने कुछ पारिवारिक मित्रों के परिवार के साथ कुछ महीनों पहले ही किये थे, और अब हमारे दिमाग में उधेड़बुन चल रही थी की कहाँ जाया जाये अतः काफी सोच विचार करने के बाद हमने निर्णय लिया की घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए जाएँ तथा साथ में औरंगाबाद शहर से लगे एतिहासिक स्मारकों तथा अजंता एवं एलोरा की गुफाएं भी देखी जाएँ.

औरंगाबाद का नक्शा