उम्मीद है इस श्रंखला की पिछली पोस्ट आप की उम्मीदों पर खरी उतरी होगी.
चलिये अब आगे बढते हैं……. जब हम लोग इस टूर के लिये पैकिंग कर रहे थे तो
कविता हम चारों के लिए ऊनी कपड़े बैग में रखने लगी, मैने उन्हें रोका…..अरे
रुको मेरा स्वेटर मत रखना, मुझे नहीं लगता शिमला में मध्य मई में इतनी ठंड
पड़ेगी की स्वेटर पहनना पड़े. मेरी बात सुनकर दोनों बच्चे तथा कविता कहने लगे
अरे रख लेने दो शायद वहां जरुरत पड़ जाए, लेकिन मैनें दुगुने जोश के साथ
कहा अरे वैसे ही सामान बहुत हो गया है, आखिर उठाना तो मुझे ही पड़ता
है…..अंतत: मैनें अपना स्वेटर नहीं रखने दिया. अपनी इस भूल का एहसास मुझे
शिमला स्टेशन से उतरते ही हो गया, स्टेशन पर ही सबने स्वेटर पहन लिए और मैं
ठंड में ठिठुरता रहा….
आजकल लाईफ़ ओके चैनल पर एक सीरीयल आ रहा है “तुम्हारी पाखी” जो हम सभी को बहुत पसंद है और हम चारों बड़े शौक से इस शो को देखने के लिए साथ में बैठते हैं, मुख्य रुप से शिमला की प्रष्ठभूमी पर बना तथा यहीं फ़िल्माए जाने वाले इस शो में लगभग रोज ही शिमला की कुछ लोकेशंस जैसे माल रोड़, रिज, लक्कड़ बाज़ार आदी को दिखाया जाता है, इस सीरीयल की वजह से हमारी शिमला घुमने की इच्छा और बढ गई थी.
शाम करीब सात बजे हम लोग शिमला पहुंच गए, रेल्वे स्टेशन से जैसे ही बाहर निकले शिमला की आबो हवा और शहर के सौंदर्य ने हमें जैसे मंत्रमुग्ध कर दिया, इससे पहले हमने पहाड़ी शहर सिर्फ़ चित्रों में ही देखे थे. चीड़ और देवदार के पेड़ों से आच्छादित पहाड़ों पर बसा ये शहर सचमुच पहाड़ों की रानी कहलाने के लायक है, और यहां के मौसम के तो क्या कहने, ऐसा लगता है जैसे हम जन्नत में पहुंच गए हों.
होटल मैनें पहले से ही औनलाईन बुक करवा लिया था सो अब हमें सीधे होटल पहुंचना था, टैक्सी वाले से बात की तो उसने बताया की आपके होटल पहुंचने के लिए हमें माल रोड़ होकर जाना पड़ेगा और माल रोड़ पर टैक्सी या कोई भी चार पहिया वाहन को चलाने की अनुमति नहीं है अत: आपको वहां तक पैदल ही जाना होगा और बेहतर होगा की आप एक कुली ले लें क्योंकि होटल यहां से दुर है और चढाई पर है, उसकी सलाह मानते हुए हमने एक कुली को बुलाया और अपने होटल का पता देकर वहां तक ले चलने को कहा, आगे आगे कुली और पिछे पिछे हम माल रोड़ पर आगे बढे जा रहे थे, हमें शिमला ऐसा लग रहा था जैसे हम किसी अलग ही दुनिया में आ गए हों, खैर 24 घंटे के लंबे सफ़र के बाद अब थकान भी हो रही थी और ऐसा लग रहा था जल्दी से जल्दी होटल पहुंचकर नहाएंगे और कुछ देर आराम करेंगे….
पैदल चलते हुए हम लोग करीब आधे घंटे में होटल पहुंच गए, रिसेप्शन की
औपचारिकताएं पुरी करने के बाद हम अपने कमरे में पहुंचे, अब तक तो हम लगातार
उंचे रास्ते पर पैदल चलते आ रहे थे अत: शरीर में गर्मी थी लेकिन जैसे ही
होटल के कमरे में पहुंचे, शिमला की ठंड ने अपना ऎसा जोरदार असर दिखाया की
मैं तो सीधे ब्लेंकेट ओढकर बिस्तर में घुस गया, मुझे देखते ही दोनॊं बच्चे
भी ब्लेंकेट में घुस गए, कुछ देर में शरीर में थोड़ी गर्मी और जान में जान
आई.
ब्लेंकेट से बाहर झांककर मैं कमरे का मुआयना ले रहा था, जब मेरी नज़र छत पर गई तो मैने पाया की यहां पंखा, ए.सी. कुछ भी नहीं है, मैने मन ही मन सोचा की जब मई जुन में यहां इतनी सर्दी है तो कोई पागल ही होगा जो पंखा या ए.सी. लगवाएगा. इसी उधेड़बून में उलझा था की तभी कविता ने एक अच्छी खबर सुनाई की बाथरुम में बड़ा गीज़र लगा है और एकदम गरम पानी आ रहा है, सुनकर हमलोगों ने भी नहाने का मन बना लिया. फ़र्श इतना ठंडा था की जमीन पर पैर रखते ही जैसे जान निकल रही थी, नल के पानी को हाथ लगाया तो ऐसा लगा जैसे हाथ ठंड से जम ही जाएंगे, खैर गीजर का पानी काफ़ी गर्म था, गर्म पानी से नहाने से पुरे सफ़र की थकान दुर हो गई और अब हम एकदम फ़्रेश मह्सुस कर रहे थे. बाकी लोगों के पास स्वेटर थे मेरे पास नहीं था, शिमला की ठंड देखकर लग रहा था की अब मुझे स्वेटर खरीदना ही पड़ेगा.
हमारे पास शिमला में सिर्फ़ एक रात और एक दिन था अत: मैने सोचा की शिमला लोकल की जगहों जैसे माल रोड़, लक्कड़ बाज़ार, रिज, स्केंडल पोइंट आदी आज ही रात में घुम लिए जाएं और अगले दिन कुछ दुर की जगहें जैसे वाईसरिगल लोज, कुफ़री, जाखु मंदिर, संकट मोचन मंदिर आदी हो आएंगे.
रात हो चुकी थी और अब जोरों की भुख भी लग रही थी, सोचा सबसे पहले खाना खाया जाए अत: हम थोड़ी देर के आराम के बाद होटल से बाहर निकल आए. होटल के पास ही एक रेस्टौरेंट था जहां हमने खाना खाया, खाना ठीक ठाक था. खाने से फ़ारिग होकर हम पैदल ही रिज की ओर माल रोड़ से चल पड़े, यहां पैदल चलना बड़ा अखर रहा था लेकिन क्या करते कोई विकल्प ही नहीं था. कुछ देर की मशक्कत के बाद हम शिमला के ह्रदयस्थल तथा मुख्य आकर्षण के केन्द्र रिज पर पहुंच गए, यहीं पर शिमला की पह्चान बन चु्का क्राईस्ट चर्च भी है और शिमला का प्रसिद्ध स्थान स्केन्डल पोइंट भी रिज वाले रास्ते पर ही है. चुंकी रात का समय था अत: इन स्थानों पर ज्यादा पर्यटक नहीं दिखाई दिए, या कह लें की ये स्थान लगभग सुनसान ही थे, कुछ देर रिज पर रुक कर फोटोग्राफी की और आगे बढ गए.
रिज से ही एक रास्ता लक्कड़ बाज़ार तथा लोअर बाज़ार की ओर जाता है, हम लक्कड़ बाज़ार की ओर चल दिए, लक्कड़ बाज़ार पहुंचे तो निराशा ही हाथ लगी, कुछ दुकानें बंद हो चुकी थीं और कुछ बंद होने की तैयारी में थीं, खैर हम लोग वापस होटल के लिए चल पड़े. रास्ते में माल रोड़ पर एक पहाड़ी फ़ल बेचने वाला बैठा था, उन फ़लों को देखने की उत्सुकता लिए हम लोग भी उसके पास खड़े हो गए और भाव पुछने लगे. चेरी, फ़ालसे, प्लम, एप्रिकोट आदी फ़ल थे. हमने एक किलो का चेरी का पेकेट लिया और कुछ फ़ालसे लिए. ये फ़ल मैने पहले कभी नहीं खाए थे, बाकी सब तो ठीक ठाक लगे लेकिन फ़ालसे हम सबको इतने अच्छे लगे की अगले दिन शाम तक हम उन्हे औरे शिमला में ढुंढते रहे लेकिन वे हमें नहीं मिले.
जैसे जैसे रात गहराती जा रही थी ठंड की तीव्रता बढती जा रही थी, होटल पहुंचते पहुंचते हम ठंड से कांपने लगे थे, होटल वाले से अगले दिन के शिमला भ्रमण के लिए एक अल्टो कार की बात ११०० रु. में पक्की कर ली और कमरे में पहुंचते ही होटल के तथा घर से लाए सारे कंबल ओढकर सो गए, थके हारे थे सो जबरदस्त नींद आई, सुबह जागे तो कमरे की शीशे की खिड़कीयों से बाहर के नज़ारे देखकर मन प्रसन्न हो गया, आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था की हम इतनी खुबसूरत जगह पर हैं.
नहा धोकर कमरे से बाहर आए और उसी होटल के पास वाले रेस्टौरेंट पर नाश्ता करने पहुंच गए. नाश्ते में आलु के परांठों के अलावा कुछ नहीं था और परांठे भी बिल्कुल बेस्वाद थे, शिवम मुंह बिदका कर बोला पापा, ये परांठे कितने बकवास हैं मम्मा तो कितने टेस्टी बनाती हैं, मैने उसे समझाया बेटा, बाहर घुमने निकले हैं तो हर तरह का खाना खाना चाहिए वर्ना अच्छे घुमक्कड़ कैसे बनोगे? मैने देखा है की पहाड़ी लोग मिर्च का उपयोग बहुत कम करते हैं और भैय़ा हम तो ठहरे ठेठ इन्दौरी, बिना मिर्च मसाले के तो खाने में मज़ा ही नहीं आता है.
खैर, जैसे तैसे पेट भरा और पास ही स्थित शिमला के प्रसिद्ध काली बाड़ी मंदिर की ओर चल दिए, कुछ सिढियां चढते ही हम मंदिर में पहुंच गए, मंदिर की सुंदरता और भगवान के दर्शन पाकर हम प्रसन्न हो गए. काली बाड़ी मंदिर से शिमला शहर का बड़ा ही अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है, चारों ओर हरियाली, स्टेप्स में बने घर, शीतल बयारें सबकुछ अद्भुत.
कुछ देर मंदिर में रुककर हम होटल लौट आए, गेट पर ही हमारी गाड़ी तैयार खड़ी थी. आज रात को ही हमें मनाली के लिए निकलना था और मैने अब तक बस की टिकट बुक नहीं कराई थी अत: मैने टैक्सी वाले से कहा की भाई सबसे पहले हमें हिमाचल सड़क निगम (एच.आर.टी.सी.) के औफ़िस ले चलो, वहां पहुंच कर मैने अपनी टिकटें रात वाली बस की करवाईं जो की आसानी से मिल गईं.
अब हमने अपने आप को टैक्सी वाले के हवाले कर दिया. उसने हमें बताया की सबसे पहले वो हमें संकट मोचन हनुमान मंदिर लेकर जाएगा उसके बाद वाईसरिगल लौज (राष्ट्रपति भवन), जाखु मंदिर, और अंत में कुफ़री. तो इस तरह हमारा शिमला का टूर प्रारंभ हुआ. शिमला के प्राक्रतिक नजारों का आनंद उठाते हुए हम संकट मोचन हनुमान मंदिर पहुंच गए. ये एक पहाड़ी पर बसा बहुत ही आकर्षक मंदिर है, यहां से भी चारों ओर शिमला की वादियों को निहारा जा सकता है. यहां पर गर्मागर्म हलवे का प्रसाद बंट रहा था सो हमने भी खाया.
यात्रा से पहले इंटरनेट पर कुफ़री के बारे में खूब पढा था, लेकिन वहां पहुंच कर ऐसा लगा की कुफ़री जाना समय तथा पैसे दोनों की बर्बादी है. कुफ़री के टैक्सी स्टेंड पर ले जाकर हमारे ड्राइवर ने हमें उतार कर गाड़ी पार्क कर दी और हमें जानकारी दी की अब आगे आपको घोड़ों पर बैठकर जाना होगा. घोड़े वाले से भाव पुछा तो उसने बताया एक व्यक्ति का 280 रु. और आपको चार घोड़े लेने पड़ेंगे, मैने घोड़ेवाले से पुछा की भाई आखिर वहां है क्या? लेकिन वो मुझे कोई ढंग का जवाब नहीं दे पाया, फ़िर मैने अपनी गाड़ी के ड्राईवर से यही सवाल किया तो वो कुछ ठीक से नहीं बता पा रहा था. फ़िर मैने कुछ लोगों को घोड़ों की सवारी से लौट कर आते देखा, उनके चेहरों से साफ़ जाहिर था की उन्हें इस सफ़र में परेशानियों और थकान के अलावा कुछ हासिल नहीं हुआ, असंतुष्टी के भाव उनके चेहरों पर स्पष्ट रुप से देखे जा सकते थे, इतने से भी संतुष्टी नहीं हुई तो मैनें एक घोड़े से उतरे पर्यटक से पुछ ही लिया, भैया कैसा लगा वहां जाकर? उसने जो बताया उससे मुझे पुर्ण संतुष्टी हो गई, उसने बताया, भाई साहब कोई मतलब वाली बात नहीं है, वापस लौट जाओ. बस मुझे और कुछ नहीं सोचना था, कविता और बच्चों ने भी कोई जिद नहीं की.
वहीं एक खोमचे से बर्गर का देसी संस्करण खाया, और एक दुसरे खोमचे से राजमा चावल उदरस्थ किए और खोमचे वाले से पुछा और आस पास क्या देखने लायक है? उसने बताया पास ही में चिड़ियाघर है, कुछ देर पैदल चलकर वहां पहुंच गए, चिड़ियाघर भी बकवास था पुरे चिड़ियाघर में सिर्फ़ दो भालु और कुछ मुर्गे दिखाई दिए, बेकार में पैरों की मशक्कत हो गई और बच्चे भी थक गए. कविता हम चारों में समझदार निकली उसने तो आधे रास्ते से ही अपने कदम वापस मोड़ लिए और हमसे कहा की मैं चिड़ियाघर के औफ़िस में आप लोगों का इंतज़ार करती हुं.
कुल मिलाकर कुफ़री जाना बेकार रहा, हां ग्रीन वैली जरूर देखने लायक थी. यहां मैं पाठकों को सलाह देना चाहुंगा की कुफ़री में वक्त और पैसा खराब करने के बजाए चायल, नलदेहरा या नारकंडा जाना ज्यादा फ़ायदे का सौदा है.
अब हम अपने अंतिम पड़ाव यानी जाखु हमुमान मंदिर की ओर चल दिए. जाखु मंदिर शिमला की सबसे ऊंची चोटी पर स्थित है तथा भगवान हनुमान को समर्पित है. यह मंदिर बहुत सुंदर है तथा यहां से चारों ओर शिमला शहर का संपुर्ण विस्तार देखा जा सकता है. जाखु मंदिर तक पहुंचने का रास्ता बहुत ही खतरनाक है, इस रास्ते पर यहां के ड्राईवरों के कौशल का पता चलता है. इस मंदिर के मार्ग में तथा मंदिर परिसर में बंदर बहुत अधिक संख्या में पाए जाते हैं, मंदिर परिसर में हनुमान जी की एक अति विशाल प्रतिमा है जो अपने आकार के कारण पुरे शिमला से दिखाई देती है.
जाखु मंदिर में एक घंटे का समय बिताने के बाद टैक्सी वाले ने हमें होटल छोड़ दिया जहां कुछ देर आराम करने के बाद अपना सामान पैक करके, चैक आउट करके हम बाहर आ गए और एक कुली लेकर पुराने बस स्टैंड तक आ गए जहां से सीटी बस में बैठकर नए बस स्टैंड आ गए जहां से आठ बजे हमारी बस मनाली के लिए निकलने वाली थी. इस समय जबर्दस्त ठंड लग रही थी और हम सबने अपने बैग से एक एक कंबल निकाला, और उसे लपेटकर बस में अपनी अपनी सीट पर सवार हो गए. यह एक सेमी स्लीपर बस थी जिसकी सीटें कुछ हद तक पिछे की ओर मुड़कर यात्री को लेटे होने का एह्सास देने के लिये पर्याप्त थीं, इस बस से हमें पुरी रात का सफ़र तय करके सुबह मनाली पहुंचना था.
इसके साथ ही आज की कहानी को यहीं विराम देते हैं फिर मिलेंगे अगले हफ़्ते मनाली में अपने युथ होस्टल के अनुभवों के वर्णन के साथ……….
आजकल लाईफ़ ओके चैनल पर एक सीरीयल आ रहा है “तुम्हारी पाखी” जो हम सभी को बहुत पसंद है और हम चारों बड़े शौक से इस शो को देखने के लिए साथ में बैठते हैं, मुख्य रुप से शिमला की प्रष्ठभूमी पर बना तथा यहीं फ़िल्माए जाने वाले इस शो में लगभग रोज ही शिमला की कुछ लोकेशंस जैसे माल रोड़, रिज, लक्कड़ बाज़ार आदी को दिखाया जाता है, इस सीरीयल की वजह से हमारी शिमला घुमने की इच्छा और बढ गई थी.
शाम करीब सात बजे हम लोग शिमला पहुंच गए, रेल्वे स्टेशन से जैसे ही बाहर निकले शिमला की आबो हवा और शहर के सौंदर्य ने हमें जैसे मंत्रमुग्ध कर दिया, इससे पहले हमने पहाड़ी शहर सिर्फ़ चित्रों में ही देखे थे. चीड़ और देवदार के पेड़ों से आच्छादित पहाड़ों पर बसा ये शहर सचमुच पहाड़ों की रानी कहलाने के लायक है, और यहां के मौसम के तो क्या कहने, ऐसा लगता है जैसे हम जन्नत में पहुंच गए हों.
होटल मैनें पहले से ही औनलाईन बुक करवा लिया था सो अब हमें सीधे होटल पहुंचना था, टैक्सी वाले से बात की तो उसने बताया की आपके होटल पहुंचने के लिए हमें माल रोड़ होकर जाना पड़ेगा और माल रोड़ पर टैक्सी या कोई भी चार पहिया वाहन को चलाने की अनुमति नहीं है अत: आपको वहां तक पैदल ही जाना होगा और बेहतर होगा की आप एक कुली ले लें क्योंकि होटल यहां से दुर है और चढाई पर है, उसकी सलाह मानते हुए हमने एक कुली को बुलाया और अपने होटल का पता देकर वहां तक ले चलने को कहा, आगे आगे कुली और पिछे पिछे हम माल रोड़ पर आगे बढे जा रहे थे, हमें शिमला ऐसा लग रहा था जैसे हम किसी अलग ही दुनिया में आ गए हों, खैर 24 घंटे के लंबे सफ़र के बाद अब थकान भी हो रही थी और ऐसा लग रहा था जल्दी से जल्दी होटल पहुंचकर नहाएंगे और कुछ देर आराम करेंगे….
ब्लेंकेट से बाहर झांककर मैं कमरे का मुआयना ले रहा था, जब मेरी नज़र छत पर गई तो मैने पाया की यहां पंखा, ए.सी. कुछ भी नहीं है, मैने मन ही मन सोचा की जब मई जुन में यहां इतनी सर्दी है तो कोई पागल ही होगा जो पंखा या ए.सी. लगवाएगा. इसी उधेड़बून में उलझा था की तभी कविता ने एक अच्छी खबर सुनाई की बाथरुम में बड़ा गीज़र लगा है और एकदम गरम पानी आ रहा है, सुनकर हमलोगों ने भी नहाने का मन बना लिया. फ़र्श इतना ठंडा था की जमीन पर पैर रखते ही जैसे जान निकल रही थी, नल के पानी को हाथ लगाया तो ऐसा लगा जैसे हाथ ठंड से जम ही जाएंगे, खैर गीजर का पानी काफ़ी गर्म था, गर्म पानी से नहाने से पुरे सफ़र की थकान दुर हो गई और अब हम एकदम फ़्रेश मह्सुस कर रहे थे. बाकी लोगों के पास स्वेटर थे मेरे पास नहीं था, शिमला की ठंड देखकर लग रहा था की अब मुझे स्वेटर खरीदना ही पड़ेगा.
हमारे पास शिमला में सिर्फ़ एक रात और एक दिन था अत: मैने सोचा की शिमला लोकल की जगहों जैसे माल रोड़, लक्कड़ बाज़ार, रिज, स्केंडल पोइंट आदी आज ही रात में घुम लिए जाएं और अगले दिन कुछ दुर की जगहें जैसे वाईसरिगल लोज, कुफ़री, जाखु मंदिर, संकट मोचन मंदिर आदी हो आएंगे.
रात हो चुकी थी और अब जोरों की भुख भी लग रही थी, सोचा सबसे पहले खाना खाया जाए अत: हम थोड़ी देर के आराम के बाद होटल से बाहर निकल आए. होटल के पास ही एक रेस्टौरेंट था जहां हमने खाना खाया, खाना ठीक ठाक था. खाने से फ़ारिग होकर हम पैदल ही रिज की ओर माल रोड़ से चल पड़े, यहां पैदल चलना बड़ा अखर रहा था लेकिन क्या करते कोई विकल्प ही नहीं था. कुछ देर की मशक्कत के बाद हम शिमला के ह्रदयस्थल तथा मुख्य आकर्षण के केन्द्र रिज पर पहुंच गए, यहीं पर शिमला की पह्चान बन चु्का क्राईस्ट चर्च भी है और शिमला का प्रसिद्ध स्थान स्केन्डल पोइंट भी रिज वाले रास्ते पर ही है. चुंकी रात का समय था अत: इन स्थानों पर ज्यादा पर्यटक नहीं दिखाई दिए, या कह लें की ये स्थान लगभग सुनसान ही थे, कुछ देर रिज पर रुक कर फोटोग्राफी की और आगे बढ गए.
रिज से ही एक रास्ता लक्कड़ बाज़ार तथा लोअर बाज़ार की ओर जाता है, हम लक्कड़ बाज़ार की ओर चल दिए, लक्कड़ बाज़ार पहुंचे तो निराशा ही हाथ लगी, कुछ दुकानें बंद हो चुकी थीं और कुछ बंद होने की तैयारी में थीं, खैर हम लोग वापस होटल के लिए चल पड़े. रास्ते में माल रोड़ पर एक पहाड़ी फ़ल बेचने वाला बैठा था, उन फ़लों को देखने की उत्सुकता लिए हम लोग भी उसके पास खड़े हो गए और भाव पुछने लगे. चेरी, फ़ालसे, प्लम, एप्रिकोट आदी फ़ल थे. हमने एक किलो का चेरी का पेकेट लिया और कुछ फ़ालसे लिए. ये फ़ल मैने पहले कभी नहीं खाए थे, बाकी सब तो ठीक ठाक लगे लेकिन फ़ालसे हम सबको इतने अच्छे लगे की अगले दिन शाम तक हम उन्हे औरे शिमला में ढुंढते रहे लेकिन वे हमें नहीं मिले.
जैसे जैसे रात गहराती जा रही थी ठंड की तीव्रता बढती जा रही थी, होटल पहुंचते पहुंचते हम ठंड से कांपने लगे थे, होटल वाले से अगले दिन के शिमला भ्रमण के लिए एक अल्टो कार की बात ११०० रु. में पक्की कर ली और कमरे में पहुंचते ही होटल के तथा घर से लाए सारे कंबल ओढकर सो गए, थके हारे थे सो जबरदस्त नींद आई, सुबह जागे तो कमरे की शीशे की खिड़कीयों से बाहर के नज़ारे देखकर मन प्रसन्न हो गया, आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था की हम इतनी खुबसूरत जगह पर हैं.
नहा धोकर कमरे से बाहर आए और उसी होटल के पास वाले रेस्टौरेंट पर नाश्ता करने पहुंच गए. नाश्ते में आलु के परांठों के अलावा कुछ नहीं था और परांठे भी बिल्कुल बेस्वाद थे, शिवम मुंह बिदका कर बोला पापा, ये परांठे कितने बकवास हैं मम्मा तो कितने टेस्टी बनाती हैं, मैने उसे समझाया बेटा, बाहर घुमने निकले हैं तो हर तरह का खाना खाना चाहिए वर्ना अच्छे घुमक्कड़ कैसे बनोगे? मैने देखा है की पहाड़ी लोग मिर्च का उपयोग बहुत कम करते हैं और भैय़ा हम तो ठहरे ठेठ इन्दौरी, बिना मिर्च मसाले के तो खाने में मज़ा ही नहीं आता है.
खैर, जैसे तैसे पेट भरा और पास ही स्थित शिमला के प्रसिद्ध काली बाड़ी मंदिर की ओर चल दिए, कुछ सिढियां चढते ही हम मंदिर में पहुंच गए, मंदिर की सुंदरता और भगवान के दर्शन पाकर हम प्रसन्न हो गए. काली बाड़ी मंदिर से शिमला शहर का बड़ा ही अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है, चारों ओर हरियाली, स्टेप्स में बने घर, शीतल बयारें सबकुछ अद्भुत.
कुछ देर मंदिर में रुककर हम होटल लौट आए, गेट पर ही हमारी गाड़ी तैयार खड़ी थी. आज रात को ही हमें मनाली के लिए निकलना था और मैने अब तक बस की टिकट बुक नहीं कराई थी अत: मैने टैक्सी वाले से कहा की भाई सबसे पहले हमें हिमाचल सड़क निगम (एच.आर.टी.सी.) के औफ़िस ले चलो, वहां पहुंच कर मैने अपनी टिकटें रात वाली बस की करवाईं जो की आसानी से मिल गईं.
अब हमने अपने आप को टैक्सी वाले के हवाले कर दिया. उसने हमें बताया की सबसे पहले वो हमें संकट मोचन हनुमान मंदिर लेकर जाएगा उसके बाद वाईसरिगल लौज (राष्ट्रपति भवन), जाखु मंदिर, और अंत में कुफ़री. तो इस तरह हमारा शिमला का टूर प्रारंभ हुआ. शिमला के प्राक्रतिक नजारों का आनंद उठाते हुए हम संकट मोचन हनुमान मंदिर पहुंच गए. ये एक पहाड़ी पर बसा बहुत ही आकर्षक मंदिर है, यहां से भी चारों ओर शिमला की वादियों को निहारा जा सकता है. यहां पर गर्मागर्म हलवे का प्रसाद बंट रहा था सो हमने भी खाया.
इस शहर की विशेषता है यहां कुछ भी प्लेन या
सीधा नहीं है, हर जगह उतार चढाव, टेढे मेढे रास्ते. हम तो सोचने लगे की
यहां के लोगों का इस रास्तों पर कैसे गुजारा होता होगा? इतने विकट रास्तों
पर चलते चलते ये थक नहीं जाते होंगे? किसी के घर जाना हो तो चढो या उतरो,
किसी औफ़िस में जाना हो तो चढो या उतरो, सारी जिंदगी चढने उतरने में ही बीत
जाती होगी…..हे भगवान, ये कैसी त्रासदी है ?
बड़ा अजीब शहर है, यहां मोटर साईकिल,
साईकिल, तांगे, औटो कुछ नहीं दिखाई देता, सिर्फ़ कारें दिखाई देती हैं वे भी
कई जगहों पर प्रतीबंधित हैं, यानी इन उल्टे सीधे रास्तों पर आपको पैदल ही
चलना है.
तो साहब अब हम एक बहुत ही सुंदर भवन यानी
वाईसरिगल लौज (राष्ट्रपति भवन) या इंडियन इंस्टिट्युट ओफ़ एड्वांस्ड स्टडीज़
पहुंच चुके थे. यहां प्रति व्यक्ति 40 रु. प्रवेश शुल्क था, टिकट खिड़की पर
पहुंचे तो पता चला की भवन को अंदर से देखने के लिए अगले तीन घंटे का इंतज़ार
करना पड़ेगा, उससे पहले प्रवेश नहीं मिलेगा क्योंकी अंदर पहले से ही भारी
संख्या में पर्यटकों का जमावड़ा था. हमारे पास चुंकी समय का अभाव था अत:
हमने इसे बाहर से देखकर लौटने का फ़ैसला कर लिया और कुछ आधे घंटे में भवन को
बाहर से निहारकर तथा इसके पास ही बने उद्यान में कुछ समय बिताकर हम लौट
गए. किसी समय ब्रिटिश राज में शिमला हमारे देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ
करती थी, और यह भवन वायसराय (राष्ट्रपति) का निवास स्थान हुआ करता था. आज
यहां पर इंडियन इंस्टिट्युट ओफ़ एड्वांस्ड स्टडीज़ नाम से एक शैक्षणिक
संस्थान संचालित होता है.
अब हमारा अगला डेस्टिनेशन था कुफ़री, जो की शिमला से करीब 14 किलोमीटर की
दुरी पर स्थित एक अन्य हिल स्टेशन है, अब हम कुफ़री की ओर बढ चले. घुमावदार
रास्तों पर हमारी कार लगातार चढाई पर चढती जा रही थी. रास्ते में एक जगह
ड्राईवर ने गाड़ी रोकी और बताया की इस जगह को ग्रीन वैली कहते हैं, देखने
लायक है, खिड़की से देखा तो और भी बहुत सी गाड़ीयां यहां रुकी हुईं थी और
बहुत सारे पर्यटक छायाचित्रकारी में संलग्न थे, हम भी उतर आए. निचे वैली
में झांककर देखा तो पाया की सचमुच बहुत सुंदर जगह है, दूर दूर तक हरे पेड़ों
से ढकी घाटीयां इस स्थान को एक अप्रतिम सौंदर्य प्रदान करती हैं. खैर, कुछ
देर रुकने के बाद हम फ़िर से कुफ़री की ओर बढ चले.यात्रा से पहले इंटरनेट पर कुफ़री के बारे में खूब पढा था, लेकिन वहां पहुंच कर ऐसा लगा की कुफ़री जाना समय तथा पैसे दोनों की बर्बादी है. कुफ़री के टैक्सी स्टेंड पर ले जाकर हमारे ड्राइवर ने हमें उतार कर गाड़ी पार्क कर दी और हमें जानकारी दी की अब आगे आपको घोड़ों पर बैठकर जाना होगा. घोड़े वाले से भाव पुछा तो उसने बताया एक व्यक्ति का 280 रु. और आपको चार घोड़े लेने पड़ेंगे, मैने घोड़ेवाले से पुछा की भाई आखिर वहां है क्या? लेकिन वो मुझे कोई ढंग का जवाब नहीं दे पाया, फ़िर मैने अपनी गाड़ी के ड्राईवर से यही सवाल किया तो वो कुछ ठीक से नहीं बता पा रहा था. फ़िर मैने कुछ लोगों को घोड़ों की सवारी से लौट कर आते देखा, उनके चेहरों से साफ़ जाहिर था की उन्हें इस सफ़र में परेशानियों और थकान के अलावा कुछ हासिल नहीं हुआ, असंतुष्टी के भाव उनके चेहरों पर स्पष्ट रुप से देखे जा सकते थे, इतने से भी संतुष्टी नहीं हुई तो मैनें एक घोड़े से उतरे पर्यटक से पुछ ही लिया, भैया कैसा लगा वहां जाकर? उसने जो बताया उससे मुझे पुर्ण संतुष्टी हो गई, उसने बताया, भाई साहब कोई मतलब वाली बात नहीं है, वापस लौट जाओ. बस मुझे और कुछ नहीं सोचना था, कविता और बच्चों ने भी कोई जिद नहीं की.
वहीं एक खोमचे से बर्गर का देसी संस्करण खाया, और एक दुसरे खोमचे से राजमा चावल उदरस्थ किए और खोमचे वाले से पुछा और आस पास क्या देखने लायक है? उसने बताया पास ही में चिड़ियाघर है, कुछ देर पैदल चलकर वहां पहुंच गए, चिड़ियाघर भी बकवास था पुरे चिड़ियाघर में सिर्फ़ दो भालु और कुछ मुर्गे दिखाई दिए, बेकार में पैरों की मशक्कत हो गई और बच्चे भी थक गए. कविता हम चारों में समझदार निकली उसने तो आधे रास्ते से ही अपने कदम वापस मोड़ लिए और हमसे कहा की मैं चिड़ियाघर के औफ़िस में आप लोगों का इंतज़ार करती हुं.
कुल मिलाकर कुफ़री जाना बेकार रहा, हां ग्रीन वैली जरूर देखने लायक थी. यहां मैं पाठकों को सलाह देना चाहुंगा की कुफ़री में वक्त और पैसा खराब करने के बजाए चायल, नलदेहरा या नारकंडा जाना ज्यादा फ़ायदे का सौदा है.
अब हम अपने अंतिम पड़ाव यानी जाखु हमुमान मंदिर की ओर चल दिए. जाखु मंदिर शिमला की सबसे ऊंची चोटी पर स्थित है तथा भगवान हनुमान को समर्पित है. यह मंदिर बहुत सुंदर है तथा यहां से चारों ओर शिमला शहर का संपुर्ण विस्तार देखा जा सकता है. जाखु मंदिर तक पहुंचने का रास्ता बहुत ही खतरनाक है, इस रास्ते पर यहां के ड्राईवरों के कौशल का पता चलता है. इस मंदिर के मार्ग में तथा मंदिर परिसर में बंदर बहुत अधिक संख्या में पाए जाते हैं, मंदिर परिसर में हनुमान जी की एक अति विशाल प्रतिमा है जो अपने आकार के कारण पुरे शिमला से दिखाई देती है.
जाखु मंदिर में एक घंटे का समय बिताने के बाद टैक्सी वाले ने हमें होटल छोड़ दिया जहां कुछ देर आराम करने के बाद अपना सामान पैक करके, चैक आउट करके हम बाहर आ गए और एक कुली लेकर पुराने बस स्टैंड तक आ गए जहां से सीटी बस में बैठकर नए बस स्टैंड आ गए जहां से आठ बजे हमारी बस मनाली के लिए निकलने वाली थी. इस समय जबर्दस्त ठंड लग रही थी और हम सबने अपने बैग से एक एक कंबल निकाला, और उसे लपेटकर बस में अपनी अपनी सीट पर सवार हो गए. यह एक सेमी स्लीपर बस थी जिसकी सीटें कुछ हद तक पिछे की ओर मुड़कर यात्री को लेटे होने का एह्सास देने के लिये पर्याप्त थीं, इस बस से हमें पुरी रात का सफ़र तय करके सुबह मनाली पहुंचना था.
इसके साथ ही आज की कहानी को यहीं विराम देते हैं फिर मिलेंगे अगले हफ़्ते मनाली में अपने युथ होस्टल के अनुभवों के वर्णन के साथ……….
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