Thursday 31 July 2014

युथ होस्टल कैम्प – घर से बाहर एक प्यारा सा घर (Youth Hostels Association of India)…

इस श्रंखला की पिछली पोस्ट में आपने पढा की रात लगभग आठ बजे हम लोग शिमला से मनाली के लिए हिमाचल परिवहन की बस में सवार हो गए, हमें मनाली से कुछ पंद्रह किलोमीटर पहले उतरना था क्योंकि हम वहां 19 से 21 मई तक चार दिन युथ होस्टल एसोसिऎशन औफ़ इंडिया के फ़ैमिली एडवेंचर कैंप में रहने वाले थे. यह जगह कुल्लू-मनाली रोड़ पर स्थित एक कस्बे पतलीकुहल के पास ब्यास नदी के किनारे थी.

कैम्प का प्रवेश द्वार

शिमला से निकलने के कुछ देर बाद ही हमने कंडक्टर को पास बुलाया और पता बताते हुए बोला की हमें युथ होस्टल के कैंप पर उतरना है. मेरी बात सुनते ही पास ही की सीट पर बैठे एक सज्जन बड़े उत्साह के साथ बोले, अरे आप भी युथ होस्टल कैंप में जाने वाले हैं, हम भी उसी कैंप में हैं, सुनते ही हम सब को बड़ी खुशी हुई की चलो यहीं से साथी मिलने लगे हैं, खैर, हमारा उस परिवार से परिचय हुआ, वे दोनों युवा पति पत्नी अपने मौसा मौसी तथा उनके बेटे के साथ थे, तथा अहमदाबाद से आए थे, उन्होने भी हमारी ही तरह प्लान किया हुआ था पहले शिमला और फ़िर युथ होस्टल के कैंप में मनाली.

सपनों का शहर - शिमला

उम्मीद है इस श्रंखला की पिछली पोस्ट आप की उम्मीदों पर खरी उतरी होगी. चलिये अब आगे बढते हैं……. जब हम लोग इस टूर के लिये पैकिंग कर रहे थे तो कविता हम चारों के लिए ऊनी कपड़े बैग में रखने लगी, मैने उन्हें रोका…..अरे रुको मेरा स्वेटर मत रखना, मुझे नहीं लगता शिमला में मध्य मई में इतनी ठंड पड़ेगी की स्वेटर पहनना पड़े. मेरी बात सुनकर दोनों बच्चे तथा कविता कहने लगे अरे रख लेने दो शायद वहां जरुरत पड़ जाए, लेकिन मैनें दुगुने जोश के साथ कहा अरे वैसे ही सामान बहुत हो गया है, आखिर उठाना तो मुझे ही पड़ता है…..अंतत: मैनें अपना स्वेटर नहीं रखने दिया. अपनी इस भूल का एहसास मुझे शिमला स्टेशन से उतरते ही हो गया, स्टेशन पर ही सबने स्वेटर पहन लिए और मैं ठंड में ठिठुरता रहा….
शिमला रात में.....
शिमला रात में…..

कालका-शिमला पर्वतीय रेल – एक अद्भुत सफ़र

घुमक्कड़ी की शुरुआत तो हमने धार्मिक यात्राओं से ही की थी, लेकिन जब से घुमक्कड़ तथा अन्य वेब साईटों पर यात्रा वर्णन पढने का शौक लगा तभी से पर्वतीय पर्यटन स्थलों पर जाने के लिये हमेशा ललचाते रहते थे लेकिन लंबे समय तक ऐसी कोई योजना बन नहीं पाई।

फिर जब घुमक्कड़ पर रितेश गुप्ता जी की मनाली की श्रंखला आई, उसने मुझे इतना प्रभावित किया की मैने उस श्रंखला की एक एक पोस्ट को चार पांच बार पढा और हमने मन ही मन पक्का निर्णय कर लिया की अब तो पहाड़ों पर जाना ही है।

मुझे याद है जब घुमक्कड़ की ओर से नंदन जी ने मेरा फोन पर साक्षात्कार (इंटरव्यु) लिया था तो मुझसे एक प्रश्न किया गया था की आप ने अब तक पर्वतों की सैर क्यों नही की तो मैने उन्हे बताया था की मेरी हमसफ़र कविता जी को ठंड बहुत ज्यादा लगती है और वे सामान्य से थोड़ी सी भी ज्यादा ठंड को बर्दाश्त नहीं कर पाती हैं, चुंकी मुझे पहाड़ों के मौसम की जानकारी नहीं थी और मैं सोचा करता था की वहां बारहों महीने सुबह शाम हर समय बस ठंड ही ठंड लगती रहती है।  मेरे इस जवाब पर नंदन जी ने मुझे बताया की ऐसी बात नहीं है की पहाड़ों पर हमेशा ही ठंड लगती है, वहां भी धूप निकलती है और खास कर गर्मियों में तो दिन में तेज धूप निकलती है और गर्मी होती है, उनकी इस बात से मेरे हिमाचल जाने के निर्णय को और बल मिला, खैर वहां जाने के बाद हमने भी अनुभव किया की नंदन जी बिल्कुल सही कह रहे थे।

सैर के लिये तैयार टीम
सैर के लिये तैयार टीम