Saturday, 15 September 2012

महेश्वर – एक दिन देवी अहिल्या की नगरी में : भाग 1 (By Kavita Bhalse)

सभी घुमक्कड़ साथियों को कविता की ओर से नमस्कार. एक छोटे से अंतराल के बाद आज फिर उपस्थित हूँ मैं आप लोगों के बीच अपनी अगली यात्रा की कहानी के साथ. आज मैं आपलोगों को लेकर चलती हूँ माँ रेवा (नर्मदा) के तट पर स्थित ऐतिहासिक नगरी “महेश्वर” जो अतीत में पुण्य श्लोक मातुश्री देवी अहिल्या बाई होलकर की राजधानी के रूप में तथा वर्तमान में अपने सुन्दर घाटों, मंदिरों, देवी अहिल्याबाई के स्मृति चिन्हों तथा महेश्वरी साडी के लिए भारत भर में प्रसिद्द है.

महेश्वर के अहिल्या घाट पर स्थित देवी अहिल्या बाई होलकर की प्रतिमा.

पिछले कुछ वर्षों से घुमक्कड़ी के शौक ने कुछ इस तरह से जकड़ा है की हर दो तीन महीने के बाद दिमाग में घुमक्कड़ी का कीड़ा कुलबुलाने लगता है, और फिर कवायद शुरू हो जाती है इसे शांत करने की. सबसे पहले केलेंडर खंगालना, फिर बच्चों के वार्षिक केलेंडर देखना की कहाँ से और कैसे छुट्टियों का जुगाड़ हो सकता है और फिर अंततः सारे जोड़ भाग करके कहीं न कहीं जाने का एक टूर प्लान बन ही जाता है.
वैसे हमें महेश्वर जाने के लिए ये सब एक्सरसाइज़ करने की जरुरत नहीं पड़ी क्योंकि महेश्वर हमारे घर के करीब ही है और बड़े आराम से हम एक ही दिन में महेश्वर घूम कर वापस भी आ सकते हैं. वास्तव में यह स्थान हमारे स्थाई निवास स्थान खरगोन के रास्ते में ही पड़ता है अतः हम  मेन रोड (ए. बी. रोड – NH 3) से मात्र 13 किलोमीटर अन्दर जाकर महेश्वर पहुंच सकते हैं.
वैसे तो हम पहले भी एक दो बार महेश्वर जा चुके हैं लेकिन केमरा लेकर घुमक्कड़ी की दृष्टि से कभी नहीं गए थे अतः अबकी बार हमने यह सोचकर रखा था की जब कभी भी समय मिलेगा तो घुमक्कड़ी के लिए महेश्वर जरूर जायेंगे और फिर पिछले महीने के एक शनिवार को मुकेश ने प्रस्ताव रखा की कल यानी सन्डे को महेश्वर चलते हैं, अब भला घुमक्कड़ी के मामले में मुझे क्या आपत्ति हो सकती थी अतः मैंने ख़ुशी ख़ुशी उनके इस प्रस्ताव पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगा दी और आनन् फानन में अगले दिन सुबह ही महेश्वर की एक लघु यात्रा योजना तैयार कर ली गई.
चूँकि हमने अपनी कार से ही जाना था अतः टिकिट रिज़र्वेशन आदि की कोई झंझट थी ही नहीं. रात में ही मैंने दोनों मोबाइल, केमरा आदि चार्ज करने के लिए रख दिए क्योंकि सुबह हमारे पास ज्यादा समय नहीं था, शाम तक वापस जो आना था. शाम को ही बच्चों को बता दिया गया की सुबह उठने में ज्यादा नखरे न करें क्योंकि हम लोग कल सुबह महेश्वर जा रहे हैं. यहाँ मैं यह बता देना उचित समझती हूँ की अब हमारे बच्चों को भी घुमने फिरने में मज़ा आने लगा है, जिस दिन हमने टूर पर जाना होता है दोनों बच्चे बड़े उत्साहित रहते हैं और सुबह जल्दी भी उठ जाते हैं. और फिर यहाँ हमने शाम से ही बच्चों को बोटिंग का लालच दे दिया था अतः दोनों सुबह जल्दी ही उठ गए और तैयार हो गए.
हमारे घर से महेश्वर कुछ 80 किलोमीटर की दुरी पर है तथा आसानी से अपने वाहन से 2 घंटे में पहुंचा जा सकता है. सुबह उठते ही मैं अपने हिस्से के कामों जैसेबच्चों को तैयार करना, नाश्ता वगैरह बनाना आदि में लग गई और मुकेश उनके हिस्से के काम जो उन्हें सबसे ज्यादा उबाऊ लगता है यानी कर की सफाई में लग गए और करीब आठ बजे हम लोग अपने घर से अपनी स्पार्क में सवार होकर महेश्वर के लिए निकल पड़े.

रास्ते में एक पुल पर

महेश्वर – 6 किलोमीटर

देवी अहिल्या की नगरी में आपका स्वागत है

आगमन….
आगे बढ़ने से पहले आइये आपको एक संक्षिप्त परिचय करवा दूँ महेश्वर नगरी से. वैसे महेश्वर किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है फिर भी पाठकों  की सुविधा के लिए थोड़ी सी जानकारी नितांत आवश्यक है.
महेश्वर – एक परिचय:
महेश्वर शहर मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में स्थित है. यह राष्ट्रीय राजमार्ग नं. 3 (आगरा-मुंबई हाइवे) से पूर्व में 13  किलोमीटर अन्दर की ओर बसा हुआ है तथा मध्य प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर से 91 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है. यह नगर नर्मदा नदी के उत्तरी तट पर स्थित है. यह शहर आज़ादी से पहले होलकर मराठा शासकों के इंदौर राज्य की राजधानी था. इस शहर का नाम महेश्वर भगवान् शिव के नाम  महेश के आधार पर पड़ा है अतः महेश्वर का शाब्दिक अर्थ है भगवान् शिव का घर.
पौराणिक लेखों के अनुसार महेश्वर शहर हैहयवंशिय राजा सहस्त्रार्जुन, जिसने रावण को पराजित किया था की राजधानी रहा है. ऋषि जमदग्नि को प्रताड़ित करने के कारण उनके पुत्र भगवान परशुराम ने सहस्त्रार्जुन का वध किया था. कालांतर में यह शहर होलकर वंश की महान महारानी देवी अहिल्या बाई होलकर की राजधानी भी रहा है. नर्मदा नदी के किनारे बसा यह शहर अपने बहुत ही सुन्दर व भव्य घाट तथा महेश्वरी साड़ी के लिए भारत भर में प्रसिद्द है. घाट पर अत्यंत कलात्मक मंदिर हैं जिनमें राजराजेश्वर मंदिर प्रमुख है. आदि गुर शंकराचार्य एवं पंडित मंडन मिश्र का प्रसिद्ध शास्त्रार्थ यहीं संपन्न हुआ था.
इस शहर को महिष्मति नाम से भी जाना जाता है. महेश्वर का रामायण तथा महाभारत में भी उल्लेख मिलता है. देवी अहिल्या बाई होलकर के कालखंड में बनाये गए यहाँ के घाट बहुत सुन्दर हैं और इनका प्रतिबिम्ब नर्मदा नदी के जल में बहुत ख़ूबसूरत दिखाई देता है. महेश्वर इंदौर से ही सबसे नजदीक है.
इंदौर से 90  किलोमीटर की दुरी पर नर्मदा नदी के किनारे बसा यह ख़ूबसूरत पर्यटन स्थल मध्य प्रदेश शासन द्वारा “पवित्र नगरी” का दर्ज़ा प्राप्त है. अपने आप में कला, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं एतिहासिक महत्त्व समेटे यह शहर लगभग 2500 वर्ष पुराना है. मूलतः यह देवी अहिल्या बाई के कुशल शासनकाल और उन्हीं के कार्यकाल (1764 – 1795) में हैदराबादी बुनकरों द्वारा बनाना शुरू की गई “महेश्वरी साड़ी” के लिए आज देश विदेश में प्रसिद्द है.

महेश्वरी साड़ियाँ – देश विदेश में ख्याति प्राप्त
अपने धार्मिक महत्त्व में यह शहर काशी के सामान भगवान् शिव की नगरी है. मंदिरों और शिवालयों की निर्माण श्रंखला के लिए इसे “गुप्त काशी” कहा गया है. अपने पौराणिक महत्त्व में स्कंध पुराण, रेवा खंड तथा वायु पुराण आदि के नर्मदा रहस्य में  इसका “महिष्मति” नाम से उल्लेख मिलता है. एतिहासिक महत्त्व में यह शहर भारतीय संस्कृति में विशेष महत्त्व रखने वाले राजा महिष्मान, राजा सहस्त्रबाहू (जिन्होंने रावण को बंदी बना लिया था) जैसे राजाओं तथा वर पुरुषों की राजधानी रहा है. बाद में होलकर वंश के कार्यकाल में भी इसे प्रमुखता प्राप्त हुई.
महेश्वर के किले के अन्दर रानी अहिल्या बाई की राजगद्दी पर बैठी एक मनोहारी प्रतिमा राखी गई है. महेश्वर में घाट के पास ही कालेश्वर, राजराजेश्वर, विट्ठलेश्वर, और अहिल्येश्वर मंदिर हैं.
ये तो था एक संक्षिप्त परिचय महेश्वर से और अब हम चलते हैं अपने यात्रा वर्णन की ओर. बारिश का मौसम, सुबह सुबह का समय, अपना वाहन और इस सबसे बढ़कर सुहावना मौसम सब कुछ बड़ा ही अच्छा लग रहा था. रास्ते में बाहर जहाँ जहाँ तक निगाह जा रही थी सब दूर हरियाली ही हरियाली दिखाई दे रही थी. हम सभी को बारिश का मौसम बहुत ज्यादा पसंद है, खासकर मुकेश को. जैसे ही मानसून आता है, एक दो बार बारिश होती है बस इनका मन घुमने जाने के लिए मचल उठता है, और हमारे ज्यादातर टूर बारिश के मौसम में ही प्लान किये जाते हैं. मन में बहुत सारा उत्साह बहुत सारी उमंगें लिए हम बढे जा रहे थे अपनी मंजिल की ओर की तभी ऊपर आसमान में बादलों का मिजाज़ बिगड़ने लगा, काले काले बादल घिर आये थे और बिजली की कडकडाहट के साथ तेज बारिश शुरू हो गई. मौसम की सुन्दरता एवं बारिश का आनंद हम कार में बैठ कर तो भरपूर उठा रहे थे लेकिन अब हमें चिंता होने लगी थी की यदि बारिश बंद नहीं हुई तो हम महेश्वर में घुमक्कड़ी तथा फोटोग्राफी का आनंद नहीं उठा पायेंगे और मन ही मन भगवान् से प्रार्थना करने लगे की हमें महेश्वर में बारिश न मिले.
ईश्वर ने हमारी प्रार्थना स्वीकार कर ली थी और कुछ ही देर में मौसम खुल गया और पहले से और ज्यादा खुशगवार हो गया. सड़क के दोनों ओर कुछ देर के अंतराल पर भुट्टे सेंकनेवालों की छोटी छोटी दुकाने मिल रही थी, एक जगह से हमने भी भुट्टे ख़रीदे जो की बड़े ही स्वादिष्ट थे. बीच बीच में हमें जहाँ भी फोटोग्राफी के लिए अच्छा बेकग्राउंड दिखाई देता वहाँ उतर कर हम चित्र भी खिंचते जा रहे थे. बच्चों ने सुबह से कुछ खाया नहीं था अतः वे खाने की जिद करने लगे तो हमें भी भूख का एहसास हुआ और रास्ते में एक होटल से हमने गरमागरम प्याज के पकौड़े और खमण खाया और फिर से चल पड़े अपने सफ़र पर. रोड के किनारे पर लगे माईलस्टोन हमें बता रहे थे बस अब कुछ ही किलोमीटर्स के बाद हमारी मंजिल याने महेश्वर आनेवाला है. कार के स्टीरियो में मनपसंद गाने सुनते हुए और मौसम का आनंद उठाते हुए हम कब महेश्वर पहुँच गए हमें पता ही नहीं चला. करीब दो घंटे का सफ़र तय करके अब हम महेश्वर नगर की सीमा में प्रवेश कर चुके थे.
महेश्वर कस्बे के मुख्य बाज़ार एवं कुछ तंग गलियों को पार करते हुए आखिर हम अहिल्या घाट के पार्किंग स्थल तक पहुँच गए. कार पार्किंग की कुछ औपचारिकताएं पूरी करने के बाद और कुछ ज़रूरी सामान एक छोटे बैग में डालने के बाद हम पैदल ही अहिल्या घाट की ओर बढ़ चले. कुछ ही कदमों के पैदल सफ़र के बाद अब हम महेश्वर के मुख्य आकर्षण यानी अहिल्या घाट पर पहुँच गए थे. इस बार हम काफी लम्बे समय के बाद महेश्वर आये थे अतः सबकुछ नया नया सा ही लग रहा था. बारिश के मौसम तथा लगातार वर्षा की वजह से नर्मदा का जल मटमैला सा हो गया था और चाय की तरह दिखाई दे रहा था. नदी का जलस्तर भी काफी बढ़ा हुआ था.

अहिल्या घाट पर स्थित एक प्राचीन  शिव मंदिर

कहते हैं की गंगा नदी में स्नान से तथा नर्मदा के सिर्फ दर्शनों से कई जन्मों के पापों से मुक्ति मिल जाती है - आप भी कर लीजिये

नर्मदा नदी पर अहिल्या घाट

घाट – एक और चित्र

घाट से दिखाई देता महेश्वर का किला - किले पर ऊपर एक सफ़ेद  भवन जो आप देख रहे हैं वही देवी अहिल्या बाई का निवास स्थान था जिसे आजकल होटल अहिल्या फोर्ट का रूप दे दिया गया है

अहिल्या घाट पर नौका
आम तौर पर लम्बी यात्राओं पर जाने के लिए हमें बहुत सारा सामान, कपडे, कई बेग्स आदि रखने पड़ते हैं लेकिन यहाँ हम इस परेशानी से पूरी तरह से मुक्त थे, बस एक छोटे पोली बेग में टॉवेल वगैरह रख लिया था, और अब हम महेश्वर के प्रसिद्द अहिल्या घाट पर थे. सबसे पहले हम लोग घाट की निचली सीढ़ी पर नर्मदा जी में पैर लटका कर बैठ गए और नदी की लहरों का आनंद लेने के साथ आगे का प्लान भी कर रहे थे. चूँकि मौसम पहले से ही बारिश की वजह से ठंडा हो गया था और हम घर से नहा कर भी चले थे अतः नहाने का तो किसी का मन नहीं था, तो हमने सोचा की पहले घाट के मंदिरों के दर्शन कर लिए जाएँ उसके बाद किला, किले में स्थित मंदिर और देवी अहिल्या बाई की गद्दी, उनका पूजन स्थल, रेवा सोसाइटी के हथकरघे जहाँ स्थानीय महिलायें महेश्वरी साड़ियाँ बुनती हैं आदि जगहों के दर्शन करके अंत में बोट में बैठकर मां नर्मदा का एक चक्कर लगाया जाय. लेकिन हमारे लिटिल चेम्प शिवम् को हमारा यह प्रोग्राम नहीं जमा, उसका कहना था की सबसे पहले बोट में घुमाओ उसके बाद ही बाकी जगह जायेंगे. हम दोनों उसको समझाने की कोशिश कर रहे थे की पहले किला घूम कर आते हैं फिर आराम से बोटिंग करेंगे, लेकिन वो बिलकुल भी मानने को तैयार नहीं था और घाट की सीढियों पर मुंह फुला कर बैठ गया, उसका यूँ गुस्से में मुंह फुला कर बैठना हमें इतना अच्छा लगा की मुकेश ने उसी पोजीशन में उसके दो चार फोटो खिंच लिए. और अंततः हमें उसकी बात माननी पड़ी और सबसे पहले बोटिंग करने का फैसला किया गया.

मुंह फुला कर बैठा शिवम् – उसे सबसे पहले बोटिंग करनी थी
अहिल्या घाट से कुछ ही दुरी पर नर्मदा नदी के बीचोबीच एक सुन्दर सा शिवालय है, नाव वाले यात्रियों को उस मंदिर तक ले कर जाते हैं और वापस अहिल्या घाट पर छोड़ देते हैं. आज चूँकि ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी अतः कुछ नाव वाले ग्राहकों की प्रतीक्षा में ही बैठे थे. हमने एक नाविक से चार्ज पूछा तो उसने बताया की शिव मंदिर तक जाकर लौटने के 300 रुपये लगेंगे और आधी दुरी से वापस आने के 150 रुपये. मुकेश को यह रेट कुछ ज्यादा लगा, और उन्होंने नाव वाले को समझाने की कोशिश की तो वह समझ गया की हम बाहर के नहीं हैं यहीं के रहने वाले हैं और यह हमारा ही गृह जिला है |

अहिल्या घाट – एक अन्य दृश्य

अहिल्या घाट और माँ नर्मदा

सांस्कृतिक नगरी में संस्कृति

बड़े शिवालयों के अलावा महेश्वर के घाटों पर इस तरह के अनगिनत शिव लिंग स्थापित किये गए हैं

घाट का एक अन्य दृश्य

महान शिवभक्त देवी अहिल्या बाई होलकर तथा साथ में खड़ी भक्त की भक्त

घाट पर स्थापित एक अन्य शिवलिंग

घाट से किले तथा किले के अन्दर स्थित प्राचीन राजराजेश्वर मंदिर जिसमें देवी अहिल्या बाई प्रतिदीन पूजन अभिषेक किया करती थीं का विहंगम दृश्य

एक अन्य मनोहारी दृश्य
खैर वह नाव वाला तो भाव ताव करने में ज्यादा रुची नहीं ले रहा था लेकिन पास ही खड़ा दूसरा नाव वाला हमें मात्र 100 रुपये में मंदिर तक का चक्कर लगवाने के लिए राजी हो गया, हम तो खुश हो गए कहाँ 300 रु. की बात हो रही थी और कहाँ 100 रु. में सौदा पक्का हो गया.  और हम सब बिना देर किये नाव में सवार हो गए, अब हमारे छोटे उस्ताद के चेहरे पर लालिमा दौड़ गई थी और वो बड़ा खुश दिखाई दे रहा था. आज के इस भाग में बस इतना ही अब अगले भाग में महेश्वर के अहिल्या घाट के आसपास नर्मदा नदी में नाव की सवारी, तथा महेश्वर के किले के दर्शन करवाउंगी.

नर्मदे हर………….
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